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मूंगफली खाने से शिशुओं में एलर्जी का खतरा कम

लंदन, 7 मार्च (आईएएनएस)। बच्चे के आहार में कम उम्र में मूंगफली को शामिल करके उसमें एलर्जी का खतरा काफी कम किया जा सकता है, भले ही बच्चे पांच साल की उम्र के आसपास इन्हें खाना छोड़ दें।

'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित एक शोध में यह दावा किया गया है। शोध के मुताबिक, कम उम्र में मूंगफली के सेवन से इससे संबंधित एलर्जी का खतरा कम हो जाता है।

किंग कॉलेज लंदन के प्रमुख शोधकर्ता गिडियोन लैक के मुताबिक, "मूंगफली से एलर्जी के जोखिम वाले अधिकांश शिशु इससे बचे रहते हैं, अगर वे अपनी उम्र के शुरुआती 11 महीनों के भीतर ही इसे खाना शुरू कर देते हैं।"

शोध में 550 बच्चों को शामिल किया गया था।

इनमें से 280 को मूंगफली से दूर रखा गया और 270 ने इसका सेवन किया। सभी प्रतिभागियों को उसके बाद 12 महीनों तक मूंगफली के सेवन से दूर रखा गया।

कई परीक्षणों के माध्यम से प्रतिभागियों के रक्त में मूंगफली की एलर्जी का मापन किया गया।

शोध में पाया गया कि एक साल तक मूंगफली का सेवन न करने पर भी छह वर्ष की उम्र में उनमें एलर्जी में कोई खास वृद्धि नहीं हुई।

कुल मिलाकर शोध में पाया गया कि जिन बच्चों ने मूंगफली का सेवन किया, उनमें इससे संबंधित एलर्जी का खतरा उन बच्चों की तुलना में 74 प्रतिशत कम पाया गया, जिन्होंने इसका सेवन नहीं किया।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • ऑनलाइन स्टार्टअप से विदेशी मरीजों का भारत में सस्ता इलाज
    विवेक सिह चौहान
    नई दिल्ली, 10 मार्च (आईएएनएस)। भारत में सस्ते व बेहतर इलाज के लिए विदेशी मरीज बड़ी संख्या में आते हैं। इसे देखते हुए उन्हें सस्ता और अच्छा इलाज मुहैया कराने में मदद के लिए कई सारे ऑनलाइन स्टार्टअप शुरू हुए हैं।

    ऐसे ही एक मेडिकल टूरिज्म स्टार्टअप 'प्लानमाईमेडिकलट्रिपडॉटकॉम' विदेशी मेडिकल पर्यटकों को एक ही स्थान पर सभी किस्म के समाधान मुहैया कराता है। इस स्टार्टअप की शुरुआत 9 साल पहले हुई थी।

    प्लानमाईमेडिकलट्रिपडॉटकॉम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनुरव राने ने बताया, "हमारे यहां दुनियाभर से मरीज आते हैं, लेकिन अफ्रीका, खाड़ी देशों और कॉमनवेल्थ देशों से आनेवाले मरीजों की संख्या करीब 30 फीसदी है।"

    उन्होंने आईएएनएस को बताया, "भारत में मेडिकल पर्यटकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में कई विकल्प उपलब्ध हैं। प्राथमिक रूप से ज्यादातर पर्यटक कॉस्मेटिक सर्जरी, कूल्हे व टखना बदलवाने, दांतों से जुड़ी सर्जरी और बांझपन के उपचार के लिए आते हैं।"

    भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और ग्रांट थोर्नटन द्वारा जारी श्वेतपत्र के मुताबिक, साल 2020 तक भारत में मेडिकल पर्यटन का बाजार 8 अरब डॉलर का होगा जो वर्तमान में 3 अरब डॉलर का है।

    सईद साबेर हाल में घुटनों की सर्जनी कराने मि से भारत आए हैं। उन्होंने बताया, "मेरे देश में इस उपचार का खर्च काफी अधिक है और विकल्प काफी कम है। इसलिए मैंने भारत में इलाज के लिए इंटरनेट पर छानबीन की प्लानमाईमेडिकलट्रिपडॉटकॉम की मदद से मुझे भारत में कई अस्पतालों के बारे में पता चला व इस एप की मदद से ही कई जरूरी प्रक्रियाएं कम से कम समय में निपट गईं।"

    हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडियाहेल्थकेयरटूरिज्मडॉटकॉम का उद्घाटन किया था। यह सरकार द्वारा मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के कदम के तौर पर शुरू किया गया है। इसके तहत वेबसाइट पर 93 शीर्ष अस्पताल, 30 आयुर्वेदिक व प्राकृतिक उपचार केंद्र और एक विशेष श्रेणी का केंद्र उपलब्ध है।

    एक दूसरे ऑनलाइन वेबसाइट मेडीकनेक्टइंडिया पर आईवीएफ, रोबोटिक सर्जरी, स्टेम सेल थेरेपी संबंधी डील उपलब्ध है।

    मेडीकनेक्टइंडिया के उप दलप्रमुख शालिनी ने आईएएनएस को बताया, "भारत में इलाज सस्ता होने के कारण ज्यादातर विदेशी यहां आते हैं। मेट्रो शहरों में सबसे अच्छे डॉक्टरों के साथ विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध है।"

    मेडीकनेक्टइंडिया को मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए लगातार दो सालों तक राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • सीढ़ियों के इस्तेमाल से दिमाग रहेगा जवां
    टोंरटो, 10 मार्च (आईएएनएस)। लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों के इस्तेमाल से शरीर चुस्त तो रहता ही है, दिमाग भी दुरुस्त रहता है। साथ ही यह मस्तिष्क को ज्यादा समय तक बुढ़ापे के लक्षणों से भी बचाकर रखता है। एक नए शोध में यह पता चला।

    शोध के निष्कर्षो से सामने आया है कि वृद्ध लोग अगर सीढ़ियों का प्रयोग करते हैं तो उनका मस्तिष्क सक्रिय रहता है, जिससे मस्तिष्क की आयु बढ़ने वाली प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

    कनाडा की कोनकोर्डिया यूनिवर्सिटी से इस अध्ययन के मुख्य लेखक जैसन स्टेफनर ने बताया, "विभिन्न विभागों और सार्वजनिक परिवहन केंद्रों में 'टेक द चेयर्स' सीढ़ियों के प्रयोग अभियान का समर्थन देखने को मिलता है।"

    स्टेफनर कहते हैं, "यह अध्ययन बताता है कि इन अभियानों में वृद्धों लोगों को भी शामिल करना चाहिए, ताकि वह अपने मस्तिष्क को जवां रख सकें।"

    इस शोध में अध्येताओं ने 19-79 आयु वर्ग के 331 स्वस्थ्य लोगों को शामिल किया था। इसके तहत स्टेफनर और इनके सहयोगियों ने प्रतिभागियों के मस्तिष्क की जांच के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमैजिंग का उपयोग किया।

    स्टेफनर के अनुसार, "यह निष्कर्ष वाकई प्रोत्साहित करने वाले रहे, जब हमें पता चला कि एक सामान्य गतिविधि जैसे सीढ़ियों की चढ़ाई मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बढ़ाने में एक असरदार उपकरण के रूप में हस्तक्षेप कर सकती है।"

    यह शोध 'न्यूरोबायोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • अवसादरोधी दवाओं के कारण दांतों के इंप्लांट होते हैं असफल
    न्यूयॉर्क, 10 मार्च (आईएएनएस)। अवसादरोधी दवाएं चिंता, दर्द व अन्य विकारों के उपचार के लिए धड़ल्ले से प्रयोग की जाती है, लेकिन इससे हड्डियों के विकास को खतरा हो सकता है और दांतों का इंप्लांट भी विफल हो सकता है। एक शोध से यह जानकारी सामने आई है।

    अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पाया कि अवसादरोधी दवाओं के प्रयोग से दांतों के इंप्लांट के असफल होने की संभावना चार गुणा बढ़ जाती है। हर साल अवसाधरोधी दवाओं के कारण दांतों के इंप्लांट की विफलता की दर दोगुनी हो जाती है।

    एक तरफ जहां ये दवाएं मूड और भावनाओं के प्रबंधन में उपयोगी हैं, वहीं दूसरी तरफ इससे हड्डियों का मेटाबालिज्म बिगड़ जाता है जो टूट-फूट को भरने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।

    प्रमुख शोधकर्ता बफैलो विश्वविद्यालय की सुलोचना गुरुं ग का कहना है, "सही ढंग से घाव भरने के लिए प्रभावित जगह के इर्द-गिर्द नई हड्डियों का निर्माण होने बेहद जरूरी है। लेकिन अवसादरोधी दवा इस प्रक्रिया को प्रभावित करता है।"

    यूबी दंत चिकित्सालय के मरीजों को 2014 में अध्ययन करने के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन थोड़े बहुत मरीजों का दंत इंप्लांट असफल रहा था, उनमें से 33 फीसदी ने अवसादरोधी दवाओं का प्रयोग किया था।

    जिन मरीजों का दंत इंप्लांट सफल रहा था, उनमें से केवल 11 फीसदी ने अवसादरोधी दवाएं ली थी।

    यह शोध लास एंजिलिस में 19 मार्च को होने वाले 45वें सालाना अमेरिकन एसोसिएशन फॉर डेंटल रिसर्च में प्रस्तुत किया जाएगा।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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