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राष्ट्रीय एकता के पैरोकार मौलाना अबुल कलाम आजाद Featured

उपासना बेहार

भारत सरकार द्वारा स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित मौलाना अबुल कलाम आजाद की याद में 11 नवंबर को शिक्षा दिवस के रुप में मनाया जाता है। जिसकी शुरुवात 11 नवम्बर 2008 से की गई थी। मौलाना अबुल कलाम आजाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था। इनका जन्म 11 नवबंर 1888 को मक्का (सउदी अरब) में हुआ था। ये अफगान उलेमाओं के खानदान से ताल्लुक रखते थे, जब ये महज 11 साल के थे तब इनकी मां का इंतकाल हो गया था। 13 साल की आयु में इनका विवाह जुलैखा से हुआ।

इनका परिवार 1890 ई. में हिंदुस्तान आया और कोलकता में बस गया। पिता ने इनकी तालीम की व्यवस्था घर पर ही कर दी थी। ये बहुत जहीन विधार्थी थे, एक बार पढकर ही अपना सबक याद कर लेते थे। 16 साल की आयु आते आते इन्होनें अरबी, फारसी और मजहबी पढ़ाई में वो ज्ञान प्राप्त कर लिया जो लोग 25 साल की आयु में प्राप्त करते हैं। बचपन से ही इन्हंे पढने लिखने का बहुत शौक था। ये पढ़ाई के साथ साथ पत्र पत्रिकाआंे के लिये लेख लिखते थे।

जब इनकी आयु बारह वर्ष से कम थी तब ये एक पुस्तकालय और डिबेटिग सोसाइटी चला रहे थे और 12 साल की छोटी से उम्र में इन्होनें ”अहसन” नाम से अखबार निकाला था। लोगांे द्वारा मौलाना आजाद की हौसला अफजाई करने पर सन् 1900 में ही ”नौरंगे-आलम” नाम से कविताओ की एक पत्रिका का प्रकाशन किया था। जब ये केवल पन्द्रह वर्ष के थे तब अपने से दुगुनी उम्र के विद्यार्थियों की एक क्लास को पढ़ाते थे। 16 साल की उम्र में मौलाना आजाद ने अपने ही उद्र्व अखबार ”लिसानुस सिदक” का सम्पादन किया जिस का मकसद सामाजिक बुराई के विरुद्व लडना, समाज सुधार को बढावा देना था।

मौलाना ने स्वंय अपना उपनाम ‘‘आजाद’’ रखा था। ‘‘आजाद’’ नाम रखने का कारण लोगों को इस बात का संदेश देना था कि उनको परंपरा में जो विश्वास, मान्यताएं तथा मूल्य मिले थे, वे उनसे बंधे हुए नहीं हैं।

मौलान साहब आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों से सहमत थे और इन्होनें सर सैय्यद अहमद के संपूर्ण लेखन को बहुत ध्यान से पढा़, परंतु मौलाना स्वतंत्र सोच रखने वाले व्यक्ति ठहरे, जल्दी ही इनके सर सैय्यद से मतभेद हो गए। यद्यपि ये सर सैय्यद के आधुनिक सोच व आधुनिक शिक्षा अपनाने के विचार से पूर्ण सहमत थे वे मानते भी थे कि मुस्लिम समुदाय को पश्चिमी शिक्षा और विज्ञान से जुड़ना चाहिए, यह उनके लिए विकास का रास्ता खोलेगा। लेकिन मौलाना इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि मुसलमानों को अंग्रेज सरकार के प्रति वफादार रहना चाहिए।

मौलाना आजाद का राजनीति में प्रवेश उस समय हुआ जब ब्रिटिश शासन ने 1905 में धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया था। ये इस विभाजन के खिलाफ थे। 1906 में मुस्लिम लीग के जलसे में ये शामिल हुए लेकिन पाया कि लीग राज के प्रति वफादारी की बात करती है तो इन्होेनें मुस्लिम लीग छोड़ दिया और बंगाल के एक क्रांतिकारी दल में शामिल हो गये।

1908 में इन्होनें इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की देशों की यात्रा की। इस दौर से जब ये वापस आये तो इस नतीजे पर पहुॅचे कि हिन्दुस्तान के मुस्लमानों को देश की राजनीति में बढ़ चढ़ कर भाग लेना चाहिए। आजाद ने मुस्लिम समुदाय में जागरुकता फैलाने के लिए ‘अल हिलाल’ नामक अखबार निकाला। इसका पहला अंक 13 जुलाई 1912 में कलकत्ता से निकला। मुस्लिम समुदाय में इस अखबार की लोकप्रियता का आलम यह था कि इसके शुरु होने के तीन महिने के बाद ही सारे पुराने अंकों को फिर से छपवाना पड़ा। अंग्रेजी हूकुमत ने अप्रैल 1916 में आजाद को हिन्दुस्तान रक्षा कानून के तहत कलकत्ता शहर से बदर कर दिया। तब वे रॉची चले गये जहॉ वे तीन साल तक रहे लेकिन वहॉ भी उनकी स्थिति नजरबंद की थी। 1 जनवरी 1920 में इनकी रिहाई हुई। ये रिहाई के बाद दिल्ली चले आये जहॉ गांधी जी से पहली बार इनकी मुलाकात हुई। गांधी जी ने इन्हें और अन्य मुस्लिम नेताओं को अहिंसक आदोंलन तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए काम करने को कहा। आजाद गांधी जी की बात मानते हुए इनके सहयोगी बन गये।

मौलाना के शब्दों में जादू सा प्रभाव होता था। आजाद ने कहा था कि ‘‘ गुलामी गुलामी ही है। अपने देश और अपने लोगों को इस गुलामी से आजाद करना मेरा राष्ट्रीय,धार्मिक और मानवीय कर्तव्य है।’’ 1921 में मौलाना आजाद ने ‘‘पैगाम’’ नाम का एक साप्ताहिक शुरु किया लेकिन अंग्रेज सरकार ने उस पर उसी साल प्रतिबंध लगा दिया और मौलाना आजाद को कुछ समय के लिए हिरासत में ले लिया।

मौलाना आजाद की नीतियॉ और काम शुरु से ही हिन्दु मुस्लिम सहयोेग और एकता के लिए रही हैं। एक बार उन्होेनें कहा था कि ‘अगर जन्नत से फरिश्ते भी आ कर मुझसेें कहें कि तुम हिन्दु-मुस्लिम एकता की बात करना छोड़ दो तो वे हिन्दुस्तान को 24 घंटे के अंदर स्वराज करवा देगें, तब भी मैं हिन्दु-मुस्लिम एकता को छोड़ नही सकता,अगर स्वराज मिलने में देरी हुई तो यह केवल हिन्दुस्तान के लिए ही नुकसानदायक होगा लेकिन अगर हिन्दु-मुस्लिम एकता खत्म हो गई तो यह पूरी इंसानियत के लिए नुकसानदायक होगा।’ मौलाना के लिए विभिन्न धर्मों की एकता धार्मिक विश्वास था। इनके लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता केवल एक नारा नहीं था बल्कि ये उसके प्रति गंभीर रूप से प्रतिबद्ध थे। इन्होंने राँची में जेल में रहने के दौरान कुरआन की “तफसीर“ (टीका) लिखी थी। इन्होंने अपनी तफसीर के पहले खंड को “वहदत-ए-दीन“(धर्मों की एकता) को समर्पित किया था।

मौलान आजाद तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने, 1923 में जब पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तब इन्होनें कहा था कि ‘ हिन्दु-मुस्लिम एकता को तोड़ने या बांटने का किसी का भी सपना या षड़यंत्र कामयाब नही होगा।’ येे कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष थे। 1939 में दूसरी बार तथा 1940 में तीसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने। 1940 में लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग रखी तब इन्होंने जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत को खारिज करते हुए यह मानने से इंकार कर दिया कि मुस्लिम और हिन्दू दो अलग राष्ट्र हैं। इस्लाम धर्म के इस विद्वान ने धर्म के आधार पर बनने वाले देश को सिरे से ही अस्वीकार कर दिया। इन्होंने सभी मुसलमानों से हिंदुस्तान में ही रहने की बात कही।

मौलाना आजाद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा-‘‘हिंदुस्तान की धरती पर इस्लाम को आए ग्यारह सदियां बीत गई हैं और अगर हिन्दू धर्म यहाँ के लोगों का हजारों बरसों से धर्म रहा है तो इस्लाम को भी हजार साल हो गए हैं। जिस तरह से एक हिन्दू गर्व के साथ यह कहता है कि वह एक भारतीय है और हिन्दू धर्म को मानता है, तो उसी तरह और उतने ही गर्व के साथ हम भी कह सकते हैं कि हम भी भारतीय हैं और इस्लाम को मानते हैं। इसी तरह ईसाई भी यह बात कह सकते हैं।’’

न चाहते हुए भी अततः हिन्दुस्तान का बंटवारा हुआ तब अक्टूबर, 1947 में इन्होनें जामा मस्जिद के प्राचीर से लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘जामा मस्जिद की ऊंची मीनारें तुमसे पूछ रही है कि जा रहे हो, तुमने इतिहास के पन्नों को कहाँ खो दिया। कल तक तुम यमुना के तट पर वजू किया करते थे और आज तुम यहाँ रहने से डर रहे हो। याद रखो कि तुम्हारे खून में दिल्ली बसी है। वापस आओ यह तुम्हारा घर है, तुम्हारा देश।’’ इस भाषण का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि जो लोग सामान बाँध कर पाकिस्तान जाने के लिए तैयार थे वे इसी देश के हो कर रह गये।  

आजादी के बाद मौलाना साहब भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। इन्होंने अंग्रेजी के महत्व को तो समझा फिर भी प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में देने की वकालत की। येे केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, लड़कियों की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की सिफारिश की थी।

इन्होनें तकनीकी शिक्षा के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, खड़गपुर, मुंबई, चेन्नई, कानपुर और दिल्ली में आईआईटी, स्कूल अॉफ प्लानिंग और वास्तुकला विद्यालय दिल्ली की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया साथ ही साथ शिक्षा और संस्कृति के विकास के लिए संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी जैसी उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की। ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।

मौलाना आजाद ने ‘‘इंडिया विंस फ्रीडम’’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखी है।

इन्होनें शिक्षा मंत्री के रुप में 10 सालों तक काम किया। ये जीवनपर्यन्त धर्मनिरपेक्ष विचारधारा, हिन्दु मुस्लिम एकता, सर्वव्यापक चरित्र और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले आधुनिक भारत के निर्माण के लिए डटे रहे। 22 फरवरी 1958 को 70 साल की आयु में इनका निधन हो गया। इनकी मृत्यु के समय इनके पास ना तो कोई संपत्ति थी और ना ही कोई बैंक खाता। इनकी निजी अलमारी में से कुछ सूती अचकन, एक दर्जन खादी के कुर्ते पायजामें, दो जोड़ी सैडल, एक पुराना ड्रैसिंग गाऊन और एक उपयोग किया हुआ ब्रश मिला किंतु वहाँ अनेक दुर्लभ पुस्तकें मिली थी जो अब राष्ट्र की सम्पत्ति हैं। इन्हंे 1992 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भारतीय कला, संस्कृति और पश्चिम विज्ञान का मेल करते हुए आधुनिक और सार्वभौमिक शिक्षा के माध्यम से एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहां एकता, समानता तथा एक दूसरे के प्रति सम्मान हो, कमजोर वर्गो का शोषण ना हो, महिलाओं को समानता और हिंसा मुक्त वातावरण मिले, युवा अपनी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल कर सकें तथा देश के विकास में सभी वर्ग का योगदान हो।

Read 1735 times Last modified on Tuesday, 11 November 2014 11:59
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About Author

उपासना बेहार

लेखिका भोपाल में रहती है और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो युवा संवाद और नागरिक अधिकार मंच के साथ मिल कर भोपाल में युवाओं, महिलाओं, दलितों के साथ विभिन्न मुद्दों जैसे जेंडर, जाति, समानता, साम्प्रदायिक सौहार्द को लेकर काम करती हैं। साथ ही साथ उनका विभिन्न सामाजिक संस्थाओं और संगठनों से जुड़ाव हैं।
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