नासा के केपलर ने तारों में विस्फोट के बीच तेज भंवर कैद की
वाशिंगटन, 22 मार्च (आईएएनएस/सिन्हुआ)। नासा के वैज्ञानिकों ने अमेरिकी केपलर अंतरिक्ष दूरबीन के प्रयोग से पहली बार तारे में विस्फोट के बीच पहली बार दो तेज भंवरों की तस्वीरें कैद की हैं। इसे विज्ञान की भाषा में 'शॉक ब्रेकआउट' कहा जा रहा है।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम के खगोलविद पीटर गारनाविच के नेतृत्व वाले एक शोधदल ने लगतार तीन साल तक 50,000 अरब तारों के प्रकाश को प्रत्येक 30 मिनट में केपलर द्वारा कैद किया।
गारनाविच ने कहा, "भंवर की चमक करीब एक घंटे तक कायम रहने की उम्मीद की जाती है। इसलिए आपको करोड़ों तारों के बीच सिर्फ एक चमक को देखने के लिए उनपर लगातार नजर बनाकर रखनी होती है।"
इस शोध में वैज्ञानिकों ने दूरबीन से 2011 में दो महाविस्फोटों (सुपरनोवा) की तस्वीरों को कैद किया।
पहला सुपरनोवा 2011ए का आकार सूर्य से 300 गुना बड़ा है और यह धरती से लगभग 70 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। दूसरा सुपरनोवा केएसएन 2011डी सूरज से 500 गुना बड़ा है और धरती से 1.2 अरब प्रकाश वर्ष दूर है।
इन दोनों ही विस्फोटों में समान ऊर्जा वाला भंवर पैदा हुआ, हालांकि केएसएन 2011ए (दोनों में से छोटा) में यह भंवर दिखने लायाक नहीं था। शोधार्थियों का कहना है किए ऐसा शायद इसलिए हुआ होगा क्योंकि यह छोटा सुपरनोवा चारों ओर से गैस से घिरा हुआ हो सकता है, जिसने भंवर की चमक को ढक लिया होगा।
यह शोध 'एस्ट्रोफिजिकल जर्नल' शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम के खगोलविद पीटर गारनाविच के नेतृत्व वाले एक शोधदल ने लगतार तीन साल तक 50,000 अरब तारों के प्रकाश को प्रत्येक 30 मिनट में केपलर द्वारा कैद किया।
गारनाविच ने कहा, "भंवर की चमक करीब एक घंटे तक कायम रहने की उम्मीद की जाती है। इसलिए आपको करोड़ों तारों के बीच सिर्फ एक चमक को देखने के लिए उनपर लगातार नजर बनाकर रखनी होती है।"
इस शोध में वैज्ञानिकों ने दूरबीन से 2011 में दो महाविस्फोटों (सुपरनोवा) की तस्वीरों को कैद किया।
पहला सुपरनोवा 2011ए का आकार सूर्य से 300 गुना बड़ा है और यह धरती से लगभग 70 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। दूसरा सुपरनोवा केएसएन 2011डी सूरज से 500 गुना बड़ा है और धरती से 1.2 अरब प्रकाश वर्ष दूर है।
इन दोनों ही विस्फोटों में समान ऊर्जा वाला भंवर पैदा हुआ, हालांकि केएसएन 2011ए (दोनों में से छोटा) में यह भंवर दिखने लायाक नहीं था। शोधार्थियों का कहना है किए ऐसा शायद इसलिए हुआ होगा क्योंकि यह छोटा सुपरनोवा चारों ओर से गैस से घिरा हुआ हो सकता है, जिसने भंवर की चमक को ढक लिया होगा।
यह शोध 'एस्ट्रोफिजिकल जर्नल' शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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