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Friday, 06 May 2016 00:00

बीजिंग के संग्रहालय ने कराई प्राचीन अवशेषों की खोज

बीजिंग, 6 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। बीजिंग के 'फॉरबिडेन सिटी' पैलेस संग्रहालय ने युआन राजवंश (1271-1368) के इमारतों के अवशेष की खोज कराई है। शोधकर्ताओं ने 600 से भी अधिक साल पहले के इस संग्रहालय में काम करने के दौरान यह खोज की है। इसे आधिकारिक रूप से पैलेस संग्रहालय कहा जाता है।

संग्रहालय के पुरातत्व विभाग के प्रमुख ली जी ने बताया कि मिंग और किंग के राजवंशों (1368-1911) द्वारा इस्तेमाल के किए इस पूर्व शाही महल की नींव के नीचे मिले यह अवशेष युआन राजवंश के काल के हो सकते हैं।

यह महल परिसर चीनी सम्राटों के घर और 1420 से 1911 के बीच सत्ता का सर्वोच्च केंद्र था।

उन्होंने बताया कि यह नए निष्कर्ष महल के इतिहास और प्राचीन बीजिंग के अभिन्यास को समझने में मदद करेंगे।

--आईएएनएस

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Friday, 06 May 2016 00:00

सिंहस्थ कुंभ में तबाही के बाद पीड़ितों के बीच पहुंचे शिवराज

उज्जैन, 6 मई (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में गुरुवार को चक्रवाती हवाओं और बारिश ने जमकर ताबाही मचाई, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हादसे पर दुख व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया। साथ ही वे स्वयं हालात का जायजा लेने शुक्रवार को उज्जैन पहुंच गए।

उज्जैन में गुरुवार को चक्रवाती हवाओं और बारिश से मंगलनाथ और चिंतामन क्षेत्र में कई पंडाल धराशायी हो गए थे। इससे अफरा-तफरी मच गई थी। इस आपदा में सात लोगों की मौत हो गई और 60 से ज्यादा अन्य लोग घायल हैं।

मुख्यमंत्री चौहान ने हादसे पर दु:खद जताते हुए मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को 50-50 हजार रुपये देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि मामूली रूप से घायलों को 25 हजार रुपये की तत्काल सहायता दी जाएगी और सरकार घायलों के उपचार का पूरा खर्च भी उठाएगी।

चौहान शुक्रवार की अल सुबह उज्जैन पहुंचे। वर्षा और आंधी से प्रभावित इलाकों में जाकर उन्होंने साधु-संतों से चर्चा की और उन्हें सरकार की ओर से पूरा सहयोग करने की बात कही। उन्होंने मेला क्षेत्र में आंधी और वर्षा से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए मंगलनाथ क्षेत्र का निरीक्षण करने के बाद अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए।

मंगलनाथ मेला क्षेत्र के निरीक्षण के बाद चौहान ने संबधित अधिकारियों को शनिवार तक मंगलनाथ क्षेत्र को पुन: स्थापित करने और वर्तमान हालात को बदलने के निर्देश दिए। उन्होंने साधु-संतों को पर्याप्त आवश्यक खाद्य सामग्री हर हाल में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।

--आईएएनएस

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Friday, 06 May 2016 00:00

आंधी के बाद बदल गया सिंहस्थ कुंभ मेले का नाजारा

उज्जैन, 6 मई (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के दौरान गुरुवार को आंधी के बीच हुई तेज बारिश ने पलभर में यहां का नजारा बदल दिया। आकर्षक पंडाल और भव्य द्वार कुछ पलों में ही पत्तों की तरह बिखर गए और पंडालों के भीतर मौजूद श्रद्धालुओं में अपनी जान बचाने की होड़ मच गई।

उज्जैन में 22 अप्रैल से इस शताब्दी का दूसरा सिंहस्थ कुंभ शुरू हुआ है। इस धार्मिक समागम में सरकार ने पांच करोड़ लोगों के आने का अनुमान लगाते हुए सारी व्यवस्थाएं की थी। तमाम अखाड़ों के साथ साधु-संतों और श्रद्घालुओं के लिए सामाजिक संस्थाओं ने पंडाल बनाए थे।

कुंभ मेला क्षेत्र में गुरुवार की शाम तक हर तरफ तंबू, टेंट और उन पर फहराती पताकाएं ही नजर आती थीं, पर शुक्रवार सुबह का नजारा एकदम जुदा है। पंडालें पूरी तरह तहस नहस हैं, सड़कों पर पानी और कीचड़ हैं जो अमावस्या पर स्नान करने आने वाले श्रद्घालुओं के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हालात का जायजा लेने के बाद शुक्रवार को अफसरों से कहा है कि हिम्मत नहीं हारना है, बल्कि इस आपदा के समय में भी कार्य करके दिखाना है। उन्होंने मेला क्षेत्र के टूटे हुए टेन्ट और अन्य सामग्री को अलग कर उसे पुन: स्थापित करने के निर्देश दिए।

मुख्यमंत्री ने मेला क्षेत्र से कीचड़ को साफ करने और गंदे नालों को साफ करने के लिए सक्शन मशीन की व्यवस्था करने के निर्देश दिए।

वहीं, अस्पताल में भर्ती श्रद्घालु गुरुवार देर शाम के घटनाक्रमों को याद कर सहम जाते हैं। उनका कहना है कि वे पंडाल के अंदर थे, अचानक तेज हवा चली और बारिश शुरू हो गई। देखते ही देखते पंडाल गिर गया, जो अंदर थे वे अपना सब सामान छोड़कर बाहर भागे। लोगों ने जैसे तैसे अपनी जान बचाई। एक घायल ने कहा, "यह तो महाकाल की कृपा है कि हम बच गए।"

एक घायल महिला ने बताया कि उसके सिर में चोट लगी है, मगर वह तो भगवान की कृपा से बच गई। वह पंडाल के भीतर थीं, तभी पूरा पंडाल गिर गया। वह और उसके साथ कई अन्य महिलाएं भी दब गई थीं। किसी तरह वे बाहर निकल पाईं। आंधी इतनी तेज थी कि कुछ ही देर में पंडालें गिरने लगे और स्वागत द्वार धराशायी हो गए।

ज्ञात हो कि गुरुवार की शाम को चली तेज हवाओं और बारिश ने उज्जैन में जमकर तबाही मचाई। सात लोगों की मौत हो गई और 60 से ज्यादा लोग घायल हुए। घायलों का अस्पताल में इलाज जारी है।

--आईएएनएस

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Thursday, 05 May 2016 00:00

केजरीवाल की तरह किसी पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा : श्री एम

रीतू तोमर
नई दिल्ली, 5 मई (आईएएनएस)। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पैदल यात्रा कर शांति एवं सद्भावना का संदेश फैला चुके केरल के आध्यात्मिक गुरु श्री एम अब 'आशा यात्रा' के दूसरे चरण में कन्याकुमारी से कोहिमा तक की पदयात्रा का खाका तैयार करने की योजनाओं में जुटे हैं।

आध्यात्मिक मार्गदर्शक, समाज सुधारक, शिक्षाविद् और मानव एकता मिशन के संस्थापक श्री एम ने आईएएनएस के साथ खास बातचीत में उनके राजनीति में शामिल होने की संभावना, आशा यात्रा के दूसरे चरण और देश में 'हाफ विडो' की दशा में सुधार की योजनाओं पर चर्चा की।

श्री एम ने जनवरी 2015 से कन्याकुमारी से कश्मीर तक 11 राज्यों से होते हुए पैदल आशा यात्रा का शुभारंभ किया था। यात्रा शुरू होने तक स्वयं श्री एम को अनुमान नहीं था कि उनका कारवां बढ़ता चला जाएगा।

उन्होंने बताया, "इस यात्रा में चार समूहों में 40 से 60 लोग साथ चले। यात्रा में कभी 200 से कम लोग नहीं रहे। कभी-कभी यह संख्या हजारों तक पहुंच जाती। हमने बारिश, धूप और ठंड में हर मुश्किल घड़ी में अपनी यात्रा जारी रखी।"

देश में 11 राज्यों से पूर्ण हुई इस 7,500 किलोमीटर लंबी यात्रा का उद्देश्य देश में शांति एवं सद्भाव का विकास करना था।

आशा यात्रा को सफल बताते हुए श्री एम कहते हैं, "यह सिर्फ यात्रा नहीं थी। अभी हमें समाज में सुधार लाने की दिशा में बहुत कुछ करना है। यह पदयात्रा समाज में फैली असहिष्णुता और विभाजनकारी परिस्थितियों के मूल कारण को ढूंढ निकालने और उन्हें हटाकर देश की स्वाभाविक आध्यात्मिकता को पुनस्र्थापित करने का प्रयास है।"

असहिष्णुता के मुद्दे पर वह कहते हैं, "पहले किसी भी क्षेत्र में मुस्लिम नाम के साथ शोहरत एवं दौलत बटोरनी मुश्किल होती थी, लेकिन आजकल खान, अनवर, अली नाम से कुछ फर्क नहीं पड़ता। लोग आपको हाथों हाथ स्वीकार कर लेते हैं। इससे बड़ा सहिष्णुता का प्रतीक क्या हो सकता है।"

समाज सुधारकों और कार्यकर्ताओं के राजनीति में प्रवेश करने के चलन पर श्री एम ने कहा, "मैं एक आध्यात्मिक व्यक्ति हूं। अरविंद केजरीवाल की तरह राजनीति में प्रवेश का मेरा कोई इरादा नहीं है। मुझे समाज के लिए बहुत कुछ करना है।"

उनका हिंदू-मुसलमान भेदभाव पर अपना अलग ही अनुभव है। वह कहते हैं, "देश में विशेष रूप से कश्मीर में हिंदू-मुसलमान की जो खाई दिखाई जाती है, वह है नहीं। यह मेरा स्वयं का अनुभव है। कश्मीर में हिंदू-मुसलमान जिस तरह से रहते हैं, कोई जाकर देख ले तो यह भेदभाव की धारणा ही खत्म हो जाएगी।"

श्री एम आशा यात्रा के दूसरे चरण का खाका तैयार कर रहे हैं। अपनी इस पैदल यात्रा में देश के पूर्वी हिस्सों में जाने से वंचित रहने की वजह से वह कन्याकुमारी से कोहिमा तक की पैदल यात्रा पर काम कर रहे हैं।

इस संबंध में सभी स्वयंसेवियों के साथ नवंबर में बैठक होगी। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट अगले कुछ महीनों में बेंगलुरू में शुरू किया जाएगा।

--आईएएनएस

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Wednesday, 04 May 2016 00:00

सिंहस्थ कुंभ में धर्म गुरुओं ने दिया स्वच्छता पर जोर

उज्जैन, 4 मई (आईएएनएस)। देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के मकसद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता अभियान को मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ के दौरान विभिन्न धर्म गुरुओं का भी समर्थन मिला है। मंगलवार को 'सद्भावना संकल्प' कार्यक्रम के मंच पर आए तमाम धर्म गुरुओं ने एक सुर से शौचालय बनवाने पर बल देते हुए 'स्वच्छता क्रांति' लाने का आह्वान किया।

विभिन्न धर्मो के गुरुओं ने 'सद्भावना संकल्प' के जरिए 'स्वच्छता क्रांति' लाने का आह्वान किया और देश के नागरिकों से अपील की कि वे इस कार्य में जुट जाएं, ताकि भारत की स्वच्छता वैश्विक उदाहरण बन सके। उन्होंने पर्यावरण अनुकूल शौचालय के उपयोग पर बल दिया, ताकि हमारी भूमि और नदियों को खुले में शौच से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति दिलाई जा सके।

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि हम जैसा स्वप्न देखते हैं, दुनिया वैसी ही होती है और अब नए स्वप्न देखने का समय आ गया है, क्योंकि भारत में साफ पेयजल, स्वच्छता और सफाई के अभाव में प्रतिदिन 1,200 बच्चों की मौत होती है। हम इस स्थिति को बदल सकते हैं।

ग्लोबल इंटरफेथ वाश अलायंस (जीवा) द्वारा यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में पांच धर्मो के प्रतिनिधि एक मंच पर थे। इस मौके पर जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी ने कहा कि पानी सभी के जीवन की बुनियादी आवश्यकता है, लेकिन अभी धरती पर केवल 0.75 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। इसलिए जल का संरक्षण करना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।

ऑल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष इमाम उमर इलियासी ने वादा किया कि वे समाज में स्वास्थ्य, स्वच्छता और सफाई के इस महत्वपूर्ण संदेश के प्रचार-प्रसार के लिए देशभर के इमामों को एकजुट करेंगे। उन्होंने शिक्षित और स्वस्थ भारत बनाने तथा खुले में शौच से मुक्ति के लिए सभी धर्मों को एक साथ आने पर जोर दिया।

शिया प्रमुख मौलाना डॉ. सईद कल्बे सादिक ने कहा कि आज से हम इस स्वप्न को पूरा करने में जुट जाएं। देश को स्वच्छ बनाने का संकल्प हमारे दिल में होना चाहिए और हमारे कार्य इस संकल्प को हकीकत में बदलने वाले होने चाहिए।

जैन समाज के प्रतिनिधि आचार्य लोकेश मुनि ने आहवान किया कि अहिंसा और स्वच्छता साथ-साथ दिखाई देना चाहिए। हमारी अस्वच्छता प्रतिदिन अनेक मासूमों की मृत्यु का कारण बनती है। यह पीड़ा अब खत्म होनी चाहिए। यह बदलाव लाना अब हम सभी की जिम्मेदारी है।

जीवा महासचिव भगवती सरस्वती ने बताया कि जीवा की स्थापना इस सिद्धांत पर की गई कि एक धर्म गुरु होने के नाते हम सभी अपनी शांति की परिभाषा में यह भी शामिल करें कि सभी धर्मों के लोगों को साफ पेयजल, स्वच्छ वातावरण उपलब्ध हो।

यूनिसेफ भारत की वाश प्रभाग प्रमुख सू कोट्स ने कहा कि असुरक्षित पेयजल, अस्वच्छता और सफाई का अभाव डायरिया और निमोनिया जैसी बच्चों की बीमारियों के कारण हैं। ये बीमारियां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सबसे बड़े दुश्मन हैं।

यूनिसेफ भारत संचार प्रमुख केरोलीन डेन डल्कन ने कहा कि बाल जीवन बचाने के संकल्प में देश के प्रमुख धर्म गुरुओं के शामिल होने से देश में आज से एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है।

समापन सत्र को संबोधित करते हुए स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि उन्होंने पांच महाद्वीपों में मंदिर बनवाने में सहयोग किया है, लेकिन अब वे इस बात पर बल दे रहे हैं कि आइये, पहले हम शौचालय बनाएं। शौचालय के बिना मानव मल के कारण फैली बीमारियों से सशक्त इंसान भी बीमार और कमजोर हो जाता है।

--आईएएनएस

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Tuesday, 03 May 2016 00:00

स्वर्ण शर्ट पहनने वाले महाराष्ट्र के पारख का नाम गिनीज बुक में शामिल

कायद नजमी
नासिक (महाराष्ट्र), 3 मई (आईएएनएस)। 'द मैन विद द गोल्डन शर्ट' नाम से मशहूर महाराष्ट्र के मशहूर व्यवसायी और राजनेता पंकज पारख का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स (जीडब्ल्यूआर) में शामिल हो गया है।

पारख के नाम मंगलवार को जीडब्ल्यूआर सर्टिफिकेट जारी हुआ। जीडब्ल्यूआर में लिखा है कि 47 साल के पारख दुनिया की सबसे महंगी सोने की शर्ट पहनने वाले व्यक्ति हैं। इस शर्ट की कीमत एक अगस्त, 2014 को 98 लाख 35 हजार रुपये थी।

भावनात्मक पारख ने मंगलवार को आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा, "मुझे यकीन नहीं हो रहा है। मैं महाराष्ट्र के सुदूर इलाके से ताल्लुक रखने वाला छोटा व्यक्ति हूं। मुझे खुशी है कि मेरी इस सफलता ने मेरे गांव का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर दिया है।"

स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाले पारख ने गारमेंट फेब्रिकेशन व्यवसाय के माध्यम से अपनी किस्मत बनाई। वह नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के येयोला शहर के उपमेयर हैं। यह नासिक जिले का हिस्सा है।

पारेख को जिस शर्ट के लिए जीडब्ल्यूआर मिला है, उसका वजन 4.10 किलोग्राम है। आज की तारीख में इसकी कीमत 1.30 करोड़ रुपये है। इस शर्ट के साथ पारख के खजाने में एक स्वर्ण घड़ी, कई स्वर्ण चेन, कई अंगुठियां, एक स्वर्ण मोबाइल कवर और सोने की फ्रेम वाले चश्मे हैं। इन सबका वजन 10 किलोग्राम के करीब है।

पारख जब भी अपने पूरे स्वर्ण परिधान के साथ येयोला की सड़कों पर निकते हैं, उनके साथ एक लाइसेंसी रिवाल्वर होता है। पारख स्वीकार करते हैं कि येयोला के पुरुष व महिलाएं उन्हें घूरते हैं और किसी तरह की दिक्कत न हो, इसके लिए वह प्राइवेट सुरक्षाकर्मी लेकर चलते हैं।

पारख ने कहा, "मैंने इस खास सोने की शर्ट, जिसमें सात सोने के बटन हैं, को दो साल पहले अपने 45वें जन्मदिन पर तैयार किया था। स्कूल के दिनों से ही मुझे सोने से प्यार था और साल दर साल यह प्यार जुनून में तब्दील होता गया।"

पारख की इस शर्ट को बाफना डिजाइनर्स ने तैयार किया तथा इसे पूरी तरह तैयार करने में मुम्बई के परेल के शांति ज्वेलर्स ने भी अहम भूमिका अदा की।

इसे तैयार करने के लिए 20 कारीगरों ने दो महीनों में 3200 घंटों तक काम किया। इस शर्ट को तैयार करने के लिए 18-22 कैरेट सोने का इस्तेमाल हुआ।

पारख बताते हैं कि सोने का बना होने के बाद भी यह शर्ट पूरी तरह लचीला है। यह पहनने में काफी आरामदायक है। इसकी निचली सतह कपड़े की है। इससे यह शरीर में चिपकता नहीं और किसी तरह से नुकसान भी नहीं पहुंचाता। यह धोया भी जा सकता है और साथ ही इसे रिपेयर भी किया जा सकता है। इस शर्ट के निर्माण पर आजीवन गारंटी मिली है।

दो दशक पहले इसी पारख के पास स्कूल जाने के लिए पैसे नहीं थे। वह कक्षा 8 तक ही पढ़ाई कर सके और फिर येयोला में अपने परिवार के छोटे से कारोबार में शामिल हो गए।

साल 1982 में पारख ने अपना व्यवसाय शुरू किया और एक दशक बाद वह राजनीति में भी कूद गए। वह येयोला में म्यूनिसिपल काउंसलर चुने गए।

पारख कहते हैं, "25 साल पहले मेरी शादी हुई थी। मैं अपनी पत्नी से अधिक गहने पहनकर शादी के लिए गया था। दूसरों के लिए यह काफी अजीब सा दृश्य था।"

पारख की पत्नी प्रतिभा पूरे परिवार का ध्यान रखती हैं और वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दे रही हैं। उनके दो बच्चे-सिद्धार्थ (22) और राहुल (21) हैं।

परिवार की जरूरतों को पूरी करने के बाद पारख ने बचे हुए धन का उपयोग अपना शौक पूरा करने के लिए किया और इसी की बदौलत वह आज जीडब्ल्यूआर में शामिल हो सके हैं।

पारख का परिवार उनके इस शौक से इत्तेफाक नहीं रखता और इसे गैरजरूरी जुनून करार देता है और इसे एक लिहाज से नजरअंदाज भी करता है लेकिन उनके रिश्तेदार उन्हें झक्की करार देते हैं।

येयोला की पहचान पैठानी सिल्क साड़ियों के लिए है। साथ ही यहां की शालू और पिताम्बर साड़ियां भी काफी लोकप्रिय हैं। ये दो ब्रांड देश भर में लोकप्रिय हैं।

अमीर और लोकप्रिय होने के बाद भी पारख जमीन से जुड़े हैं। वह सबका ध्यान रखते हैं। वह कई तरह की सामाजिक व शैक्षणिक गतिविधियों में शामिल हैं।

--आईएएनएस





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Tuesday, 03 May 2016 00:00

बच्चों की देखभाल से जुड़े अनुभव ऑनलाइन साझा कर सकती हैं मांएं

गुड़गांव, 3 मई (आईएएनएस)। भारत में माताओं के लिए शुरू किए गए एक ऑनलाइन समुदाय 'माईसिटीफोरकिड्स' के जरिए अब माताएं शहरों में अन्य अभिभावकों के साथ अपने अभिभावकता के निजी अनुभव को साझा कर सकती हैं।

इससे अन्य अभिभावकों को उनके बच्चों की बेहतर रूप से देखरेख करने में मदद मिलेगी।

वेबसाइट पर 1000 ब्लॉगरों द्वारा 8000 कहानियां साझा करने के बाद एक नया अभियान 'हैशटैग 1000मम्स 8000 स्टोरीज' लांच किया गया।

'माइसिटीफॉरकिड्स' के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक विशाल गुप्ता ने अपने बयान में कहा, "हम अभिभावकता पर कई शहरों की 1000 महिलाओं द्वारा साझा किए गए उनके निजी अनुभव पाकर काफी खुश हैं। हमारे इस मंच के जरिए, हमने एक ऐसे समुदाय का निर्माण किया है, जिसमें महिलाएं अपने मातृत्व के अनुभव को अन्य महिलाओं के साथ साझा कर सकती हैं।"

उन्होंने कहा, "हम उन सभी माताओं को धन्यवाद देना चाहते हैं, जिन्होंने अपने निजी अनुभवों को अन्य अभिभावकों के साथ साझा किया।"

यह अभियान उन मांओं के लिए हैं, जो इस किरदार में आने वाली नई चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इससे उन्हें अभिभावक के तौर पर किए जाने वाले कामों को समझने और बेहतर तरीके से करने में मदद मिलेगी।

--आईएएनएस

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Monday, 02 May 2016 00:00

सिंहस्थ कुंभ : लक्ष्मी बने किन्नर अखाड़ा के पहले महामंडलेश्वर


उज्जैन, 2 मई (आईएएनएस)। उज्जैन में चल रहे सिहस्थ कुंभ में हिस्सा लेने आए किन्नर अखाड़ा का पहला महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को बनाया गया। सोमवार को विधि-विधान के साथ लक्ष्मी ने महामंडलेश्वर की पदवी ग्रहण की।

देश में साधु-संतों के 13 अखाड़े हैं, जिनमें किन्नर अखाड़ा शामिल नहीं है। इसके बावजूद किन्नर अपने अखाड़ों की ही तरह सिंहस्थ कुंभ में सुविधाएं दिए जाने की मांग करते रहे हैं, मगर वे इसमें सफल नहीं हुए हैं। इस बार के सिंहस्थ कुंभ में किन्नर अखाड़े को जमीन आवंटित की गई। इस अखाड़े ने अपनी शोभायात्रा भी निकाली थी।

किन्नर अखाड़ा के अजय दास ने सोमवार को संवाददाताओं को बताया कि उजड़खेड़ा क्षेत्र में स्थित अखाड़ा के शिविर में एक समारोह आयोजित कर लक्ष्मी को आचार्य महामंडलेश्वर की पूरे विधि-विधान के साथ पदवी ग्रहण कराई गई। उनके द्वारा अखाड़े की नियमावली और उद्देश्य तय किए जाएंगे। अखाड़ा के चार पीठाधीश्वर और चार महंतों का भी चयन किया गया है।

--आईएएनएस

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Monday, 02 May 2016 00:00

बुंदेलखंड में सूखे ने किसानों की कमर तोड़ी, गरीबी में किया बेटी का सौदा!

टीकमगढ़, 2 मई। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड में लोगों का जीना मुहाल हो गया है। आलम यह है कि कर्ज से दबे परिवार बच्चों तक का सौदा करने से नहीं हिचक रहे हैं, नया मामला टीकमगढ़ जिले का है।

यहां एक आदिवासी महिला ने कथित तौर पर अपनी नाबालिग बेटी का एक लाख रुपये में सौदा कर दिया, यह खुलासा किया है महिला के भाई और नाबालिग लड़की के मामा ने, जबकि महिला शादी करने की बात कह रही है। वहीं प्रशासन पूरे मामले की जांच करा रहा है।

मामला टीकमगढ़ जिले के देहात थाना क्षेत्र के मोहनपुरा गांव का है। यहां की आदिवासी महिला काशीबाई पर उसी के भाई गणेश ने आरोप लगाया है कि उसने (काशीबाई) अपनी नाबालिग 14 वर्षीय बेटी का सागर जिले के पिपरिया गांव के धर्मेद्र को एक लाख रुपये में बेचा है। इस सौदे में गांव के ही कुछ लोगों ने दलाल की भूमिका निभाई है।

गणेश ने संवाददाताओं को बताया कि उसकी बहन काशीबाई ने मकान बनाने सहित अन्य काम के लिए कर्ज ले रखा है, इसे चुकता करने के लिए उसने छठी कक्षा में पढ़ने वाली अपनी बेटी का एक लाख रुपये में सौदा किया है। वहीं महिला काशीबाई का कहना है कि उसने अपनी बेटी को बेचा नहीं है, बल्कि शादी की है।

टीकमगढ़ की जिलाधिकारी प्रियंका दास ने सोमवार को आईएएनएस को बताया कि यह मामला उनके भी संज्ञान में आया है। बच्ची का सौदा नहीं किया गया है, बल्कि उसकी मां शादी की बात कह रही है। महिला की बात मानी जाए तो उसने नाबालिग का विवाह किया है, बाल विवाह भी अपराध है और इसका भी प्रकरण बनेगा।

विधवा महिला की आर्थिक स्थिति को लेकर जिलाधिकारी दास का कहना है कि उसके पास गरीबी रेखा से नीचे का राशन कार्ड है, उसे नियमित राशन मिल रहा है और वह सरकार की सभी योजनाओं का लाभ ले रही है। उसके बावजूद प्रशासन मामले की जांच कर रहा है, वहीं पुलिस दल सागर जिले के पिपरिया गांव गया हुआ है।

ज्ञात हो कि इससे पहले भी बच्चों को गिरवी रखे जाने के मामले सामने आ चुके हैं। राजस्थान के मवेशी कारोबारियों के चंगुल से छूटकर दो बच्चे झांसी पहुंचे थे और उन्होंने खुलासा किया था कि उनके परिजनों ने मवेशी कारोबारियों के यहा मवेशी चराने के लिए गिरवी रखा था।

बुंदेलखंड में मध्यप्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिले आते हैं। इन सभी जिलों का एक जैसा हाल है, सूखे ने किसानों की कमर तोड़ दी है, सभी जलस्रोत सूख चुके हैं, लोग पीने का पानी कोसों दूर से लाने को विवश हैं। रोजगार मिल नहीं रहा है। यहां से बड़ी संख्या में लोग पलायन चुके हैं।

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Monday, 02 May 2016 00:00

बांग्लादेश : भारत के साथ साझा नियति और साझा इतिहास की यात्रा

रितु शर्मा
ढाका, 2 मई (आईएएनएस)। एक समय अभाज्य भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा रहे उन तमाम भूखंडों की साझा संस्कृति और साझा इतिहास के बारे में अधिक से अधिक जानने के लिए मैंने बांग्लादेश को चुना। यह मेरे लिए एक लिहाज से आसान चयन रहा।

आसान चयन इसलिए क्योंकि भारतीय सेना से मेरे परिवार के गहरे ताल्लुक के कारण मेरे लिए पाकिस्तान का वीजा हासिल करना मुमकिन नहीं था।

दोस्तों और परिजनों ने पाकिस्तान जाने को लेकर मुझे सवालिया निगाह से देखा और इसी कारण मैंने बांग्लादेश के वीजा के लिए आवेदन दिया। मुझसे सबसे पहले यह सवाल किया गया-बांग्लादेश क्यों?

मैंने कहा, "पर्यटन।"। वीजा अधिकारी मेरे जवाब से पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखा लेकिन इसके बावजूद उसने मेरा वीजा पास कर दिया।

साल 2015 में शुरू अगरतला-ढाका बस सेवा को प्रतिदिन चलना था लेकिन यात्रियों की कम संख्या को देखते हुए इसे सप्ताह में तीन दिन चलाने का फैसला किया गया।

मैंने भूमार्ग से ढाका में प्रवेश करना का फैसला किया। इससे मुझे यहां की गर्मी के साथ तालमेल बनाने में मदद मिली। मैंने सीमा को पैदल ही पार किया।

भारत-बांग्लादेश सीमा वाघा बार्डर की तरह नहीं है। यहां सबकुछ शांत रहता है। मैंने बांग्लादेश में प्रवेश किया तो यह मुझे काफी हद तक भारत जैसा लगा।

मैंने आखौरा के लिए एक सीएनजी पकड़ी। बांग्लादेश में ऑटो रिक्शा को सीएनजी कहा जाता है। आखौरा से मैं बस से ढाका के लिए रवाना हुई।

मेरी 'प्रथम श्रेणी बस' में गर्मी और उमस का बोलबाला था। अगले दो दिन ढाका में बीते और ये किसी बुरे सपने की तरह रहे। यहां मेरा सामना जाने-पहचाने ट्रैफिक जाम से भी हुआ।

किसी तरह से मैं सोनारगांव (गोल्डन सिटी) जाने में सफल रही। यह ब्रिटिश काल में प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र हुआ करता था और इसका जिक्र इब्न-ए-बतूता और राल्फ फिच के यात्रा वृतांतो में भी मिलता है।

गोल्डन सिटी में ही पनामा सिटी है, जो यूरोपीय वास्तुशिल्प के प्रेरित 52 महलों से घिरा हुआ है। इनका निर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ था। यहां कभी हिंदु कपड़ों के व्यापारी रहा करते थे।

आज लेकिन इस परिसर में शांति है और अधिकांश महलों में ताला लगा है। वर्ल्ड मान्यूमेंट फंड ने इसे 100 सबसे लुप्तप्राय स्थलों में शामिल कर रखा है।

इसके बाद मैंने लिबरेश्न वॉर म्यूजियम का रुख किया और इसके माध्यम से मैंने देखा कि किस तरह बांग्लादेश ने अपना स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और किस तरह से भारतीय सेना ने 'मुक्ति वाहिनी' नाम से मशहूर बांग्लादेश लिबरेशन आर्मी के साथ मिलकर 1971 में इस देश को स्वतंत्र कराया।

इस म्यूजियम का रखरखाव अच्छा नहीं है लेकिन इतिहास को संजोने की चाह में बांग्लादेश अब एक नया म्यूजियम बनवा रहा है।

अब मैंने देश के उत्तरपूर्व में स्थित सुंदर शहर सिल्हेत का रुख किया। यह पर्वतीय इलाका चाय के बागानों से घिरा है। इस शहर से बड़ी संख्या में बांग्लादेश विदेश गए हैं और वहीं रह रहे हैं। साथ ही ये इस देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान भी दे रहे हैं।

धार्मिक तौर पर यह शहर मुझे विविधता से भरा लगा। इस शहर में कई काली माता के कई मंदिर हैं और यहां की सड़कों पर काली माता और शंकर भगवान की मूर्तियां बेचते हुए देखी जा सकती हैं।

मैं ऐसे ही एक मंदिर में गई, जो किसी बख्तरबंद बंकर की तरह लगा। मुझे तुरंत अजनबी के तौर पर पहचान लिया गया। कुछ सवालात के बाद मुझे मुख्य पुजारी के कमरे में जाने की इजाजत मिल गई।

पुजारी ने कहा, "जब 1992 में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, जब हमारे मंदिर को भी जमींदोज कर दिया गया था। इस दौरान कई हिंदु भी मारे गए थे। हमने पैसे जमा करके फिर से इस मंदिर को बनाया। यहां लगे मजबूत राड इसकी सुरक्षा के लिए हैं।"

पुजारी ने कहा, "यहां रहने वाले हिंदु और मुसलमानों को हिंदी धारावाहिक और सिनेमा पसंद हैं लेकिन भारत में जब भी कुछ होता है तो उसका असर यहां भी दिखता है।"

धार्मिक और सामाजिक आधार पर भारत तथा बांग्लादेश काफी हक तक एक दूसरे से जुड़े हैं और आधुनिकता की दौड़ में भी दोनो ने एक साथ कदम बढ़ाया है।

बच्चु नाम के एक युवा ने कहा कि भारत में जब भी कोई दंगा होता है और किसी प्रकार का फसाद होता है तो यहां हिंदुओं को निशाना बनाया जाता है।

एक मुख्य पर्यटन केंद्र होने के अलावा सिल्हेत 1971 के वॉर थिएटर का हिस्सा था। इस साल भारतीय वायु सेना ने यहीं से पहला हेलीबार्न ऑपरेशन किया था। यही वह स्थान है, जहां सिल्हेत की लड़ाई में गोरखा राइफल्स ने भारतीय सेना के लिए जंग जीती थी।

बांग्लादेश की मेरी यात्रा इतिहास के गरियारों में झांकने जैसा है। मैंने महसूस किया कि दोनों देश एक अदृश्य किंतु मजबूत धागे से बंधे हैं। दोनों देश एक दूसरे का हवाला देकर खुद को बयां करने की कोशिश करते हैं।

ढाका में बंगाली नया साल मनाने के बाद मैंने हिलसा का आनंद लिया और फिर इस देश को अलविदा कहा। मैं यहां दोबारा आना चाहूंगी।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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