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प्रधानमन्त्री मोदी जी ये क्यों लगती है 'बेमन की बात' Featured

कुंवर अशोक सिंह राजपूत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रेडियो पर 'मन की बात' कभी-कभी बेमन की बात लगती है, क्योंकि आम देशवासियों की दैनिक, दीर्घकारी कठिनाइयों और चिंताओं का कोई समाधान न निकल पाना देश की जनता के लिए बेहद नीरस और निराश कर देने वाला है।

मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार ने 30 जनवरी को फिर से पेट्रोल पर एक रुपया और डीजल पर डेढ़ रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी और दो दिन बाद घर-गृहस्थी चलाने वाली महिलाओं को एलपीजी के दामों में 83 रुपये की कमी कर राजग सरकार से 20 महीनों में पहली बार बड़ी राहत प्रदान की है, लेकिन ऐसी सम-विषम के बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से बड़ा सवाल किया है।

जन-कल्याणकारी योजनाओं को गुजरात सरकार क्यों संचालित नहीं कर रही है? क्या गुजरात देश का हिस्सा नहीं है? गुजरात की स्वराज अभियान संस्था की याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्या गुजरात अनोखा राज्य है? राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जब पूरे देश में लागू है तो गुजरात सरकार ने लागू क्यों नहीं किया, भारत की संसद क्या कर रही है और केंद्र सरकार क्या कर रही है।

इतनी बड़ी और गंभीर बात कहकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और गुजरात सरकार से हलफनामा देने को कहा है। प्रधानमंत्री के अपने गृह-राज्य गुजरात के लिए शीर्ष अदालत की टिप्पणी राज्य सरकार की कार्य-कुसलता पर बड़ा सवाल है।

देश के निर्यात में दिसंबर-2014 से गिरावट जारी है। गिरावट के हाल से घरेलू शेयर बाजार भी प्रभावित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास पिछले वित्तवर्ष के अंत में मात्र 4700 रुपये की नकदी होने की जानकारी पीएमओ ने दी है। पीएमओ की इतनी सारगर्भित जानकारी के खुलासे से देश की जनता को क्या लेनादेना, क्योंकि जेब में धरी इतनी नकद राशि से देश के एक जरूरतमंद व्यक्ति को भी मोदी चलते-फिरते निजी तौर से मदद नहीं कर सकते।

अपुन का शिगणापुर स्थित शनि मंदिर में शिला पर पुरुषों की तरह महिलाओं के तेल चढ़ाने और मंदिर में उनके प्रवेश नहीं को लेकर मन में फिलहाल सामाजिक भाव विचार-विरोध या समर्थन का नहीं बना है। लेकिन देश की सवा अरब आबादी के प्रति मेरे दिल-दिमाग में पीएम मोदीजी के रेडियो के द्वारा मन वाली बात से इतर लेकिन दूसरी गंभीर बात समुचित उत्तर पाने के लिए जरूर घुमड़ रही है।

राजग-भाजपा के शासन और संचालन में ऐसी क्या कमी और अयोग्यता हो जाती है कि पड़ोसी देश से आए आतंकवादी कभी संसद पर हमला कर देते हैं, कारगिल में घुसपैठ कर आमने-सामने होकर हमारे सैनिकों से सीधा युद्ध कर लेते हैं और अब पठानकोट एयरबेस में घुसकर तीन-चार दिन तक देश की नाक में दम कर डालते हैं।

मोदी जी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी से जरा पूछिए कि सीमाओं पर तैनात मुस्तैद बीएसएफ को चकमा देकर आतंकवादी बारूद-हथियारों की खेप के साथ घुसपैठ कर सेना से मोर्चाबंदी कैसे कर ले रहे हैं? कैसे यह सब शिथिलता सीमा पर से होती रहती है, ऐसे में पीएम मोदी जी जरा निजी मन के विचारों को किनारे कर दिल की गहराइयों से देशवासियों को सच-सच यह खुलासा कर बताइए कि देश के अंदर जमाखोरों और सीमाओं पर घुसपैठियों द्वारा यह घालमेल कैसे सफलता से चलाया जा रहा है?

विकसित और विकासशील के दावों से अलग भारत में अमीरी और गरीबी के बीच का फैसला इतना बड़ा है कि 10 फीसदी शहरी गरीब के पास 300 रुपये से कम की पारिवारिक संपत्ति हिस्से में आ रही है। एक सर्वे में यह भी खुलासा हुआ है कि गांवों के अमीर-गरीब में शहरों से 228 गुना का अंतर है।

यह समझ सभी को है कि राज्यों से दिल्ली में आकर एसी दफ्तरों में विराज रहे अफसरशाहों की सलाह पर बढ़े करों-ड्यूटी के अलावा वस्तुओं की बढ़ी कीमतों और महंगाई का असर सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों, विधायक, सांसद और मंत्रियों पर बिल्कुल भी नहीं होता, क्योंकि सरकारी दफ्तरी-चपरासी तक 20-25 हजार रुपये की पगार हर महीने पा लेता है।

वहीं उप और संयुक्त सचिव के पदनाम धारक अधिकारी हों या इंजीनियर-डॉक्टर, एक लाख रुपये महीना और बैंकों के जीएम और डायरेक्टर, मुख्य सचिव, कैबिनेट सचिव विभिन्न तरह के भत्तों सहित दो लाख रुपये से ज्यादा माहवार-वेतन जनता के कर की अदायगी से ही प्राप्त कर रहे हैं। तब देश का भविष्य सु²ढ़ करने के साथ ही विकास की गति को बढ़ा रहे ये महानुभाव पेट्रोल और डीजल के अलावा चीनी-दाल के महंगे दाम होना कभी भी अनुभव नहीं कर सकेंगे।

दिल्ली सरकार के द्वारा चालू वित्तवर्ष में 20 स्मार्ट-सिटी विकसित किए जाने हैं। योजना के आरंभ में उत्तर-प्रदेश के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन नगर आगरा, धार्मिक नगरी मथुरा, वाराणसी, इलाहाबाद और राजधानी लखनऊ के शामिल न किए जाने पर कोई साफ-सफाई नहीं आ पाई है, इसके इतर आगे के दो वर्षो में चालीस-चालीस जिलों, प्रमुख नगरों को स्मार्ट-सिटी में परिवर्तित करने की योजना केंद्रीय नगरीय विकास मंत्रालय की है।

अडानी, अंबानी और टाटा दूरसंचार व्यवसाय के कारण जनता को नेट-न्यूट्रलिटी देने के पक्षधर नहीं हैं। सरकार भी उनके साथ है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने नेट-न्यूट्रलिटी पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है। गरीब-मध्यम देशवासी महंगाई के चलते दूध, दवाई और इलाज पाने के लिए तक खासा चिंतित है। उसे वित्तमंत्री अरुण जेटली के जीडीपी के आंकड़ों में नहीं पड़ना है। रिजर्व बैंक के तेज तर्रार काबिल गवर्नर रघुराम राजन की जीडीपी के आकलन के आंकड़े और फर्जीवाड़े को लेकर जो कुछ साफगोई से कहा है, यह विचार जनता जान चुकी है।

दाल, खाद्य-तेल, चीनी और आटे-चावल के दाम मुनाफाखोर और जमाखोर व्यापारियों के कारण डेढ़ वर्ष के शासन में कम क्यों नहीं हो पा रहे हैं? मोदी जी, अपने खाद्य मंत्री रामविलास पासवान जी को तलब कर नट-बोल्ट कसिए, उमेठिए।

पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की ओर से दो सौ जिलों से शुरू किए गए मनरेगा के दो फरवरी को दस साल पूरे हो गए। देशभर के गांव और गरीब की तस्वीर सुधारने के क्रम में 3,13,844 करोड़ रुपये केंद्र की ओर से खर्च हो चुके हैं। योजना के सकारात्मक नतीजों को विश्व बैंक ने ग्लोबल डेवलपमेंट रिपोर्ट में शानदार ग्रामीण विकास योजना करार दिया है, जबकि वर्तमान राजग सरकार योजना के गांधी नाम से जुड़े होने मात्र से मनरेगा के विस्तार को लेकर लगातार दुविधाग्रस्त है। नजरिया रूढ़िवादी दिख रहा है।

बरसात और अवर्षा को झेल चुके किसान के गन्ना समर्थन मूल्य में चार साल से कोई भी बढ़ोतरी सरकार और चीनी मिलों की अेार से नहीं हुई है। चीनी मिलों के मालिक चार साल से 280 रुपये प्रति कुंतल का दाम-भुगतान दो किस्तों में गन्ना किसानों को भुगतान कर रहे हैं, जबकि चीनी मिल वाले चीनी के उत्पादन के आलावा, शीरा, अल्कोहल, बिजली, इथनॉल और गन्ने की बगाश से कागज बना कर अतिरिक्त मालामाल हो रहे हैं।

उपभोक्ता को दिवाली से अब तक 5-7 रुपये प्रति किलो ज्यादा दाम चीनी की खरीद के लिए देना पड़ा है। शायद यह बात पीएम के मन में अभी तक प्रवेश नहीं पा सकी है।

राज्य सरकार और मिल मालिकों के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी की मांग को लेकर गन्ना किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में भारतीय किसान यूनियन और आरएलडी के झंडे तले लामबंद होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। लखनऊ दिल्ली-राष्ट्रीय हाईवे पर 6 से 10 घंटे प्रतिदिन जाम लग रहा है, एक फरवरी को दिल्ली मेरठ-मार्ग पर 22 किलोमीटर तक जाम लगा रहा।

बुंदेलखंड की वीरगाथाओं के बीच मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के डेढ़ दर्जन जिलों की आर्थिक स्थिति निरंतर खराब होने की खबरें मिलने के बावजूद सरकारों की ओर से स्थिर समस्या के हल करने के लिए राज्य और केंद्र की ओर से कोई पुरसाहाल नहीं है।

यूपीए सरकार में आर्थिक मदद के पैकेज की घोषणा कर देने के बावजूद राहुल गांधी ने गरीबी के कारण बुंदेलखंड के स्थानीय लोगों के पलायन की खबरों के बीच हाल में जो पदयात्रा की, विपक्षी राजनैतिक दल उनके यात्रा नाटक के मायने पूछ रहे हैं।

बुंदेलखंड की हकीकत की मीडिया कवरेज के बाद आनन-फानन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी दिनभर दौरे पर रह लखनऊ वापस हो गए।

नदी सफाई अभियान की केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती का जन्म और कर्मक्षेत्र बुंदेलखंड होने के बावजूद क्षेत्र के पिछड़ेपन और गरीबी पर कोई विचार और ठोस योजना क्यों प्रस्तुत नहीं हुई है, बुंदेलखंड की जनता का उनसे सवाल है।

पूर्व नौकरशाह और देश के पूर्व वित्तमंत्री भाजपा के दिग्गज नेता यशवंत सिन्हा का आकलन बिल्कुल समय से और सटीक आया है कि 2019 में लोकसभा चुनाव के समय मोदी 2004 के अटल बिहारी वाजपेयी जी की सत्ता से प्रस्थान का अनुसरण करेंगे।

यह आंख खोलने वाला तल्ख आकलन है, ऐसे में उनसे उनके इस बयान को वापस लेने के लिए उन्हें धौंसियाया जा रहा है। बिहार के बाद अब आगे पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। खबरों में साफ दिख रही है कि पंजाब से राजग विदाई लेने जा रहा है।

असम में भाजपा प्रगति करेगी यह सही है, लेकिन इतनी भी नहीं कि स्वीप कर सत्ता पर आसनी हो जाएगी। बिल्कुल नहीं। हां, असम से भजपा को खुशहाली जरूर मिल सकती है और बंगाल में भाजपा पहले जीरो पर थी, निश्चित तौर पर दो-एक दर्जन ही सीटें पा सकेगी।

भारत के बाजार और सरकार की स्वयं की वाहवाही के बावजूद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने जनवरी में भारतीय शेयर बाजारों से 11126 करोड़ रुपये या 165 अरब डॉलर निकाले हैं। भारतीय शेयर बाजारों की निकासी पिछले साल अगस्त के बाद का सबसे ऊंचा आंकड़ा है।

अभी हाल में कुछ देर के लिए लखनऊ आमद हुई। मोदी जी डेढ़ साल के बाद चार-पांच घंटों के लिए सरकारी कार्यक्रम में शामिल वास्ते लखनऊ पधारे। तर्क और असल यह है कि दलित वोटों को मायावती से झटकने की मंशा ज्यादा है।

भाजपा के जानकारों ने इतनी देर से पीएम मोदी के लखनऊ दौरा करने के बाबत बताया कि अब जब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव सन्निकट होंगे, तो मोदी जी और भाजपा के दर्जनों की संख्या में मंत्रीजन बिहार की तर्ज पर नोएडा से बलिया तक डेरा डालेंगे और अपना राजनैतिक भाषण भी राज्य के वोटर भगवान को सुनाने को बाध्य होंगे और तभी युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से केंद्र सरकार से मिली आर्थिक मदद का जनसभाओं में खुले से हिसाब वसूलेंगे।

उन सभाओं के द्वारा बसपा मुखिया मायावती, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और नीतीश-लालू-हैंडपंप चुनाव निशान वाले अजित सिंह और कांग्रेस के महागठबंधन से संवाद होगा।

यह तथ्य है, उत्तर प्रदेश से भाजपा को अकेले 71 और सहयोगी दल अपना दल के दो कुल 73 सांसद 2014 में लोकसभा पहुंचे। सीधी-साधी जनता को लच्छेदार भाषण में उलझाकर लूट लेने और बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी के एमपी बन भारत देश के पीएम पद पर विराजमान होकर अहमदाबाद-गुजरात से 7, रेस कोर्स के बंगले में नरेंद्र भाई का नया डाक पता हो जाने के बाद से देश से बाहर मनचाहे देशों के दौरे करके विदेशों में स्वयं अपना और भारत का डंका निश्चित पिटवा रहे हंै। लेकिन देश में 1992 से बाबरी विध्वंस के बाद से अयोध्यापति श्रीराम महाराज तिरपाल के नीचे सर्द, गर्मी और फुहार और झमाझम बरसात में डटे जमे दिव्य-भव्य भवन-मंदिर के निर्माण का भरोसा भाजपा से पाए हुए हैं।

हालांकि लगभग डेढ़ साल पहले भाजपा नेता बने सुब्रमण्यम स्वामी अपने बयान से जरूर भरोसा दे रहे हैं कि अयोध्या में आगे रामजी का मंदिर निर्माण शुरू होगा, कैसे कब यह कुछ चैनलों और जनता को सीधे नहीं बता पाए हैं। ऐसे ही संघ सहित विहिप वाले साधु-संत भी मंदिर निर्माण के लिए कुछ बयान दे सांत्वना का मरहम समय समय पर लगा रहे हैं। लेकिन इतने सब के बाद भी पीएम मोदीजी ने देश रामभक्त-जनता को औपचारिक तोर पर श्री राम मंदिर निर्माण का भरोसा आश्वासन नहां दिया है।

इसीलिए, अपुन तो गाहे-बघाहे पुराने रेडियो पर पीएम मोदीजी के मन की बात को सुनता रहता है कि कभी तो श्रीरामजी के मंदिर निर्माण की बात कभी दिल से गुजरते हुए मन के द्वारा सुनाई पड़ जाए।

मुझे तो ऐसी बहुत सी बातों के उत्तर मिलने का इंतजार है पीएम के मन की बात से, क्योंकि चालाक नौकरशाहों की मजबूत चारदीवारी को लांघ करके आम जनता की समस्या से रूबरू करा पाना कलमकारों और राज्य के जमीनी दमदार भाजपा नेताओं के लिए अब नामुमकिन सा हो गया है। ऐसी स्थिति में जो नेता और पत्रकार उनसे छटे-छमाये मिल भी पाते हंै हकीकत के बजाय साहब के मन के माफिक रिपोर्ट और बातें ही करते हैं।

अगर ऐसा नही है, तब अरहर की दाल 200 रुपये प्रति किलो जनता को क्यों खरीदनी पड़ी है? जो दिल की बात कर करे हैं, वह गौर कर देश की जनता के जुड़े विषयों पर उत्तर दें। संघी भक्तों और भाजपा के प्रवक्ताओं से तथ्यहीन..लपेटने वाली सफाई अपुन को नहीं सुननी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

Read 52 times Last modified on Tuesday, 16 February 2016 13:11
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