सुदर्शन पटनायक ने रेत कलाकृति के लिए पीपुल्स च्वाइस अवॉर्ड
सुदर्शन को यह अवॉर्ड शुक्रवार को उनकी रेत कलाकृति 'ड्रग्स किल्स स्पोर्ट्स' के लिए मिला। इससे संबंधित एक बयान में कहा गया है कि सुदर्शन को सर्वाधिक सैलानियों के वोट मिले।
बयान में सुदर्शन ने कहा है, "मैं बहुत खुश हूं कि मेरी रेत पर बनाई गई कलाकृति ने स्वर्ण पदक जीता। मैंने मादक पदार्थो के सेवन के कारण विवादों से घिरे दो लोकप्रिय खिलाड़ियों के चेहरे रेत पर बनाए थे। इसमें से एक लांस आर्मस्ट्रांग और दूसरी मारिया शारापोवा हैं।"
उन्होंने कहा, "मैं संपूर्ण खेल जगत को खेलों के प्रेरणात्मक कद की गरिमा को बनाए रखने का संदेश देना चाहता हूं। खेलों की भावना को बनाए रखें।"
उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में खेल उन्नत प्रौद्योगिकियों से संपन्न है और इससे प्रतिस्पर्धा को एक नया स्तर मिल गया है, जिससे खेलकर्मियों, आयोजकों और नियामकों जैसे सभी हितधारकों के समक्ष नई चुनौतियां पेश हुई हैं।
सुदर्शन ने कहा, "मेरी रेत पर उकेरी गई कलाकृति 'ड्रग्स किल स्पोर्ट्स' जागरूकता फैलाने वाली कलाकृति है।"
यह प्रतियोगिता 26 मई को शुरू हुई थी, जो तीन जून तक चली। इसमें दुनियाभर के कुल 10 कलाकारों ने हिस्सा लिया था। इस प्रतियोगिता का विषय 'स्पोर्ट्स वर्ल्ड एंड ओलिम्पक सिंबल्स' था। रेत पर उकेरी जाने वाली कलाकृतियों की ऊंचाई दो मीटर निर्धारित की गई थी।
--आईएएनएस
'मैथिली आओर पांच ठाकुर' और 'ओ कविता की' का विमोचन
पटना, 2 जून (आईएएनएस)। बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने राजभवन के सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में गुरुवार को पुस्तक 'मैथिली आओर पांच ठाकुर' तथा 'ओ कविता की' का लोकर्पण किया। ये दोनों पुस्तकें मैथिली भाषा में लिखी गई है।
कोविन्द ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मैथिली सहित देश की अन्य सभी लोक भाषाएं राष्ट्रभाषा हिन्दी को समृद्ध बनाती है। उन्होंने कहा कि 'रामचरितमानस' की अतिशय लोकप्रियता का आधार उसका लोकभाषा में रचित होना भी है।
राज्यपाल ने 'ओ कविता की' के रचयिता कवि गणेश झा को ऐसी रचना के लिए बधाई दी तथा 'मैथिली आओर पांच ठाकुर' के लेखक दिवंगत डॉ़ सुरेश्वर झा का स्मरण करते हुए उनका नमन किया।
राज्यपाल ने 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' को उल्लेखित करते हुए कहा कि मैथिली भाषा में मिठास और रुचिरता रची बसी है। उन्होंने कहा समस्त भाषाओं के भारतीय साहित्य से हमें शांति, सद्भावना और बंधुत्व की प्रेरणा भी मिलती है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ़ सी़ पी़ ठाकुर ने कहा कि आर्थिक सम्पन्नता से वंचित मिथिला की भूमि सांस्कृतिक एवं साहित्यिक रूप से अत्यंत समृद्घ और विकसित रही है। उन्होंने मिथिला के विकास के लिए वहां समुचित जल प्रबंधन की व्यवस्था पर जोर दिया।
कवि गणेश झा ने कहा कि 'मैथिली आओर पांच ठाकुर' पुस्तक में ज्योतिरीश्वर ठाकुर, विद्यापति ठाकुर, ब्रजमोहन ठाकुर, कर्पूरी ठाकुर एवं डॉ़ सी़ पी़ ठाकुर के मैथिली भाषा के विकास में योगदान को रेखांकित किया गया है, जबकि 'ओ कविता की' में देश और समाज से जुड़े विभिन्न विषयों पर कई महत्वपूर्ण कविताएं संकलित की गई हैं।
कार्यक्रम में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ़ साकेत कुशवाहा सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
--आईएएनएस
माचिस की डिब्बियों पर भगवान शिव, देवी काली!
एम.आर. नारायणस्वामी
नई दिल्ली, 2 जून (आईएएनएस)। क्या कभी माचिस की डिब्बियों पर भगवान शिव, विष्णु और हनुमान या देवी काली तथा देवी सरस्वती को देखा है? और वह भी ऑस्ट्रिया, स्वीडन तथा जापान में बनी माचिस की डिब्बियों पर?
भारतीय बाजारों में जब पिछली सदी की शुरुआत में माचिस की डिब्बियां उतरीं तो इनके लेबल ऐसे चित्रों एवं रंगों के होते थे, जो सामान्य भारतीय को आकर्षित कर सके।
तब से भारत में निर्मित और आयातित माचिस की डिब्बियों के हजारों आकर्षक लेबल की प्रदर्शनी यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लगाई गई है, जो पिछले एक सदी के इसके समृद्ध इतिहास को दर्शाते हैं।
माचिस की डिब्बियों का संग्रह करने के शौकीन पेशे से वास्तुविद गौतम हेमेडी (59) के अनुसार, "स्वीडन माचिस का डिब्बियों का सबसे बड़ा निर्माता है।"
जनवरी 2012 से माचिस की डिब्बियां जुटाने वाले गौतम अब तक इसका एक बड़ा संग्रह तैयार कर चुके हैं।
उनके अनुसार, ऑस्ट्रिया और जापान के साथ-साथ स्वीडन को माचिस की डिब्बियां बनाने में महारत हासिल है और इसके पास इससे संबंधित समृद्ध प्रौद्योगिकी भी है। भारत इस संबंध में एक आकर्षक बाजार रहा है, जहां इसकी खूब मांग रही है, जबकि निर्माण न के बराबर।
ऑस्ट्रिया से माचिस की डिब्बियों का सबसे पहले आयात करने वालों में कलकत्ता (अब कोलकाता) की भारतीय कंपनी ए.एम. एसभोय शमिल है।
गौतम ने आईएएनएस को बताया कि शुरुआती माचिस की डिब्बियों के निर्माण पर एक पैसे की लागत आती थी। बहुत से गैर-धार्मिक लेबल थे, जैसे-घड़ी, तीन बाघ, गाय का सिर, हाथी, दो हिरण, कुल्हाड़ी, कैंची, लैंप, घोड़ा, विमान, चाय का कप और चाबी।
बाद में हालांकि स्वीडन, ऑस्ट्रिया और जापान की कंपनियों को लगा कि भारतीय खरीदारों को धार्मिक प्रतीक चिह्नें के माध्यम से अधिक लुभाया जा सकता है।
इसके बाद स्वीडन निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर हिन्दू देवी-देवताओं लक्ष्मी, गायत्री, दुर्गा, विष्णु, त्रिमूर्ति, गणेश, लव-कुश और कृष्ण के नहाने गईं गोपियों के कपड़े चुराकर पेड़ों पर बैठे चित्र उकेरे जाने लगे।
वहीं, जापानी माचिस की डिब्बियों पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और काली के चित्र बनाए जाने लगे।
ऑस्ट्रिया भी इसमें पीछे नहीं रहा और यहां निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर भी हनुमान तथा लक्ष्मी के चित्र बनाए जाने लगे।
जब भारत में माचिस की डिब्बियों का निर्माण होने लगा तो धार्मिक लेबल का चलन और बढ़ा। अब इन पर कृष्ण और राधा, नटराज, शिवलिंग, नंदी, देवी दुर्गा, शिव और गणेश तथा कृष्ण के बाल्यावस्था तथा अन्य धार्मिक चित्रों को उकेरा जाने लगा।
भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान माचिस की डिब्बियों पर राष्ट्रवादी लेबल भी खूब देखे गए। इस दौरान माचिस की डिब्बियों पर अशोक स्तंभ, अशोक चक्र, अविभाजित भारत के मानचित्र के साथ-साथ 'आजादी की सुबह', 'स्वतंत्र भारत' तथा 'जय हिंद' जैसे नारे भी लिखे दिखे।
माचिस की डिब्बियों पर महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शिवाजी, भगत सिंह, गोपाल कृष्ण गोखले तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू के चित्र भी उकेरे गए, जिनमें से कुछ संयोग से जापान में बने थे।
माचिस की डिब्बियों पर मैसूर, बड़ौदा, त्रावणकोर, ग्वालियर, जम्मू एवं कश्मीर, अलवर, बीकानेर, धार, इंदौर, जयपुर तथा पटियाला के तत्कालीन राजाओं के चित्र भी बनाए गए थे।
ऑस्ट्रिया निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर इस रूप में भारत की झलक भी देखने को मिलती थी कि इसमें लालकिला तथा आगरा के किले सहित देशभर के कई महत्वपूर्ण स्थलों को चित्रों के जरिये दर्शाया गया।
आजादी के बाद भारत सरकार ने परिवार नियोजन तथा बचत के महत्व से संबंधित संदेशों के प्रसार के लिए माचिस की डिब्बियों के लेबल का इस्तेमाल किया। निजी कंपनियों को भी अपने उत्पादों के प्रचार के लिए माचिस की डिब्बियां एक सस्ता संसाधन जान पड़ी।
गौतम यूं तो आठ साल की उम्र से ही माचिस की डिब्बियों के लेबल जुटाना चाहते थे, लेकिन यह 2012 से ही संभव हो पाया, जब उन्होंने कुछ संग्रहों को खरीदने का निर्णय लिया।
आज उनके पास दियासलाई उद्योग के करीब 25,000 लेबल, रैपर और कार्डबोर्ड हैं। यह उनकी पहली प्रदर्शनी है, जो शुक्रवार को समाप्त हो रही है।
हालांकि आज भारत में माचिस की डिब्बियों के लेबल बहुत ही नीरस और फीके हो रहे हैं। इस बारे में गौतम का कहना है, "आज भारत में दियासलाई उद्योग मुख्य रूप से तमिलनाडु में ही रह गया है। संबंधित उद्योग जगत रंगीन डिजाइनों पर बहुत ध्यान नहीं दे रहा है, क्योंकि इस पर लागत अधिक आती है, जबकि अधिकांश माचिस की डिब्बियां केवल एक रुपये में बिकती हैं।"
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत से निर्यात होने वाली माचिस की डिबियों का स्वरूप बिल्कुल अलग होता है और ये बहुत आकर्षक होती हैं।
--आईएएनएस
संस्कृति मंत्री ने कश्मीरी लोक रंगमंच पर पुस्तक, डीवीडी का लोकार्पण किया
यहां मंगलवार को जारी एक बयान के अनुसार, 'ऐन इलस्ट्रेटेड मोनोग्राफ ऑफ भांड पाथेर, द फोक थियेटर ऑफ कश्मीर' नामक इस पुस्तक का लोकार्पण राजधानी में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में आयोजित तीन दिवसीय प्रदर्शनी और संगोष्ठी के दौरान किया गया। पुस्तक में भांड लोक रंगमंच के बारे में जानकारी प्रदान की गई है, जो भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में उल्लिखित पांच रंगमंच रूपों में से एक है।
बयान के अनुसार, इस दौरान एक डीवीडी भी जारी की गई। 50 मिनट की इस डीवीडी में भांड पाथेर नाटकों के चुनिदा अंश शामिल किए गए हैं, जिसमें कश्मीर की भांड मंडली ने परफार्म किया है।
इसके अलावा, शर्मा ने सुरभि रंगमंच के चार नाटकों -कृष्णलीलालु, भक्त प्रहलाद, बालानागाम्मा और माया बाजार- से युक्त चार डीवीडी के एक सेट को भी जारी किया।
सुरभि आंध्र प्रदेश में फल फूल रहे फैमिली थियेटर की सबसे पुरानी संस्था है, जो पिछले 130 वर्षों से लगातार प्रदर्शन कर रही है।
इस मौके पर शर्मा ने कहा, "आज के समय में यह सबसे महत्वपूर्ण है कि हमें विरासत में क्या मिला है, जिस पर हम घमंड करने के बजाय अगली पीढ़ी के लिए छोड़ेंगे।"
आईजीएनसीए के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि आईजीएनसीए का नवगठित ट्रस्ट संगठन के लिए बेहतर परिणाम और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए काम करेगा। उन्होंने कहा, "बहुत काम किया गया है, लेकिन अभी बहुत अधिक करने की जरूरत है, विशेष रूप से वैसे क्षेत्रों में, जिनमें विद्वान और आईजीएनसीए के अनुसंधान और संसाधनों को साझा करने में रुचि रखने वाली जनता शामिल है।"
-- आईएएनएस
आपकी याद आती रही रात भर..
नई दिल्ली, 29 मई (आईएएनएस)। दिल्ली में रविवार की शाम चर्चित कवि जीशान नियाजी की कविताओं को देश-विदेश में अपनी गजल गायकी से लोकप्रियता प्राप्त कर चुके गजल गायक उस्ताद शकील अहमद ने अपने मनमोहक अंदाज में पेश कर उपस्थित मेहमानों एवं अन्य को मंत्र-मुग्ध करते हुए जमकर वाह-वाही लूटी। यूं तो दोनों ही कलाकारों ने एक के बाद एक अपनी रचनाओं से समां बांधे रखा, लेकिन 'आपकी याद आती रही रात भर, एक कयामत सी ढाती रही रात भर.' और 'वस्ल की शब गुजर ना जाये कहीं, तेरा बीमार मर ना जाये कहीं.', सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो गए।
गैर सरकारी संगठन साक्षी द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में गजल संध्या 'बज्म-ए-सुखन' का आयोजन किया गया। रविवार की शाम सजी इस महफिल में जीशान नियाजी की कविताओं को शकील अहमद ने गजल रूप में संजोकर प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अवधारणा डॉ. मृदुला टंडन (अध्यक्ष, साक्षी एनजीओ) द्वारा रचित थी, जिसका एक उद्देश्य जनता के बीच में समकालीन गजलों को प्रस्तुत करना था।
जहां जीशान साहब की गजलों में समकालीनता का अहसास था, वहीं पारम्परिक गजल - मननशील, विचारोत्तेजक, रोमांटिक और इन सब से सर्वोपरि आध्यात्मिकता का अहसास भी उनकी शैली में शामिल रहा। इन गजलों को शकील अहमद ने अपनी विविधता, सशक्त कला-कौशल और बेहद शानदार अंदाज ए मौसिकी में मंच पर जीवंत किया।
कार्यक्रम में समकालीन कवि की भाषा की समझ व कलाकार की संवेदनशील कल्पना में गजल का आधुनिक अंदाज देखने-सुनने को मिला। जिसके चलते भाषा व कविताओं का उच्च स्तर व उसमें विचारो का समावेश बेहद खूबसूरत बन पड़ा था।
कार्यक्रम की आयोजक डॉ. मृदुला टंडन ने बताया कि गजल संगीत का एक असीम अंग है। यह आधुनिक समय में वह खूबसूरत व ²ढ़ अहसास है जो युवाओं की भावनाओं व आकांक्षाओं को आवाज देने का प्रासंगिकता देने में सक्षम है। अपने कार्यक्रमों की श्रृंखला में यह एक और उत्कृष्ट प्रदर्शन है जो भारतीय साहित्य और संगीत को बढ़ावा देता है, साथ ही आवाम को सशक्त व उच्च स्तरीय कलाकारों से रूबरू कराने में मदद करता है।
अपने प्रस्तुतीकरण व कार्यक्रम के विषय में जीशान नियाजी साहब ने बताया, "आज कल के माहौल व भाग-दौड़ भरी जिंदगी में मौसिकी ऐसी चीज है जिसके माध्यम में व्यक्ति को सुकून मिलता है। गजल इसके लिए एक बहुत ही खूबसूरत माध्यम है और मैंने यह कोशिश की है कि आसान लफ्जों में अपनी बात की जाए, जिससे कि सभी की समझ में यह आसानी से आ जाए।"
--आईएएनएस
सिंगापुर में चीनी समाचार पत्रों की प्रदर्शनी
प्रदर्शनी का शीर्षक 'अर्ली चाइनीज न्यूजपेपर्स इन सिंगापुर (1881-1942)' है, जिसमें सिंगापुर में प्रकाशित होने वाले चीनी समाचार पत्रों का इतिहास, विकास प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रदर्शनी में 100 से अधिक कलाकृतियां, ऐतिहासिक दस्तावेज और तस्वीरें शामिल हैं।
यह प्रदर्शनी आगंतुकों को चीनी समाचार-पत्रों के माध्यम से सिंगापुर के 1880 के दशक से 1942 में जापान के आक्रमण के इतिहास के बारे में बताती है। इससे लोगों को उस समय के पत्रकारिता के रूझानों आदि की भी जानकारी मिलती है।
फू ने कहा कि सिंगापुर में प्रारंभिक चीनी समाचार पत्रों ने इस क्षेत्र में रहने वाले चीनी समुदाय को जानकारी देने, शिक्षित करने और प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन समाचार पत्रों ने सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में काम किया।
प्रदर्शनी के निरीक्षकों के अनुसार यह प्रदर्शनी नौ अक्टूबर तक जारी रहेगी। इस दौरान सिंगापुर में कई प्रमुख चीनी समाचार-पत्रों के समृद्ध इतिहास पर प्रकाश डालने वाली सार्वजनिक वार्ता श्रृंखला का भी आयोजन किया जाएगा।
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वाराणसी में अंतराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारी
संस्था की संयोजक पुष्पांजलि शर्मा ने बताया कि आयर गांव में तकरीबन 50 बेटियां हर पाली में प्रशिक्षण ले रही हैं। इनमें हर उम्र की लड़कियां हैं। यह कार्यक्रम 21 जून तक अनवरत चलेगा। प्रदेश के अन्य गांवों में भी इसी तरह के शिविर चलाने की तैयारी है।
शर्मा का कहना है कि योग के जरिये वह गांव की बच्चियों में आत्मनिर्भरता और स्वाबलंबन की भावना मजबूत करना चाहती हैं।
उन्होंने बताया कि वह खुद भी ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखती हैं। उनका मानना है कि योग इन बच्चियों की जिंदगी में सकारात्मक भूमिका अदा कर सकता है।
शिविर में रोज बढ़ती संख्या से पुष्पांजलि काफी उत्साहित हैं। वह कहती हैं, "मुझे भरोसा है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चियों का जीवन योग के जरिए बदलने में कामयाबी मिलेगी।"
वह इससे पहले भी कई इलाकों में योग का कार्यक्रम आयोजित कर चुकी हैं। शर्मा ने कहा कि योग दिवस के बाद भी ग्रामीण इलाकों में वह शिविर लगाना जारी रखेंगी।
--आईएएनएस
सांस्कृतिक समझ बढ़ाने को चीन-ऑस्ट्रेलिया के बीच मीडिया सहयोग
चीन की समाचार एजेंसी सिन्हुआ के वाइस एडिटर-इन-चीफ झोउ जोंगमिन तथा ऑस्ट्रेलिया-चाइना रिलेशंस इंस्टीट्यूट के निदेशक बॉब कार ने सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया।
सिडनी में हस्ताक्षर समारोह के बाद ऑस्ट्रेलिया के पूर्व विदेश मंत्री रह चुके कार ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया चीन की सूचनाओं का इस्तेमाल करेगा।
पिछले एक दशक में जिस प्रकार चीन-ऑस्ट्रेलिया के संबंधों ने प्रगति की है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
--आईएएनएस
लंदन : शेक्सपियर की 4 किताबें 36 लाख डॉलर में नीलाम
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, क्रिस्टी में किताबों व पांडुलिपियों की अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख मार्गरेट फोर्ड ने कहा कि अमेरिका के प्राइवेट संग्रहकर्ता ने शेक्सपियर की चार किताबें प्राप्त की थीं। इनमें से उनकी किताब 'फर्स्ट फोलिओ' 26 लाख डॉलर में नीलाम हुई।
फर्स्ट फोलिओ में 36 नाटक हैं, जिनमें से 18 में 'मैकबेथ' और 'द टेम्पेस्ट' शामिल हैं।
'सेकेंड फोलिओ' 28 लाख डॉलर, तीसरी 53.3 लाख डॉलर व चौथी 69.88 डॉलर में बिकी।
--आईएएनएस
चीन की मशहूर साहित्यकार यांग जियांग का निधन
बीजिंग में जन्मी यांग ने शुचो यूनिवर्सिटी में शिक्षा ग्रहण की, जिसके बाद 1930 में उन्होंने शिंघुआ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। उनकी शादी कियान झोंगशू से हुई। कियान का 1997 में निधन हो गया था।
कियान के साथ ब्रिटेन व फ्रांस में अध्ययन करने के बाद यांग वापस लौटीं और शिंघुआ यूनिवर्सिटी में विदेशी भाषा की प्रोफेसर बन गईं। वे साल 1950 में पेकिंग यूनिवर्सिटी तथा सीएएसएस फॉरेन लिटरेचर स्टडी सेंटर में साहित्य शोधकर्ता थीं।
अंग्रेजी, फ्रेंच व स्पेनिश भाषा की जानकार यांग के अनुवाद 'डॉन क्विसोट' तथा फ्रेंच उपन्यास 'गिल ब्लास' चीनी पाठकों के दिलों में जगह बनाई।
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खरी बात
छत्तीसगढ़ के मुख्य सेवक रमन सिंह के नाम एक तुच्छ नागरिक का खुला पत्र
माननीय मुख्यमंत्री,छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर. महोदय, इस राज्य के मुख्य सेवक को इस देश के एक तुच्छ नागरिक का सलाम. आशा है, मेरे संबोधन को आप व्यंग्य नहीं समझेंगे, क्योंकि देश...
भाजपा राज्यसभा में जीतना चाहती है अतिरिक्त सीटें
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14 फीसदी भारतीय कारोबार की लगाम महिलाओं के हाथ
ऋचा दूबे एक ऑनलाइन खुदरा कारोबार चलाती हैं, जो कारीगरों को उपभोक्ताओं से जोड़ता है। यह आधुनिक भारतीय महिला के लिए कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन हाल के आंकड़ों...
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पोर्नोग्राफी से बढ़ता है धर्म के प्रति झुकाव : अध्ययन
न्यूयॉर्क, 30 मई (आईएएनएस)। आप इसे विचित्र कह सकते हैं, लेकिन ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि जो लोग हफ्ते में एक बार से अधिक अश्लील फिल्म...