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रूमानी रिश्तों को खत्म कर सकता है स्मार्टफोन


न्यूयार्क, 30 सितम्बर (आईएएनएस)। अपने महबूब या महबूबा के साथ समय बिताने के दौरान स्मार्टफोन से चिपकने के नतीजे उससे कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं जितने का आप शायद अनुमान लगाते हों। एक अध्ययन से पता चला है कि यह हरकत रोमांटिक रिश्तों को तबाह कर सकती है। यही नहीं अवसाद का शिकार भी बना सकती है।

अमेरिका के टेक्सास के बेयलर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेम्ल राबर्ट इस शोध का हिस्सा रहे हैं। उनका कहना है, "जब आप इसके नतीजों के बारे में सोचते हैं तो पाते हैं कि यह चौंका देने वाला है।"

उन्होंने कहा, "स्मार्टफोन जैसी आम सी दिखने वाली चीज हमारी खुशियों को डस सकती है। हमारे रूमानी जोड़ीदार से रिश्ते को खराब कर सकती है।"

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 'फबिंग' यानी 'पार्टनर फोन स्नबिंग' का 453 वयस्कों पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया। फबिंग का अर्थ बताया गया है कि अपने रोमांटिक जोड़ीदार के साथ समय बिताने के दौरान लोग किस हद तक सेलफोन की तरफ आकर्षित होते हैं या इस्तेमाल करते हैं।

राबर्ट्स ने बताया, "अध्ययन में हमने पाया कि जब किसी को लगता है कि उसका साथी उसे 'फब्ड' (उसकी अनदेखी कर सेलफोन से चिपकना) कर रहा है तो फिर इससे विवाद पैदा होता है और रिश्तों में संतुष्टि का स्तर घट जाता है।"

शोध के नतीजों में पता चला कि 46.3 फीसदी ने पाया कि उनके साथी ने उन्हें 'फब्ड' किया है। 22.6 फीसदी ने कहा कि इसकी वजह से झगड़ा हुआ। 36.6 फीसदी ने कहा कि इससे उनमें अवसाद का अहसास पैदा हुआ।

शोध कंप्यूटर्स इन ह्यूमन बिहेवियर जरनल में प्रकाशित हुआ है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • धड़कनों की माप के लिए स्मार्टफोन एप
    न्यूर्याक, 8 मई (आईएएनएस)। हृदय रोगियों के लिए एक अच्छी खबर है। हदय रोग के मरीजों की अनियमित दिल की धड़कन की निगरानी के लिए अब एक स्मार्टफोन एप आ गया है।

    इस एप का नाम 'एलाइवकोर हार्ट मॉनिटर स्मार्टफोन एप' है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में इस एप की क्षमता का आकलन भी किया है।

    न्यूयॉर्क के बुफैलो विश्ववद्यिालय के प्रोफेसर एनी क रटिस ने अपने अध्ययन रिपोर्ट में लिखा है कि यह एप हार्ट बीट की काफी बेहतर तरीके से निगरानी करने में सक्षम है।

    मरीजों के लिए इस एप का प्रयोग करना काफी सरल है और ये उन्हें काफी पसंद भी आ रहा है।

    वर्तमान में मरीजों को अपनी स्थिति की निगरानी के लिए इलेक्ट्रो काíडयोग्राफिक इलेक्ट्रोड्स को अपनी त्वचा से चिपकाए रखना होता है, और यह करीब दो से चार हफ्ते के लिए करना होता है। इससे मरीजों को थोड़ी उलझन होती है।

    करटिस ने बताया कि इस इवेंट मॉनिटर की सबसे बड़ी खामी यह है कि मरीज इसे सबके सामने नहीं प्रयोग कर सकता है और यह काफी तकलीफदेह भी है।

    सन फ्रांसिस्को में हार्ट रिदम सोसायटी की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत इस नए अध्ययन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि परंपरागत इवेंट मॉनिटरिंग प्रणाली के स्थान पर इस स्मार्ट फोन एप का प्रयोग बखूबी किया जा सकता है ।

    शोधकर्ताओं ने दो सप्ताह तक करीब 32 हृदय रोग के मरीजों पर इस एप का प्रयोग किया और उनकी धड़कनों की जांच की।

    अध्ययन में पता लगा कि एलाइवकोर हार्ट मॉनिटर स्मार्टफोन एप ने मरीजों की धड़कनों को 91 फीसदी तक सही रिकॉर्ड किया, जबकि परंपरागत इलेक्ट्रोड्स डिवाइस ने 87.5 फीसदी सही रिकॉर्ड किया।

    --आईएएनएस
  • मदर्स डे पर मां को दीजिए सेहतमंद जीवन
    नई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)। महिलाएं अपने जीवन में अनेक भूमिकाएं अदा करती हैं, जैसे कामकाजी महिला, मां, पत्नी, बेटी और बहन। ये सभी भूमिकाएं निभाते हुए वे अपनी सेहत नजरअंदाज कर देती हैं। 18 साल की उम्र के बाद प्रत्येक महिला को सेहतमंद और रोगमुक्त रहने के लिए नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच करवानी चाहिए।

    मदर्स डे पर हर बेटी को अपनी मां को स्वस्थ्य जांच उपहार में देनी चाहिए और उन्हें अपनी सेहत का ध्यान रखने के बारे में जानकारी देनी चाहिए और जो ख्याल व संभाल उन्हें मिलनी चाहिए वह देनी चाहिए।

    हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि नियमित स्वास्थ्य जांच महिलाओं और मांओं के लिए बेहद जरूरी है, जो अक्सर अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं।

    उन्होंने कहा कि महिलाओं का शरीर हमेशा विकसित होता रहता है और खास कर बच्चे को जन्म देने के बाद हर्मोनल बदलाव की वजह से उन्हें बीमारी होने की संभावना होती है।

    डॉ. अग्रवाल ने कहा कि देश में गर्भधारण के दौरान मौतों की संख्या काफी बढ़ गई है और गर्भधारण के बाद तनाव भी बढ़ रहा है। इसलिए 30 साल की उम्र के बाद हर महिला को बचाव के लिए स्वास्थ्य जांच और उनकी सेहत की संभाल के लिए परिवार कैसे मदद कर सकता है, इस बारे में जागरूक करना चाहिए।

    गायनी जांच : 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को अपना सम्पूर्ण गायनी चेकअप, जिसमें मेन्युल पेल्विक चेकअप और स्तन जांच के साथ पैप स्मियर की जांच करवानी चाहिए। यह हर साल करवानी चाहिए।

    हार्ट चेकअप : महिलाओं को तीसवें के बाद संपूर्ण हार्ट चेकअप जिसमें ब्लड प्रेशर, एलडीएल और एचडीएली कोलेस्ट्रॉल की जांच शामिल है, करवानी चाहिए। जिनके परिवार में पहले से दिल के रोग रहे हैं उन्हें अतिरिक्त जांच करवाने के लिए कहा जा सकता है। जिनका ब्लड प्रेशर सामान्य है, उन्हें इसकी जांच हर दो साल बाद करवानी चाहिए। कोलेस्ट्रॉल सामान्य हो तो हर पांच साल बाद जांच करवानी चाहिए।

    थायरॉयड : अनडायरेक्टिक थॉयरायड, जिसकी जांच ब्लड टेस्ट से होती है, वजन बढ़ने की वजह बन सकता है। जबकि ओवरएक्टिव थॉयरायड ऑटोएम्यून रोग का संकेत दे सकता है। सभी महिलाओं को 35 साल की उम्र में थायरॉड की जांच करवानी चाहिए। अगर मूड, वजन, सोने की आदत और कोलेस्ट्रॉल में छोटी उम्र में अवांछित बदलाव आने लगे तो यह टेस्ट जल्दी करवाना चाहिए।

    डायबिटीज टेस्ट : 40 साल उम्र के बाद महिलाओं को डायबिटीज का टेस्ट करवाना चाहिए। 45 साल की उम्र के बाद यह हर तीन साल बाद करवाना चाहिए। अगर महिलाओं का वजन ज्यादा हो या ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल ज्यादा हो या धूम्रपान करती हों या पहले परिवार में किसी को डायबिटीज रहा हो तो उन्हें इस बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। अगर प्री-डायबिटिक हो तो हर साल या दो साल के बाद जांच करवानी चाहिए।

    विटामिन डी टेस्ट : विटामिन डी हड्डियों की सुरक्षा करता है। यह डायबिटीज, दिल के रोगों और कुछ कैंसर से बचाता है और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। यह पोषण आम तौर पर धूप सेंकने और फोर्टिफाइड डेयरी उत्पादों से मिलता है।

    आजकल महिलाएं धूप से दूर रहती हैं, क्योंकि वह सूर्य की हानिकारक किरणों और रंग काला होने से बचती हैं। 80 से 90 प्रतिशत भारतीय विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं, क्योंकि जेनेटिक तौर पर और मूल रूप से शाकाहारी होने की वजह से भी वह इस कमी से पीड़ित होते हैं। ऐसे हालत में सप्लीमेनटेशन आवश्यक है।

    बोन डेनसिटी टेस्ट : 50 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को बोन डेनसिटी टेस्ट करवा कर हड्डियों में कैल्शियम और मिनरल की जांच करवानी चाहिए। मीनोपॉज की वजह से होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण औरतें ओस्टिोपोरोसिस और ओस्टियो आर्थराइटिस की शिकार हो जाती हैं।

    डॉ. अग्रवाल के अनुसार, हड्डियों को मजबूत रखने के लिए, नियमित एरोबिक व्यायाम, सेहतमंद व संतुलित आहार और आवश्यक धूप सेंकना बेहद जरूरी होता है।

    --आईएएनएस
  • मदर्स डे पर मां को दीजिए सेहतमंद जीवन
    नई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)। महिलाएं अपने जीवन में अनेक भूमिकाएं अदा करती हैं, जैसे कामकाजी महिला, मां, पत्नी, बेटी और बहन। ये सभी भूमिकाएं निभाते हुए वे अपनी सेहत नजरअंदाज कर देती हैं। 18 साल की उम्र के बाद प्रत्येक महिला को सेहतमंद और रोगमुक्त रहने के लिए नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच करवानी चाहिए।

    मदर्स डे पर हर बेटी को अपनी मां को स्वस्थ्य जांच उपहार में देनी चाहिए और उन्हें अपनी सेहत का ध्यान रखने के बारे में जानकारी देनी चाहिए और जो ख्याल व संभाल उन्हें मिलनी चाहिए वह देनी चाहिए।

    हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि नियमित स्वास्थ्य जांच महिलाओं और मांओं के लिए बेहद जरूरी है, जो अक्सर अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं।

    उन्होंने कहा कि महिलाओं का शरीर हमेशा विकसित होता रहता है और खास कर बच्चे को जन्म देने के बाद हर्मोनल बदलाव की वजह से उन्हें बीमारी होने की संभावना होती है।

    डॉ. अग्रवाल ने कहा कि देश में गर्भधारण के दौरान मौतों की संख्या काफी बढ़ गई है और गर्भधारण के बाद तनाव भी बढ़ रहा है। इसलिए 30 साल की उम्र के बाद हर महिला को बचाव के लिए स्वास्थ्य जांच और उनकी सेहत की संभाल के लिए परिवार कैसे मदद कर सकता है, इस बारे में जागरूक करना चाहिए।

    गायनी जांच : 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को अपना सम्पूर्ण गायनी चेकअप, जिसमें मेन्युल पेल्विक चेकअप और स्तन जांच के साथ पैप स्मियर की जांच करवानी चाहिए। यह हर साल करवानी चाहिए।

    हार्ट चेकअप : महिलाओं को तीसवें के बाद संपूर्ण हार्ट चेकअप जिसमें ब्लड प्रेशर, एलडीएल और एचडीएली कोलेस्ट्रॉल की जांच शामिल है, करवानी चाहिए। जिनके परिवार में पहले से दिल के रोग रहे हैं उन्हें अतिरिक्त जांच करवाने के लिए कहा जा सकता है। जिनका ब्लड प्रेशर सामान्य है, उन्हें इसकी जांच हर दो साल बाद करवानी चाहिए। कोलेस्ट्रॉल सामान्य हो तो हर पांच साल बाद जांच करवानी चाहिए।

    थायरॉयड : अनडायरेक्टिक थॉयरायड, जिसकी जांच ब्लड टेस्ट से होती है, वजन बढ़ने की वजह बन सकता है। जबकि ओवरएक्टिव थॉयरायड ऑटोएम्यून रोग का संकेत दे सकता है। सभी महिलाओं को 35 साल की उम्र में थायरॉड की जांच करवानी चाहिए। अगर मूड, वजन, सोने की आदत और कोलेस्ट्रॉल में छोटी उम्र में अवांछित बदलाव आने लगे तो यह टेस्ट जल्दी करवाना चाहिए।

    डायबिटीज टेस्ट : 40 साल उम्र के बाद महिलाओं को डायबिटीज का टेस्ट करवाना चाहिए। 45 साल की उम्र के बाद यह हर तीन साल बाद करवाना चाहिए। अगर महिलाओं का वजन ज्यादा हो या ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल ज्यादा हो या धूम्रपान करती हों या पहले परिवार में किसी को डायबिटीज रहा हो तो उन्हें इस बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। अगर प्री-डायबिटिक हो तो हर साल या दो साल के बाद जांच करवानी चाहिए।

    विटामिन डी टेस्ट : विटामिन डी हड्डियों की सुरक्षा करता है। यह डायबिटीज, दिल के रोगों और कुछ कैंसर से बचाता है और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। यह पोषण आम तौर पर धूप सेंकने और फोर्टिफाइड डेयरी उत्पादों से मिलता है।

    आजकल महिलाएं धूप से दूर रहती हैं, क्योंकि वह सूर्य की हानिकारक किरणों और रंग काला होने से बचती हैं। 80 से 90 प्रतिशत भारतीय विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं, क्योंकि जेनेटिक तौर पर और मूल रूप से शाकाहारी होने की वजह से भी वह इस कमी से पीड़ित होते हैं। ऐसे हालत में सप्लीमेनटेशन आवश्यक है।

    बोन डेनसिटी टेस्ट : 50 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को बोन डेनसिटी टेस्ट करवा कर हड्डियों में कैल्शियम और मिनरल की जांच करवानी चाहिए। मीनोपॉज की वजह से होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण औरतें ओस्टिोपोरोसिस और ओस्टियो आर्थराइटिस की शिकार हो जाती हैं।

    डॉ. अग्रवाल के अनुसार, हड्डियों को मजबूत रखने के लिए, नियमित एरोबिक व्यायाम, सेहतमंद व संतुलित आहार और आवश्यक धूप सेंकना बेहद जरूरी होता है।

    --आईएएनएस
  • हल्के भूकंप से भी आ सकती है सुनामी


    न्यूयॉर्क, 8 मई (आईएएनएस)। धीमी गति के भूकंप या धीमी रफ्तार से प्लेटों के खिसकने की घटना भी किसी बड़े भूकंप और सुनामी का कारण बन सकती हैं।

    धरती के नीचे प्लेटों की धीमी गति से खिसकने की घटना का परिणाम भी भूकंप के समान होता है, लेकिन धरती की दो प्लेटों के बीच तनाव पैदा करने की घटना कुछ सेकंड से लेकर दिन या सप्ताह तक चल सकती है, जिसके कारण प्लेटों के बीच एक सेंटीमीटर तक का खिसाव हो जाता है।

    समुद्र के नीचे की सतह के दबाव को रिकॉर्ड करने वाले उच्च संवेदनशील रिकॉर्डर का इस्तेमाल कर अमेरिका, जापान और न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने न्यूजीलैंड के पूर्वी तट से दूर एक मामूली खिसाव का पता लगाया।

    जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह लेखक योशिहिरो इतो ने कहा, "हमारे परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि जहां प्लेटें खिसकती हैं वहां यह घटना भूकंप लाने या सुनामी पैदा करने में सक्षम हैं।"

    इतो ने कहा, "इसने कम गहरे पानी और समुद्र तट से दूर समुद्र में चट्टानों के खिसकने की घटनाओं पर लगातार नजर रखने की हमारी जरूरत को बढ़ा दिया है। जैसा जापान के समुद्र तट से दूर निगरानी के लिए स्थाई नेटवर्क स्थापित किया गया है, उसी तरह जिन क्षेत्रों में धरती के नीचे की प्लेटें खिसक रही हैं, वहां नेटवर्क बनाने की जरूरी है।

    दो हफ्तों के अंदर न्यूजीलैंड और प्रशांत महासागर से लगी प्लेटें 15-20 सेंटीमीटर खिसकीं। यह दूरी प्लेटों के तीन से चार साल के अंदर तय गई दूरी के बराबर है।

    यदि यह खिसकाव धीरे-धीरे नहीं होकर अचानक हुआ, होता तो इसकी वजह से 6.8 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता था।

    इस दल ने धीमी खिसकाव की घटना का जहां अध्ययन किया है, वहां 1947 में 7.2 की तीव्रता वाला भूकंप आया था और उसकी वजह से एक बड़ी सुनामी आई थी।

    इस अध्ययन का निष्कर्ष धरती की प्लेटों के खिसकाव और सामान्य भूकंप के बीच संबंध की समझ को बढ़ाता है। यह दिखाता है कि दो तरह की भूकंपीय घटनाएं किसी एक ही प्लेट की सीमा क्षेत्र में हो सकती हैं।

    कुछ मामलों में तो इन हल्के खिसकावों का भी संबंध विनाशकारी भूकंप को उभारने से रहा है। जैसे वर्ष 2011 में जापान में आए 9 की तीव्रता वाले तोहोकु-ओकी भूकंप ने सुनामी पैदा की, जिसकी वजह से फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र में तबाही हुई।

    इस अध्ययन के सह लेखक कोलंबिया विश्वविद्यालय के लैमोंट-दोहटी अर्थ ऑबजर्वेटरी के स्पार वेब कहते हैं, "हमारे न्यूजीलैंड के प्रयोग का परिणाम दर्शाता है कि सुनामी और भूकंप की पहले चेतावनी देने के लिए प्रशांत महासागर के पश्चिमोत्तर में जहां समुद्र तट से दूर पृथ्वी के नीचे की प्लेटें टकराती हैं, वहां निगरानी प्रणाली के इस्तेमाल करने की बहुत संभावना है।"

    --आईएएनएस

  • स्मार्टफोन एप के आंकड़ों से पता चला दुनिया कैसे सोती है
    न्यूयॉर्क, 7 मई (आईएएनएस)। दुनिया भर में 30 से 60 साल उम्र के बीच की महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा सोती हैं, जबकि मध्य आयु के पुरुष कम सोते हैं। यहां तक कि वे जरूरी सात घंटों से कम नींद लेते हैं। एक स्मार्टफोन एप के माध्यम से 100 देशों में किए गए अध्ययन से यह जानकारी मिली है।

    मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग सूरज की रोशनी में कुछ समय रोजाना रहते हैं, वे बिस्तर में जल्दी जाते हैं और उनके मुकाबले ज्यादा नींद लेते हैं, जो सूरज की रोशनी में कम वक्त बिताते हैं।

    इस दल ने एक मुफ्त एप की मदद से 100 देशों के हजारों लोगों की नींद के पैटर्न का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि सांस्कृतिक दवाब लोगों के शरीर की प्राकृतिक घड़ी को प्रभावित करता है, जिसका नतीजा सबसे ज्यादा बिस्तर पर नजर आता है।

    सुबह के काम जैसे कार्यालय, घर, बच्चे, स्कूल आदि लोगों के जगने के समय पर गहरा असर डालते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि नींद पर असर डालने के इनके अलावा कई अन्य कारण भी हैं।

    मिशिगन विश्वविद्यालय की कॉलेज ऑफ लिटरेचर, साइंस एंड आर्ट्स के डेनियल फोर्जर का कहना है, "सभी देशों में यह देखा गया कि समाज ही हमारी नींद को निर्धारित करता है और देर से बिस्तर में जाने का नतीजा नींद में कमी के रूप में सामने आता है।"

    गणित विभाग की डॉक्टोरल छात्रा ओलिविया वाल्स कहती हैं, "ज्यादातर लोग जितना समझते हैं, नींद उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर आप रात में छह घंटे भी नींद लेते हैं तो आप नींद की कमी से जूझ रहे हैं।"

    हमारे शरीर के अंदर जैविक घड़ी होती है, जो हमारे सोने और जगने के समय को निर्धारित करती है। यह घड़ी चावल के दाने के आकार की होती है, जो आंखों के पीछे 20,000 न्यूरॉन्स का समूह होता है। यह प्रकाश के प्रति संवेदनशील होता है और खासतौर से यह सूरज की रोशनी के प्रति संवेदनशील होता है, जो हम अपनी आंखों से देखते हैं।

    कुछ साल पहले इन्हीं शोधकर्ताओं ने एक एप जारी किया था, जिसका नाम 'एनट्रेन' था। यह मुसाफिरों को नए टाइम जोन में जाने पर उन्हें समायोजित करता था।

    इस एप से मिले आकंड़ों से शोधकर्ताओं ने पाया कि सिंगापुर और जापान के लोगों के सोने का राष्ट्रीय औसतन सात घंटे 24 मिनट के आसपास है, जबकि नीदरलैंड के लोगों की नींद का औसत आठ घंटे 12 मिनट है।

    शोधकर्ताओं का कहना है कि हरेक आधे घंटे की नींद हमारे शरीर की प्रणाली और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है।

    वाल्स कहती हैं, "अगर आप लगातार ज्यादा दिनों तक नींद की कमी से जुझते हैं तो यह आपके शरीर पर गहरा असर डालता है।"

    उनका कहना है कि लोग सोचते हैं कि कम नींद से उनकी कार्यक्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता, जबकि यह गलत है। वे जोर देकर कहती हैं, "आपकी कार्यक्षमता कम हो जाती है, लेकिन आपको उसका अहसास नहीं होता।"

    --आईएएनएस
  • दक्षिण अफ्रीका में जीका के चौथे मामले की पुष्टि
    सियोल, 7 मई (आईएएनएस)। दक्षिण कोरिया में अधिकारियों ने शनिवार को एक महिला को जीका विषाणु से संक्रमित होने के साथ ही देश में जीका के चौथे मामले की पुष्टि की। महिला हाल में विएतनाम से लौटी है। कोरिया सेंटर्स फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (केसीडीसी) ने शनिवार को यह जानकारी दी।

    केसीडीसी ने कहा कि 25 वर्षीय महिला हो ची मिन्ह शहर में 10 से 30 अप्रैल के बीच काम कर एक मई को दक्षिण कोरिया लौटी थी।

    वह थायराइड ग्रंथी के इलाज के लिए चार मई को इंचियोन शहर के एक अस्पताल में गई। उसे जोड़ों में दर्द व त्वचा पर चकत्ते की समस्या थी। चिकित्सकों ने जांच के बाद उसे जीका विषाणु से संक्रमित होने की पुष्टि की।

    केसीडीसी ने संदेह जताया है कि विएतनाम में ही उसे मच्छर ने काटा होगा, हालांकि मरीज की हालत स्थिर है।

    स्वास्थ्य अधिकारी उस व्यक्ति में भी संभावित विषाणु की जांच कर रहे हैं, जो 13 अप्रैल से 17 अप्रैल के दौरान विएतनाम में उस महिला से मिला था।

    दक्षिण कोरिया में जीका के मामलों की संख्या चार हो गई है।

    देश में जीका का पहला मामला 22 मार्च को 43 वर्षीय एक व्यक्ति में सामने आया था।

    जीका के अन्य मामले 27 अप्रैल तथा 29 अप्रैल को दो भाइयों में सामने आए, जिन्होंने एक साथ फिलीपींस का दौरा किया था।

    --आईएएनएस

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