रायपुर: 19 मार्च/ बस्तर में माओवादियों के दमन के नाम पर सुरक्षा बलों तथा प्रशासन द्वारा बड़े पैमाने पर किये जा रहे मानवाधिकारों के दमन और आदिवासियों, विशेषकर महिलाओं के खिलाफ किये जा रहे अत्याचारों की शिकायतों की छानबीन के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने बस्तर के कुछ गांवों का दौरा किया, नागरिकों के साथ बातचीत की, बीजापुर प्रशासन को हालात से अवगत कराया तथा अपने सुझाव भी दिए.
छत्तीसगढ़ व बस्तर में हिंसक माओवादी गतिविधियों और निर्दोष नागरिकों के मारे जाने की हम तीखी निंदा करते हैं. माओवादी गतिविधियों ने विकास कार्यों को अवरूद्ध किया है और बुनियादी मानवीय सुविधाओं तक से उन्हें वंचित किया है. लेकिन इसके साथ ही माओवादी गतिविधियों के दमन के नाम पर सुरक्षा बलों के एक छोटे-से हिस्से द्वारा ग्रामीणों को लूटे जाने तथा आदिवासी महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न और सामूहिक बलात्कार की जो पुष्ट घटनाएं हमारे सामने आई है, वे भी न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि ऐसी गैर-कानूनी हरकतों से समूचा सुरक्षा बल बदनाम हुआ है. पीड़ित महिलाओं ने कुकृत्य में शामिल कुछ जवानों के नाम भी बताएं हैं. एफ.आई.आर. हुए दो माह हो चुके हैं, मानवाधिकार आयोग के दौरे हो चुके हैं, विभिन्न नागरिक संगठन आंदोलित हैं, लेकिन प्रशासन इन दोषी जवानों को बचाने की कोशिश कर रहा है. भाजपा सरकार को चाहिए कि सभी दोषी जवानों की शिनाख्त करें तथा उनके खिलाफ उदाहरणीय कानूनी कार्यवाही करें. इसी से जनता का विश्वास जीता जा सकता है.
बीजापुर जिले का नेंड्रा गांव पक्के सड़क मार्ग से मात्र 5-6 किमी. दूर है. लेकिन वहां प्रशासन की कोई पहुंच नहीं है. काम के अभाव में लोग पलायन को विवश है. मनरेगा कार्यक्रम तक की उन्हें कोई जानकारी नहीं है. जिलाधीश ने जानकारी दी है कि 169 ग्राम पंचायतों में से 55 पंचायतें व इनके अंतर्गत आश्रित ग्राम पहुंचविहीन है इस गांव के लोगों ने जानकारी दी कि 35 किलो चावल के भी उनसे 100 रूपये लिए जाते हैं. राशन का अन्य सामान तो मिलता ही नहीं, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच से भी वे वंचित हैं. कमोबेश यही स्थिति सुकमा जिले के कुन्ना गांव की है. यहां 1000 से ज्यादा ग्रामीण इकट्ठे हुए थे. यहां भी सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं को नग्न कर प्रताड़ित किये जाने की ठोस शिकायतें मिली. मनरेगा मजदूरों का करोड़ों का भुगतान सुकमा जिले में बकाया है. हमने पाया कि आदिवासी वनाधिकार विधेयक तक बस्तर में लागू नहीं हो पाया है, जो आदिवासियों का जल, जंगल व जमीन पर पारंपरिक हक सुनिश्चित करता है.
माकपा नेताओं ने सोनी सोरी से भी मुलाक़ात की व उन पर हो रहे अत्याचारों की जानकारी ली. यह वाकई भयावह है कि उन पर जघन्य हमला करने वालों को तो प्रशासन पकड़ नहीं पाई है, उनके परिवारजनों को ही हर तरह से डराया-धमकाया जा रहा है. पीड़ितों को मदद पहुंचाने वाले वकीलों व पत्रकारों को जगदलपुर छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा है, यह सरकार की नाकामी को ही दर्शाता है कि वह नागरिक अधिकारों की रक्षा करने में सफल नहीं हो पा रही है.
बस्तर में आदिवासियों की जान-माल की सुरक्षा के साथ ही विकास कार्यों पर प्रशासन को जोर देना होगा, ताकि बुनियादी मानवीय सुविधाओं तक नागरिकों की पहुंच सुनिश्चित हो सकें. साथ ही, माओवादी विचारधारा के खिलाफ संघर्ष चलाना होगा तथा लोकतांत्रिक आंदोलनों को बढ़ावा देना होगा. नागरिकों के विरोध को सशस्त्र बलों द्वारा कुचलने तथा उनके मानवाधिकारों के दमन से माओवादी आंदोलन को ही खाद-पानी मिलेगा.
हमारे प्रतिनिधिमंडल को पुलिस प्रशासन ने संबंधित गांवों में जाने से रोकने की सुनियोजित कोशिश की. सुकमा पुलिस ने हमें कुकानार में जबरदस्ती रोका, सुरक्षा देने से इनकार किया. प्रशासन के इस रवैये की हम तीखी निंदा करते हैं. लेकिन अपने दृढ़ संकल्प के साथ हम गांवों में पहुंचने में कामयाब रहे. अपने दौरे की रिपोर्ट हम गृहमंत्री राजनाथसिंह को भी देंगे तथा अपने सुझावों से भी उन्हें अवगत करायेंगे.
माकपा के इस प्रतिनिधिमंडल में जनवादी महिला समिति की नेता तापसी प्रहराज (ओड़िशा), आशा लता (आंध्र), माकपा के छ.ग. सचिव संजय पराते, सचिवमंडल सदस्य एम. के. नंदी, आदिवासी एकता महासभा के सचिव बालसिंह व विज्ञान सभा कार्यकर्ता पी. सी. रथ शामिल थे. इस दौरे को सफल बनाने में भाकपा नेता मनीष कुंजाम, रामा सोढ़ी, नंदाराम सोढ़ी, लक्ष्मण कुंजाम व कुसुम नाग का सराहनीय योगदान प्राप्त हुआ.
नागरिक अधिकारों के दमन से माओवादी समस्या से निपटना संभव नहीं- जीतेन्द्र चौधरी
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