गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में 24 दोषी, 36 बरी, जाकिया ने कहा 'अधूरा न्याय'
दर्शन देसाई
अहमदाबाद, 2 जून (आईएएनएस)। अहमदाबाद की एक विशेष सत्र अदालत ने गुरुवार को 14 साल पुराने गुलबर्ग सोसाइटी में 69 लोगों के सामूहिक हत्याकांड में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता अतुल वैद्य सहित 24 लोगों को दोषी करार दिया। इस नरसंहार के शिकार कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी ने इसे 'अधूरा न्याय' बताया है।
विशेष सत्र अदालत के न्यायाधीश पी.बी. देसाई ने 66 आरोपियों में से 36 को बरी कर दिया।
जाकिया जाफरी इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले गई थीं। उन्होंने इस फैसले पर दुख जताते हुए कहा है कि यह 'अधूरा न्याय' है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ वे गुजरात उच्च न्यायालय में अपील करेंगी।
अदालत ने 24 आरोपियों को दोषी करार दिया जिसमें से 11 पर धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया गया, जबकि 13 अन्य आरोपियों को कम अपराध का दोषी पाया गया। अतुल वैद्य को धारा 436 के तहत अन्य आरोपियों के साथ घरों और दुकानों को जलाने तथा हमला करने के कम अपराध का दोषी करार दिया गया। कांग्रेस के पूर्व पार्षद मेह सिंह चौधरी भी दोषियों में शामिल हैं।
जिन आरोपियों को बरी किया गया, उनमें भारतीय जनता पार्टी के पार्षद बिपिन पटेल और मेघानिननगर के पुलिस निरीक्षक के. जी. एर्दा का नाम शामिल है। उन्होंने ही इस मामले में पहली एफआईआर दर्ज की थी, लेकिन बाद में कर्तव्य में लापरवाही के आरोप में उन्हें भी आरोपियों में शामिल किया गया।
पटेल असारवा वार्ड के वर्तमान पार्षद हैं। वे 2002 में भी पार्षद थे, जब यह हत्याकांड हुआ।
27 फरवरी 2002 को हिन्दू श्रद्धालु मुसाफिरों से भरी साबरमती ट्रेन को गोधरा स्टेशन के नजदीक आग के हवाले कर दिया गया जिसमें 59 मुसाफिरों की मौत हो गई। इसके एक दिन बाद ही गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार को अंजाम दिया गया।
पटेल ने 2015 में लगातार चौथी बार पार्षद का चुनाव जीता था।
अदालत ने इस मामले में अभियोजन पक्ष के साजिश के आरोप को खारिज कर दिया।
बचाव दल के वकीलों में से एक अभय भारद्वाज ने बताया, "अदालत ने हमारे साजिश नहीं होने के तर्क को स्वीकार किया। यही कारण है कि उन्होंने अभियोजन पक्ष के साजिश के आरोप को खारिज किया। न्यायाधीश ने कहा कि इसमें कोई साजिश नहीं थी। उन्होंने अभियोजन पक्ष से कहा कि वे सबको साथ में न जोड़े और एक-एक आरोपी के बारे में बताएं कि किसने क्या किया। इस तरह अभियोजन पक्ष का साजिश का आरोप खारिज हो गया।"
28 फरवरी, 2002 में अहमदाबाद शहर के मेघानीनगर इलाके में गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी को हथियारबंद भीड़ ने दिनदहाड़े आग लगा दी थी, जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की मौत हो गई थी। सोसाइटी में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते थे।
आगजनी की इस घटना के बाद सोसाइटी के अंदर से 39 जले शव बरामद हुए थे, जबकि घटना के बाद से लापता अन्य 30 लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) ने घटना के 12 साल बाद मृत घोषित कर दिया। इन 30 लोगों का उस दिन के बाद कभी कोई सुराग नहीं लगा।
अदालत दोषियों को छह जून को सजा सुनाएगी।
दोषी ठहराए गए 24 में से 11 लोगों को अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया और अन्य 13 को इससे कमतर अपराधों का दोषी पाया।
सभी 60 आरोपी सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद थे, जबकि उनके परिजन बड़ी संख्या में अदालत परिसर में एकत्रित थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल 22 फरवरी को विशेष सत्र अदालत को गुलबर्ग सोयाइटी संहार मामले में तीन माह के अंदर अपना फैसला सुनाने का निर्देश दिया था, जिसके बाद सत्र अदालत ने नियमित आधार पर मामले में सुनवाई की।
गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए नौ प्रमुख मामलों में से एक है, जिनकी जांच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एसआईटी ने की।
एसआईटी ने इस मामले में 66 लोगों को आरोपी बनाया था। इनमें से नौ पिछले 14 वर्षो से जेल में हैं, बाकी जमानत पर जेल से बाहर हैं।
कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने गुरुवार को कहा कि वह गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड मामले में अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा कि विशेष अदालत द्वारा बरी किए गए कई लोग साल 2002 में हुए दंगे में शामिल थे।
जाफरी ने कहा कि वह गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगी।
अहमदाबाद में संवाददाताओं से जाफरी ने कहा, "हम अंतिम सांस तक मुकदमा लड़ेंगे।"
उनके पास बचे विकल्प के बारे में पूछे जाने पर जाफरी ने कहा, "तीस्ता सीतलवाड़ तथा दिल्ली के एक मशहूर वकील के साथ मिलकर इस मुकदमे को लड़ना जारी रखेंगे।"
जाफरी ने यह भी कहा कि एक पार्टी के रूप में कांग्रेस ने मामले में कभी हस्तक्षेप नहीं किया।
--आईएएनएस
गुलबर्ग दंगे में अदालत का फैसला 'अधूरा न्याय' : जकिया जाफरी
अहमदाबाद, 2 जून (आईएएनएस)। कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने गुरुवार को गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड मामले में विशेष अदालत के फैसले को 'अधूरा न्याय' करार दिया। उन्होंने कहा कि आरोपियों के बरी किए जाने के खिलाफ वह उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगी।
जकिया ने कहा कि वह मामले की विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच से संतुष्ट नहीं हैं और फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगी। लेकिन, दंगे में जिंदा बचे लोगों के वकील एस. एम. वोरा ने कहा कि वे अदालत के फैसले से संतुष्ट हैं।
वोरा ने संवाददाताओं से कहा कि फैसले पर जकिया की प्रतिक्रिया उनकी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया है।
उन्होंने कहा, "जहां तक मैं समझता हूं, मैं अदालत के फैसले से संतुष्ट हूं। अदालत ने 24 लोगों को दोषी ठहराया है। इनमें से 11 लोगों को धारा 302 के तहत हत्या के लिए तथा अन्य 13 को मामूली धाराओं के तहत दोषी ठहराया है।"
वोरा ने कहा, "हम अदालत से फैसले पर फिर से विचार करने तथा जिन 13 लोगों को मामूली आरोपों के तहत दोषी ठहराया गया है, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देने के अनुरोध करने पर विचार कर रहे हैं। मैं हालांकि यह नहीं कह सकता कि मैं फैसले से असंतुष्ट हूं।"
इससे पहले, अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जकिया ने कहा कि एसआईटी ने जांच अच्छी तरह से नहीं की।
जकिया द्वारा मामले को सर्वोच्च न्यायायल के समक्ष उठाए जाने के बाद मामले की जांच के लिए साल 2009 में एसआईटी का गठन किया गया था।
जकिया ने कहा, "आधे से अधिक आरोपियों को बरी कर दिया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि न तो फैसला पूरा है और न ही जांच को ढंग से अंजाम दिया गया। यह अधूरा इंसाफ है। मैं 15 वर्षो से लड़ाई लड़ रही हूं और अब ऐसा लगता है कि मेरी लड़ाई अभी लंबी चलेगी। मैं अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखूंगी। मैं उच्च न्यायालय जाऊंगी।"
एसआईटी के विशेष न्यायालय के न्यायाधीश पी.बी.देसाई ने गुरुवार को 36 आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि 24 आरोपियों को दोषी करार दिया, जिसमें एक विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का नेता भी शामिल है। छह आरोपियों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई।
अहमदाबाद में संवाददाताओं से जाफरी ने कहा, "हम अंतिम सांस तक मुकदमा लड़ेंगे।"
उनके पास बचे विकल्प के बारे में पूछे जाने पर जाफरी ने कहा, "तीस्ता सीतलवाड़ तथा दिल्ली के एक मशहूर वकील के साथ मिलकर इस मुकदमे को लड़ना जारी रखेंगे।"
गुलबर्ग सोसायटी दंगे में एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गए थे।
--आईएएनएस
गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में 24 दोषी करार, 36 बरी
अहमदाबाद, 2 जून (आईएएनएस)। अहमदाबाद की एक विशेष सत्र अदालत ने गुरुवार को 14 साल पुराने सनसनीखेज गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता अतुल वैद्य सहित 24 लोगों को दोषी करार दिया।
विशेष सत्र अदालत के न्यायाधीश पी.बी. देसाई ने 60 आरोपियों में से 36 को 'दोषी नहीं' घोषित किया।
अदालत ने इस मामले में अभियोजन पक्ष के साजिश के आरोप को खारिज कर दिया।
28 फरवरी, 2002 में अहमदाबाद शहर के मेघानीनगरइलाके में गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी को हथियारबंद भीड़ ने दिनदहाड़े आग लगा दी थी, जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की मौत हो गई थी। सोसाइटी में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते थे।
आगजनी की इस घटना के बाद सोसाइटी के अंदर से 39 जले शव बरामद हुए थे, जबकि घटना के बाद से लापता अन्य 30 लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) ने घटना के 12 साल बाद मृत घोषित कर दिया। इन 30 लोगों का उस दिन के बाद कभी कोई सुराग नहीं लगा।
अदालत दोषियों को छह जून को सजा सुनाएगी।
दोषी ठहराए गए 24 में से 11 लोगों को अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया और अन्य 13 को इससे कमतर अपराधों का दोषी पाया।
सभी 60 आरोपी सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद थे, जबकि उनके परिजन बड़ी संख्या में अदालत परिसर में एकत्रित थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल 22 फरवरी को विशेष सत्र अदालत को गुलबर्ग सोयाइटी जनसंहार मामले में तीन माह के अंदर अपना फैसला सुनाने का निर्देश दिया था, जिसके बाद सत्र अदालत ने नियमित आधार पर मामले में सुनवाई की।
गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए नौ प्रमुख मामलों में से एक है, जिनकी जांच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एसआईटी ने की।
एसआईटी ने इस मामले में 66 लोगों को आरोपी बनाया था। इनमें से नौ पिछले 14 वर्षो से जेल में हैं, बाकी जमानत पर जेल से बाहर हैं।
--आईएएनएस
सर्वोच्च न्यायालय ने एआईसीटीई को लगाई लताड़
नई दिल्ली, 31 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने संस्थानों को मान्यता प्रदान करने की समय सीमा से संबंधित न्यायालय के आदेश का पालन न करने तथा उत्तर प्रदेश स्थित ए.पी.जे.अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को इस संबंध में सूचना न देने के लिए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) को मंगलवार को लताड़ लगाई। एआईसीटीई के इस रवैये से हजारों छात्रों का भविष्य अधर में है।
न्यायमूर्ति पी. सी. घोष तथा न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ ने कहा, "हम अपने आदेश की अवहेलना से बेहद निष्ठुर तरीके से निपट सकते हैं।" पीठ ने सुनवाई के दौरान ेसंकेत दिया कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना का नोटिस जारी हो सकता है।
पीठ ने कहा, "हम अधिकारियों को अदालत की अवमानना का नोटिस जारी करने को इच्छुक हैं।"
न्यायमूर्ति रॉय ने कहा, "आपको (एआईसीटीई) नहीं पता कि हम कितने निष्ठुर हो सकते हैं, यदि हम यह तय कर लें कि आपने 608 संस्थानों के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है।"
इस बात की ओर इशारा करते हुए कि एआईसीटीई ने मामले में बेहद लचर रवैया अपनाया और न्यायालय द्वारा दिसंबर 2012 की तय समयसीमा को कोई तवज्जो नहीं दी, न्यायालय ने कहा कि समय सीमा के पालन में गंभीर ढिलाई बरती गई।
पीठ ने एआईसीटीई से एक हलफनामा दायर करने को कहा, जिसमें उसे उत्तर प्रदेश में 612 संस्थानों को मान्यता देने के संबंध में ए.पी.जे.अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को सूचित करने में हुए विलंब का कारण बताना होगा। न्यायालय ने हलफनामा दायर करने के लिए एआईसीटीई को एक सप्ताह का समय दिया है।
न्यायालय ने कहा कि देश में तकनीकी संस्थानों की नियामक एआईसीटीई के जवाब के आधार पर न्यायालय उस पर जुर्माना करने को लेकर फैसला करेगा।
शीर्ष न्यायालय ने 13 दिसंबर, 2012 के अपने आदेश में संस्थानों को मान्यता देने का आदेश जारी किया था, जिसके पालन में एआईसीटीआई नाकाम रही।
पीठ ने विश्वविद्यालय से संस्थानों को संबद्धता देने या न देने और दाखिला प्रक्रिया पूरी करने की समय सीमा बढ़ाकर 10 जून कर दी।
ए.पी.जे.अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी की तरफ से पेश हुए अमितेश कुमार ने न्यायालय से कहा कि एआईसीटीई को 612 संस्थानों को मान्यता देने के संबंध में सूचना 11 अप्रैल तक देनी थी, लेकिन उसने यह सूचना 25 दिनों बाद सात मई को शाम सात बजे दी।
उन्होंने न्यायालय से कहा कि सात मई को शनिवार था, इसलिए इन संस्थानों को संबद्धता की मंजूरी देने के लिए आवेदनों पर कार्रवाई सोमवार नौ मई को की गई।
संबद्धता की मंजूरी के लिए आवेदन की प्रक्रिया के समय को बढ़ाने की मांग करते हुए अमितेश कुमार ने न्यायालय से कहा कि बाकी बचे छात्रों की नामांकन प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के 13 दिसंबर, 2012 के फैसले में तय की गई तारीख के अनुसार होगी।
--आईएएनएस
मेहता मामले में एएफटी के आदेश पर शीर्ष अदालत ने रोक लगाई
नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें न्यायाधिकरण ने सैन्य आयुध कोर के मेजर जनरल (अब लेफ्टिनेंट जनरल) एन. के. मेहता को ब्रिगेडियर रैंक में पदावनत कर दिया था।
शीर्ष अदालत की अवकाशकालीन पीठ के न्यायमूर्ति पी. सी. घोष और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय ने एएफटी के उस आदेश पर भी रोक लगा दी, जिसमें थल सेना अध्यक्ष, रक्षा सचिव और सैन्य सचिव पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने एएफटी की लखनऊ पीठ द्वारा लेफ्टिनेंट जनरल मेहता पर लगाए गए पांच लाख रुपये के जुर्माने पर भी रोक लगा दी।
अदालत ने एटीएफ का दरवाजा खटखटाने वाले मेजर जनरल राठौर को भी नोटिस जारी किया।
सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ एएफटी के 13 मई के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र और लेफ्टिनेंट जनरल मेहता की याचिका की सुनवाई कर रही थी।
न्यायालय ने एएफटी के आदेश में मौजूद उस बात पर भी रोक लगा दी, जिससे उच्चस्तरीय रक्षा अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रपट की जांच करने के केंद्र सरकार के अधिकार पर प्रतिकूल असर हो रहा था।
महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत की अवकाश पीठ से एएफटी के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया, क्योंकि इस तरह के फैसले का सशस्त्र बलों के लिए दूरगामी प्रभाव था।
न्यायमूर्ति रॉय ने जब यह पूछा कि जिस आदेश पर आप रोक लगाने की मांग कर रहे हैं उसके कुछ हिस्सों को अगर अदालत छांट देती है तो क्या बचेगा? इस पर उन्होंने कहा कि ले.जनरल मेहता या तो डूब जाएंगे या तैरेंगे, लेकिन मेजर जनरल राठौर के लेफ्टिनेंट जनरल बनने की कोई उम्मीद नहीं हैं, क्योंकि वे मंगलवार को रिटायर होने जा रहे हैं।
मेजर जनरल राठौर की ओर से बहस कर रहीं वकील एश्वर्या भाटी ने एएफटी के फैसले पर रोक नहीं लगाने के लिए पुरजोर कोशिश की।
एएफटी ने पहले 17 फरवरी, 2016 को अपने फैसले में मेहता की पदावनति का आदेश दिया था जिस पर सर्वोच्च न्ययालय ने 18 मार्च, 2016 को रोक लगा दी थी और न्यायाधिकरण को अपने 17 फरवरी के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था।
हालांकि एएफटी ने अपने 13 मई के आदेश में मेहता की पदावनति के आदेश को दोहराते हुए शीर्ष रक्षा अधिकरियों पर 50 लाख रुपये और मेहता पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
--आईएएनएस
प्रत्यूषा के प्रेमी की अग्रिम जमानत रद्द करने की याचिका खारिज
नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने दिवंगत अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी के प्रेमी राहुल राज सिंह की अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए प्रत्यूषा की मां की याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
राहुल पर बालिका वधु से चर्चित अभिनेत्री प्रत्यूषा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है।
राहुल को बंबई उच्च न्यायालय ने 25 अप्रैल को अग्रिम जमानत दी थी। प्रत्यूषा की मां सोमा बनर्जी चाहती थीं कि बेटी की हत्या के सिलसिले में राहुल को रिमांड पर लेकर पुलिस पूछताछ करे।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी.सी.घोष और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की अवकाश पीठ ने राहुल राज सिंह पर हत्या का आरोप लगाने की याचिका स्वाकीर नहीं की। प्रत्यूषा का आत्महत्या के पूर्व लिखा गया कोई सुसाइड नोट नहीं है और प्रत्यूषा और राहुल की आखिरी बातचीत में हालांकि दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं लेकिन वे एक दूसरे लिए अगाध प्रेम भी प्रदर्शित करते हैं।
पीठ ने सोमा के वकील से कहा कि आत्महत्या से पहले दिया गया बयान है उससे पता चलता है कि वे एक दूसरे से प्यार करते थे। जबकि सोमा के वकील का कहना था कि राहुल को हिरासत में लेकर पूछताछ करने से ही उनके मुवक्किल की बेटी की मौत की सच्चाई का पता चलेगा।
पीठ ने पूछा कि क्या महाराष्ट्र पुलिस ने जमानत को चुनौती देने के लिए कोई याचिका दायर की है। इस पर सोमा के वकील ने बताया कि महाराष्ट्र पुलिस ने जमानत को चुनौती देने के लिए कोई याचिका दायर नहीं की है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने सोमा की याचिका खारिज कर दी।
राहुल का कथित रूप से प्रत्यूषा के साथ लिव इन रिलेशन था। राहुल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा (306), आपराधिक धमकी ( 506) और जानबूझकर चोट पहुंचाने की धारा 323 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
पुलिस ने प्रत्यूषा के माता-पिता की शिकायत के बाद राहुल के खिलाफ कार्रवाई की थी।
बंबई उच्च न्यायालय ने राहुल को अग्रिम जमानत देने से पहले प्रत्यूषा और राहुल की बातचीत सुनी थी। सरकारी वकील का कहना था प्रत्यूषा ने राहुल से बातचीत के दौरान आत्महत्या के इरादे का संकेत दिया था।
--आईएएनएस
देश में 13 लाख लोग अब भी मैला ढोने को मजबूर
चैतन्य मल्लापुर एवं वीडियो वालंटियर्स
यह एक गैर जमानती आपराधिक कार्रवाई है। बावजूद इसके भारत में नालों और खुले शौचालयों की हाथ से सफाई बदस्तूर जारी है। देश में 7,94,390 शौचालय ऐसे हैं जिनके मल हाथ से उठाए जाते हैं। पूरे देश में 13 लाख दलित हाथ से गंदगी साफ करने वाले सफाईकर्मी हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं और यही काम उनके जीने का आधार है।
एक वैश्विक पहल के तहत वंचित समुदायों की स्थिति से आगाह कराने वाले वीडियो वालंटियर्स से सुरेंद्रनगर जिले के ध्रांगधरा शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चारू मोरी ने कहा, "हमारे पास अवैध की श्रेणी में आने वाला कोई काम नहीं है। हाथ से गंदगी की सफाई प्रतिबंधित कार्य है।"
मोरी ने कहा कि इस इलाके में हाल के वीडियो क्लिप में सफाई कर्मी हाथ से सफाई करते दिख रहे हैं तो क्या हुआ? ये सारे ठेकेदार के कर्मचारी हैं। ये लोग उनकी (ठेकेदार की) जिम्मेदारी हैं।
ध्रांगधरा की स्थिति से स्पष्ट हो जाता है कि क्यों पूरे भारत में प्राय: दलित समुदाय के हजारों लोगों का गंदे नाले में मरना और हाथ से मैले की सफाई करना जारी है।
यह प्रचलन उन शहरों में भी है जहां नाले की सफाई के लिए सफाई मशीनें उपलब्ध हैं।
राज्यसभा में केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री विजय सांपला ने गत 5 मई को कहा कि पूरे भारत में 12,226 हाथ से सफाई करने वाले सफाई कर्मी चिन्हित किए गए हैं। इनमें से 82 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में ही हैं। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से हकीकत से कम हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार गुजरात में केवल दो ही ऐसे सफाईकर्मी हैं।
हाथ से गंदगी की सफाई का जारी रहने का संबंध हिन्दू जाति व्यवस्था से है। पूरे भारत में 13 लाख दलित हाथ से गंदगी साफ करने वाले सफाईकर्मी हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं और यही काम उनके जीने का आधार है।
प्राचीन शौचालयों का अस्तित्व हाथ से गंदगी की सफाई का मुख्य कारण है। इन शौचालयों से मैला हटाने का काम हाथ से होता है।
सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना के आंकड़ों के आधार पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने लोकसभा में इस साल 25 फरवरी को कहा था कि देश में 167,487 परिवारों में प्रति परिवार एक व्यक्ति हाथ से सफाई करने वाला सफाईकर्मी है।
जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर पूरे देश में हाथ से सफाई करने वाले सफाईकर्मी को नियोजित करना निषिद्ध है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 72 प्रतिशत अस्वास्थ्यकर शौचालय सिर्फ आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 26 लाख सूखे शौचालय हैं। इसके अतिरिक्त 1,314,652 ऐसे शौचालय हैं जिनके मल खुले नालों में बहाए जाते हैं।
इतना ही नहीं 7,94,390 शौचालय ऐसे हैं जिनके मल हाथ से उठाए जाते हैं।
इंडिया स्पेंड की पहले की रिपोर्ट के अनुसार 12.6 प्रतिशत शहरी और 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवार खुले में शौच करते हैं। शौचालय होने के बावजूद पूरे भारत में 1.7 प्रतिशत परिवार खुले में शौच करता है।
उत्तर प्रदेश में आधिकारिक रूप से 10,016 हाथ से गंदगी साफ करने वाले सफाईकर्मी हैं जिनमें 2404 शहर में और 7612 ग्रामीण इलाके में हैं।
बड़े पैमाने पर सूखे शौचालयों के कारण 2009 में उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हुई थीं और शिशु मृत्यु दर सर्वाधिक 110 प्रति हजार हो गई थी।
सन 2010 में सरकार ने इस जिले में 'डलिया जलाओ' अभियान शुरू किया था। डलिया प्रतीक थी उस सामान की जिसमें मानव मल उठाया जाता है। एक साल के अंदर 2750 हाथ से गंदगी साफ करने वालों को इस काम से मुक्ति दी गई थी।
नतीजा है कि 2010 से इस जिले में पालियो का कोई नया मामला सामने नहीं आया है।
महाराष्ट्र में सबसे अधिक 68016 हाथ से गंदगी साफ करने वाले परिवार हैं जो पूरे देश में ऐसे परिवारों का 41 प्रतिशत है।
महाराष्ट्र के बाद मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब का स्थान हैं। इन पांचों राज्यों में कुल मिलाकर देश के 81 प्रतिशत हाथ से सफाई करने वाले सफाईकर्मी के परिवार हैं।
इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार रेलवे देश में हाथ से सफाई करने वाले सफाई कमियों का सबसे बड़ा नियोक्ता है।
सरकार ने 2019 तक हाथ से गंदगी की सफाई से देश को मुक्ति दिलाने का लक्ष्य रखा है।
(आंकड़ा आधारित, गैरलाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ एक व्यवस्था के तहत जहां चैतन्य मल्लापुर नीति विश्लेषक हैं। लेख में व्यक्त विचार इंडियास्पेंड के हैं)
--आईएएनएस
सीबीआई ने मुख्यमंत्री हरीश रावत से 5 घंटे की पूछताछ
नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मंगलवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से विधायकों की खरीद-फरोख्त मामले में करीब पांच घंटे पूछताछ की। जांच एजेंसी ने यह कदम 'स्टिंग' वीडियो में कथित तौर पर रावत के विधानसभा में विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए रिश्वत का प्रस्ताव देते नजर आने पर उठाया है। रावत को पूछताछ के लिए फिर बुलाया जाएगा।
एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि रावत सुबह करीब 11.15 बजे यहां सीबीआई कार्यालय पहुंचे और उनसे करीब पांच घंटे पूछताछ की गई।
एक अधिकारी ने कहा, "रावत कई मुद्दों पर पूरा ब्यौरा नहीं दे पाए। उन्हें पूछताछ के लिए फिर बुलाया जाएगा।"
'स्टिंग ऑपरेशन' वीडियो में रावत उत्तराखंड की 70 सदस्यीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए बागी कांग्रेस विधायकों का अपने पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिए पैसे प्रस्ताव देते दिखाई दे रहे हैं। वह शक्ति परीक्षण कभी नहीं हुआ क्योंकि एक दिन पहले ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
यह स्टिंग वीडियो नोएडा के एक निजी टेलीविजन चैनल 'समाचार प्लस' ने फिल्माया था। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों ने ही 26 मार्च को रावत सरकार के खिलाफ यह वीडियो जारी किया था।
जब राज्य में राष्ट्रपति शासन था तब राज्य सरकार के अनुमोदन और केंद्र सरकार के आदेश पर सीबीआई ने 25 अप्रैल को समाचार प्लस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और मुख्य संपादक उमेश कुमार द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन की प्रामाणिकता की प्राथमिक जांच शुरू की थी।
पांच मई को जब सीबीआई ने रावत को पूछताछ के लिए नौ मई को पेश होने का समन भेजा तो उन्होंने और समय की मांग की थी। इसके बाद वह 11 मई को विश्वास मत हासिल करके फिर मुख्यमंत्री पद हासिल कर लिए।
--आईएएनएस
शराब उद्योगों की जलापूर्ति रोकने संबंधी याचिका खारिज
नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में शराब उद्योगों की जलापूर्ति रोकने के लिए दायर जनहित याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
याचिका में तर्क दिया गया था कि शराब उद्योगों को पानी की आपूर्ति रोके जाने से महाराष्ट्र में अभूतपूर्व सूखे की मार झेल रहे लाखों लोगों को पानी मिल सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी.पंत और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह नीतिगत मामला है और इस मामले में न्यायपालिका द्वारा किसी तरह के हस्तक्षेप का तात्पर्य शासन को अपने हाथ में लेना माना जाएगा।
शीर्ष अदालत की अवकाश पीठ ने जनहित याचिकाकर्ताओं से कहा कि बम्बई उच्च न्यायालय पहले ही शराब फैक्ट्रियों को 60 फीसदी पानी की कटौती का आदेश दे चुका है, इसलिए उच्च न्यायालय से आदेश में बदलाव की मांग की जा सकती है।
पीठ ने कहा कि नीतिगत मामले के कुछ पहलुओं को राज्य सरकार के लिए छोड़ना है। पीठ ने सवालिया लहजे में पूछा कि शराब उद्योगों की पानी की आपूर्ति में कटौती क्यों 60 प्रतिशत ही होनी चाहिए, 30 या 70 प्रतिशत क्यों नहीं?
पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कहीं प्रचार के लिए तो नहीं शराब उद्योगों की शत प्रतिशत जलापूर्ति रोकने की मांग को लेकर याचिका दायर की गई है।
याचिकाकर्ता भास्करराव काले ने बम्बई उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर सवालिया निशान लगाया, जिसमें कहा गया है कि लोगों के पेयजल की जरूरत और उद्योग की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखना है।
शराब उद्योग की शतप्रतिशत जलापूर्ति रोकने की मांग करते हुए काले ने कहा कि उद्योगों से अधिक मानवीय जरूरतों को तरजीह मिलनी चाहिए, क्योंकि पेयजल की सुलभता मौलिक अधिकार है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि शराब उद्योग छह लाख घन फुट जल का उपभोग करता है, और इसके अतिरिक्त तीन लाख घन फुट पानी अनधिकृत रूप से लेता है, और पानी की यह मात्रा राज्य के शहरों में प्रति वर्ष उपभोग किए जाने वाले दो लाख घनफुट पानी से कई गुना अधिक है।
काले ने कहा कि महाराष्ट्र में 454,772 लोगों के पास ही शराब रखने, उपभोग करने और परिवहन करने का लाइसेंस है और राज्य में उत्पादित 86,71, 40,565 लीटर शराब का निर्यात हो रहा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपने नागरिकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना राज्य सरकार का दायित्व है।
शराब उद्योग को शत प्रतिशत जलापूर्ति रोकने संबंधी याचिका खारिज होने का महत्व इसलिए है कि इससे पहले शीर्ष अदालत ने राज्य में जारी सूखे की स्थिति के मद्देनजर महाराष्ट्र में आईपीएल मैचों के आयोजनों पर रोक लगाने वाले बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था।
--आईएएनएस
सचदेवा हत्याकांड : एमएलसी मनोरमा व पति को जमानत नहीं
गया, 24 मई (आईएएनएस)। बिहार के गया में रोडरेज की घटना में 19 वर्षीय छात्र आदित्य सचदेवा की हत्या के मुख्य आरोपी रॉकी यादव की मां और विधान पार्षद (एमएलसी) मनोरमा देवी की जमानत याचिका पर अदालत ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया तथा एक अन्य अदालत ने पिता बिंदी यादव की जमानत याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
अपराध की दुनिया से राजनीति में प्रवेश करने वाली मनोरमा देवी और बिंदी यादव को गया में उनके बेटे रॉकी यादव द्वारा एक किशोर आदित्य सचदेवा की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
रॉकी यादव 12वीं के छात्र आदित्य सचदेवा की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी हैं।
जिला पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, "गया जिला तथा सत्र न्यायाधीश ने मनोरमा देवी की नियमित जमानत की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 मई की तारीख मुकर्रर की।"
अदालत ने पुलिस से केस डायरी व रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।
सहायक लोक अभियोजक सुरेंद्र नारायण सिंह ने बताया कि इस मामले की अगली सुनवाई 27 मई को होगी।
जेल के एक अधिकारी ने कहा, "वे गया सेंट्रल जेल में कैदी नंबर 10,460 हैं। इसी जेल में उनके पति बिंदी यादव व बेटा रॉकी यादव बंद हैं।"
गौरतलब है कि रॉकी की गिरफ्तारी के लिए मनोरमा देवी के घर हुई छापेमारी में विदेशी शराब बरामद हुई थी। राज्य के शराब कानून के उल्लंघन के साथ ही अपने बेटे को फरार करने में मदद करने के मामले में अदालत ने मनोरमा देवी की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया था।
विधान पार्षद ने न्यायालय के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसके बाद उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। बाद में रॉकी यादव को गिरफ्तार कर लिया गया।
उल्लेखनीय है कि बिहार में पांच अप्रैल से पूर्ण शराबबंदी लागू है।
उधर, गया अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने बिंदी यादव की जमानत याचिका खारिज कर दी है, जिन्हें हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया है।
बिंदी यादव के अधिवक्ता मोहम्मद कैशर शर्फुद्दीन ने बताया कि यादव की जमानत के लिए वह अब वह ऊपरी अदालत में अर्जी देंगे।
रॉकी यादव (30) ने सात मई को बोध गया रोड पर कार ओवरटेक करने को लेकर हुई बहस के बाद कथित तौर पर गोली मारकर आदित्य सचदेवा की हत्या कर दी थी।
घटना के बाद से ही रॉकी फरार था। आरोप लगा है कि उसके माता-पिता ने फरार होने में उसकी मदद की थी।
मनोरमा व उसके पति के शस्त्र के लाइसेंस को भी रद्द कर दिया गया है।
रॉकी की गिरफ्तारी के लिए लोगों के आंदोलन चलाने के बाद जद (यू) ने पार्टी से मनोरमा देवी की सदस्यता निलंबित कर दी है। माता-पिता और बेटा तीनों इस समय जेल में हैं।
आदित्य के परिजनों ने मामले की त्वरित सुनवाई तथा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग की है।
--आईएएनएस
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