संदीप पौराणिक
कहा जाता है कि जो गलतियां से सीखते हैं, वे दोबारा गलती को दोहराते नहीं है, मगर गलतियां से सीख न लेने वाले गलतियां लगातार दोहराते रहते हैं। मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं की हालत कमोबेश गलती से सीख न लेने वालों जैसी है। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव भले ही अभी तीन वर्ष दूर हों, लेकिन दिग्गज नेताओं के समर्थकों ने 'अपनी ढपली अपना राग' अलापना शुरू कर दिया है।
राज्य में बीते तीन विधानसभा चुनावों में लगातार कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। वहीं लोकसभा व नगरीय से लेकर पंचायत चुनावों तक में कांग्रेस को जीत के लिए तरसना पड़ा है। बीते लोकसभा चुनाव में 29 में से सिर्फ दो सीटों पर छिंदवाड़ा में कमलनाथ और गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत हासिल हुई थी।
राज्य में कांग्रेस की पहचान गुटों में रही है। यहां दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सिंधिया, सुरेश पचौरी गुट किसी से छुपे नहीं है, यहां जब भी चुनाव आते हैं, कांग्रेस के ये गुट सतह पर दिखाई देने लगते हैं। बीते छह माह में कांग्रेस ने एकजुटता दिखाने की कोशिश की तो उसके नतीजे भी कांग्रेस के पक्ष में जाते नजर आए।
रतलाम संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने जीत दर्ज की तो सात नगर निकाय के चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। वहीं कांग्रेस को कमजोर रणनीति के चलते मैहर विधानसभा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा है।
राज्य में अभी विधानसभा चुनाव दूर हैं, मगर कांग्रेस के कई नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है, क्योंकि वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण पार्टी की मजबूती के लिए प्रदेशव्यापी जन विश्वास यात्राएं कर रहे हैं और युवाओं, दलित, आदिवासियों को कांग्रेस से जोड़ने में लगे हैं।
यादव की सक्रियता कई नेताओं केा रास नहीं आ रही है, यही कारण है कई विधायकों ने राज्य की कमान पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को सौंपने की वकालत तेज कर दी है।
कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बाला बच्चन ने तो खुले तौर पर कमलनाथ को पार्टी की कमान सौंपने की बात कही है। उनका कहना है कि कमलनाथ को जिम्मेदारी सौंपे जाने से राज्य में पार्टी को लाभ मिलेगा।
बच्चन की बात का एक अन्य विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने भी समर्थन किया है। उनका कहना है, "बच्चन हमारे नेता हैं, हम उनकी बात का समर्थन करते हैं। कमलनाथ को नेतृत्व सौंपे जाने से कांग्रेस राज्य में मजबूत होगी।"
वहीं युवा विधायक और दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह का कहना है, "पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही करेंगे, जहां तक कमलनाथ की बात है, वह मेरे पिता तुल्य हैं। अभी अरुण यादव हमारे नेता हैं, मैं भी उनके साथ पदयात्रा करता हूं।"
कांग्रेस में बढ़ रही नेता-भक्ति का नजारा पहली बार देखने को नहीं मिल रहा है। इससे पहले भी कई प्रदेशाध्यक्षों की जमीन कमजोर करने के लिए दूसरे नेताओं के नाम उछाले जाते रहे हैं। वही एक बार फिर हो रहा है।
राज्य के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी ने आईएएनएस से कहा है कि राज्य में आधी से ज्यादा कांग्रेस तो भाजपा से मिली हुई है, क्योंकि कई नेताओं के व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं। जब भी कोई नेता कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने निकलता है, अपनी पारी खेल चुके नेता अपने समर्थकों के जरिए उसकी टांग खींचने में लग जाता है। अब अरुण यादव के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।
तिवारी का कहना है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की दिलचस्पी इस बात में कम ही रही है कि कांग्रेस मजबूत हो, क्योंकि किसी की खुल्लम-खुल्ला तो किसी की लुके-छुपे भाजपा के नेताओं के साथ व्यापारिक साझेदारी है। यही कारण है कि वे हमेशा इसी में लगे रहते हैं कि कांग्रेस मजबूत नहीं, टुकड़ों में बंटी नजर आए।