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गर्भनिरोधक गोली घुटने की चोट में भी मददगार

न्यूयार्क, 19 मार्च (आईएएनएस)। जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं, उनके एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर कम होता है और बरकरार रहता है। इससे उनके गंभीर किस्म के घुटने की चोट से पीड़ित होने की संभावना कम हो जाती है। एक नए शोध से यह जानकारी सामने आई है।

15 से 19 साल की 23,428 युवतियों पर किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि जिन महिलाओं को एंटीरियर क्रूसिएट लिंगामेंट (एसीएल यानी घुटने के जोड़) में चोट की समस्या थी अगर वे गर्भनिरोधक गोलियां ले रही थीं, तो उन्हें नैदानिक सर्जरी करवाने की जरूरत कम पड़ी।

प्रमुख शोधकर्ता एवं अमेरिका के गेलवेस्टन में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की मेडिकल शाखा के ऐरॉन ग्रे ने कहा, "गर्भनिरोधक गोलियां एस्ट्रोजन का स्तर सतत कम रखती हैं जिससे समय-समय पर होने वाली एसीएल कमजोरी से बचाव होता है।"

एसीएल एक जोड़ है जो घुटने के ऊपरी और निचले हिस्से को जोड़ता है। इस जोड़ में चोट लगने से किसी एथलीट का कैरियर तबाह हो सकता है। साथ ही इससे जीवनभर के लिए घुटने में परेशानी आ सकती है और इलाज के लिए जटिल सर्जरी करानी पड़ सकती है।

यह शोध मेडिसिन एंड साइंस इन स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • भारतीय महिलाओं में बढ़ रहा कैंसर : विशेषज्ञ

    रशेल वी. थॉमस
    नई दिल्ली, 13 मई (आईएएनएस)। ऐसे समय में जब अनुवांशिक, पर्यावरणीय और जीवनशैली के कारकों के कारण दुनियाभर में कैंसर पैर पसार रहा है, भारत में भी कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। खासतौर पर ज्यादा से ज्यादा महिलाएं कैंसर की चपेट में आ रही हैं। शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जताई है।

    नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (एनसीआई) के मुताबिक, दुनिया में कैंसर का हर 13वां नया रोगी भारतीय है और देश में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मुंह का कैंसर सबसे ज्यादा फैल रहा है। एनसीआई 'यूएस डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसिजस' (यूएसडीएचएच) का हिस्सा है।

    राजधानी में मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में निदेशक (ऑन्कोलोजी सेवाएं) डॉ. (कर्नल) रंगा राव रंगराजू ने कहा, "भारत में हर साल कैंसर के 12.5 लाख नए रोगियों में से सात लाख से भी ज्यादा महिलाएं हैं।"

    डॉ. रंगराजू ने आईएएनएस से कहा, "हर साल कैंसर के कारण 3.5 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है और 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर 4.5 लाख होने की आशंका है।"

    नींद की कमी, व्यायाम की कमी, खानपान की गलत आदतें, काम से जुड़ा तनाव, सिगरेट और शराब के सेवन के कारण सर्केडियन क्लॉक (शारीरिक घड़ी) असंतुलित हो जाती है। यह कैंसर के कारण महिलाओं की मौतों का एक प्रमुख कारण है।

    बीएलके सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल के वरिष्ठ कंसलटेंट डॉ. संदीप बत्रा के मुताबिक, "हमारी निष्क्रिय जीवनशैली कैंसर के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।"

    पेशेवर जीवन को ज्यादा महत्व देने के कारण शहरी महिलाएं देर से शादी करती हैं और देर से बच्चों को जन्म देती हैं। इनमें से कुछ होर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपियां भी लेती हैं, जिसके कारण कैंसर का खतरा और बढ़ जाता है।

    डॉ. बत्रा ने कहा, "अप्राकृतिक होर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी लेने से बचना चाहिए।"

    इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ कंसल्टेंट (सर्जिकल ओंकोलोजी और रोबोटिक) डॉ. समीर कौल के मुताबिक, "महत्वकांक्षी होना सही है, लेकिन साथ ही सही समय पर गर्भाधान भी जरूरी है।"

    डॉ. कौल सलाह देते हैं कि स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, सही वजन रखना और पर्याप्त व्यायाम के साथ ही सुरक्षित यौन जीवन कैंसर को दूर रखने में मददगार हो सकता है।

    हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, मुख्यतौर पर खराब जीवनशैली के कारण भारत में कैंसर के रोगियों की संख्या में 7.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'कैंसर पर शोध के लिए अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी' द्वारा कराए गए अध्ययन 'ग्लोबोकैन' के मुताबिक खराब जीवनशैली के कारण स्तन, डिंबग्रंथी और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के मामलों में वृद्धि हुई है।

    विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि महिलाओं को वार्षिक स्वास्थ्य जांच भी अवश्य करानी चाहिए। 35 साल की उम्र के बाद स्त्री रोगों से बचाव के लिए भी पूरी जांच करानी जरूरी है।

    गुड़गांव के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीटयूट के निदेशक (सर्जिकल ऑनकोलोजी) डॉ. वेदांत काबड़ा के मुताबिक, "कैंसर का ईलाज केवल सरकार के दिशा-निर्देशों पर चलने वाले प्रमाणित केंद्रों पर ही कराना चाहिए।"

    महिलाओं में जागरूकता बढ़ाना भी जरूरी है क्योंकि इससे समय पर समस्या का निदान हो जाता है जो कि कैंसर के ईलाज के लिए बेहद जरूरी है।

    कई बार जागरूकता की कमी के साथ ही सामाजिक-आर्थिक कारणों से, कई महिलाएं कैंसर से जुड़े खतरों और संकेतों को नजरअंदाज कर देती हैं। यह बेहद जोखिमभरा हो सकता है क्योंकि ऐसे मामलों में कैंसर का निदान बेहद देर में होता है, जिसके बाद ईलाज अप्रभावी हो जाता है।

    डॉ. बत्रा ने कहा कि दैनिक व्यायाम के साथ ताजे फल और सब्जियां खाना और तनाव रहित माहौल कैंसर के खतरे से दूर रखने में मददगार है।

    उन्होंने कहा, "दूषित और हानिकारक जंक फूड के सेवन से बचें, क्योंकि यह शरीर के सामान्य तंत्र को प्रभावित करके कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है।"

    --आईएएनएस
  • मंगोलिया ने राष्ट्रव्यापी खसरा टीकाकरण अभियान शुरू किया
    उलान बटोर, 12 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। देश में खसरा के प्रकोप से निपटने के लिए मंगोलिया ने राष्ट्रव्यापी स्तर पर गुरुवार को टीकाकरण अभियान शुरू किया है।

    मंगोलिया के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, छह मई तक देश भर में खसरा के कुल 19,194 मामले सामने आ चुके थे और 59 शिशुओं की इससे मौत हो चुकी है।

    मंत्रालय ने कहा कि संक्रमित लोगों में अधिकांश छात्र व शिशु हैं।

    यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रंस इमरजेंसी फंड (यूनिसेफ) ने मंगोलिया को लगभग 624,000 लोगों के लिए खसरा का टीका मुहैया कराया है।

    टीकाकरण केंद्र देश के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों व फैमिली क्लीनिकों में चलाया जा रहा है।

    --आईएएनएस
  • राष्ट्रपति ने 35 नर्सो को फ्लोरेंस नाइटिगेल पुरस्कार दिया
    नई दिल्ली, 12 मई (आईएएनएस)। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन में अंतर्राष्ट्रीय नर्सिग दिवस के अवसर पर 35 नर्सिग कर्मियों को राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार प्रदान किए। इस पुरस्कार के तहत विजेता को 50,000 रुपये नकद, प्रमाण पत्र, प्रशस्ति पत्र और एक पदक दिया जाता है।

    राष्ट्रपति ने पुरस्कार विजेताओं को बधाई देते हुए कहा कि स्वास्थ्य के सभी पहलुओं में नर्स की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनके समर्पण और देखभाल की प्रशंसा शहरी, दूरदराज के क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी की जाती है। देश के स्वास्थ्य लक्ष्य की प्राप्ति में नर्सिग कर्मियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य क्षेत्र की नीतियां बनाते समय नर्सिग समुदाय की राय लेना महत्वपूर्ण है।

    राष्ट्रपति ने नर्सो की करुणा, अनुशासन और समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम विकास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लचीली स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करनी होगी।

    इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री जे.पी.नड्डा ने पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी और उनकी सेवा की सराहना की। उन्होंने नर्सिग क्षेत्र में अवसरंचना और मानव संसाधन विकास के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख किया।

    नड्डा ने बताया कि उनके मंत्रालय ने नर्सिग कैडर को मजबूत बनाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इन कदमों में एएनएम/जीएनएम स्कूलों की स्थापना, संस्थानों का स्कूल ऑफ नर्सिग से कॉलेज ऑफ नर्सिग में उन्नयन, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नर्सो का प्रशिक्षण तथा नर्स प्रैक्टिशनर्स कोर्स शामिल हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नर्सिग और मिड वाइफ पोर्टल विकसित किया जा रहा है। इसमें नर्सिग से संबंधित सभी सूचनाएं दी जाएंगी।

    --आईएएनएस
  • चीनी वैज्ञानिकों ने की जीका और माइक्रोसेफली के बीच संबंध की पुष्टि
    बीजिंग, 12 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। चीन के वैज्ञानिकों ने बुधवार को घोषणा की कि पहली बार चूहों पर किए गए प्रयोग में जीका वायरस के माइक्रोसेफली से जुड़े होने का प्रमाण मिला है।

    माइक्रोसेफली एक बीमारी है जिसमें भ्रूण के मस्तिष्क का असामान्य विकास होता है, जिसके कारण नवजात शिशु का सिर सामान्य से छोटा होता है।

    ब्राजील समेत कई जगहों पर माइक्रोसेफली के मामलों में इजाफा देखने को मिला है, क्योंकि उन इलाकों में जीका वायरस तेजी से फैल रहा है। ज्यादातर मामलों में माइक्रोसेफली के शिकार बच्चों की मांएं जीका वायरस से संक्रमित पाई गई हैं।

    वैज्ञानिकों को जीका वायरस और माइक्रोसेफली के बीच एक गहरा संबंध होने का संदेह रहा है, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए अभी तक कोई सीधा सबूत नहीं मिला था।

    यह शोध चायनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड डेवलपमेंट बायलॉजी से जुड़े शू जिहेंग और एकेडमी ऑफ मिलिट्री मेडिकल साइंसेस के तहत इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबॉयलॉजी एंड एपीडेमियोलॉजडी से संबद्ध क्विन चेंगफेंग के नेतृत्व वाली टीमों ने संयुक्त रूप से किया।

    वैज्ञानिकों ने जीका वायरस के नस्ल को एक चीनी मरीज से निकालकर चूहे के भ्रूण के मस्तिष्क में डाल दिया। शू के मुताबिक, जीका चूहे के भ्रूण के मस्तिष्क और संक्रमित न्यूरल स्टेम कोशिकाओं में तेजी से फैलने लगा।

    क्विन ने कहा, "हम आशा करते हैं कि इस मॉडल से दवाई और टीका का परीक्षण किया जा सकेगा, जिससे जीका वायरस के संक्रमण को रोकने और उसके इलाज में सफलता मिलेगी।"

    --आईएएनएस
  • निष्पक्ष माहौल से सुधरती है कर्मचारियों की सेहत
    लंदन, 12 मई (आईएएनएस)। कार्यस्थल पर निष्पक्ष माहौल से जहां सकारात्मकता का संचार होता है, वहीं कर्मचारियों की सेहत भी सुधरती है। एक नए शोध से यह जानकारी मिली है।

    इसमें बताया गया है कि कर्मचारियों के स्वास्थ्य के आधार पर कंपनियों का मूल्यांकन करना चाहिए।

    इस शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जब निष्पक्षता के बारे में धारणा बदलती है तो कर्मियों के स्वास्थ्य पर भी उसका असर पड़ता है। जिन्हें बेहतर निष्पक्ष माहौल मिलता है, उनका स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।

    ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया की लेक्चरर कोनस्टांजे एब का कहना है, "हमारे शोध से पता चलता है कि कैसे कार्यस्थल पर निष्पक्षता और कर्मचारियों का स्वास्थ्य समय के साथ जुड़ जाते हैं।"

    एब ने कहा, "जिन लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि उनके साथ निष्पक्ष व्यवहार हो रहा है, वे अपने काम के प्रति ज्यादा प्रेरित होते हैं और अपनी कंपनी के लिए अतिरिक्त काम करने को भी तैयार रहते हैं। साथ ही उनके अधिक स्वस्थ होने की भी संभावना होती है। वे सकारात्मक सोचते हैं और उनकी जीवनशैली भी सक्रिय होती है।"

    इसके अलावा कर्मचारियों के साथ कार्यालय में होने वाला व्यवहार भी उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

    यह शोध वर्क, एनवायरोनमेंट एंड हेल्थ जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

    इस शोध के दौरान स्वीडन के 5,800 लोगों का सर्वेक्षण किया गया। उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में मूल्यांकन करने को कहा गया जिसमें एक से पांच तक के पैमाने पर 'बहुत अच्छा' से लेकर 'बहुत खराब' तक की रैंकिंग देनी थी।

    --आईएएनएस
  • ज्यादा विटामिन लेने से संतान को ऑटिज्म का खतरा
    बीजिंग, 12 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के विकारों से बचने के लिए फॉलिक एसिड लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन एक नए शोध में पता चला है कि अगर गर्भावस्था में महिलाएं जरूरत से ज्यादा विटामिन लेती हैं तो उनकी संतान में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम का खतरा बढ़ सकता है।

    अमेरिका के बाल्टोमोर शहर में स्थित जॉन्स होपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों ने बताया कि इस नए शोध का उद्देश्य फॉलिक एसिड की संतुलित खुराक और उसके प्रभावों को जानना था।

    शोध के अनुसार, जिन महिलाओं में रक्त में उच्च फॉलिक एसिड होता है, ऐसी महिलाओं की संतान को सामान्य फॉलिक एसिड वाली महिलाओं की संतान से ऑटिज्म का दोगुना खतरा होता है। वहीं जिन महिलाओं में अत्यधिक विटामिन बी12 होता है, उनकी संतान में ऑटिज्म होने की संभावना तीन गुना बढ़ जाती है।

    इसके अलावा जिन महिलाओं में फॉलिक एसिड और विटामिन बी12 दोनों ही अत्यधिक मात्रा में होते हैं, उनकी संतान को यह खतरा 17 गुना अधिक होता है।

    इस शोध का निष्कर्ष बाल्टीमोर में शुक्रवार को आयोजित होने वाली इंटरनेशनल मीटिंग फॉर ऑटिज्म रिसर्च में पेश किया जाएगा।

    --आईएएनएस

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