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मस्तिष्क की जांच के लिए वायरलेस, घुलनशील सेंसर्स जल्द

वाशिंगटन, 19 जनवरी (आईएएनएस)। मस्तिष्क में चोट वाले मरीजों के इलाज के दौरान, मस्तिष्क का तापमान व दबाव मापने के लिए मस्तिष्क में लगाए गए ब्रेन सेंसर्स को निकालने के झंझट से मरीज व चिकित्सक दोनों को छुटकारा मिल गया है।

न्यूरोसर्जन व इंजीनियरों के एक दल ने एक ऐसे वायरलेस ब्रेन सेंसर्स का विकास किया है, जो मस्तिष्क के अंदर के दबाव व तापमान को माप सकता है, साथ ही इसे बाहर निकालने के लिए आगे किसी और सर्जरी की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि यह शरीर में ही स्वत: घुल जाएगा और शरीर द्वारा अवशोषित कर लिया जाएगा।

अमेरिका के सेंट लूईस में वाशिंगटन युनिवर्सिटी ऑफ स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों तथा अर्बना-शैंपेन में युनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस के इंजीनियरों द्वारा विकसित वायरलेस ब्रेन सेंसर्स का इस्तेमाल मस्तिष्क की चोट की जांच करने के लिए किया जाएगा।

वाशिंगटन युनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरोसर्जरी विभाग में रेजिडेंट चिकित्सक रॉय केजे मर्फी ने कहा, "समय के साथ हमारा नया उपकरण शरीर में घुल-मिल जाता है, जिससे संक्रमण व सूजन का खतरा नहीं होता।"

एक प्रतिष्ठित पत्रिका 'नेचर' में मर्फी ने कहा, "शरीर द्वारा अवशोषित कर लेनेवाले उपकरण के विकास से उसे शरीर से निकालने के लिए सर्जरी जरूरत नहीं पड़ती है, जिससे संक्रमण का खतरा और इससे जुड़ी परेशानियां नहीं होती।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • चिकनपॉक्स वैक्सीन से आंखों में सूजन संभव
    न्यूयार्क, 21 जनवरी (आईएएनएस)। चिकेनपॉक्स और दाद जैसी बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली चिकनपॉक्स वैक्सीन आंखों में सूजन पैदा कर सकती है। एक नए शोध से यह बात सामने आई है।

    निष्कर्ष बताते हैं कि पिछले 20 सालों से विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्देशित चिकन पॉक्स वैक्सीन के इस्तेमाल से कुछ रोगियों की आंखों में कार्निया सूजन की शिकायत मिली है।


    अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिसूरी स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉक्टर फ्रेडरिक फ्रानफेल्डर के अनुसार, "राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय की केस रिपोर्ट पर अध्ययन में हमें 20 ऐसे मामले मिले हैं, जिन्हें इस वैक्सीन के इस्तेमाल से आंखों की परेशानी हुई।"

    फ्रानफेल्डर का कहना है, हालांकि यह एक दुर्लभ घटना है, लेकिन डॉक्टरों को यह वैक्सीन देने से पहले रोगी का इतिहास जान लेना चाहिए। अगर उन्हें कभी यह परेशानी हुई है तो इस वैक्सीन द्वारा वह फिर सक्रिय हो सकती है।

    वयस्कों में यह लक्षण वैक्सीन के 24 दिनों के भीतर दिखाई देने लगते हैं, वहीं बच्चों में इसका असर 14 दिनों के अंदर ही होने लगता है।

    यह शोध वर्ष 2015 में लॉस वेगास में आयोजित हुए अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थेल्मोलॉजी में प्रस्तुत किया गया था।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • जीका वायरस से ब्राजील में 5 और बच्चों की मौत
    रियो डी जेनेरियो, 21 जनवरी (आईएएनएस)। ब्राजील में जीका वायरस से पांच और बच्चों की मौत हो गई। वहां की सरकार ने बुधवार को इसकी घोषणा की।

    सिन्हुआ में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वोत्तर ब्राजील में ये पांच मौतें हुई हैं, जिनका कारण जीका वायरस है।

    अब तक ब्राजील में माइक्रोसेफाले के कुल 3,893 मामले सामने आए हैं, जिन्हें जीका वायरस की वजह से होने की संभावना है। इनमें से 224 मामलों में जीका वायरस की पुष्टि हो चुकी है जबकि अन्य मामलों की जांच की जा रही है।

    मार्च 2014 में अफ्रीका से लेकर लैटिन अमेरिका तक जीका वायरस फैल गया था। यह वायरस एडीस मच्छर से फैलता है और इससे नवजात में माइक्रोसेफाले नाम का मष्तिष्क संबंधी विकार पैदा हो जाता है। इससे बच्चों की जान को भी खतरा होता है।

    इंडो-एशियन न्यूज चैनल।
  • नाइजीरिया में लासा बुखार से 63 मरे
    लागोस, 21 जनवरी (आईएएनएस/सिन्हुआ)। नाइजीरिया में लासा बुखार से 63 लोगों की मौत हो चुकी है। 212 लोगों को इस वायरल बुखार से पीड़ित पाया गया।

    नाइजीरिया के स्वास्थ्य मंत्री इसाक अडेवोल ने देश की राजधानी अबुजा में मंगलवार को नेशनल काउंसिल ऑफ हेल्थ की आपात बैठक में इस महामारी का खुलासा किया।

    उन्होंने कहा कि बीमारी 17 राज्यों में फैल गई है। मंत्री ने यह भी कहा कि कुछ राज्य इसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। सभी राज्यों को इसे एक खतरे के रूप में लेना चाहिए और इसकी रोकथाम के लिए उपाय करने चाहिए।

    लासा बुखार घातक बीमारी है, जो मुख्य रूप से पश्चिम अफ्रीका में फैलती है। यह घरों और खाद्य स्टोरों तक पहुंच जाने वाले चूहों के लार या मल से लोगों में फैलता है।

    इस बीमारी का सबसे पहले पता 1969 में नाइजीरिया के लासा शहर में चला था। कुछ इलाकों में लासा बुखार के लक्षण मलेरिया जैसे ही होते हैं।

    नाइजीरिया के प्रशासन ने बीमारी के रोकथाम को लेकर खुद को सक्षम बताया है। प्रशासन का कहना है कि जिन लोगों में इस बीमारी का पहले पता चल जाता है, उनके बचने की संभावना अधिक होती है।

    नाइजीरिया के 12 राज्यों में 2012 में इस बुखार से 40 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद सरकार ने बीमारी की रोकथाम के लिए लासा फीवर रैपिड रेस्पांस कमेटी का गठन किया था।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • पिता का अवसाद भी आने वाली संतान के लिए खतरा
    लंदन, 21 जनवरी (आईएएनएस)। मां के अवसाद और बच्चे के स्वास्थ्य में संबंध की बात लंबे समय से की जाती रही है। अब एक नए अध्ययन में पाया गया है कि पिता के अवसाद का भी होने वाली संतान के स्वास्थ्य पर असर होता है।

    अध्ययन के मुताबिक, पिता के अवसाद के कारण गर्भ में पल रहे शिशु का जन्म कई बार समय से पहले हो जाता है। यानी पिता के अवसादग्रस्त रहने से भी समय पूर्व प्रसव का जोखिम बना रहता है।

    स्वीडन की 'सेंटर फॉर हेल्थ इक्विटी स्टडीज' की डॉक्टर एंडर्स जर्न ने बताया, "हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि अवसाद से पीड़ित माता-पिता दोनों को ही संतान के अपरिपक्व जन्म के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए और उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की जांच होनी चाहिए।"

    पिता के द्वारा पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जर्न ने बताया, "साथी का अवसाद गर्भवती महिला के लिए अवसादग्रस्त होने की सबसे बड़ी वजह होती है, जिसके द्वारा संतान में समय से पहले जन्म लेने का खतरा बढ़ता है।"

    जर्न कहती हैं, "पिता के अवसादग्रस्त रहने से शुक्राणु की गुणवत्ता प्रभावित होती है। अवसादग्रस्त पिता के द्वारा संतान के डीएनए पर एपिजेनेटिक प्रभाव पड़ता है और उसका गर्भनाल का क्रियान्वयन भी बाधित होता है। हालांकि इलाज के द्वारा इस समस्या से निदान पाया जा सकता है।"

    अध्ययन के नतीजे पत्रिका 'बीजेओजी' में प्रकाशित हुए हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • पुरुषों का नहीं, महिलाओं का रक्षक है एस्ट्रोजेन हार्मोन

    न्यूयार्क, 21 जनवरी (आईएएनएस)। महिलाओं के सेक्स हार्मोन नाम से प्रचलित एस्ट्रोजन हार्मोन केवल महिलाओं में फ्लू वायरस को घटाता है पुरुषों में नहीं। एक नए शोध में इसकी पुष्टि हुई है।

    अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार, यह सुरक्षात्मक हार्मोन महिलाओं के लिए बेहद अच्छा है यह प्राकृतिक तौर पर उनके अंदर होता है।

    हाल ही में हुआ यह शोध बताता है कि एस्ट्रोजन एचआईवी, इबोला और हेपेटाइटिस जैसे वायरस की प्रकृति को प्रभावित करते हैं जिससे संक्रमण की गंभीरता कम होती है।

    शोधार्थियों के अनुसार, पुरुषों की कोशिकाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के लिए रिसेप्टर्स काफी कम होते हैं इसलिए यह हार्मोन पुरुषों में वायरस के प्रति लड़ने के लिए उतना प्रभावी नहीं होता है।

    यह शोध ऑनलाइन पत्रिका 'अमेरिकन जर्नल ऑफ साइकोलॉजी' में प्रकाशित हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • रास्ते भुला देती हैं चिंताएं

    लंदन, 21 जनवरी (आईएएनएस)। चिंताओं से घिरे होने पर क्या आप चलते-चलते गलत दिशा में मुड़ते हैं अगर हां तो इसके लिए कसूरवार आपका मस्तिष्क है क्योंकि तनाव के दौरान लोगों में मस्तिष्क का दायां भाग व्यक्ति को बाईं दिशा में चलने के लिए उन्मुख करता है।

    यूनिवर्सिटी ऑफ केंट की डॉक्टर मारियो वीक ने पहली बार मस्तिष्क के दो भागों (गोलार्धो) की सक्रियता को व्यक्ति की प्रक्षेप पथ के बदलावों के साथ जोड़ा है।

    इस शोध के लिए शोधार्थियों ने कुछ लोगों से आंखों पर पट्टी बांधकर एक कमरे में सीधे चलने के लिए कहा। वह पहले से ही उस कमरे से वाकिफ थे।

    शोधार्थियों को इस संबंध में सबूत मिला है कि इनमें जो प्रतिभागी असामान्य और चिंताग्रस्त स्थिति से गुजर रहे थे वह बाई दिशा में चलने के लिए उन्मुख दिखाई दिए जिसकी वजह उनके मस्तिष्क के दाएं हिस्से में अधिक सक्रियता का होना है।

    यह शोध बताता है कि मस्तिष्क के यह दो हिस्से आपस में अलग-अलग प्रेरक तंत्रों के साथ जुड़े हैं।

    इस शोध के जरिए पहली बार मानसिक अवरोध और मस्तिष्क की दाईं हिस्से की सक्रियता के बीच स्पष्ट संबंध का पता चल पाया है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्तियों का अब पहले से अधिक कारगर इलाज किया जा सकेगा।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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