मोदी ने दी दुनिया के मुसलमानों को रमजान की बधाई
हेरात(अफगानिस्तान), 4 जून (आईएएनएस)। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को दुनिया भर के एक अरब 70 करोड़ मुसलमानों को रमजान की हार्दिक बधाई दी। महीने भर का रोजा रखने वाले रमजान के इस पवित्र माह की शुरुआत अगले हफ्ते होने जा रही है।
अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर में अंग्रेजी में भाषण के अंत में मोदी ने हिन्दी में कहा, "अफगानिस्तान की जनता एवं दुनिया भर के तमाम मुसलमानों को पवित्र रमजान महीने की हार्दिक बधाई।"
मोदी की रमजान की यह बधाई मुसलमानों के पवित्र माह के सात या आठ जून से शुभारंभ होने के कुछ दिन पहले ही आया है। इसकी शुरुआत की तारीख नए चांद के दिखाई देने से तय होगी।
रमजान मुसलमानों के लिए वह समय होता है जब वे आत्म शुद्धि एवं अल्लाह के करीब जाने के लिए सुबह से शाम तक भूखे रहते हैं। रमजान के अंत में वे ईद-उल-फितर मनाते हैं। यह मुसलमानों के सबसे बड़े त्यौहारों में एक माना जाता है।
अपने पहले साल के शासन के दौरान मोदी को विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ा था क्योंकि उन्होंने वर्ष 2014 में ईद-उल-फितर की बधाई नहीं दी थी। तब उन्होंने नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा की थी।
प्रधानमंत्री मोदी भारत द्वारा हेरात में बनाए गए बांध के उद्घाटन समारोह में भाग लेने शनिवार को अफगानिस्तान के तूफानी दौरे पर आए थे। हेरात मशहूर पारसी सूफी संत मौलाना जामी के लिए भी जाना जाता है।
मोदी ने भारत-अफगानिस्तान के मजबूत रिश्ते का उल्लेख करते हुए अपने भाषण में जामी का भी उल्लेख किया।
--आईएएनएस
अमरनाथ यात्रा पर हमले की साजिश : बीएसएफ
बीएसएफ के महानिदेशक के.के. शर्मा ने शनिवार को कहा कि खुफिया जानकारी के अनुसार, आतंकवादियों ने जम्मू एवं कश्मीर में आगामी अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाकर हमले की साजिश की है।
बिजबेहरा में शुक्रवार को आतंकवादियों के हमले में शहीद तीन जवानों को पुष्पचक्र अर्पित करने के बाद शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, "हमारे काफिले पर कल (शुक्रवार) अचानक हमला हुआ, यह अप्रत्याशित था, इसलिए हमें नुकसान उठाना पड़ा।"
उन्होंने कहा, "ऐसी खुफिया रिपोर्ट है कि आतंकवादियों ने आगामी अमरनाथ यात्रा पर हमले की योजना बनाई है, लेकिन हमने इस साल की यात्रा के मद्देनजर पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए हैं।"
जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी शहीद जवानों के ताबूतों पर पुष्पचक्र अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
--आईएएनएस
चीन : श्वेत पत्र में धार्मिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप पर ऐतराज
चीन के राज्य परिषद के सूचना कार्यालय द्वारा प्रकाशित 'फ्रीडम ऑफ रिलिजियस बिलीफ इन शिनजियांग' नामक श्वेत पत्र के मुताबिक, "चीन के धार्मिक आयोजन स्वयं के धार्मिक समूहों, सदस्यों और नागरिकों द्वारा संचालित किए जाते हैं। देश के धार्मिक मसले और संगठन किसी भी विदेशी प्रभुत्व के अधीन नहीं हैं।"
पत्र के अनुसार, चीनी क्षेत्र के भीतर धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के दौरान विदेशियों को चीनी कानूनों और नियमों का पालन करना चाहिए और चीन के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
पत्र में कहा गया है कि एक प्रांतीय स्तर के प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में शिनजियांग अपने धार्मिक मामलों के संदर्भ में स्वतंत्रता और आत्म प्रबंधन के सिद्धांत को लेकर पूरी तरह सख्त है।
--आईएएनएस
थाई मंदिर के खिलाफ जानवरों की तस्करी के नए सबूत
खालों की बरामदगी के अलावा राष्ट्रीय उद्यान संरक्षण विभाग (एनपीसीडी) के सदस्य सोमवार से ही मंदिर की भी जांच कर रहे हैं। उन्होंने सैकड़ों ताबीज बरामद किए हैं जिनमें कहा जा रहा है कि बाघों की हड्डियों एवं दांत के अवशेष मिले हैं।
एफे न्यूज के अनुसार, बुधवार को अधिकारियों ने एक फ्रीजर से बाघ के 40 शावकों के शव बरामद किए थे। ये मात्र एक या दो दिन के थे।
इन शावकों के बारे में वन पशुओं के रजिस्टर में कोई रिकार्ड दर्ज नहीं है। मंदिर के लिए कानून के मुताबिक ऐसा करना जरूरी है। इसका अर्थ यह हुआ कि संरक्षण विभाग अन्य संभावित अपराधों सहित इन्हें गैरकानूनी तरीके से रखने का भी आरोप लगाएगा।
थाई प्रशासन ने सोमवार को कंचनाबरी प्रांत के फा लांग ता बुआ यानासामपन्न मंदिर से 137 बाघों का बचाव शुरू किया है। बाघों की वजह से इस मंदिर को 'टाइगर टेंपल' के नाम से भी जाना जाता है।
यह मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। पर्यटक यहां बाघों के आसपास चहलकदमी कर सकते हैं और बाघों के साथ तस्वीरें ले सकते हैं। ये बाघ दवा के प्रभाव में सुस्त नजर आते हैं। यह उन कारणों में से एक है, जिनकी वजह से पशु अधिकार समूह उद्यान की वर्षो से आलोचना करते रहे हैं।
एक स्थानीय दैनिक खाव सोद के अनुसार, "इस बीच मंदिर प्रबंधन ने अधिकारियों के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि बाघों को वहां से हटाने और दूसरे स्थान पर रखने की यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलेगी। हालांकि, मंगलवार तक इनमें से 40 को बचाया जा चुका है।"
छापे के दौरान जानवरों की आंत एवं शरीर के अन्य हिस्सों के भरे डिब्बे मिले हैं। यदि इन्हें हाल का पाया जाता है तो यह वन्यजीव कार्यकर्ताओं के आरोपों की यह और पुष्टि करेगा।
कुछ पशु अधिकार संगठनों ने दावा किया है कि जब बाघ पर्यटकों के साथ होते थे तो लगता था कि उन्हें शांत करने के लिए दवा दी गई है। उनका मंदिर पर आरोप है कि पशुओं की अवैध तस्करी को छुपाने के लिए ये बाघ महज मुखौटा हैं। लेकिन, मंदिर प्रशासन इन सभी आरोपों को गलत बताता रहा है।
इन बाघों में कुछ ऐसे हैं जो थाईलैंड के नहीं हैं। उन्हें देश के वन्यजीव आश्रय स्थलों में ले जाया जाएगा।
छापामारी के बाद से ही मंदिर को जनता के लिए बंद कर दिया गया है।
--आईएएनएस
माचिस की डिब्बियों पर भगवान शिव, देवी काली!
एम.आर. नारायणस्वामी
नई दिल्ली, 2 जून (आईएएनएस)। क्या कभी माचिस की डिब्बियों पर भगवान शिव, विष्णु और हनुमान या देवी काली तथा देवी सरस्वती को देखा है? और वह भी ऑस्ट्रिया, स्वीडन तथा जापान में बनी माचिस की डिब्बियों पर?
भारतीय बाजारों में जब पिछली सदी की शुरुआत में माचिस की डिब्बियां उतरीं तो इनके लेबल ऐसे चित्रों एवं रंगों के होते थे, जो सामान्य भारतीय को आकर्षित कर सके।
तब से भारत में निर्मित और आयातित माचिस की डिब्बियों के हजारों आकर्षक लेबल की प्रदर्शनी यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लगाई गई है, जो पिछले एक सदी के इसके समृद्ध इतिहास को दर्शाते हैं।
माचिस की डिब्बियों का संग्रह करने के शौकीन पेशे से वास्तुविद गौतम हेमेडी (59) के अनुसार, "स्वीडन माचिस का डिब्बियों का सबसे बड़ा निर्माता है।"
जनवरी 2012 से माचिस की डिब्बियां जुटाने वाले गौतम अब तक इसका एक बड़ा संग्रह तैयार कर चुके हैं।
उनके अनुसार, ऑस्ट्रिया और जापान के साथ-साथ स्वीडन को माचिस की डिब्बियां बनाने में महारत हासिल है और इसके पास इससे संबंधित समृद्ध प्रौद्योगिकी भी है। भारत इस संबंध में एक आकर्षक बाजार रहा है, जहां इसकी खूब मांग रही है, जबकि निर्माण न के बराबर।
ऑस्ट्रिया से माचिस की डिब्बियों का सबसे पहले आयात करने वालों में कलकत्ता (अब कोलकाता) की भारतीय कंपनी ए.एम. एसभोय शमिल है।
गौतम ने आईएएनएस को बताया कि शुरुआती माचिस की डिब्बियों के निर्माण पर एक पैसे की लागत आती थी। बहुत से गैर-धार्मिक लेबल थे, जैसे-घड़ी, तीन बाघ, गाय का सिर, हाथी, दो हिरण, कुल्हाड़ी, कैंची, लैंप, घोड़ा, विमान, चाय का कप और चाबी।
बाद में हालांकि स्वीडन, ऑस्ट्रिया और जापान की कंपनियों को लगा कि भारतीय खरीदारों को धार्मिक प्रतीक चिह्नें के माध्यम से अधिक लुभाया जा सकता है।
इसके बाद स्वीडन निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर हिन्दू देवी-देवताओं लक्ष्मी, गायत्री, दुर्गा, विष्णु, त्रिमूर्ति, गणेश, लव-कुश और कृष्ण के नहाने गईं गोपियों के कपड़े चुराकर पेड़ों पर बैठे चित्र उकेरे जाने लगे।
वहीं, जापानी माचिस की डिब्बियों पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और काली के चित्र बनाए जाने लगे।
ऑस्ट्रिया भी इसमें पीछे नहीं रहा और यहां निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर भी हनुमान तथा लक्ष्मी के चित्र बनाए जाने लगे।
जब भारत में माचिस की डिब्बियों का निर्माण होने लगा तो धार्मिक लेबल का चलन और बढ़ा। अब इन पर कृष्ण और राधा, नटराज, शिवलिंग, नंदी, देवी दुर्गा, शिव और गणेश तथा कृष्ण के बाल्यावस्था तथा अन्य धार्मिक चित्रों को उकेरा जाने लगा।
भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान माचिस की डिब्बियों पर राष्ट्रवादी लेबल भी खूब देखे गए। इस दौरान माचिस की डिब्बियों पर अशोक स्तंभ, अशोक चक्र, अविभाजित भारत के मानचित्र के साथ-साथ 'आजादी की सुबह', 'स्वतंत्र भारत' तथा 'जय हिंद' जैसे नारे भी लिखे दिखे।
माचिस की डिब्बियों पर महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शिवाजी, भगत सिंह, गोपाल कृष्ण गोखले तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू के चित्र भी उकेरे गए, जिनमें से कुछ संयोग से जापान में बने थे।
माचिस की डिब्बियों पर मैसूर, बड़ौदा, त्रावणकोर, ग्वालियर, जम्मू एवं कश्मीर, अलवर, बीकानेर, धार, इंदौर, जयपुर तथा पटियाला के तत्कालीन राजाओं के चित्र भी बनाए गए थे।
ऑस्ट्रिया निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर इस रूप में भारत की झलक भी देखने को मिलती थी कि इसमें लालकिला तथा आगरा के किले सहित देशभर के कई महत्वपूर्ण स्थलों को चित्रों के जरिये दर्शाया गया।
आजादी के बाद भारत सरकार ने परिवार नियोजन तथा बचत के महत्व से संबंधित संदेशों के प्रसार के लिए माचिस की डिब्बियों के लेबल का इस्तेमाल किया। निजी कंपनियों को भी अपने उत्पादों के प्रचार के लिए माचिस की डिब्बियां एक सस्ता संसाधन जान पड़ी।
गौतम यूं तो आठ साल की उम्र से ही माचिस की डिब्बियों के लेबल जुटाना चाहते थे, लेकिन यह 2012 से ही संभव हो पाया, जब उन्होंने कुछ संग्रहों को खरीदने का निर्णय लिया।
आज उनके पास दियासलाई उद्योग के करीब 25,000 लेबल, रैपर और कार्डबोर्ड हैं। यह उनकी पहली प्रदर्शनी है, जो शुक्रवार को समाप्त हो रही है।
हालांकि आज भारत में माचिस की डिब्बियों के लेबल बहुत ही नीरस और फीके हो रहे हैं। इस बारे में गौतम का कहना है, "आज भारत में दियासलाई उद्योग मुख्य रूप से तमिलनाडु में ही रह गया है। संबंधित उद्योग जगत रंगीन डिजाइनों पर बहुत ध्यान नहीं दे रहा है, क्योंकि इस पर लागत अधिक आती है, जबकि अधिकांश माचिस की डिब्बियां केवल एक रुपये में बिकती हैं।"
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत से निर्यात होने वाली माचिस की डिबियों का स्वरूप बिल्कुल अलग होता है और ये बहुत आकर्षक होती हैं।
--आईएएनएस
कैलाश यात्रा के लिए नेपाल के रास्ते से बचने को कहा
दूतावास ने एक बयान में कहा, "चूंकि आने वाले हफ्तों में मौसम की स्थिति और खराब होने वाली है, इसलिए भारतीय नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे कैलाश पर्वत और पवित्र मानसरोवर झील तक जाने के लिए नेपालगंज-सिमिकोट-हिलसा मार्ग से परहेज करें।"
नेपालगंज-सिमिकोट-हिलसा मार्ग को कठिन माना जाता है, लेकिन बहुत सारे भारतीय चीन की सीमा के करीब इसी खतरनाक मार्ग को प्राथमिकता देते हैं।
बड़ी संख्या में भारतीय नेपालगंज-सिमिकोट-हिलसा मार्ग से होकर कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए अपने स्तर से व्यवस्था करते हैं।
दूतावास ने कहा कि खराब मौसम की वजह से काफी लोग हिलसा और सिमिकोट में ठहरने और खाने की समस्या का सामना करते हैं।
मौसम बहुत खराब रहने की वजह से हिलसा से सिमिकोट हेलीकॉप्टर से और सिमिकोट से नेपालगंज विमान से लोगों को निकालकर ले जाना संभव नहीं हो पाता।
केवल इसी हफ्ते 500 से अधिक भारतीय हिलसा और सिमिकोट में फंस गए थे और अधिकारियों को उन्हें वहां से निकालने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
इन सभी तीर्थ यात्रियों को निजी भारतीय टूर आपरेटर लाए थे और उन्हीं ने उनकी यात्रा एवं रहने खाने का इंतजाम किया था।
इनमें से अधिकतर को हिलसा-सिमिकोट इलाके से नेपाली सुरक्षा अधिकारियों की मदद से हवाई मार्ग से निकाला गया।
भारतीय दूतावास ने कहा है कि नेपाल सरकार और यात्रा संचालकों की सहायता से तीर्थयात्रियों को हिलसा से सिमिकोट और सिमिकोट से नेपालगंज से समय से बाहर निकालने की हर संभव व्यवस्था की जा रही है।
हालांकि, खराब मौसम नियमित हवाई सेवा में बाधा डाल रहा है, इस वजह से हिलसा और सिमिकोट में जो लोग फंसे हैं उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
हर साल कैलाश-मानसरोवर यात्रा जून से सितंबर तक होती है।
भारतीय विदेश मंत्रालय तीर्थयात्रियों को दो मार्गो से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर भेजता है। ये हैं उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होकर जो 25 दिन की यात्रा है और सिक्किम के नाथु ला से होकर जो यात्रा 23 दिन में पूरी होती है।
--आईएएनएस
उप्र सरकार की अगली समाजवादी श्रवण यात्रा महाकालेश्वर, ओमकालेश्वर की
प्रमुख सचिव (धर्मार्थ कार्य) नवनीत सहगल की तरफ से जारी शासनादेश के अनुसार, यह यात्रा आगामी 20 जून से शुरू होगी और 23 जून को इसकी वापसी होगी। यात्रा के लिए इच्छुक यात्री बेवसाइट पर अपना आवेदन सभी सम्बन्धित व वांछित अभिलेखों सहित 10 जून तक अपलोड कर सकते हैं।
शासनादेश के अनुसार, यात्री अपना आवेदन मूल रूप में सभी संबंधित व वांछित अभिलेखों सहित अपने जिले के जिलाधिकारी को भी 10 जून तक उपलब्ध करा सकते हैं।
सहगल ने कहा कि इस यात्रा में तैयार की गई सूची में से यात्रियों का चयन उनकी जन्मतिथि के अनुसार वरिष्ठता के आधार पर तथा पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा। ट्रेन में कुल 1044 यात्रियों के लिए बर्थ आरक्षित रहेगी। यह यात्रा आईआरसीटीसी द्वारा सम्पन्न कराई जा रही है। यात्रा के दौरान आईआरसीटीसी द्वारा प्रत्येक यात्री का यात्रा दुर्घटना बीमा कराया जाएगा।
सहगल के अनुसार, विभिन्न जनपदों से लखनऊ तक यात्रियों के आने-जाने के लिए राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा निशुल्क व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा तीर्थयात्रियों को रहने, नाश्ता, चाय, दोपहर का खाना, शाम की चाय एवं रात के खाने की व्यवस्था भी निशुल्क कराई जाएगी। इस यात्रा का लाभ वरिष्ठ नागरिकों को केवल एक बार दिया जाएगा।
-- आईएएनएस
उत्तराखंड की पहचान है गायत्री परिवार : मुख्यमंत्री
रावत ने कहा कि गायत्री परिवार धार्मिक, सामााजिक कार्यक्रमों के साथ ही सेवा की जो गतिविधियां संचालित करता है, उससे पूरे समाज को प्रेरणा लेनी चाहिए।
रावत गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में तीन दिवसीय प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। शिविर में पंजाब, राजस्थान, उत्तराखण्ड, मप्र, हरियाणा के 500 से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाएं हिस्सा ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आज सबसे बड़ा काम जनमानस को संस्कारिक करने का है, जो भासंज्ञाप के माध्यम से अच्छे ढंग से हो रहा है। उन्होंने कहा कि शांतिकुंज ने अपने गुरु पूज्य आचार्यश्री के कार्यो को गति देते हुए जो लकीरें खीचीं है, वह एवरेस्ट जैसा है।
इस अवसर पर गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा, "हमारे देश की संस्कृति संस्कारयुक्त कृति है, जो मानव को महामानव बनाने वाली है। यही संस्कृति सदगुणों की खेती करना सिखाती है।" उन्होंने कहा कि जिस तरह विज्ञान और आध्यात्म के मिलने से श्रेष्ठ युग आता है, उसी तरह संस्कृति और सभ्यता के मिलन से समग्र मानव का निर्माण होता है।
पंड्या ने कहा, "1994 में कुछ हजार विद्यार्थियों के साथ आरंभ हुए इस अभियान में 2015 में करीब 48 लाख विद्यार्थियों तक पहुंचाने में सफलता मिली। गत वर्ष में यह परीक्षा देश के 18 राज्यों में आयोजित हुई।"
इस दौरान डॉ. पण्ड्या ने मुख्यमंत्री रावत को स्मृति चिह्न् एवं युग साहित्य भेंटकर उन्हें सम्मानित किया। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. बृजमोहन गौड़ ने किया।
-- आईएएनएस
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर जल्दबाजी में फैसला नहीं : सुरेंद्रन
सुरेंद्रन ने यहां संवाददाताओं से कहा कि वर्तमान में इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है।
उन्होंने कहा, "मामला न्यायालय के समक्ष है और कोई फैसला लेने की हमें जल्दबाजी नहीं है। हम संबंधित सभी पक्षों को विश्वास में लेंगे और तब सोच-विचारकर फैसला लेंगे।"
सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी महीने में दिए अपने फैसले में कहा था कि सिवाय किसी धार्मिक आधार के, कोई मंदिर महिला श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगा सकता।
न्यायालय ने केरल सरकार को उस याचिका पर एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा था, जिसमें सबरीमाला अयप्पा मंदिर में 10-50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की प्रथा को चुनौती दी गई थी।
राज्य की पिछली सरकार ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी का बचाव करते हुए कहा था कि श्रद्धालुओं के विश्वास व रिवाज को एक न्यायिक प्रक्रिया से नहीं बदला जा सकता और धार्मिक मामलों में पुजारियों की राय अंतिम होगी।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) सरकार ने मुद्दे पर पिछली सरकार के रुख का विरोध किया था। लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार ने 2007 में हलफनामे में कहा था, "महिलाओं के एक तबके पर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी लगाना सही नहीं है।"
अब एलडीएफ की सरकार वापस आ चुकी है, लेकिन वह इस मुद्दे पर अपने पिछले रुख को दोहराने की जल्दबाजी में नहीं है।
सुरेंद्रन ने कहा, "यह हो सकता है कि वाम मोर्चे की सरकार (2006-11) ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सहमति जताई हो, लेकिन आज हम 2016 में हैं और हमें लगता है कि जल्दबाजी में कोई फैसला लेने की जरूरत नहीं है।"
--आईएएनएस
गर्भनिरोधकों से दूर रहें मुसलमान : एर्दोगन
समाचार एजेंसी 'एफे' ने एर्दोगन के हवाले से बताया, "मैं स्पष्ट रूप से कह रहा हूं। हम अपनी आगामी पीढ़ी की संख्या बढ़ाएंगे। किसी भी मुसलमान परिवार को आबादी नियोजन और जन्म नियंत्रण जैसी गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए।"
तुर्की के युवा एवं शिक्षा फाउंडेशन को संबोधित करते हुए एर्दोगन ने कहा, "हम उस मार्ग का अनुसरण करेंगे जिसे मेरे अल्लाह और प्यारे मुहम्मद ने दिखाया है।"
तुर्की के राष्ट्रपति ने कई मौकों पर गर्भपात को हत्या करार दिया है।
--आईएएनएस
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