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आधुनिक उपचार से टूट रहीं मिर्गी से जुड़ी भ्रांतियां


नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। नई दवाइयों के विकास, आधुनिक मेडिकल तकनीकों की उपलब्धता और मिर्गी के प्रति बढ़ती जागरूकता रोगियों को सामान्य जिंदगी बिताने में काफी मदद कर रही है। साथ ही कई तरह की भ्रांतियां भी टूट रही हैं।

मिर्गी दिमाग से जुड़ा विकार है, जिसमें दिमाग की कोशिकाओं की विद्युतीय गतिविधियां असामान्य हो जाती हैं। इस वजह से व्यक्ति असामान्य व्यवहार करने लगता है। इस स्थिति की पहचान और जांच करना बहुत जरूरी है।

भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख नवजात शिशु मिर्गी की बीमारी के साथ जन्म ले रहे हैं। पिछले दशक में सिर की चोट लगने के कारण 20 फीसदी वयस्कों में मिर्गी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। भारत में तकरीबन 95 फीसदी लोग मिर्गी का इलाज ही नहीं करवा पाते, जबकि 60 प्रतिशत शहरी लोग दौरा पड़ने के बाद डॉक्टर से परामर्श लेते हैं और इस मामले में ग्रामीण भारतीय का प्रतिशत सिर्फ 10 फीसदी है।

विशेषज्ञों का मानना है कि मिर्गी पीड़ित बच्चे सफल और खुशहाल जिंदगी बिता सकते हैं। कई प्रसिद्ध कवि, लेखक और खिलाड़ी मिर्गी से पीड़ित होने के बावजूद अपने क्षेत्र में सफल रहे हैं। जीवन में समस्याओं के प्रति सकारात्मक सोच ही सफलता और संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण है।

बीमारी के प्रति हमारे नकारात्मक दृष्टिकोण को चुनौती दी जानी चाहिए, जिससे इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अपनी जिंदगी सामान्य व खुशहाल बिताने में मदद मिलेगी।

मिर्गी की समस्या भारत सहित विकासशील देशों में सेहत से जुड़ी प्रमुख समस्या है। प्रतिवर्ष 35 लाख लोगों में मिर्गी की समस्या विकसित होती है जिसमें 40 फीसदी 15 साल से कम उम्र के बच्चे है और 80 फीसदी विकासशील देशों में रहते हैं।

बच्चों में मिर्गी :

बच्चों को प्रत्येक उम्र में अलग अलग प्रकार के दौरे पड़ सकते हैं। कुछ बच्चों को मिर्गी दिमाग में किसी चोट की वजह से हो सकती है। कुछ मामलों में बच्चे अनुवांशिक समस्या के चलते मिर्गी के साथ मानसिक रूप से अविकसित हो सकते हैं। मिर्गी के दौरे में आमतौर पर बच्चों को ज्वर दौरा (फेबराइल दौरा) पड़ता है, जिसमें संक्रमण के साथ तेज बुखार हो जाता है।

इस बारे में सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर न्यूरोलोजिस्ट डॉ. अंशु रोहतागी कहते हैं, "हालांकि दुनियाभर में मिर्गी के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है, इसके बावजूद लोगों में अभी भी इस बीमारी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं।"

वह कहते हैं, "इस वजह से रोगियों को सही समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता। इसलिए हमें मिर्गी जैसी बीमारी से जुड़ी जानकारियां व जागरूकता कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा करने की जरूरत है ताकि लोगों को पता चले कि ये बीमारी भी अन्य बीमारियों की तरह ही है।"

बच्चों में मिर्गी की समस्या विशेषज्ञों के लिए काफी चिंता का विषय है। इस बारे में मेंदाता द मेडिसिटी के न्यूरोलोजिस्ट डॉ. आत्माराम बंसल का कहना है, "मिर्गी बच्चे को अलग अलग तरीके से प्रभावित करता है। ये उसकी उम्र और दौरे के प्रकार पर निर्भर करता है। मिर्गी पीड़ित बच्चे सफल व खुशहाल जिंदगी बिता सकते हैं। रोग की पहचान होने पर ये दिन प्रतिदिन की जिंदगी को प्रभावित नहीं करता लेकिन कुछ मामलों में ये थोड़ा मुश्किल अनुभव हो सकता है।"

न्यूरोलोजिस्ट के अनुसार, दौरे के प्रकार व आवृति में समय के साथ बदलाव आ सकता है। कुछ बच्चों में मिर्गी की समस्या किशोर अवस्था के मध्य से देर में विकसित हो जाती है। एक और दौरे आने के रिस्क का स्तर 20-80 फीसदी के बीच होता है।

ज्यादातर मामलों में पहला दौरा आने के बाद अगले छह महीने में दोबारा आने का खतरा होता है। दोबारा दौरा आने का रिस्क उसके कारण पर निर्भर करता है। अगर दौरा बुखार की वजह से आता है तो दोबारा दौरे आने की संभावना बुखार को छोड़कर कम हो जाती है।

जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है :

अगर आपका बच्चा मिर्गी से ग्रस्त है तो आप और बच्चे के अध्यापक को निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए, ताकि जब बच्चे को मिर्गी का अटैक आएं तो उन्हें पता होना चाहिए कि ऐसे समय में उन्हें क्या करना है।

सलाह :

* बच्चे के साथ रहें। दौरा समय होने पर खत्म हो जाएगा।
* शांत तरीके से बात करें और दूसरों को समझाएं कि क्या हो रहा है।
* बच्चे के सिर के नीचे कुछ मुलायम कपड़ा इत्यादि रख दें।
* खतरनाक या नुकीली चीजों को दूर कर दें।
* बच्चे को नियंत्रित करने की कोशिश न करें।
* दौरे का समय चेक करें कि कितने समय के लिए दौरा आया।
* अगर दौरा 5 मिनट से ज्यादा समय का है तो तुरंत चिकित्सीय सहायता लें।
* इस दौरान बच्चे के मुंह में कुछ न डालें।
* दौरे के बाद बच्चे को आश्वस्त करते हुए बात करें।
* जब बच्चे की कंपकंपाहट रुक जाएं तो उसे आराम की स्थिति में लाएं।
* बच्चे को पूरी तरह होश आने तक उसके साथ रहें।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • बुखार, जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली, जीका वायरस के लक्षण
    नई दिल्ली, 4 जून (आईएएनएस)। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने जीका वायरस के संक्रमण और बचाव को लेकर शनिवार को सलाह जारी की। इसमें कहा गया है कि जीका एक किस्म की वायरल इंफेक्शन है, जिससे बुखार, रैश, जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली आदि होते हैं।

    इसमें बताया गया कि यह मुख्य तौर पर एडिस मच्छर की वजह से फैलता है लेकिन गर्भवती मां के जरिए कोख में पल रहे बच्चे को भी हो सकता है। साथ ही गुदा व मुख मैथुन के साथ सामान्य यौन संबंधों के जरिए भी इसका संक्रमण हो सकता है। अगर गर्भावस्था में यह हो जाए तो यह भ्रूण में ही माईक्रो स्फैली का कारण बन सकता है। अगर आप गर्भवती नहीं हैं या गर्भधारण करने के बारे में नहीं सोच रही हैं तो यह ज्यादा खतरनाक नहीं है।

    जीका का संक्रमण अफ्रीका, साउथ एशिया, पैसिफिक आयलैंड, सेंट्रल और साउध अमेरीका, मैक्सिको, कैरेबियन, प्योरिटो रीको और यूएस वर्जिन आयलैंड में पाया गया है। भारत में इसका अभी तक कोई मामला सामने नहीं आया है। 80 प्रतिशत तक लोगों में इसके नाम मात्र या बहुत मामूली लक्षण देखे गए हैं। मच्छर के काटने के 2 से 12 दिन के अंदर यह लक्षण नजर आने लगते हैं।

    इस बारे में आईएमए के मानद महासचिव डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि अगर आप गर्भवती हैं या होना चाह रहे हैं तो जीका वायरस वाले देशों में जाने से परहेज करें। इसका कोई खास इलाज नहीं हैं, बस मरीज को पूरी तरह से आराम करना चाहिए, अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए और बुखार पर नियंत्रण करने के लिए पैरासीटामोल का प्रयोग करना चाहिए। एस्प्रिन बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए। बच्चों में एस्प्रिन से गंभीर खतरा हो सकता है।

    जीका वायरस से बचने के लिए एडिस की सक्रियता के समय घर के अंदर ही रहना चाहिए। यह दिन के वक्त सूरज के चढ़ने से पहले या छिपने के बाद सुबह जल्दी या शाम को काटते हैं। अच्छी तरह से बंद और एसी इमारतें इस से बचने के लिए सबसे सुरक्षित जगहें हैं। बाहर जाते हुए जूते, पूरी बाजू के कपड़े और लंबी पैंट पहने। डीट या पीकारिडिन वाले बग्ग सप्रे या क्रीम लगाएं। दो महीने से छोटे बच्चों पर डीट वाले पदार्थ का प्रयोग न करें। कपड़ों पर पर्मिथ्रीन वाले कीट रोधक का प्रयोग करें। रुके हुए पानी को निकाल दें। अगर आप को पहले से जीका है तो खुद को मच्छरों के काटने से बचाएं, ताकि यह और न फैल सके।

    जीका वायरस वाले क्षेत्रों से लौट रहे सैलानियों को यौन संबंध बनाने से आठ सप्ताह तक परहेज करना चाहिए या सुरक्षित यौन संबंध ही बनाएं। गर्भधारण की योजना बना रहे जोड़ों को आठ सप्ताह के लिए रुक जाना चाहिए। अगर पुरुष में इसके लक्षण नजर आएं तो छह महीने के लिए रुक जाना चाहिए। पहले आईएमए ने जीका वाले क्षेत्र से आए लोगों को 4 सप्ताह के लिए यौन संबंध ना बनाने की सलाह दी थी। रियो ओलंपिक में भाग लेने जा रहे सभी खिलाड़ियों और दर्शकों को रियो में और लौटने के आठ सप्ताह तक केवल सुरक्षित यौन संबंध ही बनाने चाहिए।

    -- आईएएनएस
  • उप्र : कैदियों को भी मिलेगा आरओ का ठंडा पानी
    लखीमपुर खीरी, 4 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में अब जल्द ही जेल के कैदियों को भी आरओ का ठंडा पानी को मिलेगा। खीरी जेल में इस समय करीब 15,00 कैदी बंद है।

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    --आईएएनएस
  • मासिक धर्म व यौन शिक्षा पर खुली बहस जरूरी : करीना कपूर
    लखनऊ , 4 जून (आईएएनएस)। बॉलीवुड अभिनेत्री व यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर करीना कपूर शनिवार को 'माहवारी स्वच्छता अभियान' को लेकर लखनऊ पहुंची। उन्होंने इस मौके पर कहा कि मासिक धर्म व यौन शिक्षा पर समाज में खुली बहस होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने इसे लेकर लखनऊ से आवाज उठाई है क्योंकि यहां से यह अवाज देशभर में पहुंचेगी।

    करीना कपूर ने शनिवार को होटल ताज में पत्रकारों से बातचीत के दौरान यह बातें कहीं। इससे पूर्व उन्होंने लखनऊ के लॉ मार्टिनियर स्कूल में माहवारी स्वच्छता अभियान को लेकर स्कूली बच्चों से बातचीत की। इस मौके पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी व कन्नौज से सांसद डिम्पल यादव भी मौजूद थीं।

    करीना कूपर ने कहा, "आज स्थिति यह है कि मासिक धर्म व यौन शिक्षा को लेकर लड़कियां खुलकर बात करने को तैयार नहीं हैं। एक उम्र के बाद यह हर लड़की के साथ होता है। इस पर खुलकर बहस होनी चाहिए। पर्दे के पीछे कुछ नहीं रहना चाहिए।"

    बॉलीवुड अभिनेत्री ने कहा कि यूनिसेफ इस काम को मजबूती से उठा रहा है और वह इसकी एंबेसडर होने के नाते माहवारी स्वच्छता को लेकर देशभर में आवाज उठाएंगी। अभी तक इसे लेकर जो प्रयास हुए हैं, उसका लाभ मिला है।

    करीना ने कहा, "मैं सरकार से भी अपील करती हूं कि स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था करवाएं क्योंकि सभी को लड़कियों की निजता का ख्याल रखना चाहिए।"

    उन्होंने कहा कि माहवारी स्वच्छता को लेकर लड़कियों को अपने अभिभावकों से भी खुलकर बात करनी चाहिए ताकि उन्हें भी इस बात की समझ आए कि माहवारी कोई श्राप नहीं है। इसे लेकर मन में कोई शंका नहीं रहनी चाहिए।

    अभिनेत्री ने कहा कि लड़कियों के साथ ही लड़कों को भी उनकी माहवारी को लेकर अपनी सोच बदलने की जरूरत है। जब तक लड़कों की सोच नहीं बदलेगी, तब तक सही मायने में इससे जुड़ी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता।

    -- आईएएनएस
  • गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक नहीं सामान्य दवाएं
    बीजिंग, 4 जून (आईएएनएस/सिन्हुआ)। गर्भवती महिलाएं आम तौर पर सामान्य दवाओं से बचने की कोशिश करती हैं, लेकिन एक नए अध्ययन में पता चला है कि इलाज न होने पर अगर एक छोटी सी समस्या गंभीर रूप ले लेती हैं, तो यह मां और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

    ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगिल्या (यूएई) ने इस अध्ययन के लिए 1,120 महिलाओं पर सर्वेक्षण किया। इस दौरान महिलाओं से गर्भावस्था के दौरान सामान्य तकलीफों जैसे मिचली आना, सीने में जलन, कब्ज, जुकाम, मूत्र मार्ग में संक्रमण, गर्दन, सिर दर्द और नींद की समस्याओं संबंधित सवाल पूछे थे।

    अध्ययन में यह बात सामने आई कि कुल महिलाओं में से लगभग एक तिहाई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान विभिन्न तकलीफों में दवाओं के सेवन से परहेज किया। उन्होंने आमतौर पर बिना चिकित्सीय परामर्श के इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल, इबूप्रोफेन, कफ और सर्दी से संबंधित दवाओं के सेवन से भी परहेज किया।

    शोध के नेतृत्वकर्ता माइकल ट्विग के अनुसार वह पता लगाना चाहते थे कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं दवाओं के जोखिमों और लाभों के बारे में क्या सोचती हैं।

    ट्विग ने कहा, "शोध के दौरान हमने पाया कि महिलाओं की एक बड़ी संख्या गर्भावस्था के दौरान पैरासिटामोल के सेवन को जोखिम समझती है। हालांकि यह बिलकुल सुरक्षित है। "

    उन्होंने बताया, " इस अध्ययन में हमें सबसे अधिक चिंता की बात यह देखने को मिली कि कई महिलाएं मूत्र मार्ग में संक्रमण का अनुभव करने के दौरान भी दवाएं नहीं लेती हैं। अगर इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाता है, यह जटिल होकर कई मां व भ्रूण दोनों को नुकसान पहुंचाता है।

    इन निष्कर्षो से पता चलता है कि महिलाओं को प्रभावी ढंग से इलाज के लिए प्रोत्साहित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान दवाओं के लाभों और सुरक्षा के बारे में अधिक जानकारी की जरूरत है।"

    --आईएएनएस
  • गर्भावस्था में फ्लू का टीका लगाने से नवजात को सुरक्षा


    न्यूयार्क, 4 जून (आईएएनएस)। गर्भवती महिला को फ्लू से बचाव का टीका लगाने से होने वाले बच्चे को भी जन्म से चार महीने बाद तक इस बीमारी से सुरक्षा मिलती है।

    एक शोध में बताया गया कि इससे 70 फीसदी नवजात बच्चों में फ्लू की बीमारी का खतरा टल जाता है।

    अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर व वरिष्ठ शोधार्थी मायरॉन लेवाइन ने बताया, "हमारे शोध से पता चलता है कि नवजात शिशुओं के इंफ्लूएंजा से बचाव के लिए गर्भवती माताओं का टीकाकरण करना बेहद जरूरी है।"

    हालांकि विकसित देशों में गर्भवती माताओं द्वारा फ्लू का टीका लगाना बेहद आम है, लेकिन विकासशील देशों में ऐसा नहीं है।

    यह शोध लेसेंट जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध को बामाको, माली और दक्षिण अफ्रीका में किया गया।

    शोधकर्ताओं ने कुल 4,139 गर्भवती महिलाओं का अध्ययन किया। उनमें से आधे को फ्लू का टीका लगाया गया, जबकि आधे को नहीं लगाया गया।

    वैज्ञानिकों ने उन महिलाओं के नवजात शिशुओं पर जन्म के छह महीने बाद तक नजर रखी। जिन महिलाओं को फ्लू का टीका लगाया गया था, उनके बच्चों में जन्म से चार महीने बाद तक टीके प्रभाव 70 फीसदी तक था।

    --आईएएनएस

  • एचसीएफआई ने दिया 75 मरीजों को नया जीवन
    नई दिल्ली, 3 जून (आईएएनएस)। पांच वर्षीय साधिक (बदला हुआ नाम) के दिल में जन्म से ही छेद था। दिहाड़ी मजदूर की इस बेटी के बचने के आसार बहुत कम थे, क्योंकि इलाज के लिए लाखों रुपये का खर्च उठाने की क्षमता उनके पास नहीं थी। लेकिन एचसीएफआई की पहल से इस बच्ची की 'मेदांता द मेडिसिटी' में सर्जरी हुई। साधिका की ही तरह मेदांता इस साल 63 बच्चों और 12 बालिगों का इलाज कर चुकी है।

    यहां जारी एक बयान के अनुसार, पिछले दो साल में समीर मलिक हार्ट केयर फाउंडेशन फंड के जरिए एचसीएफआई ने 500 जानें बचाई हैं। नेशनल हार्ट इंस्टीच्यूट भी इसमें सहयोगी है।

    एक अध्ययन के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में हर रोज 19 लोग सीधे दिल के रोग की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं। दिल की कुछ बीमारियों का इलाज किया जा सकता है और मौत को रोका जा सकता है, लेकिन हर कोई इलाज का खर्च नहीं उठा सकता।

    ऑपरेशन की भारी कीमत देखते हुए युवतियों और औरतों के साथ इलाज के मामले में भेदभाव किया जाता है। इसी वजह से एचसीएफआई और 'मेदांता द मेडिसिटी' ने मिल कर 'बालिका बचाओ मुहिम' की शुरूआत पिछले साल हरियाणा में की थी। अब तक बचाई गई जानों में 50 प्रतिशत बालिकाएं शामिल हैं।

    इस बारे में हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ के.के. अग्रवाल ने कहा "हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया देश में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में सहयोग के लिए वचनबद्ध है। इसी के तहत हमने समीर मलिक हार्ट केयर फाउंडेशन फंड की शुरूआत दो साल पहले की थी। अब तक हमने 500 लोगों की मदद की हैं।"

    -- आईएएनएस

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