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छग : सराफा से जुड़े एक लाख परिवार नहीं मनाएंगे होली

रायपुर, 22 मार्च (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में सराफा से जुड़े एक लाख परिवारों ने इस बार होली नहीं मनाने का निर्णय लिया है। कारोबारियों का कहना है कि जब केंद्र सरकार के थोपे गए फैसले से उनका कारोबार ही बंद हो गया है तो वे होली कैसे मनायेंगे? जिस दिन एक्साइज ड्यूटी हटाने का ऐलान हो जाएगा, कारोबारी उसी दिन होली मना लेंगे।

छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया व रायपुर सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष हरख मालू ने संयुक्त बयान में बताया कि दुकाने बंद करने हमें मजबूर किया गया है। एक्साइज ड्यूटी एक काला कानून है जिससे सराफा का व्यापार चौपट हो जाएगा।

उन्होंने कहा, "आज बीस दिन से हम दुकानें बंद कर धरना पर बैठे हैं और सामने होली जैसा बड़ा त्योहार है, लेकिन छत्तीसगढ़ के संपूर्ण सराफा कारोबारी, स्वर्णकार व गलाई संगठन ने मिलकर तय किया है कि उनका एक लाख परिवार इस बार होली नहीं मनाएंगे।"

भूख हड़ताल भी यथावत जारी रहा। भूख हड़ताल पर नरेश कोमल, ललित गोलछा, वर्धमान सुराना, दिनेश सेठिया व खुशाल सोनी बैठे थे। सेवा वेलफेयर फाउंडेशन के जे.एम. ठाकुर व टीम ने धरना स्थल नाहटा मार्केट के समक्ष कारोबारियों के साथ जन सामान्य के लिए नि:शुल्क नेत्र व दंत जांच शिविर लगाया गया था, जिसका बड़ी संख्या में लोगों ने लाभ उठाया।

छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन के सचिव अशोक गोलछा ने बताया कि सोमवार शाम को कैंडल मार्च का आयोजन भी नाहटा मार्केट से जयस्तंभ चौक तक किया गया।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • दर्जनों कंपनियां औद्योगिक विवाद कानून पर मौन

    बेंगलुरू, 11 जून (आईएएनएस)| सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की लगभग एक दर्जन अग्रणी कंपनियों ने शुक्रवार को कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण के लिए औद्योगिक विवाद कानून 1947 के तहत श्रमिक यूनियन के गठन के अधिकार की जानकारी होने या पुष्टि करने से इनकार कर दिया। कुछ आईटी कंपनियों ने जिन्होंने इस पर अपना मुंह नहीं खोला, वे हैं -इंफोसिस, विप्रो, टीसीएस, फ्लिपकार्ट, माइक्रोसॉफ्ट, एमफासिस, जुनिपर और अमेजॉन इंडिया।

    आईटी कर्मियों के कर्मचारी यूनियन बनाने के अधिकार का मामला तब उठा, जब तमिलनाडु के श्रम एवं नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव कुमार जयंत ने न्यू डेमोक्रेटिक लेबर फ्रंट (एनडीएलफ) आईटी इंप्लाइज विंग को स्पष्ट किया कि जैसा गुरुवार को एक प्रमुख दैनिक ने इस बारे में खबर प्रकाशित की है, कामगार कर्मचारी यूनियन गठित करने के लिए स्वतंत्र हैं।

    जयंत के मुताबिक, कोई भी कंपनी औद्योगिक विवाद कानून 1947 से छूट का दावा नहीं कर सकती और आईटी कंपनियां भी दूसरी कंपनियों की तरह ही उन्हीं प्रावधानों से संचालित होती हैं।

    आईटी कंपनियां लाखों की संख्या में लोगों को भारत और विदेश में विभिन्न स्थानों पर नौकरी पर रखती हैं। वे इसका खुलासा नहीं करतीं कि उनके कर्मचारियों की बनाई कोई यूनियन वजूद में है या नहीं।

    इन कंपनियों ने इस पर भी कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या वे औद्योगिक विवाद कानून 1947 के तहत कर्मचारियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए कर्मचारी संघ बनाने के विचार का स्वागत करेंगी?

    मजे की बात यह है कि बहुत सारी कंपनियां अपने कर्मचारियों से यह लिखित में ले रही हैं कि वे ट्रेड यूनियन की गतिविधियों से दूर रहेंगे। इसके बारे में जब पूछा गया तो इसकी भी उन्होंने न तो पुष्टि की और न ही जानकारी होने की बात स्वीकार की।

    हालांकि, प्रमुख आईटी कंपनियों का यह रुख कई अटकलों एवं संदेहों को जन्म दे रहा है, जैसे क्या उनमें कभी कर्मचारी संघ रह सकता है?

    हाल में कई आईटी एवं ई-कामर्स कंपनियों को प्रमुख भारतीय कॉलेजों से पास हुए सैकड़ों युवाओं को पहले नौकरी का प्रस्ताव देने और फिर उन्हें नौकरी नहीं देने को लेकर भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है। ऐसी कंपनियों में फ्लिपकार्ट विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

    भारत में कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए चाहे कोई भी उद्योग हो, वहां कर्मचारी यूनियन हैं।

    ऑल इंडिया बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन(एआईबीईए) एक मशहूर कर्मचारी यूनियन है, जो अपने लाखों कर्मचारियों के अधिकारों एवं उनके हितों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग के संचालन को पंगु बना देती है।

    पिछले साल जनवरी में टीसीएस की एक कर्मचारी ने मद्रास उच्च न्यायालय से अपील की थी औद्योगिक विवाद कानून 1947 के तहत उसकी बर्खास्तगी पर रोक लगाए।

    हैदराबाद स्थित सॉफ्टवेयर इंजीनियर श्रीनू ने कहा, "अधिकतर आईटी कर्मचारी यूनियन बनाने के लिए आगे नहीं आते, क्योंकि उन्हें डर है कि पूरा आईटी उद्योग उन्हें जीवन भर के लिए काली सूची में डालकर अलग कर देगा। उनका ब्योरा नासकॉम के सदस्यों और डाटाबेस में भेज दिया जाएगा। यही कारण है कि आप आईटी कर्मचारी यूनियन नहीं पाएंगे।"

    अपना पूरा नाम बताने से इनकार करने वाले श्रीनू ने कहा, "60 से 80 फीसदी कर्मचारी आईटी कर्मचारी यूनियन में शामिल होने को तैयार हैं, बशर्ते वे सफलतापूर्वक गठित हो जाएं। लेकिन यूनियन बनाने के लिए कोई भी आगे नहीं आएगा। क्योंकि वे उसके बाद के परिणाम को लेकर डरे हुए हैं।"

  • भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की कीमत 49.35 डॉलर प्रति बैरल

    नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)| केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत पेट्रोलियम नियोजन एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) द्वारा शुक्रवार को जारी भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत गुरुवार नौ जून, 2016 को 49.35 डॉलर प्रति बैरल दर्ज की गई, जो बुधवार आठ जून को 48.91 डॉलर प्रति बैरल थी। रुपये के संदर्भ में भी भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की कीमत गुरुवार को बढ़कर 3,287.65 रुपये प्रति बैरल हो गई, जो बुधवार को 3,263.97 रुपये प्रति बैरल थी। गुरुवार को रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत होकर 66.63 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो बुधवार को 66.74 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।

  • अलकायदा के संदिग्ध सदस्यों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल

    नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)| दिल्ली पुलिस ने मौलाना अन्जर शाह सहित अलकायदा के संदिग्ध सदस्यों के खिलाफ शुक्रवार को आरोप-पत्र दाखिल किया। इन संदिग्ध सदस्यों पर देश में लोगों को अलकायदा से जुड़ने के लिए उकसाने के आरोप लगाए गए हैं।

    यह आरोप पत्र अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रितेश सिंह की अदालत में दायर किया गया। इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी।

    दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने 'भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा' (एक्यूआईएस) के पांच सदस्यों- शाह, अब्दुल सामी, जफर मसूद, अब्दुल रहमान और मोहम्मद आसिफ के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किए हैं।

    पुलिस ने 12 अन्य लोगों के खिलाफ भी आरोप-पत्र दायर किए हैं, जो फरार हैं। उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए हैं।

  • 'उड़ता पंजाब' विवाद में सेंसर बोर्ड की भूमिका चौंकाने वाली : अनुपम

    मुंबई, 10 जून (आईएएनएस)| बेबाकी से राय रखने के लिए मशहूर दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने सिनेमा को समाज का आईना बता 'उड़ता पंजाब' के निर्माताओं को अपना समर्थन दिया है। उन्होंने कहा है कि सारे विवाद में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की भूमिका 'चौंकाने' वाली है। अभिषेक चौबे निर्देशित 'उड़ता पंजाब' नशे की समस्या से जूझ रहे पंजाब का चित्रण है। निर्माता सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी के इसमें कई कट लगाने के 'बेजा' सुझाव के खिलाफ एकजुट हो गए हैं और मामले ने तूल पकड़ लिया है।

    अनुपम ने गुरुवार रात ट्विटर पर लिखा, "उड़ता पंजाब' विवाद में सीबीएफसी की भूमिका सबसे ज्यादा चौंकाने वाली है। सिनेमा समाज का आईना है। कई बार हालात का चित्रण बदलाव ला सकता है।"

    फिल्म में शाहिद कपूर, करीना कपूर, आलिया भट्ट व दिलजीत दोसांझ मुख्य भूमिका में हैं।

  • राजनीतिक दोषारोपण के खेल में असल मुद्दा खोया : अनुराग

    मुंबई, 10 जून (आईएएनएस)| केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को अपनी फिल्म 'उड़ता पंजाब' पर 'बेजा' कट लगाने से रोकने के लिए टक्कर दे रहे फिल्मकार अनुराग कश्यप ने कहा है कि उन पर आम आदमी पार्टी (आप) से पैसा खाने का आरोप न केवल सीबीएफसी का कोरा झूठ है, बल्कि असल मुद्दे से भटकाने और उसे राजनीतिक लड़ाई में तब्दील करने की चाल भी है। 'उड़ता पंजाब' में सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने 89 कट लगाने का सुझाव दिया है। निहलानी का आरोप है कि 'उड़ता पंजाब' के सह-निर्माता अनुराग कश्यप ने आप से पैसे खाने के बाद यह फिल्म बनाई। उनके इस आरोप पर बॉलीवुड व आप समन्वयक अरविंद केजरीवाल ने तीखी प्रतिक्रिया दी।

    अनुराग ने इस सारे विवाद व उन पर लगे आरोप को लेकर एक फेसबुक पोस्ट के जरिए अपनी राय रखी।

    उन्होंने पोस्ट में लिखा, "मेरे सेंसरशिप के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करने के बाद आलोचनाएं करने वाले कोरे झूठ व आरोपों से मामले को अलग दिशा में ले जे रहे हैं। मेरा सेंसर बोर्ड से कई बार सामना हुआ है। पहली बार 'पांच' फिल्म को लेकर हुआ था, जिसे लेकर हर कोई अब भी यही मानता है कि इस पर सेंसर बोर्ड ने रोक लगाई थी। सच्चाई यह है कि पुनरीक्षण समिति ने कुछ कट लगाने व दो डिस्क्लैमर के बाद फिल्म को हरी झंडी दे दी थी और फिल्म का यही प्रारूप इंटरनेट पर उपलब्ध है।"

    अनुराग ने यह भी कहा कि 'वह (निहलानी) हम पर फिल्म रिलीज की तारीख आगे बढ़ाने, कट का सुझाव व उनकी बात मान लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं। उन्होंने मुझ पर आप से पैसे खाने का आरोप लगाया, जो न केवल झूठ बल्कि एक फिल्मकार के अधिकार की लड़ाई के असल मुद्दे को मार्ग से भटकाने व राजनीतिक लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश है।"

  • सीबीआई के समक्ष बचाव में सबूत पेश करने में नाकाम रहे वीरभद्र

    नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)| हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से आय से अधिक संपत्ति के मामले में गुरुवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने पूछताछ की। इस दौरान वह अपने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों के बचाव में सबूतों का विवरण पेश करने में नाकाम रहे। अधिकारियों ने बताया कि उनसे शुक्रवार को दूसरे दौर की पूछताछ की जाएगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व हिमाचल के मुख्यमंत्री 81 वर्षीय वीरभद्र सिंह गुरुवार सुबह 11 बजे सीबीआई मुख्यालय में करीब पांच घंटे तक पूछताछ हुई। आय के ज्ञात स्रोत से छह करोड़ 30 हजार रुपये से अधिक की संपत्ति से जुड़े विभिन्न साक्ष्यों से उनका सामना कराया गया।

    एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि वीरभद्र सिंह से उनकी विभिन्न संपत्तियों के बारे में सवाल किए गए। जब उनके सामने सबूत पेश किए गए तो उसका उनके पास कोई स्पष्टीकरण नहीं था।

    अधिकारी ने कहा कि सीबीआई के पास सिंह के खिलाफ पुख्ता सबूत है। हालांकि उस अधिकारी ने सिंह की जब्त संपत्तियों के खिलाफ सबूतों को साझा करने से इनकार किया।

    अधिकारी ने कहा, "सीबीआई के पास वीरभद्र के खिलाफ अपने बच्चों और पत्नी के नाम पर उन संपत्तियों की खरीद की आपराधिक साजिश में जुड़े होने के पक्के सबूत हैं।"

    सीबीआई ने मुख्यमंत्री को शुक्रवार को पूछताछ के लिए फिर पेश होने को कहा है।

    अधिकारी ने दावा किया कि पूछताछ के दौरान पत्नी और बच्चों के नाम से खरीदी गई संपत्ति के बारे में बताने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री सिंह पर ही डाल दी गई। सीबीआई सूत्रों ने कहा कि सीबीआई की प्रारंभिक जांच में वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य ने अपनी संपत्तियों के बारे में कहा था कि उसकी कुछ संपत्तियां पिता के दिए पैसे से खरीदी गई हैं।

    इस मामले को पिछले साल 23 सितंबर को भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, एलआईसी एजेंट आनंद चौहान और उसके सहयोगी चुन्नी लाख के खिलाफ दर्ज किया गया था। वीरभद्र बुधवार को दिल्ली पहुंचे थे।

    हिमाचल के मुख्यमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ जांच उनके केंद्रीय इस्पात मंत्री (2009-2011) रहते हुए उन पर लगे आय से अधिक संपत्ति के आरोपों के संदर्भ में हो रही है।

    सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा, "यह एफआईआर प्राथमिक जांच का परिणाम है, जिसमें यह सामने आया है कि वीरभद्र ने केंद्रीय इस्पात मंत्री के रूप में 2009 से 2012 के दौरान अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर 6.03 करोड़ रुपये की संपत्ति जमा की थी। इस संपत्ति को उनकी आय से अधिक पाया गया।"

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने पांच अप्रैल को वीरभद्र से सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ दायर मामले में पूछताछ में शामिल न होने का कारण पूछा था।

    हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के तहत वीरभद्र किसी भी प्रकार की पूछताछ और गिरफ्तारी से बचे हुए हैं। सीबीआई ने दिल्ली उच्च न्यायालय से हिमाचल उच्च न्यायालय के इस आदेश को रद्द करने का आग्रह किया हुआ है।

    उच्च न्यायालय में वीरभद्र सिंह ने याचिका दायर कर सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ दायर एफआईआर को खारिज करने की मांग की है जिसकी सुनवाई की जा रही थी।

    अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी.एस. पटवालिया ने अदालत को बताया था कि इस मामले में गंभीर रूप से रुकावट पैदा हो गई है। उन्होंने कहा था कि सीबीआई ने इस पर एक दस्तावेज पूर्ण रूप से तैयार किया है। उन्होंने यह भी कहा कि 'जो तथ्य इस दस्तावेज से निकलकर सामने आए हैं, वे बेहद-बेहद गंभीर हैं।'

    सिंह को हिमाचल उच्च न्यायालय ने पहले ही एक अक्टूबर 2015 को इस मामले से गिरफ्तारी से सुरक्षा दे दे रखी थी। सीबीआई को उन्हें गिरफ्तार करने, उनसे पूछताछ करने और उनके खिलाफ आरोपपत्र दायर करने से रोक दिया गया।

    सीबीआई ने हिमाचल प्रदेश की अदालत के आदेश को निरस्त कराने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय से निर्देश मांगा है और दलील दी कि मामले की जांच प्रभावित हो रही है।

    सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल नबंवर में सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले को हिमाचल उच्च न्यायालय से दिल्ली उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया था और कहा था कि यह 'संस्थान को शर्मिदगी से बचाने' और 'आगे किसी विवाद से बचने के लिए' किया जा रहा है।

    शीर्ष अदालत ने हालांकि हिमाचल उच्च न्यायालय के आदेश में कोई बदलाव नहीं किया जिसने सीबीआई को इस मामले से सिंह को गिरफ्तार करने से रोक दिया था।

    वीरभद्र इस मामले को हिमाचल उच्च न्यायालय में तब ले गए थे जब पिछले साल 26 सितंबर को सीबीआई ने उनके दिल्ली और शिमला स्थित घरों की तलाशी की थी और उन पर आय से अधिक छह करोड़ रुपये की संपत्ति का मामला दर्ज किया था।

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