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पहेल दौर में हारे भांबरी और भूपती (लीड-1)

केजरीवाल का 5 दिनी पंजाब दौरा 25 फरवरी से

'फासीवादी विस्तार' के खिलाफ जादवपुर विश्वविद्यालय में मशाल जुलूस

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मेडिकल आतंकवाद के दौर में फार्मा क्लीनिक जनता के लिये वरदान Featured

फार्मा क्लीनिक के कांसेप्ट पर खरी न्यूज ने अपनी पड़ताल जारी रखी है। वास्तव में मेडिकल आतंकवाद के दौर में फार्मा क्लीनिक जनता के लिये वरदान से कम नही।

इसे यूँ समझे

एक आम आदमी जब चिकित्सक के पास इलाज कराने जाता है तो अक्सर चिकित्सक एक निश्चित पैटर्न पर इलाज कर देता है। कई बार अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक देना अथवा अन्य दवा देना सामान्य बात है।  दूसरी गलती की गुंजाईश केमिस्ट से होती है। विशेषकर ऐसे केमिस्ट से जो अप्रशिक्षित होते है, एक जैसी दवा के मिलते जुलते नामो के कारण गलत दवा मरीज को चली जाती है जिसका उसे इल्म तक नही होता। बड़े नामी चिकित्सकों के पास भी इसको क्रॉस चेक करने कोई तन्त्र नही है इनको क्रॉस चेक करने की जिम्मेदारी  एक रिसेप्शनिष्ट या अप्रशिक्षित स्टाफ को दे दी जाती है।

दूसरा बड़ा नुकसान उन बडे या छोटे अस्पतालो में जहाँ चिकित्सक अपने स्वयम् के केमिस्ट स्टोर संचालित करते है। ऐसे में दवाये मरीज को महंगे दर पर बेचीं जाती है । मरीज जानकारी के आभाव में लूटता जाता है, जबकि वही जेनेरिक दवा कई बार तो ब्रांडेड भी उस दर से कई गुना सस्ती पड़ती है।

यहाँ जरूरत होती है फार्मेसी प्रेक्टिशनर से सलाह लेने की। ठीक वैसे जिस प्रकार टैक्स कन्सलटेंट आपका टेक्स कम करवाने में मदद करते है।

फार्मेसी क्लीनिक ही वो जगह होगी जहाँ रोगी को समुचित उपचार वाजिव दर पे उपलब्धता की गारन्टी देता है। विशेषकर गम्भीर तथा ऐसी बीमारियो के इलाज में जहां बहुत लम्बे समय तक दवा लेनी होती है और दवा महँगी होती है मसलन कैंसर, थायरोइड , मधुमेह आदि।

यहाँ फार्मा प्रेक्टिशनर न सिर्फ चिकित्सक द्वारा प्रस्तावित दवाई के तत्व की प्रकृति जानकर उसके सस्ते प्रकार सुझा कर खर्च को अपनी मामूली शुल्क के बदले कई गुना कम कर मरीज को बड़ा फायदा आर्थिक रूप से तो पहुंचाता ही है बल्कि दवा की आपके शरीर को कितनी मात्रा में किस रूप में जरूरत है इसकी भी जाँच कर लेता है।

फार्मा एक्सपर्ट विवेक मौर्य इस बारे में बताते है कि फार्मेसी प्रेक्टिस के फायदों की जानकारी जैसे जनमानस तक पहुँचेगी तो आने वाले कुछ सालों में ये नया प्रोफेशन विकसित रूप से देश के स्वास्थ्य को नई दिशा देगा। क्योंकि गरीब हो या अमीर बेहतर ईलाज सबकी चाहत और प्राथमिकता होती है।

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  • मध्यप्रदेश में फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, दवा वितरण ठप्प

    भोपाल: 23 फरवरी/ मध्यप्रदेश के भोपाल में 3 फार्मासिस्ट के विरुद्ध शासन द्वारा निरर्थक कार्यवाही की जाने के विरोध में प्रांतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जिसका नजारा आज प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों में देखने को मिला।  भोपाल के जे पी अस्पताल, काटजू हो या बैरागढ़ का सिविल अस्पताल, सभी जगह मरीजो की लम्बी कतारे देखने को मिली। प्रदेश भर में  हड़ताल का जबरदस्त असर देखने को मिला है.

    फार्मासिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश प्रवक्ता विवेक मौर्य ने प्रेस को बताया कि ऐसी घटना किसी फार्मासिस्ट के साथ भी हो सकती है।

    मौर्य के अनुसार सरकार द्वारा फार्मासिस्ट पर इस करवाई के विरोध में दबाव बनाने के लिये PPA द्वारा आज से दवा वितरण ठप्प करने का फैसला किया है। चूँकि फार्मासिस्ट जनता के लिये भी संवेदनशील है और नही चाहते की इससे जनता को तकलीफ हो। इसलिये सुबह 12 बजे के बाद तीन दिन दवा बाँटेंगे। तीन दिन तक यदि प्रशासन नही चेतता तो सभी प्रकार का दवा वितरण पूरी तरह से ठप्प किया जायेगा।

    ज्ञात हो कि जे पी अस्पताल में कफ सिरप में तथाकथित कीड़े निकलने के आरोपो के बाद कोंग्रेस ने इसे राजनितिक मुद्दा बनाने पर सरकार ने आनन फानन में फार्मासिस्ट को दोषी बता के 3 फार्मासिस्ट को निलम्बित कर दिया था।

    इस निलम्बन का फार्मासिस्ट के साथ अन्य कर्मचारी संघो ने भी विरोध किया है।

    प्रदेश अध्यक्ष अम्बर चौहान व् सचिव जितेंद्र ने सभी कर्मचारियो से संगठित हो कर इस हड़ताल को कामयाब बनाने का आवाहन किया।

  • राजस्थान से मध्यप्रदेश तक फार्मासिस्टों ने जताया असंतोष

    भोपाल: 16 फरवरी/ फार्मासिस्ट के  आक्रोश की आग पुरे देश में फेल रही है, मध्यप्रदेश हो या राजस्थान फार्मासिस्ट अपने असंतोष को रोक नहीं पाये।
    राजस्थान के फार्मासिस्ट जागृति संस्थान ने आज अलवर में जोरदार रैली और प्रदर्शन किया।  फार्मासिस्ट जागृति संस्थान  के अध्यक्ष सर्वेश्वर शर्मा के नेतृत्व में आज सुबह से ही अलवर में फार्मासिस्ट जुटना शुरू हो गए थे, फार्मासिस्टों  ने राजस्थान स्टेट फार्मासिस्ट एसोसिएशन रजि.(PJSR से संबद्ध) की अलवर जिला इकाई के बैनर तले संस्थान के प्रदेशाध्यक्ष सर्वेश्वर शर्मा की अगुवाई में जोरदार रैली निकालकर फार्मेसी एक्ट और ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के लगातार हो रहे उल्लंघन एवं औषधि नियंत्रण विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन किया और सहायक औषधि नियंत्रक को ज्ञापन दिया।

    संस्थान के जिलाध्यक्ष हीरा सिंह चौधरी ने बताया कि प्रदर्शन में अलवर व आसपास के सैकड़ों फार्मासिस्टों ने भाग लिया और प्रोफेशन के उत्थान के लिए करो या मरो का संकल्प लिया ! रैली को संस्थान के प्रदेश महासचिव नवीन शर्मा, सचिव वीरेन्द्र सैनी, जयपुर शहर अध्यक्ष अरविंद गौड़ एवं देहात अध्यक्ष घनश्याम शर्मा ने भी संबोधित किया !सभी फार्मासिस्ट ने संकल्प लिया की किसी को भी प्रोफेसन में गंदगी नहीं फ़ैलाने देंगे साथ ही औषधि विभाग को दी चेतावनी दी गई जिससे औषधि विभाग भी हुआ कार्यवाई करने को मजबूर , फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति में दवा वितरण कर रहे 5 मेडिकल स्टोर्स पर कार्यवाई करवाई।

    वही मध्यप्रदेश में प्रांतीय फार्मासिस्ट असोसिएशन ने स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात कर फार्मासिस्टों के आक्रोश से स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया। PPA  के अध्यक्ष अम्बर चौहान ने स्वास्थ्यमंत्री को फार्मासिस्ट की समस्याओ का ज्ञापन दे के उन्हें उनकी वो घोषनाये याद दिलाई जो उन्होंने फार्मासिस्ट के सम्मेलन में उनसे की थी।

    प्रवक्ता विवेक मौर्य ने मंत्री को फार्मेसी छात्रों और शिक्षकों की समस्या से अवगत कराया।

    उधर उत्तर प्रदेश के फार्मासिस्ट भी १ मार्च को लखनऊ में बड़े आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर रहे है।

  • मेडिकल सेक्टर में बड़ा बदलाव लाएंगे फार्मा क्लीनिक, जानिये क्या है कांसेप्ट !

    देश भर में स्वास्थ्य सेक्टर में "फार्मा क्लीनिक " शब्द आजकल बहुत तेजी से प्रचलन में है लेकिन ये है क्या इस पर उन्हापोह की स्थिति है । कोई भी मिडिया, प्रशासन यहां तक की फार्मैसी और मेडिकल काउन्सिल ने भी इसे स्पष्ट नही किया। फार्मेसी कॉउंसिल ने पिछले वर्ष "फार्मेसी प्रैक्टिस अधिनियम 2015" आनन फानन में लागु तो किया लेकिन इसको फार्मासिस्ट के बीच में ले जा के समझा नही सकी। नतीजा यह हुआ कि फार्मेसी प्रैक्टिस के सम्बन्ध में भ्रांतियां फैलने लगी। काउन्सिल ने एक बार फिर भ्रांतियों का खण्डन कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।

    विवाद सुलझता न देख खरी न्यूज ने इस पर एकबार फिर पड़ताल की। खरी न्यूज ने मध्यप्रदेश के फार्मा एक्सपर्ट विवेक मौर्य के सहयोग से पड़ताल की।

    क्या है फार्मेसी या फार्मेसी प्रेक्टिस

    फार्मेसी प्रैक्टिस एक बिलकुल अलग प्रकार का व्यापक कार्य क्षेत्र है। बिलकुल वैसे जैसे वकील कानून सम्बंधित कार्य और सलाह का काम करता है।  लेकिन उसका और जज का काम पूर्णतः अहलदा लेकिन एक दूसरे पर परस्पर निर्भर होता है। ठीक ऐसे ही एक चार्टेड अकॉउंटेंट और  टेक्स डिपार्टमेंट में कार्य सामन्जस्य है।

    इसी प्रकार फार्मेसी प्रैक्टिस भी मेडिकल प्रेक्टिस से पूर्णतः अलग तो है किन्तु दोनों परस्पर निर्भर है।

    फार्मेसी प्रेक्टिस लोगो को दवा की सही मात्रा , दवा के सही प्रकार , दो या दो से अधिक प्रकार की दवाओं को एक साथ लेने पर पारस्परिक होने वाली अभिक्रियाओं , दवा की प्रकृति और शरीर की दवा के साथ संवेदन शीलता के बारे में , दवा की कीमत और खर्च को न्यूनतम करने तथा स्वास्थ्य क्षेत्र में फैली लूट खसोट से बचाने का कार्य करने जानकारी और सलाह देने का नाम है।

    विकसित देशों में यह प्रणाली बहुत प्रचलित है।

    भारत में फार्मेसी प्रेक्टिस

    भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य क्षेत्र की बागडोर पूर्णतः चिकित्सकों के हाथ में है । जिन्हे रोग का और उपचार का ज्ञान तो है परन्तु दवा का पूर्ण ज्ञान नही, न ही दवा सम्बन्धी कोई प्रशिक्षण दिया गया होता है। दवा की जानकारी उन्हें दवा कम्पनियो के प्रतिनिधियो से या इंटरनेट या पत्रिका वगैरह से मिलती है जो अक्सर अपूर्ण रहती है।

    ऐसे में फार्मेसी प्रैक्टिस न सिर्फ चिकित्सको का वर्क लोड कम करेगी बल्कि समाज को दवा से होने वाले दुष्प्रभाव से भी सुरक्षित करेगी।

    आम जन को फायदा

    1. चिकित्सक का इलाज क्रोस चेक होगा जिससे चिकित्सकीय गलती से होने वाले नुकसान पर लगाम लगेगी।
    2. फार्मेसी प्रैक्टिसनर दवाओ पर होने वाले खर्च को सबसे सस्ते गुणवक्ता पूर्ण दवाई के नाम और मात्रा की जानकारी दे के न्यूनतम करने में मदद  करते है।
    3. दवा की सही मात्रा की जानकारी सही इलाज मे मददगार होगी।
    4. गलत ढंग से लूट खसोट करने वाले चिकित्सको और दवा माफिया पर लगाम लगेगी, जनता का अनावश्यक खर्च बचेगा।

    भ्रांतियां

    कई लोगो को भ्रान्ति है कि फार्मेसी प्रैक्टिस में लोगो का उपचार किया जायेगा । जबकि इस प्रैक्टिस में उपचार को सस्ता सुलभ और सशक्त बनाने के लिये काम किया जाता है।

  • विशेष: सियाचिन में हर महीने 1 जवान होता है शहीद

    देश ने पाकिस्तानी सेना को मुहंतोड़ जवाब देने के लिए 32 साल पहले हिमालय क्षेत्र में अपना पहला सैन्य दल भेजा था और तब से लेकर आज तक सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन और विषम जलवायु परिस्थितियों की वजह से हर महीने सेना का एक जवान शहीद हो जाता है।

    सबसे ताजी घटना लांस नायक हनुमनथप्पा कोप्पड़ और नौ अन्य जवानों के शहीद होने की है। कोप्पड़ को छोड़कर बाकी नौ जवान हिमस्खलन की चपेट में आकर वहीं दम तोड़ चुके थे। कोप्पड़ को हिमस्खलन के तीन दिनों के बाद जिंदा निकाला गया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। कोप्पड़ और मद्रास रेजीमेंट के उनके साथियों के लिए आज पूरा देश गमगीन है।

    लोकसभा में पेश आकंड़ों के मुताबिक, ग्लेशियर में 1984 से दिसंबर 2015 के बीच तैनात कुल 869 भारतीय सैनिक शहीद हो चुके हैं। सियाचिन में 20,500 फीट की ऊंचाई पर तीन फरवरी 2016 को आए हिमस्खलन में मद्रास रेजिमेंट के 10 जवान शहीद हो गए। इस साल तीन और जवानों की मौत के साथ सियाचिन में शहीद जवानों की संख्या 883 हो गई है।

    शहीद हुए जवानों में 33 अधिकारी, 54 जूनियर कमिशन्ड अधिकारी और 782 अन्य रैंक के अधिकारी शामिल हैं।

    लोकसभा आंकड़ों के मुताबिक, सियाचिन में शहीद जवानों की संख्या 2011 में 24 से घटकर 2015 में पांच हो गई। ये सभी जवान दुश्मन के हमले से नहीं बल्कि हिमस्खलन और विपरीत जलवायु परिस्थिति की वजह से शहीद हुए हैं। इस साल हिमस्खलन की वजह से जवान शहीद हुए हैं।

    साल 2012-13 और 2014-15 के बीच कपड़े और पर्वतारोहण उपकरणों पर देश का 6,566 करोड़ रुपये (4.5 अरब डॉलर) खर्च आया है। इसमें से अधिकतर सामान सैनिकों के लिए आयात किया गया है।

    सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है लेकिन यहां जवानों को दुश्मन के साथ-साथ मौसम से भी जूझना पड़ता है।

    सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाकिस्तान सीमा पर हिमालय क्षेत्र में स्थित है।

    सियाचिन की प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो चुकी है। 2012 में पाकिस्तान के सैन्य शिविर में 2012 में हिमस्खलन से 140 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 129 सैनिक भी शामिल हैं।

    सियाचिन की ऊंचाई 22,000 फीट है (विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का ऊंचाई 29,000 फीट है) और तापमान न्यूनतम से 45 डिग्री सेल्सिस से कम तापमान है।

    यहां ऑक्सीजन कम है, जिस वजह से सैनिकों की याद्दाश्त कमजोर होने की संभावना है। बोलने में दिक्कत, फेफड़ों में संक्रमण और अत्यधिक तनाव से भी जूझना पड़ सकता है। यहां बर्फ में लंबी दरारों की समस्या से भी जवानों को जूझना पड़ता है।

    इन परिस्थितियों में सर्वाधिक बुनियादी वस्तुओं की आपूर्ति एक कठिन कार्य है। वहां कुछ चौकियों पर हेलीकॉप्टरों से ही जरूरी सामान पहुंचाया जाता है।

    सर्दियों के दिनों में भूमि मार्ग बंद होने की वजह से हल्के चीता हेलीकॉप्टर के जरिए ही खाद्य पदार्थो और गोला बारूद की आपूर्ति की जाती है।

    रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के मुताबिक, "सियाचिन पर जवानों की तैनाती का फैसला देश की सुरक्षा के मद्देनजर किया जाता है। मैं जवानों के बलिदान की खबरों से आहत हूं लेकिन मुझे लगता है कि अन्य कुछ समाधानों का सही तरीके से विश्लेषण नहीं किया गया है।"

  • निराला जयंती पर विशेष: हिंदी काव्य के महाप्राण को प्रिय था वसंत

    वसंत पंचमी आते ही याद आ जाते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और वसंत को समर्पित उनकी ये पंक्तियां-

    सखि, वसंत आया,
    भरा हर्ष वन के
    मन नवोत्कर्ष छाया।

    वसंत ऋतु में जिस तरह प्रकृति अपने अनुपम सौंदर्य से सबको सम्मोहित करती है, उसी प्रकार वसंत पंचमी के दिन जन्मे निराला ने अपनी अनुपम काव्य कृतियों से हिंदी साहित्य में वसंत का अहसास कराया था। उन्होंने अपनी अतुलनीय कविताओं, कहानियों, उपन्यासों और छंदों से साहित्य को समृद्ध बनाया।

    उनका जन्म 1896 की वसंत पंचमी के दिन बंगाल के मेदनीपुर जिले में हुआ था। हाईस्कूल पास करने के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। नामानुरूप उनका व्यक्तित्व भी निराला था।

    हिंदी जगत को अपने आलोक से प्रकाशवान करने वाले हिंदी साहित्य के 'सूर्य' पर मां सरस्वती का विशेष आशीर्वाद था।

    उनके साहित्य से प्रेम करने वाले पाठकों को जानकार आश्चर्य होगा कि आज छायावाद की उत्कृष्ट कविताओं में गिनी जाने वाली उनकी पहली कविता 'जूही की कली' को तत्कालीन प्रमुख साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' में प्रकाशन योग्य न मानकर संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने लौटा दिया था।

    इस कविता में निराला ने छंदों की के बंधन को तोड़कर अपनी अभिव्यक्ति को छंदविहीन कविता के रूप में पेश किया, जो आज भी लोगों के जेहन में बसी है।

    वह खड़ी बोली के कवि थे, लेकिन ब्रजभाषा व अवधी भाषा में भी उन्होंने अपने मनोभावों को बखूाबी प्रकट किया।

    'अनामिका,' 'परिमल', 'गीतिका', 'द्वितीय अनामिका', 'तुलसीदास', 'अणिमा', 'बेला', 'नए पत्ते', 'गीत कुंज, 'आराधना', 'सांध्य काकली', 'अपरा' जैसे काव्य-संग्रहों में निराला ने साहित्य के नए सोपान रचे हैं।

    'अप्सरा', 'अलका', 'प्रभावती', 'निरूपमा', 'कुल्ली भाट' और 'बिल्लेसुर' 'बकरिहा' शीर्षक से उपन्यासों, 'लिली', 'चतुरी चमार', 'सुकुल की बीवी', 'सखी' और 'देवी' नामक कहानी संग्रह भी उनकी साहित्यिक यात्रा की बानगी पेश करते हैं।

    निराला ने कलकत्ता (अब कोलकाता) से 'मतवाला' व 'समन्वय' पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

    हिंदी कविता में छायावाद के चार महत्वपूर्ण स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ अपनी सशक्त गिनती कराने वाले निराला की रचनाओं में एकरसता का पुट नहीं है।

    स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से प्रभावित निराला की रचनाओं में कहीं आध्यात्म की खोज है तो कहीं प्रेम की सघनता है, कहीं असहायों के प्रति संवेदना हिलोर लेती उनके कोमल मन को दर्शाती है, तो कहीं देश-प्रेम का जज्बा दिखाई देता है, कहीं वह सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने को आतुर दिखाई देते हैं तो कहीं प्रकृति के प्रति उनका असीम प्रेम प्रस्फुटित होती है।

    सन् 1920 के आस-पास अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू करने वाले निराला ने 1961 तक अबाध गति से लिखते हुए अनेक कालजयी रचनाएं कीं और उनकी लोकप्रियता के साथ फक्कड़पन को कोई दूसरा कवि छू तक न सका।

    'मतवाला' पत्रिका में 'वाणी' शीर्षक से उनके कई गीत प्रकाशित हुए। गीतों के साथ ही उन्होंने लंबी कविताएं लिखना भी आरंभ किया।

    सौ पदों में लिखी गई तुलसीदास निराला की सबसे बड़ी कविता है, जिसे 1934 में उन्होंने कलमबद्ध किया और 1935 में सुधा के पांच अंकों में किस्तवार इसका प्रकाशन हुआ।

    साहित्य को अपना महत्वूपर्ण योगदान देने वाले निराला की लेखनी अंत तक नित नई रचनाएं रचती रहीं।

    22 वर्ष की अल्पायु में पत्नी से बिछोह के बाद जीवन का वसंत भी उनके लिए पतझड़ बन गया और उसके बाद अपनी पुत्री सरोज के असामायिक निधन से शोक संतप्त निराला अपने जीवन के अंतिम वर्षो में मनोविक्षिप्त-से हो गए थे।

    लौकिक जगत को अपनी अविस्मरणीय रचनाओं के रूप में अपनी यादें सौंपकर 15 अक्टूबर, 1961 को महाप्राण अपने प्राण त्यागकर इस लोक को अलविदा कह गए, लेकिन अपनी रचनात्मकता को साहित्य प्रेमियों के जेहन में अंकित कर निराला काव्यरूप में आज भी हमारे बीच हैं।

    उनके ये शब्द भी मानो साहित्य प्रेमियों को यही दिलासा देते रहेंगे-

    अभी न होगा मेरा अंत,
    अभी-अभी तो आया है,
    मेरे वन मृदुल वसंत,
    अभी न होगा मेरा अंत।

  • फार्मासिस्टों ने झोलाछाप मेडिकल स्टोरों पर कार्यवाही के लिये जिलाधिकारी दिया ज्ञापन और सबूत

    कानपुर: 12 फरवरी/ कानपुर के फार्मासिस्ट एक बार फिर जिलाधिकारी के पास झोलाछाप मेडिकल स्टोरो की कारगुजारियों के सबूतों का पुलिंदा लेकर पहुंच गये. इन सबूतों में कानपुर में चल रहे बिना फार्मासिस्ट के झोलाछाप मेडिकल स्टोर, बिना लाइसेंस के मेडिकल स्टोर और एक फार्मासिस्ट पर चल रहे कई मेडिकल स्टोरो की लिस्ट जिलाधिकारी को थामायी।

    इस लिस्ट में कौंसिल में पंजीकरण संख्या 25000 तक के उन फार्मासिस्टों की भी लिस्ट सौंपी गई जिनके सहारे कानपुर शहर में झोलाछाप आम जन मानस में जहर बांट रहे हैं.

    जिलाधिकारी ने तल्लीनता से सभी फार्मासिस्टों की बात सुनी और कार्रवाई का पूरा भरोसा दिलाया और शहर में एक भी झोलाछाप मेडिकल स्टोर न चलने देने का वादा किया है और एक हफ्ता का समय माँगा हैं.

    जिसपर फार्मासिस्टों ने सहमति जताई है. इस ज्ञापन में प्रो के महासचिव डॅा० क्षितिज कुमार, फार्मासिस्ट शशिकेश , फार्मासिस्ट अरुण,   फार्मासिस्ट फाऊँडेशन के जिला समन्वयक अनीश निगम , फार्मासिस्ट वीरेन्द्र सेन , फार्मासिस्ट उमेश चन्द्र एवं फार्मासिस्ट दीपक मिश्र फार्मासिस्ट फाऊँडेशन के जिला उपाध्यक्ष शामिल रहे।

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विवेक दत्त मथुरिया आज देश लोकतांत्रिक आस्था और अनास्था के सवाल से जूझ रहा है। इस वक्त देश अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति से सामना कर रहा है। जिसका संकेत सरकार...

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सावित्रीबाई फुले जिन्होंने भारतीय स्त्रियों को शिक्षा की राह दिखाई

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उपासना बेहार “.....ज्ञान बिना सब कुछ खो जावे,बुद्धि बिना हम पशु हो जावें, अपना वक्त न करो बर्बाद,जाओ, जाकर शिक्षा पाओ......” सावित्रीबाई फुले की कविता का अंश अगर सावित्रीबाई फुले...

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