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बिहार : लोकतंत्र के पर्व में कुताय व जईब ने दिखाया जज्बा

मनोज पाठक
पूर्णिया, 5 नवंबर (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा चुनाव के पांचवें व अंतिम चरण के मतदान में राज्य के 57 निर्वाचन क्षेत्रों में हो रहे मतदान के बीच पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार में कई ऐसे भी मतदाता नजर आए जिन्होंने न केवल अपने मताधिकार का उपयोग किया, बल्कि ऐसे लोगों के लिए एक सबक भी बने जो मतदान नहीं करते।

पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र के बिलौरी गांव निवासी 106 वर्षीय कुताय मंडल अपने 82 वर्षीय पुत्र सत्येंद्र मंडल के साथ अपने मतदान केंद्र बिलौरी के मध्य विद्यालय पहुंचकर न केवल मतदान किया, बल्कि अन्य लोगों से भी वोट देने की अपील की।

ऐसा नहीं कि यह कोई पहला मौका है कि वह वोट करने आया हो। कुताय मैथिली भाषा में कहते हैं, "जहिया स' वोटर भेल छियै, तहिये स' सब चुनाव मे हमें सब वोट देने छियै।"

कुताय हालांकि वर्तमान नेताओं से खुश नहीं हैं और आज तक उन्हें इसका भी अफसोस है कि वे जिस पार्टी को भी वोट देते हैं, वह हार जाती है। नेताओं के विषय में पूछने पर कुताय कहते हैं, "दुर, नेता आउर कोनो काम के छै? सबे एक जइसन छै।"

उनके पुत्र सत्येंद्र मंडल शिक्षक की नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वे कहते हैं कि चुनाव की घोषणा की जानकारी मिलने के बाद से ही उनके पिता वोट देने के लिए पूरे परिजनों को परेशान किए रहते हैं। वे कहते हैं कि ये भले ही अपने पैरों पर ठीक से चल नहीं सकते, लेकिन वोट देना नहीं भूलते और हमलोग भी उनकी इच्छा को मारना नहीं चाहते।

इधर, कटिहार के कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र के देवकली गांव के लोगों के मतदान केंद्र तक जाने के लिए सड़क नहीं है, मगर इस गांव के लोग नदी पारकर भी अपना मत देने के लिए पेकाहा गांव स्थित मतदान केंद्र संख्या 215 तक पहुंच रहे हैं। मतदाताओं की जागरूकता और उत्साह को इसी से समझा जा सकता है कि एक गांव के एक बीमार महिला को खाट पर लिटाकर उसे मतदान केंद्र तक पहुंचाया गया।

ग्रामीण श्याम सुंदर सिंह कहते हैं कि गांव की महिला बुलो देवी बीमार हैं, लेकिन वह अपने वोट को बर्बाद करना नहीं चाहतीं। यही कारण है कि उन्हें खाट पर उठाकर मतदान केंद्र तक लाना पड़ा।

बुलो देवी कहती हैं, "ई मौका पांच साल में एक बेर आबै छै, तें वोट देनाइ बहुत जरूरी छै।"

इधर, किशनगंज के 110 वर्षीय मोहम्मद जईब ने भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोगों को मतदान के प्रति जागरूक किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, "जब मेरे जैसा चलने में असमर्थ व्यक्ति मतदान कर सकता है तो फिर और लोग क्यों नहीं कर सकते।"

बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए चार चरणों का मतदान हो चुका है। पांचवें चरण के मतदान के बाद सभी सीटों की मतगणना आठ नवंबर को होगी।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • कोलकाता, पुणे के फूलों से महकेगी दिवाली
    एकान्त प्रिय चौहान
    रायपुर, 10 नवंबर (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में धनतेरस के साथ ही दिवाली की शुरुआत हो गई है। पांच दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के लिए बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक, गिफ्ट, मिठाइयों की दुकानें सजी हुई हैं, साथ ही दिवाली पर अपनी-अपनी महक बिखेरने दूसरे राज्यों से भी फूलों का राजा गुलाब सहित गेंदा, सेवंती, रजनीगंधा सहित अन्य प्रजातियों के फूल राजधानी में उपलब्ध हैं।

    राजधानी रायपुर के कई व्यापारी हालांकि कमजोर ग्राहकी से कुछ परेशान लगे, लेकिन त्योहारी शुरुआत के चलते दो दिन देर शाम-रात तक ग्राहकी बढ़ने की उम्मीद जताई गई है।

    राजधानी के बाजार में पिछले वर्ष तो कई विदेशी किस्म के फूलों की बहार थी। इसमें प्रमुख रूप से डचगुलाब, जरवेरा, निलियम, एंथोरियम जैसे फूलों की खासी मांग रही। दिवाली की खूबसूरती में इजाफा करने के लिए इस बार लखनऊ, दिल्ली, नासिक, कोलकाता, बेंगलुरू, मोहाली, नैनीताल, नगालैंड के साथ ही कई पहाड़ी क्षेत्रों से भी फूल मंगवाए जा रहे हैं।

    राजधानी के फूल चौक स्थित दुर्गा फ्लावर के सनत तिवारी ने बताया कि मुख्यत: फूल कोलकाता, पुणे, बेंगलुरू, लखनऊ सहित अन्य राज्यों से मंगाए जाते हैं। इनमें दिवाली पर्व को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग किस्मों का समावेश किया जाता है।

    सूरज फ्लावर के संचालक मनोज सिंह ठाकुर व एक अन्य फूल व्यवसायी विजय कुमार ने बताया कि उनके यहां गुलाब पुणे, बेंगलुरू, हैदराबाद, नागपुर, कोलकाता आदि राज्यों से मंगवाया जाता है।

    विदेशों से फूल मंगवाने की बात पर उनका कहना था, "हमारे देश में ही कई ऐसी प्रजातियों के फूल होते हैं, जिनका उत्पादन विदेशों में भी किया जाता है। फिलहाल तो देश के अन्य राज्यों से फूल मंगवाते हैं।"

    फूलों के थोक व्यापारी कटोरातालाब के देवराम साहू ने बताया कि लक्ष्मी पूजा तक ग्राहकी बढ़ने की संभावना है। उनका कहना है कि फूलों से बाजार तो सज गया है, वह ग्राहकी थोड़ी कमजोर है। अभी त्योहार में दो-तीन दिन और है, तो हो सकता है कारोबार भी अच्छा हो।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • आई दिवाली, 'भगवान' भी हुए महंगे
    कासगंज (उप्र), 10 नवंबर (आईएएनएस/आईपीएन)। महंगाई की मार आम जन मानस पर ही नहीं, देव प्रतिमाओं पर भी देखने को मिल रही है। दिवाली पर्व में पूजन के लिए गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बाजारों में पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार ज्यादा दामों में मिल रही हैं।

    आगरा से खरीदकर कासगंज में मूर्ति बेच रहे नरेंद्र ने बताया कि वह प्लास्टर ऑफ पेरिस के जरिए देव प्रतिमाएं बनाता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की कीमत बाजार में 90 रुपये प्रति बोरी है। वहीं दिवाली को लेकर ये देव प्रतिमाएं शहर से लेकर कस्बों तक भेजी जाती है। पिछली बार की अपेक्षा इस बार महंगाई को देखते हुए इन मूर्तियों के दाम भी बढ़ गए हैं।

    इस बार बाजार में गणेश लक्ष्मी की छोटी-छोटी मूर्तियां जो पिछली बार 10 से लेकर 15 रुपये जोड़ी तक मिल रही थी, वह अब 15 से लेकर 25 रुपये तक की बिक रही है। वहीं बड़ी-बड़ी मूर्तियां भी महंगी मिल रही हैं। 80 से लेकर 90 रुपये तक की मूर्ति अब 130 से लेकर 150 रुपये में बिक रही हैं।

    मूर्तियां खरीदने आईं सविता भारती ने कहा, "अब आम आदमी के लिए भगवान भी महंगे हो गए हैं।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • गिफ्ट कार्ड : उपहार वही जो सबके मन भाए
    ममता अग्रवाल
    नई दिल्ली, 10 नवंबर (आईएएनएस)। उपहार तब बेहद खास बन जाता है, जब वह देने वाले के साथ ही लेने वाले की पसंद भी बन जाए। आपने सबसे अच्छा उपहार चुनने में अपना कितना भी समय और पैसा क्यों न खर्च किया हो, वह लेने वाले की जरूरत और पसंद का न हो तो आपके बेहद प्यार से दिए कीमती उपहार की कोई कीमत नहीं रह जाती।

    'जर्नल ऑफ एक्सेपेरिमेंटल साइकोलॉजी' में प्रकाशित एक शोध भी इसी ओर इशारा करता है। शोध के मुताबिक, बेहद सोच-समझ कर दिया गया उपहार भी लेने वाले का पसंदीदा निकले यह कोई जरूरी नहीं।

    इसी तरह जर्नल ऑफ एक्सेपेरिमेंटल सोशल साइकोलोजी में प्रकाशित एक अन्य शोध भी यही कहता है। इस शोध के मुताबिक, उपहार के पीछे की सोच उतनी मायने नहीं रखती, बल्कि खुद उपहार ज्यादा मायने रखता है।

    आप भी अपना कीमती समय और पैसा खर्च करके कोई ऐसा उपहार हरगिज नहीं देना चाहेंगे, जो पसंद न आने पर रीपैक करके आगे बढ़ा दिया जाए तो आखिर उपहार में क्या दें?

    परेशान न हों, क्योंकि आज के स्मार्ट दौर में गिफ्टिंग भी स्मार्ट हो गई है। आपकी इस दुविधा का बेहतरीन उपाय है, गिफ्ट कार्ड। ये प्री-पेड कार्ड होते हैं, जो डेबिट कार्ड की तरह काम करते हैं।

    आप अगर उपहार में गिफ्ट कार्ड देते हैं तो लेने वाला इसके जरिए अपने मन मुताबिक किसी भी पसंदीदा चीज की खरीदारी कर सकता है। गिफ्ट कार्ड के कई फायदे हैं। स्टोर वाउचर्स की तुलना में ये ज्यादा फायदेमंद हैं।

    वाउचर को केवल एक बार में ही इस्तेमाल करना जरूरी होता है, जिसमें आपको पूरी राशि खर्च करनी होती है, लेकिन अगर आप गिफ्ट कार्ड उपहार में देते हैं तो इससे मनचाही चीज तो खरीदी जा ही सकती है, साथ ही इसे एक बार में इस्तेमाल न करके चाहें तो कई बार में इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि अधिकांश गिफ्ट कार्ड की अवधि एक साल की होती है।

    गिफ्ट कार्ड खरीदने के लिए आपके पास दो विकल्प हैं। आप चाहें तो ओपन लूप कार्ड खरीद सकते हैं जो बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं। बैंक करीब सौ रुपये का शुल्क लेकर ये कार्ड जारी करते हैं, जिसे आप ऑनलाइन या सीधे बैंक से खरीद सकते हैं।

    बैंक गिफ्ट कार्ड में आप 500 रुपये से लेकर 50,000 तक जितनी चाहे उतनी राशि डलवा सकते हैं। एचडीएफसी बैंक रोहिणी ब्रांच की मैनेजर पायल अग्रवाल बताती हैं, "बैंक गिफ्ट कार्ड का फायदा यह है कि इन्हें इस्तेमाल करने के लिए किसी खास स्टोर से खरीदारी की बाध्यता नहीं होती। इनसे किसी भी स्टोर पर खरीदारी की जा सकती है।"

    बैंक गिफ्ट कार्ड में पिन नंबर होता है, जिसका इस्तेमाल करके विभिन्न आउटलेट से या ऑनलाइन सुरक्षित खरीदारी की जा सकती है। इस पिन नंबर के जरिए कार्ड का बैलेंस और ट्रांसेक्शन विवरण भी पता किया जा सकता है।

    दूसरा विकल्प हैं ऐसे कार्ड जो आप किसी विशिष्ट आउटलेट से खरीद सकते हैं। इनसे किसी खास ब्रांड या रिटेल चेन से ही खरीदारी की जा सकती है। जैसे कि टाइटन, तनिश्क, लाइफस्टाइल, कैफे कॉफी डे, क्रोमा, वेस्टसाइड या फास्ट ट्रैक जैसी कंपनियों द्वारा जारी किया गया कार्ड। यह गिफ्ट कार्ड आपको इन्हीं स्टोर से ही खरीदारी का विकल्प देगा।

    इस तरह के गिफ्ट कार्ड से खरीदारी करने पर कई आउटलेट सामान पर पांच से 10 प्रतिशत की छूट भी देते हैं। साथ ही इनसे खरीदारी करने पर उपभोक्ता को रिवॉर्ड प्वॉइंट भी मिलते हैं। निश्चित संख्या में इन प्वॉइटं्स को इकटठा करने पर आपको खरीदारी में रिटेल कंपनी की तरफ से छूट भी मिलती है।

    गिफ्ट कार्ड की बढ़ती लेकप्रियता को देखते हुए अब कई वेबसाइट भी इस मैदान में उतर आई हैं। इनसे कई तरह के गिफ्ट कार्ड खरीदे जा सकते हैं। इनसे आप होम डेकोर, कपड़े, घड़ियां व अन्य एक्सेसरीज आदि के गिफ्ट कार्ड भी खरीद सकते हैं। ऐसी कुछ बेवसाइट हैं : गिफ्टकार्डसइंडिया डॉट इन, गिफ्टकार्डबिग डॉट कॉम और इंडियाप्लाजा डॉट कॉम।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • भाजपा की हार के लिए पार्टी नेतृत्व जिम्मेदार : भाजपा सांसद

    बेगूसराय, 10 नवंबर (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार के बाद से पार्टी में विरोध का बिगुल बज उठा है।

    राज्य के बेगूसराय क्षेत्र से भाजपा सांसद भोला सिंह ने यहां मंगलवार को कहा कि बिहार की हार के लिए पार्टी नेतृत्व जिम्मेदार है।

    उन्होंने यह भी कहा कि इस चुनाव में भाजपा हारी नहीं है, बल्कि उसने आत्महत्या कर ली है।

    अपने बयान में परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधते हुए भोला ने कहा, "हार की जिम्मेदारी सेनापति की होती है। बिहार में भाजपा का कोई स्थापित नेतृत्व नहीं है। केन्द्र ने भी बिहार को यही संदेश दिया है।"

    भोला ने कहा कि सेनापति हेलीकॉप्टर से घूमते थे, लेकिन बिहार के नेताओं को किसी ने नहीं पूछा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूरे चुनाव के दौरान अपनी मर्यादा नहीं लांघी, जबकि प्रधानमंत्री से लेकर सभी नेता मर्यादा तोड़ते रहे। भाजपा रास्ते से भटकी, इसलिए उसे गिरना ही था।

    भोला ने कहा, "रोजी-रोटी के बदले गाय और पाकिस्तान को चुनावी मुद्दा बनाया गया। मुझे पार्टी की नाव डूबने का दुख नहीं, लेकिन जहां नाव डूबी वहां घुटने भर पानी था।"

    उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए गए बयान का भी बिहार की जनता पर उल्टा असर पड़ा, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • बिहार की सियासत में बढ़ी मुसलमानों की हिस्सेदारी

    मनोज पाठक
    पटना, 10 नवंबर (आईएएनएस)। बिहार की राजनीति में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व क्रमिक रूप से सिमटता जा रहा था, हालांकि नए समीकरण के बाद इस विधानसभा चुनाव में सियासत में उनकी हिस्सेदारी बढ़ी है। औसत के रूप में देखा जाए तो यह संख्या अब भी कम मानी जा रही है।

    पिछले विधानसभा चुनाव में 19 मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा की चौखट तक पहुंच सके थे, लेकिन इस चुनाव में इनकी संख्या बढ़कर 23 हो गई है। इनमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से सबसे अधिक 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं।

    जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो इनकी संख्या अभी भी कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलमानों की आबादी 16.9 फीसदी है। आबादी की कसौटी पर विधानसभा में करीब 40 मुस्लिम जनप्रतिनिधियों को पहुंचना चाहिए था।

    आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में मुस्लिम आबादी करीब 17 प्रतिशत है और यहां 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुसलमानों की आबादी 18 से 44 प्रतिशत के बीच है। किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में 69 प्रतिशत के करीब मुसलमान हैं।

    विधानसभा क्षेत्र की बात की जाए तो 50 से ज्यादा ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण चुनाव परिणाम को प्रभावित करता है। इन क्षेत्रों में मुसलमानों के वोट न्यूनतम 18 फीसदी और अधिकतम 75 फीसदी हैं। कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में अल्पसंख्यकों की 74 फीसदी आबादी है।

    ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के प्रवक्ता बादशाह खान का कहना है कि देश की बात हो या राज्य की बात हो सभी राजनीतिक दल मुसलमानों के वोट तो चाहते हैं, लेकिन प्रतिनिधित्व देने से हिचकते हैं। बिहार के इस चुनाव में भी मुसलमानों के वोट के लिए सभी दलों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया था।

    इस चुनाव में सत्ताधारी महागठबंधन राजद से 11, जनता दल (युनाइटेड) से पांच तथा कांग्रेस से छह और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी)से एक मुस्लिम प्रत्याशी विजयी घोषित हुए हैं। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी विधानसभा तक नहीं पहुंच सका।

    इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने भी पहली बार बिहार के चुनाव में हिस्सा जरूर लिया, लेकिन इसका एक भी प्रत्याशी नहीं जीत सका।

    आंकड़ों पर गौर करें तो आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 थी, तब से लेकर 1977 तक मुस्लिम विधायकों की संख्या 18 और 28 के बीच रही। इस दौरान आठ विधानसभा चुनाव हुए थे।

    बिहार विधानसभा के लिए 1985 में हुए चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़कर 34 पर पहुंच गई थी, जिसमें 29 विधायक कांग्रेस की टिकट पर जीतकर विधानसभा तक पहुंचे थे। हालांकि, इसके अगले चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 20 तक आ गई थी, जिसमें कांग्रेस के सिर्फ पांच विधायक थे।

    फरवरी, 2005 में हुए चुनाव में 24 मुस्लिम विधायकों ने राज्य विधानसभा की सियासत में भागीदारी निभाई, लेकिन इसी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 16 हो गई थी।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • उप्र : पंचायत चुनाव के कारण लखनऊ महोत्सव स्थगित

    लखनऊ, 10 नवम्बर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में हर साल नवंबर में राजधानी लखनऊ में मनाया जाने वाला लखनऊ महोत्सव स्थगित कर दिया गया है। इसे राज्य में चल रहे पंचायत चुनाव के कारण स्थगित किया गया है।

    इसका आयोजन अब अगले साल 27 जनवरी से सात फरवरी तक होगा।

    जिला प्रशासन की मानें तो उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनाव की वजह से पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मियों के उपलब्ध न होने के कारण ऐसा किया गया है।

    आशियाना में स्थित स्मृति उपवन में 25 नवंबर से प्रस्तावित लखनऊ महोत्सव पर पंचायत चुनाव का दूसरा दौर भारी पड़ा। इसका मुख्य कारण महोत्सव के आयोजन की तारीख पर ही प्रधानी व पंचायत सदस्य चुनाव के लिए मतदान होना है।

    महोत्सव आयोजन समिति ने पुलिस आयुक्त की अध्यक्षता में हुई बैठक में सुरक्षा कारणों की वजह से महोत्सव को स्थगित करने का ऐलान किया।

    आयोजन समिति के उपाध्यक्ष और जिलाधिकारी राजशेखर ने बताया, "पंचायत चुनाव के कारण महोत्सव स्थल पर सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिसबल की व्यवस्था नहीं हो पा रही है।"

    चार चरण में होने वाले मतदान के लिए 28 नवंबर से पांच दिसंबर तक पुलिसबल को लखनऊ सहित आसपास के जिलों में तैनात किया जाएगा। इस कारण पुलिस विभाग ने महोत्सव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई है।

    जिलाधिकारी ने बताया कि अब महोत्सव 27 जनवरी से सात फरवरी के बीच होगा।

    जिलाधिकारी ने कहा, "कोशिश है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम पहले से घोषित कलाकारों से ही कराएं जाएं। उत्सव के लिए तय की गई नई तारीख पर घोषित कलाकारों में से कोई भी उपस्थित नहीं हो पाया, तो उसी क्षेत्र की दूसरी शख्सियत को आमंत्रित किया जाएगा।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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