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टीबी से मुकाबले के लिए नई पहल शुरू

नई दिल्ली, 21 मार्च (आईएएनएस)। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने कहा है कि देश में टीबी से लड़ने की कोशिशों को भारत सरकार ने और तेज करने का संकल्प व्यक्त किया है।

वे यहां विश्व टीबी दिवस की पूर्वसंध्या पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि टीबी से लड़ाई की प्रक्रिया जारी है। इसलिए इससे पीछे नहीं हटा जा सकता और न ही इधर-उधर भटका जा सकता है।

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि हमारी कोशिश तेज और आक्रामक होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि टीबी से लड़ने के लिए संसाधन कभी आड़े नहीं आएगा और सरकार सभी हितधारकों के साथ काम करती रहेगी। यह लघु अवधि और दीर्घकालिक पहल के द्वारा होगा। नड्डा ने टीबी के मरीजों के इलाज के लिए दयाभाव की जरूरत पर भी जोर दिया।

इस अवसर पर जे.पी.नड्डा ने बेडाक्वीलिन नामक नई टीबी निरोधी दवा को भी सार्वजनिक किया। यह नई दवा एमआरडी-टीबी के इलाज के लिए है। नई श्रेणी की यह दवा मुख्य रूप से डायरियालक्वीनोलिन श्रेणी की है, जो खासतौर पर माइकोबैक्टीरियल के लक्ष्यों तक पहुंच कर माइकोबैक्टीरियम टीबी और दूसरे ज्यादातर माइकोबैक्टीरिया में ऊर्जा की आपूर्ति के लिए दूसरे आवश्यकएन्जाइम की आपूर्ति में सहायक है।

इस दवा के इस्तेमाल से टीबी के प्रतिरोधी उपाय सहज होने के संकेत मिलते हैं। बेडाक्वीलिन को समूचे भारत में चिन्ह्ति छह क्षेत्रीय स्वास्थ्य केन्द्रों में पहुंचाना शुरू किया जा रहा है। इन केन्द्रों में प्रयोगशाला परीक्षण की उन्नत सुविधायें और मरीजों की सघन देखभाल की व्यवस्था है।

बेडाक्वीलिन उन मरीजों को दी जाएगी, जिनमें दूसरी कई दवा संबंधी निरोधक प्रणालियां कारगर नहीं होती। सभी दूसरी उपचार प्रणालियों में सुई लगाने और व्यापक औषधि निरोधक उपाय सफल न होने पर भी बेडाक्वीलिन दी जाएगी।

स्वास्थ्य मंत्री ने टीबी भारत - 2016 वार्षिक रिपोर्ट और तकनीक एवं ऑपरेशनल गाइड लाइन-2016 भी जारी की। इसके अलावा एकल खिड़की निगरानी के तहत मरीजों की देखभाल और परीक्षण संबंधी कार्यक्रम संभव होंगे। साथ ही, कार्यक्रम में दवाओं के बुरे असर को रोकने संबंधी ई-बुक को भी सार्वजनिक किया गया। इस मौके पर टीबी के नये रेडियो अभियान को भी शुरू किया गया, जिसके एम्बेसडर अमिताभ बच्चन है।

मंत्री ने एचआईवी के पीड़ित लोगों के लिए तीसरी पंक्ति के एआरटी कार्यक्रम को भी शुरू किया। जीवन-रक्षक तीसरी पंक्ति के इस कार्यक्रम पर एक मरीज पर 1,18,000 रुपए का सालाना खर्च आएगा। मुफ्त में ये सुविधायें मिलने से न सिर्फ जीवन सुरक्षित होगा, बल्कि इससे मरीज के सामाजिक-आर्थिक हालात में भी सुधार आएगा। इस पहल से भारत विकसित देशों में जारी ऐसे कार्यक्रम की कतार में खड़ा हो जाएगा।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • एसबीआई के सहयोगी बैंकों के विलय को मंजूरी जल्द : जेटली
    नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के समेकन के मुद्दे पर सरकार फिलहाल भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक के विलय के प्रस्ताव पर विचार कर रही है और जल्द ही इस पर कोई निर्णय ले लिया जाएगा।

    जेटली ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों के साथ यहां आयोजित एक समीक्षा बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, "हम फिलहाल एसबीआई पर विचार कर रहे हैं। इसका प्रस्ताव सरकार के पास है और इस पर जवाब दिया जाएगा। सरकार की नीति कुल मिलाकर समेकन के पक्ष में है। मैंने बजट में ही इसका संकेत दे दिया है।"

    यह पूछने पर कि निर्णय कब लिया जाएगा, जेटली ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि इसे जल्द मंजूरी दे दी जाएगी।"

    एसबीआई के बोर्ड ने पिछले महीने अपने पांच सहयोगी बैंकों -स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद- के साथ ही भारतीय महिला बैंक के विलय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी और इसके लिए सरकार से मंजूरी मांगी है।

    एसबीआई के सहयोगी बैंकों में सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर सूचीबद्ध हैं, जबकि इस विलय से संयुक्त रूप से 50 करोड़ उपभोक्ताओं का एक आधार तैयार होगा।

    --आईएएनएस
  • मोदी विरोधी संजय जोशी अब मुसलमानों पर डालेंगे डोरे

    लखनऊ, 7 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी कहे जाने वाले भाजपा के पूर्व महामंत्री संजय जोशी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा के लिए मुस्लिमों को रिझाने की जिम्मेदारी सौंपी है। जोशी मुसलमानों से भाजपा के लिए समर्थन मांगने के लिए 7 जून को लखनऊ आ रहे हैं। इस दौरान जोशी मुसलमानों तक केंद्र की मोदी सरकार के विकासपरक कार्यो को पहुंचाने का काम करेंगे। यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी की सबका साथ सबका विकास की नीति समझाने का काम उनकी टीम द्वारा किया जाएगा।

    संघ से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि मोदी और जोशी का विवाद बहुत पुराना है। इसलिए संघ विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से दोनों के बीच की दूरियां खत्म करना चाह रहा है। उनका कहना है कि यदि इनकी दूरियां खत्म होती हैं तो इनकी योग्यता का पूरा लाभ संगठन और पार्टी को मिलेगा। बता दें कि जोशी इससे पहले भी मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के तहत झाड़ू लगा चुके हैं।

    जोशी लखनऊ में सात जून को संघ के अनुषांगिक संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और राष्ट्रीय एकता मिशन के बैनर तले इस्तखबाले माहे रमजानुल मुबारक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की हैसियत से शामिल होंगे। कार्यक्रम हुसैनाबाद रोड स्थित सेहरा पैलेस में आयोजित किया गया है। साथ ही शाम को उनके साथ रोजा इफ्तार भी करेंगे। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के अवध प्रान्त की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम के संयोजक सैयद हसन कौसर हैं।

    लखनऊ में जोशी का व्यस्त कार्यक्रम है। वह यहां सबेरे यहां आकर आईटी चैराहे के निकट रामाधीन उत्सव गेस्ट हाउस में अपने समर्थकों से मिलेंगे। यहां दोपहर 12 बजे वह अपने नाम से बनाए संजय भाई जोशी फैन्स क्लब की ओर से आयोजित निरालानगर के सरनदास मंदिर में बड़े मंगल पर आयोजित भंडारे में भी हिस्सा लेंगे।

    --आईएएनएस
  • दिल्ली उच्च न्यायालय में सुशील कुमार की याचिका खारिज (लीड-1-संशोधित)
    नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दो बार ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार की दोबारा ट्रायल की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। अदालतन ने कहा कि चयन को अंतिम समय पर चुनौती दिए जाने से चयनित खिलाड़ी नरसिंह यादव की मानसिक तैयारी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

    सुशील कुमार ने याचिका दायर कर रियो ओलंपिक के लिए भारतीय दल में जगह पाने के लिए 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कुश्ती का ट्रायल फिर से कराने की मांग की थी।

    न्यायमूर्ति मनमोहन ने भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) का निवेदन स्वीकार कर लिया। संघ ने कहा कि नरसिंह यादव का वर्तमान फॉर्म सुशील कुमार से अच्छा है।

    न्यायमूर्ति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि सुशील कुमार चयन के लिए 2014 और 2015 में हुए ट्रायल में भाग लेने में विफल रहे। साथ ही उन्होंने 31 दिसंबर 2015 और 1 जनवरी 2016 को हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता व फरवरी 2016 में एशियाई चैंपियनशिप में भी भाग नहीं लिया।

    अदालत ने कहा कि सुशील कुमार ने सितम्बर 2014 से अब तक कोई भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता नहीं जीती है, जबकि नरसिंह यादव ने दिसंबर 2015 में प्रो कुश्ती लीग में मंगोलिया के पहलवान पुरवाज उनुरबात को हराया था और सितंबर 2015 में हुई विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिता में कांस्य पदक विजेता रहे थे।

    सुशील कुमार की ओर से तर्क दिया गया कि प्रशिक्षण के लिए उन्हें 2016 में जॉर्जिया और सोनीपत (हरियाणा) भेजा गया था। इस पर अदालत ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रायल आज कराना आवश्यक है और वह भी इतनी देर से।

    अदालत ने इस पर भी ध्यान दिया कि डब्ल्यूएफआई ने चयन से पहले निष्पक्ष और पारदर्शी ट्रायल कराया था। साथ ही खेल संहिता के तहत चयन प्रक्रिया और ट्रायल कराने के निर्णय के संबंध में भारतीय कुश्ती संघ को प्रदत्त स्वायत्तता को भी माना।

    अदालत ने कहा, "एक खिलाड़ी की मासूमियत के साथ 'सिर्फ एक ट्रायल' की मांग से हो सकता है कि एक चयनित खिलाड़ी के जीतने की उम्मीद पर पानी फिर रहा हो और राष्ट्रीय हित पर घातक असर पड़ रहा हो। द्वंद्व युद्ध की मांग से देश को घाटा होगा।"

    अदालत ने कहा कि प्रतियोगिता होने और याचिका दायर करने में बहुत कम समय का अंतर है। साथ ही ट्रायल में चोटिल होने की आशंका प्रबल है। इसलिए सुशील कुमार का निवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि यह समझ में नहीं आ रहा कि क्यों सुशील कुमार ने नरसिंह यादव को मई, 2016 में द्वंद्व युद्ध के लिए चुनौती दी है जबकि ओलंपिक के आयोजन में सिर्फ ढाई महीने बचे हैं।

    अदालत ने फर्जी हलफनामा दायर करने के लिए डब्ल्यूएफआई के उपाध्यक्ष राज सिंह के खिलाफ नोटिस भी जारी किया और पूछा कि झूठी गवाही देने के लिए क्यों नहीं उनके के खिलाफ कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।

    सुशील कुमार को 66 किलोग्राम श्रेणी में 2008 में बीजिंग ओलंपिक में कांस्य और 2012 में लंदन ओलंपिक में रजत पदक मिला था। लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती संघ ने 2014 में इस श्रेणी को समाप्त कर दिया।

    इसी वजह से कुमार 74 किलोग्राम श्रेणी में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए। इस श्रेणी में वह नरसिंह यादव के प्रतिद्वंद्वी बन गए। यादव तब तक इस श्रेणी के शीर्ष भारतीय पहलवान थे।

    चोटिल होने के कारण सुशील कुमार (32) ने रियो ओलंपिक के लिए ट्रायल का अवसर खो दिया और देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए नरसिंह यादव को दल में जगह मिल गई।

    कुश्ती ट्रायल फिर से कराने के लिए भारतीय कुश्ती संघ से बार-बार निवेदन करने के बाद कुमार ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी।

    --आईएएनएस
  • दिल्ली उच्च न्यायालय में सुशील कुमार की याचिका खारिज (लीड-1)
    नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दो बार ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार की दोबारा ट्रायल की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। अदालतन ने कहा कि चयन को अंतिम समय पर चुनौती दिए जाने से चयनित खिलाड़ी नरसिंह यादव की मानसिक तैयारी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

    सुशील कुमार ने याचिका दायर कर रियो ओलंपिक के लिए भारतीय दल में जगह पाने के लिए 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कुश्ती का ट्रायल फिर से कराने की मांग की थी।

    न्यायमूर्ति मनमोहन ने भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) का निवेदन स्वीकार कर लिया। संघ ने कहा कि नरसिंह यादव का वर्तमान फॉर्म सुशील कुमार से अच्छा है।

    न्यायमूर्ति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि सुशील कुमार चयन के लिए 2014 और 2015 में हुए ट्रायल में भाग लेने में विफल रहे। साथ ही उन्होंने 31 दिसंबर 2015 और 1 जनवरी 2016 को हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता व फरवरी 2016 में एशियाई चैंपियनशिप में भी भाग नहीं लिया।

    अदालत ने कहा कि सुशील कुमार ने सितम्बर 2014 से अब तक कोई भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता नहीं जीती है, जबकि नरसिंह यादव ने दिसंबर 2015 में प्रो कुश्ती लीग में मंगोलिया के पहलवान पुरवाज उनुरबात को हराया था और सितंबर 2015 में हुई विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिता में रजत पदक विजेता रहे थे।

    सुशील कुमार की ओर से तर्क दिया गया कि प्रशिक्षण के लिए उन्हें 2016 में जॉर्जिया और सोनीपत (हरियाणा) भेजा गया था। इस पर अदालत ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रायल आज कराना आवश्यक है और वह भी इतनी देर से।

    अदालत ने इस पर भी ध्यान दिया कि डब्ल्यूएफआई ने चयन से पहले निष्पक्ष और पारदर्शी ट्रायल कराया था। साथ ही खेल संहिता के तहत चयन प्रक्रिया और ट्रायल कराने के निर्णय के संबंध में भारतीय कुश्ती संघ को प्रदत्त स्वायत्तता को भी माना।

    अदालत ने कहा, "एक खिलाड़ी की मासूमियत के साथ 'सिर्फ एक ट्रायल' की मांग से हो सकता है कि एक चयनित खिलाड़ी के जीतने की उम्मीद पर पानी फिर रहा हो और राष्ट्रीय हित पर घातक असर पड़ रहा हो। द्वंद्व युद्ध की मांग से देश को घाटा होगा।"

    अदालत ने कहा कि प्रतियोगिता होने और याचिका दायर करने में बहुत कम समय का अंतर है। साथ ही ट्रायल में चोटिल होने की आशंका प्रबल है। इसलिए सुशील कुमार का निवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि यह समझ में नहीं आ रहा कि क्यों सुशील कुमार ने नरसिंह यादव को मई, 2016 में द्वंद्व युद्ध के लिए चुनौती दी है जबकि ओलंपिक के आयोजन में सिर्फ ढाई महीने बचे हैं।

    अदालत ने फर्जी हलफनामा दायर करने के लिए डब्ल्यूएफआई के उपाध्यक्ष राज सिंह के खिलाफ नोटिस भी जारी किया और पूछा कि झूठी गवाही देने के लिए क्यों नहीं उनके के खिलाफ कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।

    सुशील कुमार को 66 किलोग्राम श्रेणी में 2008 में बीजिंग ओलंपिक में कांस्य और 2012 में लंदन ओलंपिक में रजत पदक मिला था। लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती संघ ने 2014 में इस श्रेणी को समाप्त कर दिया।

    इसी वजह से कुमार 74 किलोग्राम श्रेणी में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए। इस श्रेणी में वह नरसिंह यादव के प्रतिद्वंद्वी बन गए। यादव तब तक इस श्रेणी के शीर्ष भारतीय पहलवान थे।

    चोटिल होने के कारण सुशील कुमार (32) ने रियो ओलंपिक के लिए ट्रायल का अवसर खो दिया और देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए नरसिंह यादव को दल में जगह मिल गई।

    कुश्ती ट्रायल फिर से कराने के लिए भारतीय कुश्ती संघ से बार-बार निवेदन करने के बाद कुमार ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी।

    --आईएएनएस
  • जोगी बनाएंगे नई पार्टी, लोगों से मांगे सुझाव
    रायपुर, 6 जून (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने सोमवार को यहां पूरे प्रदेश से पहुंचे समर्थकों के बीच नई क्षेत्रीय पार्टी की आधिकारिक घोषणा की और पार्टी के नाम के लिए लोगों से सुझाव मांगे। उन्होंने कहा कि कमान से निकला तीर वापस नहीं आता और तलवार का वार खाली नहीं जाता।

    छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने मरवाही विधानसभा के ग्राम कोटमी में आयोजित एक रैली में अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाने की घोषणा की। मरवाही में उनका अपराह्न् तीन बजे तक बड़ी संख्या में लोग इंतजार करते रहे।

    जोगी ने रैली स्थल पर पहुंचने से पहले पेंड्रारोड के विश्राम गृह में पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा, "कमान से निकला तीर वापस नहीं आता और तलवार का वार खाली नहीं जाता। छत्तीसगढ़ के फैसले प्रदेश में होने चाहिए। दिल्ली में बैठे लोगों का निर्णय मंजूर नहीं है। प्रदेश की धरती अमीर है, जबकि यहां के लोग गरीब हैं। अब यह बर्दाश्त नहीं होगा। छत्तीसगढ़ का विकास यहां के गरीब और मजदूर करेंगे।"

    मरवाही की रैली में मंच पर पूर्व मंत्री डी.पी. धृतलहरे, विधान मिश्रा और पूर्व विधायक परेश बागबाहरा मौजूद थे।

    जोगी का काफिला जब पेंड्रारोड विश्रामगृह से सभा स्थल के लिए निकला तो उनके साथ कोटा के विधायक व कांग्रेस विधायक दल की उपनेता रेणु जोगी, मरवाही के विधायक अमित जोगी, बिल्हा के विधायक सियाराम कौशिक के अलावा चंद्रभान बारमते, धरमजीत सिंह, चैतराम साहू मौजूद थे।

    कांग्रेस विधायकों को इस कार्यक्रम में शामिल होने से मना किया गया था। फिर भी राजेंद्र राय एवं सियाराम कौशिक पहुंचे।

    रैली में उपस्थित हजारों लोगों ने जोगी के नेतृत्व में बनने वाले नए दल और चुनाव चिन्ह पर अपने सुझाव दिए। बैठक में लिए गए निर्णयों को कोटमी घोषणा पत्र (संलग्न) के रूप में जारी किया गया।

    --आईएएनएस
  • यूजीसी कानून में संशोधन वापस ले सरकार : वाम दल

    नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)। देश के चार वाम दलों ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आग्रह किया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के कानून में किए गए तीसरे संशोधन को वापस लिया जाए, क्योंकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर इसका विपरीत असर होगा।

    वाम दलों ने एक संयुक्त बयान में कहा गया, "हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और शोध के हित के लिए, साथ ही विभिन्न सामाजिक समूहों और वर्गो के बीच समानता के लिए इस संशोधन को वापस लेना आवश्यक मानते हैं।"

    यह बयान मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), फॉरवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की ओर से जारी किया गया है।

    बयान में कहा गया है कि अधिसूचना के प्रावधानों के नकारात्मक नतीजे होंगे।

    बयान में कहा गया है कि प्रत्यक्ष शिक्षण की परिभाषा से शिक्षण (ट्यूटोरियल्स) को हटा दिया गया है और विज्ञान विषयों में प्रयोग के महत्व को कम कर दिया गया है।

    बयान में कहा गया है, "इससे संस्थानों में प्रति शिक्षक काम का बोझ बढ़ेगा और गुणवत्ता पर विपरीत असर होगा।"

    बयान में आगे कहा गया है, "इससे हजारों शैक्षणिक पद अतिरिक्त हो जाएंगे और युवा विद्वानों व शोधार्थियों की आजीविका और रोजगार पर इसका सीधा असर पड़ेगा।"

    वाम दलों ने कहा है कि काम के बोझ के प्रति व्याख्यान केंद्रित दृष्टिकोण दुनिया के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की अकादमिक व्यवस्था के साथ विवादों में रहा है।

    वाम दलों ने कहा है, "इससे सक्रिय शिक्षण-अध्ययन प्रभावित होता है और शिक्षकों को विद्यार्थियों की व्यक्तिगत अध्ययन जरूरतें पूरी करने के मौके नहीं मिल पाते।"

    बयान में कहा गया है, "शिक्षकों के कार्य को नंबरों में परखने की एपीआई व्यवस्था के अनुभव से पता चला है कि इसने नंबर हासिल करने के मकसद से फर्जी शोध को प्रोत्साहित कर गुणवत्ता के खिलाफ काम किया है।"

    बयान में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों की पदोन्नति को विद्यार्थियों के फीडबैक से जोड़ना अन्याय को थोपने का एक और रास्ता बन जाएगा।

    --आईएएनएस

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