JS NewsPlus - шаблон joomla Продвижение
BREAKING NEWS
मोदी परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन में शामिल होने अमेरिका पहुंचे (लीड-1)
कापेलो नहीं जाना चाहते इटली
चीन के 'मीडिया ग्रुप' ने तोशिबा का घरेलू उपकरण कारोबार खरीदा
अफ्रीका में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं पर चीन, अफ्रीका मिलकर काम करेंगे
एनआईए ने सलविंदर सिंह से दोबारा पूछताछ की
चीन निजी सांस्कृतिक अवशेषों के लिए गैर लाभकारी कोष बनाएगा
बिहार : सड़क पर बम विस्फोट, 3 घायल
चीन या अमेरिका में खेल सकते हैं रोनाल्डिन्हो : एजेंट
स्वीडन के राष्ट्रपति का चीन दौरा अप्रैल में
समाजवादियों की सरकार जितना काम किसी ने नहीं किया : अखेिलश

LIVE News

मोदी परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन में शामिल होने अमेरिका पहुंचे (लीड-1)

कापेलो नहीं जाना चाहते इटली

चीन के 'मीडिया ग्रुप' ने तोशिबा का घरेलू उपकरण कारोबार खरीदा

अफ्रीका में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं पर चीन, अफ्रीका मिलकर काम करेंगे

एनआईए ने सलविंदर सिंह से दोबारा पूछताछ की

रोहित वेमुला मुद्दे पर घिरने के बाद मोदी ने उठाया आरक्षण का हथियार Featured

प्रभुनाथ शुक्ल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आरक्षण पर दी गयी सफाई ने राजनीति में एक और बहस छेड़ दी है। देश की राजनीति मंडल और कंमडल की झोली से बाहर नहीं निकल पायी है। हलांकि इस दौरान आधुनिक भारतीय राजनीति ने लंबा मुकाम तय किया है। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की ओर से बोई गई मंडल की फसल पहले से और अधिक संवृद्ध हुई है। अवसरवादी राजनीति अपने हिसाब से इसे काटती है।

डॉ. भीमराव अंबेडकर 125वीं जयंती पर नई दिल्ली में अंबेडकर स्मारक की आधारशिला रखते हुए हमारे प्रधानमंत्री की ओर से दिया गया बयान राजनीति से इतर नहीं है। इससे यह साफ हो गया है कि कम से वोट बैंक की राजनीति के मसले पर कांग्रेस और इतर राजनैतिक दलों की विचारधारा से भाजपा भी अलग नहीं है। वह भी सत्ता नहीं खोना चाहती है। उसे भी अपने वोट बैंक से अधिक लगाव है।

पीएम का बयान पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है। भाजपा आरक्षण को लेकर डरी और सहमी है। बिहार की हार से सबक लेते हुए पार्टी आगामी पांच राज्यों में होने वाले आम विधानसभा चुनाव को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती, इसलिए दलितों और पिछड़ों को खुश करने के लिए यह बयान दिया गया है।

पीएम की ओर से दिए गए इस बयान का काई औचित्य नहीं था। अपनी बात रखने के लिए बाबा भीमराव अंबेडकर का पूरा जीवन दर्शन पड़ा था। लेकिन उन्होंने आरक्षण को ही क्यों मुख्य बिंदु बनाया। आरक्षण का मसला भाजपा आतंरिक द्वंद्व का परिणाम है।

भाजपा आरक्षण को लेकर संघ और खुद में आंतरिक रण लड़ती दिखती है। पीएम को भाजपा के साम्राज्य विस्तार की जहां चिंता है, वहीं संघ को उसके हिंदुत्व और अपनी विचारधारा की। सवाल उठता है कि बाबा साहब को दलितोंउत्थान के आसपास ही क्यों सीमित किया जाता है।

उन्हें सामाजिक संघर्ष के नायक के रूप में क्यों नहीं पेश किया जाता है? उनकी छवि को हमारी राजनीति ने एक निश्चित सीमा और जातीयता में क्यों बांध रखा है? उन्हें सार्वभौमिक क्यों नहीं माना जाता?

जब दलित और उनके विमर्श की बात आती है तभी बाबा साहब की याद आती है। तभी संविधान की याद आती है। यह राजनीति की गलत दिशा है। पीएम ने जिस वक्त आरक्षण की बात हो हवा दी है, उसका कोई मतलब नहीं था। जिस फोरम से यह बात उठाई गई, वहां इसकी काई जरूरत नहीं थी। देश में आरक्षण का मसला टकराव का स्थिति में आ गया है। एक जमात में आरक्षण समर्थ दूसरे में आरक्षण विरोधी और तीसरे में आरक्षण चाहने वाले हैं। सवाल ऐसी स्थिति में बात कैसे बनेगी।

हलांकि प्रधानमंत्री ने यह बात रखी कि अंबेडकर को सिर्फ दलितों का मसीहा कह कर उन्हें सीमाओं में नहीं कैद किया जा सकता है। जिस तरह दुनिया मार्टिन लूथर किंग को देखती है, उसी तरह बाबा को देखना चाहिए। बात बिल्कुल सच है लेकिन जब इस पर गौर किया जाए तब।

बाबा को राजनेताओं और कुछ संगठनों ने जेबी बना लिया है, जिससे समाज में विरोधाभास और आरक्षण को लेकर टकराव की स्थिति बनी है। अभी हरियाणा में जाट आरक्षण की आग शांत भी नहीं हुई है। जाट समुदाय ने फिर आंदोलन की राह पर है। आरक्षण की आग में हजारों करोड़ स्वाहा हो गए। पीएम के राज्य गुजरात में भी हार्दिक पटेल आरक्षण को लेकर मुखर है।

वहीं यूपी में अगड़ी जातियां भी आरक्षण को लेकर पिछले दिनों सूबे की राजधानी में प्रदर्शन किया। ऐसी स्थिति में जब यह मसला बेहद संवेदनशील बन गया है उस स्थित में स्वयं प्रधानमंत्री की ओर से इस पर बयानबाजी कहां तक उचित थी? दलितों और पिछड़ों को भरोसा दिलाने के लिए उन्होंने ने यहां तक कह दिया कि बाबा साहब खुद भी चले आएं तो भी अब आरक्षण खत्म नहीं हो सकता। आरक्षण आप से कोई छीन नहीं सकता, विरोधियों की ओर से झूठ फैलाया जा रहा है।

भाजपा शासित राज्यों में कोई कटौती नहीं की गई है। हमारे समझ में नहीं आता है जब पीएम संघ की ओर से उठाए गए आरक्षण के मसले पर बिहार चुनाव में यह सफाई दे चुके थे कि आरक्षण मेरे जीते जी नहीं खत्म होगा। उस स्थिति में उसकी पुनरावृत्ति करने की क्या आवश्यकता थी?

निश्चित तौर पर आरक्षण का होना नितांत आवश्यक है, लेकिन कब तक और क्यों? हम संघ प्रमुख मोहन भागवत की ओर से पिछले वर्ष दिए गय बयान को बिल्कुल सही मानते हैं। उन्होंने आरक्षण खत्म करने की कभी वकालत नहीं की थी। उन्होंने केवल अराजनैतिक समिति गठित कर आरक्षण की समीक्षा की बात कहीं थी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आरक्षण ने सामाजिक रूप से पिछड़े दलितों और कमजोर वर्गों को नया मुकाम दिलाया है। लेकिन उसका लाभ आखिर किसे सबसे अधिक मिला है। क्या इसकी समीक्षा नहीं होनी चाहिए?

बाबा साहब क्या आरक्षण के आजीवन समर्थक थे? उन्होंने ने तो केवल दस सालों तक के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी, जिसे अनवरत जारी रखने के पक्ष में वे नहीं थे। देश में जब जातिय और आर्थिक गणना भारी मतैक्यता के बीच हो सकती है उस स्थिति में आरक्षण की समीक्षा क्यों नहीं हो सकती है।

आर्थिक और जातीय गणना को ही क्यों नहीं आरक्षण का आधार बनाया जाता है। सिर्फ जाति के नाम पर आरक्षण को अनिश्चित काल तक जारी रखना कहां की बुद्धिमानी होगी। देश को आजाद हुए 60 साल का वक्त गुजर गया है, ऐसे में हमने कभी आरक्षण नीति की समीक्षा की है? अगर नहीं तो क्यों?

आखिर हमें यह पता होना चाहिए कि वास्तव में इसका असली लोगों को लाभ मिल भी रहा है या नहीं या जो लोग आरक्षण को कायम रखने की बात कर रहे हैं। इन सारी सुविधाओं का लाभ वहीं तो नहींउठा रहे हैं। आरक्षण की राजनीति देश में खाई बढ़ा रही है। इस पर भाजपा हो या दूसरे दल, सभी राजनीति कर रहे हैं।

भाजपा अब अपने को अगड़ों के दायरे से निकाल कर एक अलग छवि पेश करना चाहती है। उसकी निगाह यूपी में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। राम मंदिर मसला गौण हो चला है, अब वह हिंदुत्व के बजाव राष्ट्रवाद की राजनीति करने लगी है।

रोहित वेमुला मुद्दे पर घिरने के बाद दलितों और पिछड़ों को खुश करने के लिए आरक्षण का हथियार उठाया है। निश्चित तौर पर इसकी समीक्षा होनी चाहिए। इस पर राजनीति बंद होनी चाहिए। संघ प्रमुख मोहन मागवत की बात पर विचार होना चाहिए। देश में आरक्षण पर समीक्षा की जरूरत है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

Read 47 times Last modified on Saturday, 26 March 2016 17:22
Rate this item
(0 votes)
More in this category: « भगत सिंह का सपना और आजादी केंद्रीय योजनाओं के नामकरण की कोई नीति नहीं! »

Related items

  • महंगाई के असर को ध्यान में रखा जाए तो 2022 में किसानों की आय 2016 जितनी ही होगी
  • आतंकवाद पर भारत की पीड़ा समझेगा पाक.....?
  • उत्तराखंड : हरीश को झटका, शक्ति परीक्षण पर रोक
  • बिहार विधानसभा में विधायकों ने ली शराब न पीने की शपथ
  • उप्र : अखिलेश ने सैफई में 5 परियोजनाओं का उद्घाटन किया

खरी बात

महंगाई के असर को ध्यान में रखा जाए तो 2022 में किसानों की आय 2016 जितनी ही होगी

महंगाई को समायोजित करने के बाद देश के किसानों की आय 2003 से 2013 के बीच एक दशक में सालाना पांच फीसदी की दर से बढ़ी। इसे देखते हुए केंद्रीय...

आधी दुनिया

पुरुषवादी मानसिकता का बर्बर रूप

आरिफा एविस पिछले दिनों महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शनि मंदिर में प्रवेश को लेकर आन्दोलनकारियों और मंदिर समिति की तमाम कार्यवाहियाँ हमारे सामने आ चुकी हैं. इन सबके बावजूद...

जीवनशैली

आत्मकेंद्रित पुरुषों में यौन अपराध की प्रवृत्ति अधिक

न्यूयार्क, 30 मार्च (आईएएनएस)। जो पुरुष आत्मकेंद्रित मानसिकता से ग्रस्त होते हैं, उनमें जघन्य यौन अपराध को अंजाम देने की प्रवृत्ति अधिक होती है। यह जानकारी एक नए शोध में...