मां का दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता के लिए जरूरी
न्यूयॉर्क, 8 मई (आईएएनएस)। मां का दूध संतान का केवल पेट ही नहीं भरता, बल्कि उसे शक्ति प्रदान कर कई रोगों से भी बचाता है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि मां के दूध से बच्चे को एंटीबॉडीज और माइक्रोब्स प्राप्त होते हैं, जो उसके पेट की प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं में मजबूती लाते हैं।
मां के दूध के द्वारा संतान में पहुंचने वाले एंटीबॉडीज नवजात के प्रतिरक्षा तंत्र से संयोजित आजीवन प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को आकार देते हुए पेट के बैक्टीरिया और स्तनधारी परजीवी के बीच सुरक्षा दीवारों और संतुलन का निर्माण करते हैं।
अगर यह संतुलन स्थापित नहीं होता है तो इससे संतान में कई रोग जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस और इंफ्लेमेटरी बॉवेल (प्रदाहक आंत) होने का खतरा होता है।
युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-बर्कले से इस अध्ययन की मुख्य लेखिका मीघन कोच ने बताया, "यह अध्ययन वास्तविक सबूत प्रदान करता है कि मां का दूध बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।"
यह शोध 'जर्नल सेल' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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हल्के भूकंप से भी आ सकती है सुनामी
न्यूयॉर्क, 8 मई (आईएएनएस)। धीमी गति के भूकंप या धीमी रफ्तार से प्लेटों के खिसकने की घटना भी किसी बड़े भूकंप और सुनामी का कारण बन सकती हैं।
धरती के नीचे प्लेटों की धीमी गति से खिसकने की घटना का परिणाम भी भूकंप के समान होता है, लेकिन धरती की दो प्लेटों के बीच तनाव पैदा करने की घटना कुछ सेकंड से लेकर दिन या सप्ताह तक चल सकती है, जिसके कारण प्लेटों के बीच एक सेंटीमीटर तक का खिसाव हो जाता है।
समुद्र के नीचे की सतह के दबाव को रिकॉर्ड करने वाले उच्च संवेदनशील रिकॉर्डर का इस्तेमाल कर अमेरिका, जापान और न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने न्यूजीलैंड के पूर्वी तट से दूर एक मामूली खिसाव का पता लगाया।
जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह लेखक योशिहिरो इतो ने कहा, "हमारे परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि जहां प्लेटें खिसकती हैं वहां यह घटना भूकंप लाने या सुनामी पैदा करने में सक्षम हैं।"
इतो ने कहा, "इसने कम गहरे पानी और समुद्र तट से दूर समुद्र में चट्टानों के खिसकने की घटनाओं पर लगातार नजर रखने की हमारी जरूरत को बढ़ा दिया है। जैसा जापान के समुद्र तट से दूर निगरानी के लिए स्थाई नेटवर्क स्थापित किया गया है, उसी तरह जिन क्षेत्रों में धरती के नीचे की प्लेटें खिसक रही हैं, वहां नेटवर्क बनाने की जरूरी है।
दो हफ्तों के अंदर न्यूजीलैंड और प्रशांत महासागर से लगी प्लेटें 15-20 सेंटीमीटर खिसकीं। यह दूरी प्लेटों के तीन से चार साल के अंदर तय गई दूरी के बराबर है।
यदि यह खिसकाव धीरे-धीरे नहीं होकर अचानक हुआ, होता तो इसकी वजह से 6.8 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता था।
इस दल ने धीमी खिसकाव की घटना का जहां अध्ययन किया है, वहां 1947 में 7.2 की तीव्रता वाला भूकंप आया था और उसकी वजह से एक बड़ी सुनामी आई थी।
इस अध्ययन का निष्कर्ष धरती की प्लेटों के खिसकाव और सामान्य भूकंप के बीच संबंध की समझ को बढ़ाता है। यह दिखाता है कि दो तरह की भूकंपीय घटनाएं किसी एक ही प्लेट की सीमा क्षेत्र में हो सकती हैं।
कुछ मामलों में तो इन हल्के खिसकावों का भी संबंध विनाशकारी भूकंप को उभारने से रहा है। जैसे वर्ष 2011 में जापान में आए 9 की तीव्रता वाले तोहोकु-ओकी भूकंप ने सुनामी पैदा की, जिसकी वजह से फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र में तबाही हुई।
इस अध्ययन के सह लेखक कोलंबिया विश्वविद्यालय के लैमोंट-दोहटी अर्थ ऑबजर्वेटरी के स्पार वेब कहते हैं, "हमारे न्यूजीलैंड के प्रयोग का परिणाम दर्शाता है कि सुनामी और भूकंप की पहले चेतावनी देने के लिए प्रशांत महासागर के पश्चिमोत्तर में जहां समुद्र तट से दूर पृथ्वी के नीचे की प्लेटें टकराती हैं, वहां निगरानी प्रणाली के इस्तेमाल करने की बहुत संभावना है।"
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बुरी यादों को भुलाना संभव
न्यूर्याक, 7 मई (आईएएनएस)। कुछ लोग बुरी यादों के मकड़जाल में इस तरह फंस जाते हैं कि उनका भविष्य अंधकारमय लगने लगता है, लेकिन अगर हम अपनी सोच की प्रक्रिया को बदल दें, तो अपनी बुरी यादों को भूल सकते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
अध्ययन में विभिन्न तथ्यों जैसे चाहत के अनुसार इच्छाओं को बढ़ाने के लिए नई शैक्षणिक विधि और बुरे अनुभवों को खत्म करने, सदमा संबंधित तनाव अनियमतिताओं को दूर करने के लिए इलाज का भी सहारा लिया गया है।
काफी समय से याददाश्त को वापस लाने या फिर याददाश्त को नियमित करने के लिए परापंरागत रूप से हम उन तमाम साधनों- जैसे उन दृश्यों, आवाजों, गंधों तथा हम कहां और किसके साथ हैं, का प्रयोग करते रहे हैं।
लेकिन इस अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि हम जिन बीते हुए अनुभवों को हमेशा के लिए भूलना चाहते हैं, क्या हम वाकई उसे भूल सकते हैं और अगर हां तो कैसे।
अध्ययनकर्ताओं ने प्रतिभागियों को जंगल, पहाड़ और समुद्र तटों जैसे बाहरी दृश्यों की तस्वीरें दिखाईं और आकस्मिक शब्दों की दो सूची पढ़ने को दी।
बाद में प्रतिभागियों से कहा गया कि सूची के जिन शब्दों को भूलना या याद रखना चाहते हैं, उन्हें तस्वीरों के बीच में रखें।
साइकोनॉमिक बुलेटिन एंड रिव्यू जर्नल में प्रकाशित लेख में अध्ययन के प्रमुख अमेरिका के न्यू हैम्पशायर स्थित डार्टमाउथ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर जेरेमी मैनिंग ने बताया कि प्रतिभागियों की जांच के लिए एफएमआरआई का प्रयोग कर यह जानने की कोशिश की गई कि वे हर पल दृश्य संबधित चीजों के बारे में कितना सोचते हैं। हमने पल-पल उनकी गतिविधियों का अध्ययन किया और यह देखा कि समय के साथ साथ लोगों की सोच में कैसे बदलाव आता है।
प्रतिभागियों को जब कुछ भूलने को कहा गया, तो एफएमआरआई में पता लगा कि दृश्य संबधित गतिविधियां उनके दिमाग से गायब हो गई हैं।
मैनिंग ने बताया कि अगर आप अपनी दादी को याद करना नहीं चाहते हैं, तो ये बात आपकी सोच से गायब हो जाएगी कि कैसे आपकी दादी खाना बनाती थी।
मैनिंग ने कहा कि अध्ययन में मस्तिष्क के आंकड़ों को भौतिक रूप से मापने और उसकी मात्रा निर्धारण करने में उन्हें काफी सफलता मिली।
लेकिन जब प्रतिभागियों से भूलने के बजाय सूची को याद रखने के लिए कहा गया, तो दृश्य संबंधित विचार गायब हो गए और वे वापस नहीं आ पाए।
इस तरह जब लोग दृश्य संबंधी विचारों को भूल जाते हैं, तो यह कहा जा सकता है कि पढ़े हुए शब्द उन्हें बाद में याद आ सकते हैं। अध्ययन में यह साफ हो गया कि अगर आप कुछ भूलना चाहें, तो भूल सकते हैं।
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बीजिंग के संग्रहालय ने कराई प्राचीन अवशेषों की खोज
बीजिंग, 6 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। बीजिंग के 'फॉरबिडेन सिटी' पैलेस संग्रहालय ने युआन राजवंश (1271-1368) के इमारतों के अवशेष की खोज कराई है। शोधकर्ताओं ने 600 से भी अधिक साल पहले के इस संग्रहालय में काम करने के दौरान यह खोज की है। इसे आधिकारिक रूप से पैलेस संग्रहालय कहा जाता है।
संग्रहालय के पुरातत्व विभाग के प्रमुख ली जी ने बताया कि मिंग और किंग के राजवंशों (1368-1911) द्वारा इस्तेमाल के किए इस पूर्व शाही महल की नींव के नीचे मिले यह अवशेष युआन राजवंश के काल के हो सकते हैं।
यह महल परिसर चीनी सम्राटों के घर और 1420 से 1911 के बीच सत्ता का सर्वोच्च केंद्र था।
उन्होंने बताया कि यह नए निष्कर्ष महल के इतिहास और प्राचीन बीजिंग के अभिन्यास को समझने में मदद करेंगे।
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बिहार : वेबसाइट पर आया अपराधियों का रिकार्ड
मनोज पाठक
पटना, 6 मई (आईएएनएस)। बिहार के अपराधियों के इतिहास की जानकारी अब मात्र एक क्लिक के जरिए लोगों को उपलब्ध होगी। बिहार में सभी तरह के अपराधियों के अपराध का इतिहास सहित उसका पूरा बॉयोडाटा बिहार के गृहविभाग की वेबसाइट पर डाला जा रहा है।
गृह विभाग ने अपराधियों का रिकार्ड वेबसाइट पर लाने की जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को सौंपी है।
बिहार राज्य गृह विभाग के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि सजायाफ्ता अपराधियों की सूची ऑनलाइन करने का मकसद अपराध पर नियंत्रण के साथ-साथ कानून का राज स्थापित करना है।
गौरतलब है कि इस योजना की शुरुआत वर्ष 2013 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने की थी, लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। वहीं गृह विभाग ने एक बार फिर राज्य के सभी प्रमंडलीय आयुक्त, पुलिस महानिरीक्षक, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक को ऐसी सूची तैयार करने का निर्देश दिए हैं।
सूत्रों का कहना है कि हथियार के लाइसेंस लेने, जनवितरण प्रणाली की दुकान लेने तथा बैंक से ऋण लेने के दौरान या सरकारी सेवा के आवेदनपत्र की छानबीन के दौरान अधिकारियों को आवेदनकर्ता का इतिहास ढूंढ़ने या उसके आपराधिक पृष्ठभूमि को जानने में काफी परेशानी होती थी।
इस लिंक के द्वारा किसी भी अपराधिक इतिहास वाले व्यक्ति की तत्काल पहचान की जा सकेगी।
बिहार राज्य गृह विभाग के विशेश सचिव जितेंद्र कुमार कहते हैं, "इस तरह की सूची एक ही स्थान पर उपलब्ध होने से कानून का राज कायम करने में काफी सहूलियत होगी। अपराधियों की सूची जिलास्तर पर तैयार कराई जा रही है। सूची तैयार कराने के बाद इसके प्रचार-प्रसार के लिए भी अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। इसका नाम 'सिविल कॉन्सीक्वेंसेज ऑफ क्राइम' दिया गया है।"
गृह विभाग के अनुसार, फरवरी तक जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 21,057 अपराधियों की सूची तैयार कर ली गई है। इसमें से सबसे अधिक लोग गया और पटना की जेलों में बंद हैं।
इस योजना का शुभारंभ करने वाले पूर्व पुलिस महानिदेशक अभयानंद कहते हैं, "संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में सभी व्यक्तियों की जानकारी एक वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। हम लोग अभी डिजिटल प्रणाली विकसित करने की राह पर हैं।"
उन्होंने कहा कि इस सूची को तैयार करने का मकसद है, सजायाफ्ता अपराधी अगर सार्वजनिक जीवन में आए तो उसे उसका अपराध याद दिलाना।
--आईएएनएस
शहरी नहीं, ग्रामीण बच्चों में बढ़ रहा मोटापा
जिनान, 1 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। आमतौर पर शहरी खानपान और जीवनशैली को मोटापे का सबसे बड़ा कारण माना जाता है, लेकिन चीन में हुए एक सर्वेक्षण के नतीजे कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।
नए अध्ययन के मुताबिक, चीन के ग्रामीण में बच्चों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है।
अध्ययन के नतीजे 'यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी' में प्रकाशित हुए हैं, जिसके अनुसार, चीन के शान्डोंग प्रांत में साल 1985 के मुकाबले साल 2014 में ग्रामीण इलाकों के बच्चों और किशोरों में मोटापा अधिक देखा गया।
यह निष्कर्ष शान्डोंग के ग्रामीण स्कूलों के लगभग 28,000 छात्रों के बारे में 29 साल के आकलन के आधार पर निकाला गया। सर्वेक्षण में शामिल छात्रों की उम्र सात से 18 वर्ष थी।
अध्ययन के अनुसार साल 2014 में 17.2 प्रतिशत लड़के मोटापे से ग्रस्त थे, वहीं 1985 में यह दर 0.03 प्रतिशत थी। लड़कियों के बीच मोटापे की दर 2014 में 9.11 प्रतिशत रही, जो साल 1985 में यह दर 0.12 फीसदी थी।
अध्ययन के सह-लेखक झांग यिंग्शू ने बताया कि साल 2014 में मोटे लड़कों और लड़कियों का प्रतिशत भी बढ़कर क्रमश: 16.35 प्रतिशत और 13.91 प्रतिशत हो गया, जबकि साल 1985 में यह क्रमश: 0.74 प्रतिशत और 1.45 प्रतिशत था।
उन्होंने कहा कि यह वृद्धि सात से 12 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में अधिक देखी गई।
झांग के अनुसार, शहर के लोग संतुलित आहार की तरफ अधिक ध्यान देते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग अब भी सब्जियों की जगह मांस पसंद करते हैं और बहुत ज्यादा नमकीन तथा तैलीय खाना खाते हैं।
उन्होंने कहा, "आहार आदतें एक जटिल सामाजिक मुद्दा है और ग्रामीण समुदाय के लोगों को संतुलित आहार के महत्व का एहसास करने के लिए विकास के एक निश्चित चरण में प्रवेश करने की जरूरत है।"
मोटापा हाईपरटेंशन, मधुमेह और हृदय रोग का कारण हो सकता है।
--आईएएनएस
बच्चों के सिर के पीछे मारने से मानसिक क्षमता पर असर
बीजिंग, 1 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। कई सारे माता-पिता अपने अनुशासनहीन बच्चों के सिर के पीछे हल्के थप्पड़ को अपेक्षाकृत सुरक्षित दंड मानते हैं। लेकिन 50 साल के लंबे शोध से पता चला है कि नाराज माता-पिता को बच्चों के सिर के पीछे थप्पड़ लगाने से पहले दो बार सोचना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
शोध के अनुसार, बच्चों के सिर के पीछे हल्के थप्पड़ मारने से उनमें मानसिक समस्याओं और संज्ञानात्मक क्षमताओं का जोखिम बढ़ जाता है।
निष्कर्षो तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने पांच दशकों के डेटा का विश्लेषण किया। इस दौरान शोधार्थियों ने 1,60000 बच्चों के जीवन का आकलन किया। इस दौरान शोधार्थियों ने इस अनुभव से गुजरने वाले बच्चों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के विकास की संभावना के बीच एक सकारात्मक संबंध पाया।
ऑस्टिन स्थित युनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से इस अध्ययन की लेखिका एलिजाबेथ जेरशॉफ के अनुसार, "हमने शोध में देखा कि सिर के पीछे थप्पड़ लगाना हानिकारक निष्कर्षो के साथ संबंधित है। साथ ही माता-पिता अगर सोचते हैं कि ऐसा करने से उनके बच्चे सुधर जाएंगे, तो यह गलत है क्योंकि इस तरह का व्यवहार बच्चों को अधिक समय तक सुधार कर नहीं रख सकता है।"
यह शोध 'जर्नल ऑफ फैमिली साइकॉलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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पुदीने की चाय बढ़ाती है याददाश्त
लंदन, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। अगर आप बमुश्किल किसी चीज को याद रख पाते हैं, तो पुदीने की चाय पीजिए, क्योंकि एक शोध में पता चला है कि पुदीने की चाय स्वस्थ वयस्कों की याददाश्त लंबी अवधि के लिए सुधार सकती है।
इस शोध के लिए अध्ययनकर्ताओं ने 180 प्रतिभागियों को पुदीने की चाय, कैमोमिल (बबूने का फूल) की चाय और गर्म पानी का सेवन कराया था।
शोध के परिणामों से पता चला कि है कि कैमोमिल और गर्म पानी का सेवन करने वालों की तुलना में जिन प्रतिभागियों ने पुदीने की चाय का सेवन किया था, उनकी दीर्घकालिक स्मरणशक्ति और सतर्कता में महत्वपूर्ण सुधार देखे गए।
वहीं कैमोमिल चाय का सेवन करने वाले प्रतिभागियों में पुदीने की चाय और गर्म पानी का सेवन करने वाले प्रतिभागियों की तुलना में स्मृति और एकाग्रता की क्षमता में कमी महसूस की गई।
इस शोध को हाल ही में नॉटिंघम में आयोजित साइकोलॉजिकल सोसाइटी के वार्षिक सम्मेलन में पेश किया गया था।
--आईएएनएस
रात्रि की पाली करने से महिलाओं को हृदय रोग का खतरा
वाशिंगटन, 27 अप्रैल (आईएएनएस/सिन्हुआ)। रात्रि की पाली और उसमें बार-बार फेरबदल से महिलाओं में हृदय रोग का खतरा संभवत: थोड़ा बढ़ सकता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
अध्ययन में पाया गया है कि जो महिलाएं दस साल से अधिक समय से रात्रि की पाली में काम कर रही हैं, उनमें 15 से 18 प्रतिशत अधिक कोरोनरी हार्ट डिसीस (सीएचडी) का जोखिम होता है।
सीएचडी की कई वजह होती हैं जैसे धूम्रपान, असंतुलित आहार, शारीरिक श्रम की कमी और उच्च बॉडी मास इंडेक्स।
अमेरिका के ब्रिंघम एंड विमेन्स हॉस्पिटल से इस अध्ययन की मुख्य लेखिका सेलीन वेटर ने एक बयान में कहा, "शोध के दौरान हमने देखा कि इन जोखिम कारकों पर नियंत्रण के बावजूद भी रात्रि की पाली में बदलाव से महिलाओं में सीएचडी का जोखिम रहता है।"
शोधार्थियों ने रात्रि की पाली और सीएचडी के संबंधों को जानने के लिए नर्सेस हेल्थ वन और नर्सेस हेल्थ टू के आंकड़ों का अध्ययन किया था, जिसमें 24 साल की अवधि में 2,40,000 महिला नर्सो का अध्ययन किया गया था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
युवा अभियंता बच्चों को दे रहे रोबोट बनाने की प्रेरणा
जयदीप सरीन
चंडीगढ़, 18 अप्रैल (आईएएनएस)। अक्षय आहूजा मात्र 23 साल के हैं, लेकिन उनकी कम उम्र नौ साल के बच्चों को भी अपने अभियंत्रण का कौशल सिखाने और उन्हें रोबोट बनाने में मदद करने से नहीं रोक पाई। वह नई दिल्ली में एक ऐसे रोबोटिक शो के आयोजन की योजना बना रहे हैं, जिसमें 20 हजार बच्चे भाग लेंगे।
आहूजा खुद इंजीनियर हैं। उनका 'रोबोटिक्स एजुकेशन वर्ल्ड' अभी शुरू ही हुआ है। वह चाहते हैं कि विज्ञान बच्चों के लिए एक मजे की चीज हो और इसमें रोबोटिक्स के जरिए उनकी मदद की जाए।
आहूजा ने इंजीनियरिंग के छात्रों की मदद के लिए वर्ष 2013 में अपनी कंपनी की शुरुआत की थी। उन्होंने जल्दी ही युवाओं के दिमाग में रुचि जगाने का तरीखा खोज लिया। यहां तक कि उन्हें लगा कि स्कूली बच्चों को भी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी का कौशल सिखाया जा सकता है।
मूलत: लुधियाना के रहने वाले आहूजा ने आईएएनएस को से कहा, "विचार यह था कि चीजों को सैद्धांतिक से अधिक व्यावहारिक बनाया जाए। शोध करते हुए मैंने महसूस किया कि शिक्षा प्रणाली छात्रों को यह जानने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती कि किस तरह से सिद्धांत बनाए गए। मैंने अपने दृष्टिकोण की जांच करने के लिए एक छात्र को प्रशिक्षित किया जिसका नाम अपना रोबोट बनाने के लिए 'इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड' में दर्ज हुआ।"
वह बताते हैं, "हमारी कंपनी में इंजीनियरिंग के मात्र 29 छात्र थे जिन्होंने कार्यशाला में भाग लिया था। जब कार्यशाला चल रही थी तभी मैंने महसूस किया कि इसमें थोड़ा परिवर्तन कर दिया जाए तो इसमें स्कूली बच्चों की भी रुचि हो सकती है।"
आहूजा ने कहा, "कॉलेज के छात्रों के साथ काम करते हुए वर्ष 2013 में मैंने नौ साल के एक बच्चे से वहीं प्रशिक्षण लेने को कहा जिसे वे छात्र ले रहे थे। छह माह के प्रशिक्षण के समाप्त होने पर मैंने पाया कि बच्चे ने इंजीनियरों से अधिक सीख लिया है। उसके बाद मैंने नौ साल के कुछ और बच्चों को प्रशिक्षण दिया। वे आईआईटी दिल्ली गए और उन्होंने इंजीनियरों के साथ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। कुल 32 टीमों में वे तीसरे स्थान पर आए।"
अक्षय ने उत्साहित होकर बताया कि उन्हीं बच्चों में से वह नौ साल का बच्चा भी था, जिसका नाम 'इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड' में दर्ज है।
आहूजा देश का सबसे बड़ा रोबोटिक आयोजन करने पर काम कर रहे हैं। जुलाई में नई दिल्ली में स्कूली बच्चों के लिए 'बिल्ड योर बोट' (बीवाईबी) का आयोजन करना चाहते हैं, जिनमें 20 हजार से अधिक भाग लेंगे।
इसमें भूटान, चीन, नेपाल, पाकिस्तान और अमेरिका जैसे देशों के 500 से अधिक बच्चों के भाग लेने की संभावना है।
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जंक फूड से दूर रखने बच्चों के सामने रखें स्वास्थ्यवर्धक विकल्प
न्यूयॉर्क, 8 मई (आईएएनएस)। क्या आप चाहते हैं कि आपका बच्चा पोषक आहार का ज्यादा सेवन करे और जंक फूड कम खाए? शोधकर्ताओं ने इसके लिए बच्चों के सामने स्वास्थ्यवर्धक...