डीआरडीओ का रडार देखेगा दीवारों के पार
नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। डीआडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) ने एक ऐसा रडार विकसित किया है, जिससे दीवारों के आर-पार भी देखा जा सकेगा। इससे भारतीय सेनाओं को बंधक स्थितियों से निपटने में काफी मदद मिलेगी।
इस रडार का नाम 'दिव्यचक्षु' रखा गया है। इसे डीआरडीओ के बेंगलुरू स्थित रडार विकास अधिष्ठान (एलडीआरई) ने विकसित किया और इसका परीक्षण जारी है।
इस परियोजना से जुड़े एक वैज्ञानिक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, "यह रडार 20 मीटर दूर से बाधा के पार की तस्वीरों को दिखा सकता है। यह थर्मल सिग्नेचर को पकड़ता है, जिससे कमरे में हो रही गतिविधियों को स्पष्ट रूप से दिखा सकता है।"
वैज्ञानिक ने कहा, "बंधक स्थितियों के दौरान इस रडार से कमरे में कितने लोग हैं, इसका पता लगाया जा सकेगा।"
विशेषज्ञों के मुताबिक, कमरे में उपस्थित लोगों गतिविधियों को देखकर आसानी से पता लगाया जा सकता है कि बंधक कौन है और आतंकवादी कौन है।
इस रडार के बारे में मुंबई में नवंबर 2008 में हुए हमले के बाद सोचा गया था और इस परियोजना की शुरुआत नवंबर 2010 में हुई। उम्मीद है कि इसका परीक्षण इस साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।
भारतीय सेनाओं के पास वर्तमान में ऐसा कोई उपकरण नहीं है। इस उपकरण को काफी कम लागत में देश में ही विकसित किया गया है, इसलिए इसकी कीमत भी काफी कम है। इसकी कीमत 35 लाख रुपये के आसपास है जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ऐसे उपकरणों की कीमत 2 करोड़ रुपये के आसपास होती है।
इसके अलावा इस उपकरण को हल्का बनाने की कोशिश जारी है। फिलहाल इसका वजन 6-7 किलोग्राम के आसपास है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
इस रडार का नाम 'दिव्यचक्षु' रखा गया है। इसे डीआरडीओ के बेंगलुरू स्थित रडार विकास अधिष्ठान (एलडीआरई) ने विकसित किया और इसका परीक्षण जारी है।
इस परियोजना से जुड़े एक वैज्ञानिक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, "यह रडार 20 मीटर दूर से बाधा के पार की तस्वीरों को दिखा सकता है। यह थर्मल सिग्नेचर को पकड़ता है, जिससे कमरे में हो रही गतिविधियों को स्पष्ट रूप से दिखा सकता है।"
वैज्ञानिक ने कहा, "बंधक स्थितियों के दौरान इस रडार से कमरे में कितने लोग हैं, इसका पता लगाया जा सकेगा।"
विशेषज्ञों के मुताबिक, कमरे में उपस्थित लोगों गतिविधियों को देखकर आसानी से पता लगाया जा सकता है कि बंधक कौन है और आतंकवादी कौन है।
इस रडार के बारे में मुंबई में नवंबर 2008 में हुए हमले के बाद सोचा गया था और इस परियोजना की शुरुआत नवंबर 2010 में हुई। उम्मीद है कि इसका परीक्षण इस साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।
भारतीय सेनाओं के पास वर्तमान में ऐसा कोई उपकरण नहीं है। इस उपकरण को काफी कम लागत में देश में ही विकसित किया गया है, इसलिए इसकी कीमत भी काफी कम है। इसकी कीमत 35 लाख रुपये के आसपास है जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ऐसे उपकरणों की कीमत 2 करोड़ रुपये के आसपास होती है।
इसके अलावा इस उपकरण को हल्का बनाने की कोशिश जारी है। फिलहाल इसका वजन 6-7 किलोग्राम के आसपास है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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