मोदी की पत्नी ने उज्जैन में महाकाल के दर्शन किए
उज्जैन, 7 मई (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के दौरान होने वाले 'वैचारिक कुंभ' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेने आ रहे हैं। उनके आने से पहले शनिवार को उनकी पत्नी जसोदा बेन ने कुंभ स्नान किया और महाकाल के दर्शन किए।
महाकाल मंदिर से जुड़े सूत्रों ने पुष्टि की है कि जसोदा बेन ने शनिवार की दोपहर में सामान्य श्रद्धालु की तरह कतार में लगकर महाकाल के दर्शन किए। इस दौरान उनके साथ परिवार के कुछ सदस्य भी थे।
सिंहस्थ कुंभ के दौरान ननोरा में 12 से 14 मई तक वैचारिक कुंभ (अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी) होने वाला है, जिसमें 14 मई को प्रधानमंत्री मोदी शिरकत करने वाले हैं।
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कोलकाता की ट्राम गाड़ियां कला, संस्कृति का केंद्र बनीं
आयोजकों के अनुसार, 'ट्राम टेल्स' नामक इस दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत शनिवार को हुई। ट्राम डिपो में ट्राम गाड़ी पर स्थापित विशिष्ठ संवादात्मक मिश्रित मीडिया एक पहला बड़ा स्थल है।
गारीहाट ट्राम डिपो में बेकार पड़ी ट्राम गाड़ियां छह विषयों -फिल्मी ट्राम, संगीत ट्राम, नाटक ट्राम, अड्डा ट्राम, फोटो ट्राम और चित्रित ट्राम- के रूप में सजी हैं।
फिल्मी ट्राम गाड़ी एक लघु सिनेमा हॉल बन जाएगी, जिस पर 10 लघु फिल्में दिखाई जाएंगी, जबकि नाट्य ट्राम नाटक मंडलियों की मेजबान बनेंगी।
कैफे बुटिक में तब्दील अड्डा ट्राम लोगों के जमघट स्थल का काम करेगी। संगीत ट्राम शहर स्थित वादक मंडलियों के लिए मंच का काम करेगी।
फोटो ट्राम पर आपसे साझा करने के लिए ट्राम गाड़ी से संबंधित चित्र और यादें होंगी और यह छुटभैये कलाकरों को देखने के लिए होंगी जो अपने चित्रफलक पर इसे चित्रित कर इस वाहन का अच्छा उपयोग करेंगे।
कोलकाता ट्राम्सवे कंपनी (सीटीसी) की मंजूरी और विभिन्न क्षेत्रों के हितधारकों द्वारा समर्थित 'ट्राम टेल्स' की टीम में खेया चट्टोपाध्याय और आदित्य सेन गुप्ता शामिल हैं। ये लोग प्रशिक्षित कलाकार हैं, जो फिल्म निर्माण, नाटक मंचन और अन्य विधाओं में माहिर हैं।
आयोजकों को उम्मीद है कि इस पहल से ट्राम गाड़ी को विलुप्त होने से बचाने में मदद मिल सकती है।
सीटीसी के अनुसार, ट्राम गाड़ी सबसे पहले 24 फरवरी, 1873 को पटरी पर चली थी। यह दो विश्व युद्धों और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की गवाह है। वक्त के थपेड़ों को झेलते हुए आज भी संचालन जारी रखने को खड़ी है।
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एमएमटीसी की स्वर्ण पेशकश 'द तोला'
एमएमटीसी-पीएएमपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक राजेश खोसला ने इस मौके पर मीडिया से कहा, "सदियों से सोने का कारोबार तोला से जुड़ा रहा है जो सोने के कारोबार में वजन मापने की इकाई थी और भारत को दुनिया में सोने का केंद्र होने का भी गौरव हासिल है। मीट्रिक प्रणाली के प्रयोग ने इस ऐतिहासिक गठजोड़ को गुम कर दिया और वजन मापने की एक इकाई के तौर पर तोला एक ऐसी याद बन गया, जो समय की रेत में दबकर रह गया।"
उन्होंने कहा, "इतिहास और धन के खजाने से इस पारंपरिक वैदिक माप को एक उत्पाद के रूप में पेश किया गया, जिससे न सिर्फ हमारी शानदार शिल्पकला की झलक मिलती है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत के गौरव को भी दर्शाता है।"
उन्होंने कहा, "भारत में पहली बार एक अनोखे और ऐतिहासिक उत्पाद के रूप में डिजाइन किया गया 'द तोला' चार दशमलव अंकों तक सटीक वजन में नए सिरे से आधुनिक डिजाइन में ढाला गया है, ताकि इसका आंतरिक मूल्य और सर्वश्रेष्ठ शुद्धता के सोने में इसका वजन बना रहे। एमएमटीसी-पीएएमपी 'तोला' शब्द को बाजार में एक बिल्कुल नया आयाम देती है जो पूरी दुनिया में सोना मापने की बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाने वाली इकाई बनी रहेगी।"
सोना मापने की करीब एक हजार साल पुरानी अवधारणा पर आधारित एक तोला एक सौ रत्ती बीजों का वजन होता था। तोला की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए असली सोने के अहसास और दिखावट को फिर से परिभाषित कर एमएमटीसी-पीएएमपी का 'तोला' एक अष्टाकार सिक्का है, जिसके किनारे उभरे हुए और बनावट जटिल है और 999.9 शुद्ध सोने में इसका वजन 11.6638 ग्राम है।
शुरुआती चरण में 'द तोला' स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसएचसीआईएल), इंडिया पोटाश लिमिटेड के चुनिंदा आउटलेटों, एमएमटीसी-पीएएमपी के रिटेल आउटलेटों के साथ अहमदाबाद, इलाहाबाद, बेंगलुरू, बड़ौदा, चंडीगढ़, चेन्नई, कोयंबटूर, दिल्ली, धारवाड़, फरीदाबाद, गांधीधाम, गांधीनगर, गाजियाबाद, गुरुग्राम, हैदराबाद, जयपुर, जोधपुर, कानपुर, करकला, लुधियाना, मंगलूर, मुंबई, नागपुर, नोएडा, पलवल, रायपुर, सलेम और सिकंदराबाद जैसे शहरों के जाने-माने आभूषण विक्रेताओं के पास उपलब्ध होगा।
एमएमटीसी-पीएएमपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड भारत सरकार की कंपनी एमएमटीसी लिमिटेड और पीएएमपी एसए स्विटजरलैंड के बीच संयुक्त उद्यम है।
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सिंहस्थ कुंभ : आपदा के बाद हजारों ने क्षिप्रा में लगाई डुबकी
उज्जैन, 6 मई (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में गुरुवार को आई प्राकृतिक आपदा के बाद भी शुक्रवार को श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। यही कारण रहा कि अमावस्या को दूसरे पर्व स्नान के दिन हजारों श्रद्धालुओं ने क्षिप्रा नदी के विभिन्न घाटों पर डुबकी लगाकर पुण्य लाभ अर्जित किया।
उज्जैन में गुरुवार को चली तेज आंधी और बारिश के कारण 700 पंडाल गिर गए थे। पंडाल में दबकर और अन्य हादसों में सात लोगों की जान चली गई थी और 100 लोग घायल हुए थे। हर तरफ पंडाल तहस-नहस हुए, सड़कों पर पानी भर गया और सीवर का गंदा पानी सड़कों पर होता हुआ क्षिप्रा नदी में पहुंच गया।
भारी अव्यवस्थाओं और परेशानी के बावजूद पंचकोशी यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं ने शुक्रवार की सुबह से ही क्षिप्रा नदी के घाटों पर पहुंचकर स्नान करना शुरू कर दिया था। स्नान का यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहा। आधिकारिक तौर पर 10 लाख से ज्यादा लोगों के स्नान करने का दावा किया जा रहा है।
आधिकारिक तौर पर बताया गया है कि मेला क्षेत्र की बिजली बहाल किया गया है, पानी की आपूर्ति जारी है। कच्ची सड़कों से कीचड़ हटाकर रोलर चलाया गया। रास्ते आवागमन योग्य हो गए हैं। मंगलनाथ जोन में 385 पंडाल हैं, नुकसान के सर्वे के लिए 35 दल बनाए गए हैं। गिरे हुए पंडाल हटाने के लिए होमगार्ड, नगर निगम एवं राजस्व विभाग के कर्मचारियों को लगाया गया है।
कटावधान सेवा समिति अन्नक्षेत्र के प्रमुख आचार्य सिया वल्लभ दास ने कहा कि मेला प्रशासन का काम सराहनीय है। इतने बड़े तूफान के बाद व्यवस्था बहाली एक चुनौती भरा कार्य था, जिसे मेला प्रशासन ने युद्ध-स्तर पर कार्य कर बहाल किया।
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सिंहस्थ कुंभ : दूसरे शाही स्नान का समय तय
उज्जैन, 6 मई (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के नौ मई को होने वाले दूसरे शाही स्नान के लिए तमाम अखाड़ों के लिए समय और क्षिप्रा नदी के घाट भी तय कर दिए गए हैं।
आधिकारिक तौर पर शुक्रवार को बताया गया कि नौ मई को अक्षय तृतीया है और उस दिन सिंहस्थ का दूसरा शाही स्नान है। परंपरा के मुताबिक, शाही स्नान में पहले अखाड़ों के नागा साधु स्नान करते हैं, उसके बाद अन्य साधु-संत और फिर आम श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं।
दूसरा शाही स्नान सुबह सवा पांच बजे से शुरू होगा। दत्त अखाड़ा घाट सुबह पांच बजे पंचदशनाम जूना अखाड़ा (दत्त अखाड़ा) द्वारा शाही स्नान किया जाएगा और उसके बाद पंचायती आह्वान अखाड़ा (सदावल रोड), पंचायती अग्नि अखाड़ा (सदावल रोड), पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा (महाकाल मंदिर) पंच अटल अखाड़ा (नृसिंह घाट रोड), तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा (बड़नगर रोड) पंचायती आनंद अखाड़ा (बड़नगर रोड) द्वारा शाही स्नान किया जाएगा।
इसी तरह रामघाट पर 10 बजे उदासीन अखाड़ा होगा और उसके बाद पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, पंचायती नया उदासीन अखाड़ा, निर्मल अखाड़ा द्वारा शाही स्नान किया जाएगा। वैष्णव अखाड़ा स्नान आठ बजे होगा।
वैष्णव अखाड़े का स्नान सुबह आठ बजे से शुरू होगा। इसमें क्रमश: निर्मोही अणि अखाड़ा, निर्वाणी अणि अखाड़ा, दिगम्बर अणि अखाड़ा द्वारा स्नान किया जाएगा। तय समय पर अंतिम मोहर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा लगाई जाएगी।
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मिथिलालोक का 'पाग मार्च' 8 मई को मधुबनी में
पाग मार्च इससे पहले दिल्ली में 28 फरवरी को निकाला गया था, जिसमें करीब 500 प्रवासी मैथिलों ने सिर पर पाग पहनकर राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर मार्च किया था। अब मिथिला के सांस्कृतिक केंद्र मधुबनी में पहली बार मिथिलावासी पाग मार्च करेंगे।
मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन और ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक डॉ. बीरबल झा ने शुक्रवार को बताया कि मधुबनी में पाग मार्च अपराह्न् 4 बजे विवाह भवन (म्युनिसिपैलिटी बिल्डिंग) से निकल कर रेलवे स्टेशन तक जाएगा। इसका उद्देश्य लोगों को पाग के महत्व का संदेश देना है।
उन्होंने बताया कि पाग मार्च में कई गणमान्य व्यक्ति, जैसे वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा, उद्यमी डॉ. संत कुमार चौधरी, स्थानीय विधायक समीर महासेठ, रामप्रीत पासवान और अन्य भाग लेंगे। साथ ही संगीत संध्या में मिथिलालोक के ब्रांड एम्बेसडर एवं प्रसिद्ध गायक विकास झा अपने सुमधुर मैथिली गीतों से जनसमूह का मनोरंजन करेंगे।
विकास झा इस अवसर पर डॉ. बीरबल झा द्वारा लिखित गीत 'आउ हम सभ मिलि मिथिलाक पाग पहिरी' भी प्रतुस्त करेंगे।
डॉ. झा ने बताया कि यह पाग मार्च बाद में मधुबनी से निकलकर मिथिलांचल के अन्य जिलों में भी पहुंचेगा और पटना में एक भव्य कार्यक्रम का रूप लेगा।
उन्होंने अपील की है कि मिथिलावासी चाहे वे किसी भी धर्म, जाति व वर्ग से हों, अधिक से अधिक संख्या में पाग पहनकर पाग मार्च में शामिल हों और 'पाग बचाउ' अभियान को सफल बनाएं।
डॉ. झा ने बताया कि इस अभियान का उद्देश्य मिथिला की सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए लोगों को एकजुट करना एवं एक छतरी के नीचे लाना है।
उन्होंने कहा कि पाग मार्च के माध्यम से मिथिला की सांस्कृतिक पहचान 'पाग' को वैश्विक स्तर पर लोगों के सामने पेश करना है, ताकि यह सदा-सर्वदा अक्षुण्ण रहे। समतामूलक समाज की स्थापना के साथ मिथिलांचल का सर्वागीण विकास हो।
डॉ. झा ने कहा कि 'पाग' मिथिला की पौराणिक एवं अटूट सांस्कृतिक पहचान है और इसे सिर पर अनिवार्य रूप से धारण करने को प्रेरित कर मिथिला के सभी समुदाय को एक सूत्र में बांधा जा सकता है और मिथिला क्षेत्र में चामत्कारिक एवं चातुर्दिक परिवर्तन लाया जा सकता है। यह अभियान मिथिला को संपन्नता की ओर ले जाएगा।
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चीन में 8 हजार साल पुराना धान का खेत मिला
नियानजिंग संग्रहालय के पुरातात्विक संस्थान के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस खेत का आकार 100 वर्गमीटर से कम है, जिसे जियांगसु प्रांत में हानजिंग के नवपाषाण खंडहर में नवंबर 2015 में खोजा गया।
नवपाषाण खंडहर में मिले खेत को लेकर अप्रैल के अंत में एक सम्मेलन के दौरान चीन के पुरातात्विक संस्थानों व संग्रहालयों तथा विश्वविद्यालयों के 70 विद्वानों ने इस बात की पुष्टि की कि यह अब तक का सबसे पुराना धान का खेत है।
संस्थान के शोधकर्ताओं ने पाया है कि खेत विभिन्न हिस्सों में विभाजित थे, जिनमें से प्रत्येक का आकार 10 वर्गमीटर से कम था।
उन्हें सड़ चुके चावल भी मिले, जो जांच के दौरान आठ हजार साल से पहले के पाए गए।
संस्थान के प्रमुख लीन लियूगेन ने कहा कि चीनी लोगों ने चावल की खेती लगभग 10 हजार साल पहले से करनी शुरू की। सड़ चुके चावल की खोज पहले भी हो चुकी थी, लेकिन इसका खेत मिलना बेहद दुर्लभ है।
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मिथिला में पाग मार्च : 8 मई को मधुबनी से
मिथिलालोक के चेयरमैन डॉ. बीरबल झा ने बताया कि इस अभियान का उद्देश्य मिथिला की सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए लोगों को एकजुट करना एवं एक छतरी के नीचे लाना है।
उन्होंने कहा कि पाग मार्च के माध्यम से मिथिला की सांस्कृतिक पहचान 'पाग' को वैश्विक स्तर पर लोगों के सामने पेश करना है, ताकि यह सदा-सर्वदा अक्षुण्ण रहे। समता मूलक समाज की स्थापना के साथ मिथिलांचल का सर्वागीण विकास हो।
डॉ. झा ने कहा कि 'पाग' मिथिला की पौराणिक एवं अटूट सांस्कृतिक पहचान है और इसे सिर पर अनिवार्य रूप से धारण करने को प्रेरित कर हम मिथिला के सभी समुदाय को एक सूत्र में बांध सकते हैं और मिथिला क्षेत्र में चामत्कारिक एवं चातुर्दिक परिवर्तन ला सकते हैं। यह अभियान हमें विपन्नता से संपन्नता की ओर ले जाएगा।
मिथिलालोक की विज्ञप्ति के अनुसार, 28 फरवरी 2016 को दिल्ली में पाग मार्च शुरू किया गया था। अब 8 मई को मधुबनी से शुरू किया जाएगा एवं मिथिलांचल के अन्य जिलों से भी यह पाग मार्च निकालते हुए पटना में एक भव्य कार्यक्रम किया जाएगा।
चेयरमैन डॉ. झा ने आह्वान किया है कि मिथिलावासी अधिक से अधिक संख्या में पाग मार्च में भाग लेकर इस अभियान को सफल बनाएं एवं मिथिला के विकास में पूर्ण सहयोग दें।
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मैंने पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने के लिए नहीं कहा था : कुरियन
जनता दल (युनाइटेड) के सदस्य के.सी.त्यागी ने शून्यकाल के दौरान व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए कहा कि सरकार ने 'इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिंपेंडेस' नामक किताब पर ही प्रतिबंध लगा दिया, जबकि उस किताब से केवल उस सामग्री को हटाने के लिए कहा गया था, जिसमें भगत सिंह को 'आतंकवादी' कहा गया है।
इस पर कुरियन ने कहा, "किताब पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, केवल उस शब्द को हटाया जाना चाहिए।"
कुरियन ने यह भी कहा कि यही बात सभी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए है, जिन्होंने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।
सरकार की ओर से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय संसदीय कार्य व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि केवल दो ही विकल्प हैं, या तो किताब से उन पन्नों को फाड़कर हटा दिया जाए या किताब पर प्रतिबंध लगा दी जाए।
उन्होंने आश्चर्य जताते हुए पूछा कि क्या करना चाहिए-भगत सिंह को आतंकवादी बताने वाले किताब के पन्नों को फाड़ना चाहिए या उस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सरकार उन लोगों का संरक्षण नहीं करेगी, जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को आतंकवादी करार दिया है।
सदन में हंगामे के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के सदस्य नरेश अग्रवाल ने कहा कि जिन लेखकों ने यह किताब लिखी है, उन्हें दंडित किया जाए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता डी. राजा ने भाजपा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी का विरोध किया, जिन्होंने कहा था कि इतिहास की उस किताब के लेखक बिपिन चंद्रा, भाकपा के थे।
सन् 1988 में प्रकाशित 'इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस' को बिपिन चंद्रा, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी, के.एन.पानीक्कर तथा सुचेता महाजन ने लिखा था।
यह पुस्तक देश भर के विश्वविद्यालयों में 25 वर्षो से पाठ्यक्रम का हिस्सा रही है और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन विषय के लिए एक प्रामाणिक पुस्तक के रूप में जानी जाती है।
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'कन्फ्यूसियश इंस्टीट्यूट' से चीनी भाषा, संस्कृति सीख रहे लैटिन अमेरिकी
चिली के एक शिक्षा निदेशक ने अपने एक साक्षात्कार में यह बात कही।
'कन्फ्यूसियश इंस्टीट्यूट', चीन गणराज्य के शिक्षा मंत्रालय के साथ संबद्ध गैर-लाभकारी सार्वजनिक शैक्षिक संगठन है।
लैटिन अमेरिका में 'कन्फ्यूसियश इंस्टीट्यूट' के सैंटियागो आधारित क्षेत्रीय केंद्र के निदेशक रोबटरे लाफोंतेने ने कहा कि वर्तमान में 70,000 से अधिक लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के 45 'कन्फ्यूसियश इंस्टीट्यूट' में मैंडरिन सीख रहे हैं और चीन के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा भी लेते हैं।
रोबटरे ने कहा कि चिली पहला ऐसा देश था, जहां आठ साल पहले 'कन्फ्यूसियश इंस्टीट्यूट' की स्थापना हुई थी और अब मेक्सिको, कोस्टा रिका, क्यूबा, पनामा, कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोक, बोलीविया, ब्राजील, अर्जेटीना और उरुग्वे में भी इसकी शाखाएं हैं।
उन्होंने आगे कहा, "इस संस्थान के द्वारा आयोजित सांस्कृतिक गतिविधियों में करीब 10 लाख से अधिक लोग हिस्सा लेते हैं।"
लैटिन अमेरिका के लोगों के लिए चीन एक विदेशी और रहस्यमय स्थल था, लेकिन अब इसमें लोगों की रुचि बढ़ रही है। रोबटरे ने कहा कि उनका क्षेत्रीय केंद्र, चिली के सभी शहरों में 'कन्फ्यूसियश इंस्टीट्यूट' खोल रहा है। इसकी संख्या इस वर्ष के अंत में 14 तक पहुंच जाएगी।
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पुण्य प्रसून बाजपेयी गुजरात में पाटीदारों ने आरक्षण के लिए जो हंगामा मचाया- जो तबाही मचायी । राज्य में सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति स्वाहा कर दी उसका फल...
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लंदन, 7 मई (आईएएनएस)। बहुत सारे लोग यह महसूस करते हैं कि दोस्ती दोतरफा रास्ता है, लेकिन आपके केवल आधे जिगरी दोस्त ही आपको अपना दोस्त समझेंगे। इसका पता एक...