बुखार, जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली, जीका वायरस के लक्षण
इसमें बताया गया कि यह मुख्य तौर पर एडिस मच्छर की वजह से फैलता है लेकिन गर्भवती मां के जरिए कोख में पल रहे बच्चे को भी हो सकता है। साथ ही गुदा व मुख मैथुन के साथ सामान्य यौन संबंधों के जरिए भी इसका संक्रमण हो सकता है। अगर गर्भावस्था में यह हो जाए तो यह भ्रूण में ही माईक्रो स्फैली का कारण बन सकता है। अगर आप गर्भवती नहीं हैं या गर्भधारण करने के बारे में नहीं सोच रही हैं तो यह ज्यादा खतरनाक नहीं है।
जीका का संक्रमण अफ्रीका, साउथ एशिया, पैसिफिक आयलैंड, सेंट्रल और साउध अमेरीका, मैक्सिको, कैरेबियन, प्योरिटो रीको और यूएस वर्जिन आयलैंड में पाया गया है। भारत में इसका अभी तक कोई मामला सामने नहीं आया है। 80 प्रतिशत तक लोगों में इसके नाम मात्र या बहुत मामूली लक्षण देखे गए हैं। मच्छर के काटने के 2 से 12 दिन के अंदर यह लक्षण नजर आने लगते हैं।
इस बारे में आईएमए के मानद महासचिव डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि अगर आप गर्भवती हैं या होना चाह रहे हैं तो जीका वायरस वाले देशों में जाने से परहेज करें। इसका कोई खास इलाज नहीं हैं, बस मरीज को पूरी तरह से आराम करना चाहिए, अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए और बुखार पर नियंत्रण करने के लिए पैरासीटामोल का प्रयोग करना चाहिए। एस्प्रिन बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए। बच्चों में एस्प्रिन से गंभीर खतरा हो सकता है।
जीका वायरस से बचने के लिए एडिस की सक्रियता के समय घर के अंदर ही रहना चाहिए। यह दिन के वक्त सूरज के चढ़ने से पहले या छिपने के बाद सुबह जल्दी या शाम को काटते हैं। अच्छी तरह से बंद और एसी इमारतें इस से बचने के लिए सबसे सुरक्षित जगहें हैं। बाहर जाते हुए जूते, पूरी बाजू के कपड़े और लंबी पैंट पहने। डीट या पीकारिडिन वाले बग्ग सप्रे या क्रीम लगाएं। दो महीने से छोटे बच्चों पर डीट वाले पदार्थ का प्रयोग न करें। कपड़ों पर पर्मिथ्रीन वाले कीट रोधक का प्रयोग करें। रुके हुए पानी को निकाल दें। अगर आप को पहले से जीका है तो खुद को मच्छरों के काटने से बचाएं, ताकि यह और न फैल सके।
जीका वायरस वाले क्षेत्रों से लौट रहे सैलानियों को यौन संबंध बनाने से आठ सप्ताह तक परहेज करना चाहिए या सुरक्षित यौन संबंध ही बनाएं। गर्भधारण की योजना बना रहे जोड़ों को आठ सप्ताह के लिए रुक जाना चाहिए। अगर पुरुष में इसके लक्षण नजर आएं तो छह महीने के लिए रुक जाना चाहिए। पहले आईएमए ने जीका वाले क्षेत्र से आए लोगों को 4 सप्ताह के लिए यौन संबंध ना बनाने की सलाह दी थी। रियो ओलंपिक में भाग लेने जा रहे सभी खिलाड़ियों और दर्शकों को रियो में और लौटने के आठ सप्ताह तक केवल सुरक्षित यौन संबंध ही बनाने चाहिए।
-- आईएएनएस
उप्र : कैदियों को भी मिलेगा आरओ का ठंडा पानी
जेल के अंदर गर्मी के दिनों में पीने के पानी की किल्लत हो जाती है। ऐसे में कैदियों को जो पानी पीने के लिए दिया जाता है। उसका टीडीएस करीब साढ़े पांच सौ के आस पास है। ऐसा पानी पीने से कैदियों में बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
कैदियों को साफ पानी देने के लिए जेल प्रशासन ने अगस्त 2015 में प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा था, जिसमंे जेल परिसर के अंदर आरओ प्लांट का लगाने की बात कही गई थी। काफी दिनों तक शासन स्तर पर फाइल लटकी रही, बाद मंे शासन ने इसे मंजूरी दी है। जेल में आरओ लगने के लिए बजट पास हुआ। आरओ प्लांट लगने के लिए खीरी जेल भेज दिया गया है।
जेल अधीक्षक विनोद कुमार ने बताया कि तीन हजार लीटर का आरओ प्लांट उन्हें मिल चुका है। प्लांट अब सिर्फ लगना बाकी है। तैयारियां तेजी से चल रही है। जल्द ही जेल में आरओ लगकर तैयार हो जाएगा। जिससे साफ पानी पीने को मिल सकेगा।
--आईएएनएस
मासिक धर्म व यौन शिक्षा पर खुली बहस जरूरी : करीना कपूर
करीना कपूर ने शनिवार को होटल ताज में पत्रकारों से बातचीत के दौरान यह बातें कहीं। इससे पूर्व उन्होंने लखनऊ के लॉ मार्टिनियर स्कूल में माहवारी स्वच्छता अभियान को लेकर स्कूली बच्चों से बातचीत की। इस मौके पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी व कन्नौज से सांसद डिम्पल यादव भी मौजूद थीं।
करीना कूपर ने कहा, "आज स्थिति यह है कि मासिक धर्म व यौन शिक्षा को लेकर लड़कियां खुलकर बात करने को तैयार नहीं हैं। एक उम्र के बाद यह हर लड़की के साथ होता है। इस पर खुलकर बहस होनी चाहिए। पर्दे के पीछे कुछ नहीं रहना चाहिए।"
बॉलीवुड अभिनेत्री ने कहा कि यूनिसेफ इस काम को मजबूती से उठा रहा है और वह इसकी एंबेसडर होने के नाते माहवारी स्वच्छता को लेकर देशभर में आवाज उठाएंगी। अभी तक इसे लेकर जो प्रयास हुए हैं, उसका लाभ मिला है।
करीना ने कहा, "मैं सरकार से भी अपील करती हूं कि स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था करवाएं क्योंकि सभी को लड़कियों की निजता का ख्याल रखना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि माहवारी स्वच्छता को लेकर लड़कियों को अपने अभिभावकों से भी खुलकर बात करनी चाहिए ताकि उन्हें भी इस बात की समझ आए कि माहवारी कोई श्राप नहीं है। इसे लेकर मन में कोई शंका नहीं रहनी चाहिए।
अभिनेत्री ने कहा कि लड़कियों के साथ ही लड़कों को भी उनकी माहवारी को लेकर अपनी सोच बदलने की जरूरत है। जब तक लड़कों की सोच नहीं बदलेगी, तब तक सही मायने में इससे जुड़ी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता।
-- आईएएनएस
गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक नहीं सामान्य दवाएं
ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगिल्या (यूएई) ने इस अध्ययन के लिए 1,120 महिलाओं पर सर्वेक्षण किया। इस दौरान महिलाओं से गर्भावस्था के दौरान सामान्य तकलीफों जैसे मिचली आना, सीने में जलन, कब्ज, जुकाम, मूत्र मार्ग में संक्रमण, गर्दन, सिर दर्द और नींद की समस्याओं संबंधित सवाल पूछे थे।
अध्ययन में यह बात सामने आई कि कुल महिलाओं में से लगभग एक तिहाई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान विभिन्न तकलीफों में दवाओं के सेवन से परहेज किया। उन्होंने आमतौर पर बिना चिकित्सीय परामर्श के इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल, इबूप्रोफेन, कफ और सर्दी से संबंधित दवाओं के सेवन से भी परहेज किया।
शोध के नेतृत्वकर्ता माइकल ट्विग के अनुसार वह पता लगाना चाहते थे कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं दवाओं के जोखिमों और लाभों के बारे में क्या सोचती हैं।
ट्विग ने कहा, "शोध के दौरान हमने पाया कि महिलाओं की एक बड़ी संख्या गर्भावस्था के दौरान पैरासिटामोल के सेवन को जोखिम समझती है। हालांकि यह बिलकुल सुरक्षित है। "
उन्होंने बताया, " इस अध्ययन में हमें सबसे अधिक चिंता की बात यह देखने को मिली कि कई महिलाएं मूत्र मार्ग में संक्रमण का अनुभव करने के दौरान भी दवाएं नहीं लेती हैं। अगर इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाता है, यह जटिल होकर कई मां व भ्रूण दोनों को नुकसान पहुंचाता है।
इन निष्कर्षो से पता चलता है कि महिलाओं को प्रभावी ढंग से इलाज के लिए प्रोत्साहित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान दवाओं के लाभों और सुरक्षा के बारे में अधिक जानकारी की जरूरत है।"
--आईएएनएस
गर्भावस्था में फ्लू का टीका लगाने से नवजात को सुरक्षा
न्यूयार्क, 4 जून (आईएएनएस)। गर्भवती महिला को फ्लू से बचाव का टीका लगाने से होने वाले बच्चे को भी जन्म से चार महीने बाद तक इस बीमारी से सुरक्षा मिलती है।
एक शोध में बताया गया कि इससे 70 फीसदी नवजात बच्चों में फ्लू की बीमारी का खतरा टल जाता है।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर व वरिष्ठ शोधार्थी मायरॉन लेवाइन ने बताया, "हमारे शोध से पता चलता है कि नवजात शिशुओं के इंफ्लूएंजा से बचाव के लिए गर्भवती माताओं का टीकाकरण करना बेहद जरूरी है।"
हालांकि विकसित देशों में गर्भवती माताओं द्वारा फ्लू का टीका लगाना बेहद आम है, लेकिन विकासशील देशों में ऐसा नहीं है।
यह शोध लेसेंट जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध को बामाको, माली और दक्षिण अफ्रीका में किया गया।
शोधकर्ताओं ने कुल 4,139 गर्भवती महिलाओं का अध्ययन किया। उनमें से आधे को फ्लू का टीका लगाया गया, जबकि आधे को नहीं लगाया गया।
वैज्ञानिकों ने उन महिलाओं के नवजात शिशुओं पर जन्म के छह महीने बाद तक नजर रखी। जिन महिलाओं को फ्लू का टीका लगाया गया था, उनके बच्चों में जन्म से चार महीने बाद तक टीके प्रभाव 70 फीसदी तक था।
--आईएएनएस
एचसीएफआई ने दिया 75 मरीजों को नया जीवन
यहां जारी एक बयान के अनुसार, पिछले दो साल में समीर मलिक हार्ट केयर फाउंडेशन फंड के जरिए एचसीएफआई ने 500 जानें बचाई हैं। नेशनल हार्ट इंस्टीच्यूट भी इसमें सहयोगी है।
एक अध्ययन के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में हर रोज 19 लोग सीधे दिल के रोग की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं। दिल की कुछ बीमारियों का इलाज किया जा सकता है और मौत को रोका जा सकता है, लेकिन हर कोई इलाज का खर्च नहीं उठा सकता।
ऑपरेशन की भारी कीमत देखते हुए युवतियों और औरतों के साथ इलाज के मामले में भेदभाव किया जाता है। इसी वजह से एचसीएफआई और 'मेदांता द मेडिसिटी' ने मिल कर 'बालिका बचाओ मुहिम' की शुरूआत पिछले साल हरियाणा में की थी। अब तक बचाई गई जानों में 50 प्रतिशत बालिकाएं शामिल हैं।
इस बारे में हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ के.के. अग्रवाल ने कहा "हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया देश में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में सहयोग के लिए वचनबद्ध है। इसी के तहत हमने समीर मलिक हार्ट केयर फाउंडेशन फंड की शुरूआत दो साल पहले की थी। अब तक हमने 500 लोगों की मदद की हैं।"
-- आईएएनएस
बिहार में महुआ के फूल से बनेंगे जैम, जेली और बिस्कुट
पटना, 3 जून (आईएएनएस)। बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद देसी शराब में इस्तेमाल होने वाले महुआ की खपत एक समस्या बन गई है। बिहार सरकार ने अब महुआ से जैम, जेली, बिस्कुट समेत अन्य खाद्य सामग्री बनाने का फैसला किया है ताकि महुआ के व्यवसाय से जुड़े लोगों को विकल्प मिल सके।
वन और पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि ताड़ी की तरह ही महुआ के फूल से खाने योग्य सामान बनाने का निर्णय लिया गया है। महुआ के फूल से अल्कोहल रहित जैम, जेली, बिस्कुट सहित अन्य खाद्य पदार्थ बनाए जाएंगे।
पिछले दिनों मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से आए वैज्ञानिक विशाखा कुम्भहानी ने महुआ के फूल को गुणकारी बताते हुए कहा था कि इसके फूल में सेब, केला और आम से अधिक प्रोटीन और कई लाभकारी तत्व पाए जाते हैं। इससे शरबत, जैम, जेली के अलावा कई अन्य तरह की चीजें बनाई जा सकती हैं।
बिहार के वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान मुख्य संरक्षक डॉ़ डी़ क़े शुक्ला ने बताया कि पिछले दिनों विभाग ने महुआ को उपयोग में लाने के लिए एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया था, जिसमें देश के कई वैज्ञानिकों ने अपने विचार व्यक्त किए थे। कार्यशाला में यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आई कि महुआ से जैम, जेली और बिस्कुट बनाकर महुआ के व्यवसाय से जुड़े लोगों को फायदा पहुंचाया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि प्रारंभ में सरकारी या गैर सरकारी संस्थान के माध्यम से महुआ के पेड़ों और उसके उत्पादन के आंकड़े तैयार किए जाएंगे। किसी सोसाइटी के माध्यम से इसकी खरीद की जाएगी और महुआ से प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ बना कर बाजार में बेचा जाएगा। इसके लिए विभाग की ओर से प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
शुक्ला के मुताबिक महाराष्ट्र में वन धन, जन धन संस्थान इस दिशा में काम कर रहा है। सरकार ऐसे संस्थानों से मदद लेकर इस दिशा में एक रूपरेखा बना रही है।
महुआ के फूल ठंड के मौसम में उगते हैं और पेड़ से खुद गिरते हैं। कहा जाता है कि महुआ के फूल में प्रोटीन, खनिज, काबरेहाइड्रेट और कैल्शियम पाए जाते हैं।
बिहार में महुआ के फूल को सूखाकर देसी शराब बनाई जाती थी।
इसके अलावा बिहार में ताड़ी (नीरा) से गुड़, कैंडी और मधु बनाने की भी योजना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नीरा और ताड़ के पेड़ से मिलने वाले वाले उत्पादों के सार्थक उपयोग के निर्देश दिए हैं। साथ ही राज्य में ताड़ के पेड़ों की गिनती और उनसे प्राप्त होने वाली नीरा का आकलन कर एक कार्ययोजना तैयार करने को कहा है।
पिछले दिनों तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व डीन (हॉर्टिकल्चर) डी. वी़ पुन्नुस्वामी ने नीरा और ताड़ के अन्य उत्पादों पर नीतीश कुमार के सामने एक प्रस्तुतिकरण (प्रजेंटेशन) दी थी जिसमें इन उत्पादों की बाजार में बिक्री की पूरी जानकारी दी गई थी।
--आईएएनएस
डब्ल्यूएचओ ने गिनी में इबोला संक्रमण खत्म होने की घोषणा की
संयुक्त राष्ट्र, 3 जून (आईएएनएस/सिन्हुआ)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बुधवार को अफ्रीकी देश गिनी में इबोला वायरस के संक्रमण के खत्म होने की घोषणा की। यह पश्चिम अफ्रीका के उन तीन देशों में शामिल था, जो 2014 में इबोला संक्रमण के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुए।
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने एक नियमित समाचार ब्रीफिंग के दौरान संवाददाताओं से कहा कि एक व्यक्ति में दूसरी बार किए गए इबोला जांच के नतीजे नकारात्मक आए और इसके बाद 42 दिन गुजर चुके हैं।
उन्होंने कहा, "गिनी को फिलहाल 90 दिनों की एक अतिरिक्त निगरानी अवधि में शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य इबोला के किसी भी संभावित मामले की पहचान किसी अन्य व्यक्ति में संक्रमण से पहले सुनिश्चित करना है।"
इसके तहत लाइबेरिया को 9 जून को इबोला मुक्त घोषित किए जाने की उम्मीद है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में शुरू हुई इस महामारी के दौरान गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियोन के कुल 28,637 इबोला संक्रमित लोगों में 11,315 की मौत हो गई।
--आईएएनएस
कार्डियक अरेस्ट में 'सीपीआर 10' से बच सकती है जान
नई दिल्ली, 3 जून (आईएएनएस)। प्रसिद्ध हास्य अभिनेता रज्जाक खान का बुधवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 62 वर्ष के थे। औसत से कम उम्र में एक और जान चले जाने की इस घटना को देखते हुए हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने डॉक्टरों से इस बारे में जागरूकता फैलाने की अपील की है।
आकस्मिक कार्डियक अरेस्ट (हृदय गति रुकना) के कुछ चेतावनी संकेत होते हैं और 30 साल से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति को इस बारे में जानकारी होनी चाहिए। अगर मरीज पर 'हैंड्स ओनली सीपीआर (कार्डियो पल्मनरी रेस्यूसाईटेशन)10' तकनीक अपनाई जाए तो आकस्मिक कार्डियक अरेस्ट से होने वाली मौत को 10 मिनट के भीतर ठीक किया जा सकता है। इसे सीखना बेहद आसान है और यह तकनीक देश के ज्यादातर लोगों को सिखाई जानी चाहिए।
जब दिल का इलेक्ट्रिक कंडक्टिंग सिस्टम फेल हो जाता है और दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है और यह 1000 बार से भी ज्यादा तेज हो जाती है तो इस स्थिति को तकनीकी तौर पर वेंट्रीकुलर फिब्रिलेशन कहा जाता है। इसके तुरंत बाद दिल धड़कना एक दम बंद कर देता है और दिमाग को रक्त का बहाव बंद हो जाता है। इस वजह से व्यक्ति बेहोश हो जाता है और उसकी सांस रुक जाती है। कार्डियक अरेस्ट दिल के दौरे की तरह नहीं होता, लेकिन यह हार्ट अटैक की वजह हो सकता है। ज्यादातर मामलों में पहले दस मिनट में कार्डियक अरेस्ट को ठीक किया जा सकता है। यह इसलिए संभव है क्योंकि इस समय के दौरान दिल और सांस रुक जाने के बावजूद दिमाग जिंदा होता है। इस हालत को क्लिनिकल डैथ कहा जाता है।
सिर्फ लगातार दबाने (सीपीआर) से दिल स्ट्रनम और पिछली हड्डी के मध्य दब जाता है और इससे बने दबाव से ऑक्सीजन युक्त रक्त दिमाग की ओर बहता रहता है और तब तक डीफिब्रिलेशन की सुविधा या एक्सपर्ट मेडिकल हेल्प पहुंच जाती है। इसलिए अगर आप किसी को आकस्मिक कार्डियक अरेस्ट की वजह से बेहोश होता देखें तो तुरंत उसकी जान बचाने का प्रयास करें।
ऐसी स्थिति में तेजी से काम करें, क्योंकि हर एक मिनट के साथ बचने की संभावना 10 प्रतिशत कम हो जाती है। यानी अगर 5 मिनट व्यर्थ चले गए तो बचने की संभावना 50 प्रतिशत कम हो जाएगी। कार्डियक अरेस्ट के पीड़ित को जितनी जल्दी सीपीआर 10 दिया जाए उसकी जान बचने की संभावना उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती है।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और आईएमए के मानद महासचिव डॉ के.के. अग्रवाल ने कहा, "हमें अभिनेता रजाक खान की मौत का बेहद अफसोस है। हर साल 2,40,000 लोग हार्ट अटैक से मर जाते हैं। हमारा मानना है कि अगर देश की 20 प्रतिशत जनता 'हैंड्स ओनली सीपीआर' तकनीक सीख ले तो इनमें से 50 प्रतिशत जानें बचाई जा सकती हैं। आसानी से सीखी जा सकने वाली यह तकनीक कोई भी कर सकता है और यह बेहद प्रभावशाली होती है।"
बस इतना याद रखें कि जो व्यक्ति सांस ले रहा हो, उसकी नब्ज चल रही हो और वह क्लिनिकली जिंदा हो, उस पर इसे न अपनाएं। इसे 10 मिनट के भीतर अपनाएं और एंबुलेंस आने तक या व्यक्ति के होश में आने तक इसे जारी रखें। कार्डियक अरेस्ट किसी को भी, कभी भी और कहीं पर भी हो सकता है। लेकिन यह आसान तरीका किसी अपने की जान बचा सकता है।
उन्होंने बताया कि हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया का हैंड्स ओनली सीपीआर 10 मंत्र है - मौत के दस मिनट के अंदर बल्कि जितनी जल्दी हो सके कम से कम 10 मिनट तक (बालिगों को 25 मिनट तक और बच्चों को 35 मिनट तक) पीड़ित व्यक्ति की छाती के बीचों बीच लगातार जोर से 10 गुना 10 यानी 100 बार प्रति मिनट की रफ्तार से दबाएं।
ऐसे मौके पर अक्सर हल्के चेतावनी संकेत मिलते हैं, जिन्हें अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इन बातों पर गौर करना जरूरी है।
* 30 की उम्र के बाद एसिडिटी या अस्थमा के दौरे जैसे संकेतों को नजरअंदाज ना करें।
* 30 सेकंड से ज्यादा छाती में होने वाले अवांछनीय दर्द को नजरअंदाज ना करें।
* छाती के बीचोंबीच भारीपन, हल्की जकड़न या जलन को नजरअंदाज ना करें।
* थकावट के समय जबड़े में होने वाले दर्द को नजरअंदाज न करें।
* सुबह छाती में होने वाली बेचैनी को नजरअंदाज ना करें।
* थकावट के समय सांस के फूलने को नजरअंदाज ना करें।
* छाती से बाईं बाजू और पीठ की ओर जाने वाले दर्द को नजरअंदाज ना करें।
* बिना वजह आने वाले पसीने और थकावट को नजरअंदाज ना करें।
अगर इनमें से किसी भी तरह की समस्या हो तो मरीज को तुरंत पानी में घुलने वाली एस्प्रिन दें और नजदीकी डॉक्टर के पास ले जाएं। अगर कार्डियक अरेस्ट की वजह से किसी की सांस फूलने लगे तो उसके दिल पर मालिश करें या कार्डियो पल्मनरी रेस्यूसाईटेशन दें। सीपीआर के बिना किसी को भी मृत घोषित न करें।
-- आईएएनएस
ताकत बढ़ाने वाले प्रशिक्षण से दिल को खतरा नहीं : शोध
लंदन, 3 जून (आईएएनएस)। आम धारण के विपरीत एक नए शोध से पता चला है कि प्रमुख एथलीटों द्वारा लंबे समय तक ताकत बढ़ाने वाला प्रशिक्षण हासिल करने से उनके दिल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
हालांकि मीडिया रिपोर्टों में कई जाने माने एथलीटों द्वारा एकाएक दिल के दौरे से हुई मौत को उनके ताकत बढ़ाने वाले प्रशिक्षण से जोड़ा जाता है। बेल्जियम के वैज्ञानिकों ने एक शोध प्रकाशित किया था कि जाने माने एथलीटों द्वारा लगातार ताकत बढ़ाने वाले प्रशिक्षण से उनके दिल को नुकसान पहुंचता है। इस शोध के मुताबिक ताकत बढ़ाने प्रशिक्षण को लगातार करने से एकाएक दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ जाता है।
यह शोध कुछ साल पहले यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित किया गया था, जिसके बाद मेडिकल जगत और खेल जगत में इसे लेकर बहस छिड़ गई थी।
जर्मनी के सारलैंड विश्वविद्यालय के स्पोर्टस मेडिसिन फिजिशियन ने उस अध्ययन के निष्कर्षो की जांच जाने-माने एथलीटों के ताकत बढ़ाने वाले प्र शिक्षण की जांच कर की।
सर्कुलेशन नाम के जर्नल में प्रकाशित इस नवीनतम शोध में बेल्जियम के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध का खंडन किया गया है।
इस शोध दल ने जानेमाने एथलीटों में ताकत बढ़ाने वाले दीर्घकालिक प्रशिक्षण के कारण उनके दाहिने वेंट्रिकल में किसी प्रकार का नुकसान नहीं पाया।
शोधकर्ताओं ने कुल 33 जानेमाने एथलीटों की जांच की और उनकी तुलना 33 व्यक्तियों के अन्य समूह से की जो उन्हीं की उम्र, आकार और वजन के थे। लेकिन उन्होंने कभी ताकत बढ़ानेवाला प्रशिक्षण नहीं लिया था।
एथलीटों के समूह में पूर्व ओलंपियन के साथ मशहूर आइरनमैन प्रतियोगिता के प्रतिभागी और विजेता भी थे, जिन्होंने लगभग 30 साल लंबा प्रशिक्षण लिया था और अभी भी सप्ताह में औसतन 17 घंटों का प्रशिक्षण ले रहे थे।
वैज्ञानिकों ने पाया कि इन एथलीटों का दिल सामान्य लोगों के समूहों के मुकाबले कहीं अधिक बड़ा और मजबूत था, जैसा कि वर्षो के कठिन प्रशिक्षण के बाद उनके होने की उम्मीद थी।
शोधकर्ताओं में से एक और स्विट्जरलैंड के जूरिच के यूनिवर्सिटी अस्पताल में काम करनेवाले फिलिप बोहम ने बताया, "हमें प्रशिक्षण के कारण नुकसान का कोई सबूत नहीं मिला ना ही किसी धमनी के बड़े होने का कोई सबूत मिला। इसलिए लंबे समय तक ताकत बढ़ानेवाले कठिन प्रशिक्षण से दिल को कोई नुकसान नहीं होता।"
--आईएएनएस
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- »
- End
खरी बात
छत्तीसगढ़ के मुख्य सेवक रमन सिंह के नाम एक तुच्छ नागरिक का खुला पत्र
माननीय मुख्यमंत्री,छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर. महोदय, इस राज्य के मुख्य सेवक को इस देश के एक तुच्छ नागरिक का सलाम. आशा है, मेरे संबोधन को आप व्यंग्य नहीं समझेंगे, क्योंकि देश...
भाजपा राज्यसभा में जीतना चाहती है अतिरिक्त सीटें
आधी दुनिया
14 फीसदी भारतीय कारोबार की लगाम महिलाओं के हाथ
ऋचा दूबे एक ऑनलाइन खुदरा कारोबार चलाती हैं, जो कारीगरों को उपभोक्ताओं से जोड़ता है। यह आधुनिक भारतीय महिला के लिए कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन हाल के आंकड़ों...
जीवनशैली
पोर्नोग्राफी से बढ़ता है धर्म के प्रति झुकाव : अध्ययन
न्यूयॉर्क, 30 मई (आईएएनएस)। आप इसे विचित्र कह सकते हैं, लेकिन ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि जो लोग हफ्ते में एक बार से अधिक अश्लील फिल्म...