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Friday, 10 June 2016 00:00

3-डी विजन वाले रोबोट करेंगे कैंसर का इलाज

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)| रोबोटिक सर्जरी अब तेजी से प्रगति के लिए तैयार है क्योंकि ज्यादातर अस्पताल अब नवीनतम कंप्यूटर संचालित सर्जिकल रोबोट लगा रहे हैं। ऐसी आशा है कि 2020 तक 25 भारतीय शहरों में 100 से अधिक अस्पतालों में 3डी विजन वाले डेक्सटरस रोबोट सर्जरी में मदद कर रहे होंगे। वटिकुटी फाउंडेशन के माध्यम से भारत में 2010 से रोबोटिक सर्जरी की दिशा में प्रगति हेतु प्रयासरत राज वटिकुटी का कहना है, "हम युवा सर्जनों को रोबोटिक सर्जरी अपनाने के लिए प्रेरित करने के अलावा कुशल रोबोटिक सर्जनों की संख्या 500 तक पहुंचाएंगे। अपनी ओर से योगदान करते हुए वटिकुटी फाउंडेशन अगले 5 वर्षो के दौरान सुपर स्पेशलिस्ट सर्जनों को रोबोटिक सर्जन बनने के लिए 100 पेड फेलोशिप प्रदान करेगा।"

राज वटिकुटी ने बताया, "यद्यपि 2015 में रोबोट की सहायता से 4,000 सर्जरी की गईं, जो कि 5 वर्षों में पांच गुनी वृद्धि है, लेकिन भारत ने अपनी संभावनाओं का लाभ उठाना अभी शुरू ही किया है, क्योंकि इसके फायदे मेट्रो शहरों से आगे बढ़कर जन-जन तक पहुंचाए जा सकते हैं।"

रोबोटिक सर्जरी प्रोस्टेट, गायनेकोलॉजिकल, सिर व गर्दन, फेफड़ों और आंतों व मलाशय के कैंसर से पीड़ित रोगियों के लिए मददगार हैं क्योंकि इनसे गलतियों की संभावना कम हो जाती है, प्रक्रियाओं में दाग नहीं बचते और रिकवरी तेज गति से होती है।

इस समय भारत में 30 अस्पतालों में केवल 190 रोबोटिक सर्जन हैं। 2020 तक कुशल रोबोटिक सर्जनों की संख्या बढ़ाकर 500 करने और 100 अस्पताल तक पहुंचाने की योजना बनाई गई है।

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Sunday, 05 June 2016 00:00

शहरी लोगों में मानसिक रोग का कारण प्रकृति से दूरी

वाशिंगटन, 5 जून (आईएएनएस)। शहरी लोगों में आमतौर पर मानसिक रोग और खराब मूड की समस्याएं देखी जाती हैं, जबकि इसके उलट ग्रामीण क्षेत्रों में कम लोग इस तरह की समस्याओं की शिकायत करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इसका कारण क्या है? एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि इसका कारण शहरी लोगों में प्रकृति से बढ़ती दूरी है।

यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के प्रोफेसर पीटर काह्न ने बताया, "हमारे रोग की विशाल संख्या काफी हद तक प्राकृतिक वातावरण से हमारी दूरी से संबंधित है।"

पीटर ने बताया, "शहरों में बच्चे बड़े होने के दौरान कभी भी आसमान के सितारों को नहीं देख पाते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप अपने पूरे जीवन में तारों से जगमगाते आसमान के नीचे न चलें हों और फिर भय, कल्पना और कुछ खो जाने के बाद वापस उसे पाने की भावनाएं विकसित होती हों? "

उन्होंने कहा, "बड़े शहरों को बनाने में हम यह नहीं जान पा रहे हैं कि कितनी तेजी से हम प्रकृति के साथ अपने संबंधों को कम कर रहे हैं, खासकर वन्य जीवन से जो हमारे अस्तित्व का स्रोत है।"

पीटर ने कहा कि बड़े शहरों में कुछ भी प्राकृतिक नहीं है। उन्होंने शहरी लोगों से प्रकृति से जुड़ने के लिए कुछ आसान उपाय अपनाने के लिए कहा। उनका कहना है कि ऐसे भवन बनने चाहिए जिसमें खिड़की के खुलने पर ताजी हवा और प्राकृतिक प्रकाश आए। भवन की छत पर अधिक से अधिक बागीचे लगाए जाने चाहिए। भवन के आस-पास स्थानीय पौधे लगाए जाने चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रकृति से जुड़ाव के इससे सीधा संबंध बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। दफ्तर की खिड़की के पार पेड़-पौधों को देखना अच्छा लग सकता है, लेकिन बाहर निकलकर घास के मैदान पर नंगे पांव बैठकर दोपहर का भोजन करने की सुखद अनुभूति कुछ और ही हो सकती है और इसका लाभ भी कुछ और ही हो सकता है।

यह शोध साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

--आईएएनएस

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Sunday, 05 June 2016 00:00

कीमोथेरेपी से होने वाली सुन्नता में व्यायाम सहायक

न्यूयॉर्क, 5 जून (आईएएनएस)। कीमोथेरेपी से होने वाली हाथ-पैरों की कमजोरी, सुन्नता और दर्द को दूर करने में व्यायाम प्रभावी और आसान उपाय हो सकता है।

एक नए शोध के अनुसार, यह जानकारी सामने आई है। इस शोध में वैज्ञानिकों ने 300 कैंसर रोगियों को शामिल किया था। वैज्ञानिकों ने इस दौरान इन सभी रोगियों को घर में ही रेसिस्टेंट-बैंड प्रशिक्षण में शामिल किया। इस दौरान इन रोगियों के न्यूरोपैथिक लक्षणों की व्यायाम न करने वाले रोगियों से तुलना की गई।

अमेरिका में युनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर विल्मट कैंसर इंस्टीट्यूट से इस अध्ययन के मुख्य लेखक इयान क्लेकनर ने कहा, "व्यायाम करने वाले रोगियों ने महत्वपूर्ण रूप से न्यूरोपैथी लक्षणों जैसे जलन, दर्द, झुनझुनी, स्तब्धता और ठंड के प्रति संवेदनशीलता का कम अनुभव किया। वहीं इस दौरान वृद्ध रोगियों पर व्यायाम का काफी असर देखने को मिला।"

इयान ने कहा, "व्यायाम एक शक्तिशाली उपाय है, जो एक ही समय में कई सारे जैविक और मनोवैज्ञानिक कारकों, जैसे मस्तिष्क का विद्युत परिपथ तंत्र, सूजन तथा हमारे सामाजिक संबंधों आदि को प्रभावित करता है। जबकि दवाओं का आम तौर पर एक विशेष लक्ष्य होता है और वह वहीं तक सीमित होती हैं।"

यह शोध अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लीनिकल ओन्कोलॉजी (एएससीओ) 2016 की शिकागो में होने वाली वार्षिक बैठक में प्रकाशित किए जाएंगे।

--आईएएनएस

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Saturday, 04 June 2016 00:00

गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक नहीं सामान्य दवाएं

बीजिंग, 4 जून (आईएएनएस/सिन्हुआ)। गर्भवती महिलाएं आम तौर पर सामान्य दवाओं से बचने की कोशिश करती हैं, लेकिन एक नए अध्ययन में पता चला है कि इलाज न होने पर अगर एक छोटी सी समस्या गंभीर रूप ले लेती हैं, तो यह मां और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगिल्या (यूएई) ने इस अध्ययन के लिए 1,120 महिलाओं पर सर्वेक्षण किया। इस दौरान महिलाओं से गर्भावस्था के दौरान सामान्य तकलीफों जैसे मिचली आना, सीने में जलन, कब्ज, जुकाम, मूत्र मार्ग में संक्रमण, गर्दन, सिर दर्द और नींद की समस्याओं संबंधित सवाल पूछे थे।

अध्ययन में यह बात सामने आई कि कुल महिलाओं में से लगभग एक तिहाई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान विभिन्न तकलीफों में दवाओं के सेवन से परहेज किया। उन्होंने आमतौर पर बिना चिकित्सीय परामर्श के इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल, इबूप्रोफेन, कफ और सर्दी से संबंधित दवाओं के सेवन से भी परहेज किया।

शोध के नेतृत्वकर्ता माइकल ट्विग के अनुसार वह पता लगाना चाहते थे कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं दवाओं के जोखिमों और लाभों के बारे में क्या सोचती हैं।

ट्विग ने कहा, "शोध के दौरान हमने पाया कि महिलाओं की एक बड़ी संख्या गर्भावस्था के दौरान पैरासिटामोल के सेवन को जोखिम समझती है। हालांकि यह बिलकुल सुरक्षित है। "

उन्होंने बताया, " इस अध्ययन में हमें सबसे अधिक चिंता की बात यह देखने को मिली कि कई महिलाएं मूत्र मार्ग में संक्रमण का अनुभव करने के दौरान भी दवाएं नहीं लेती हैं। अगर इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाता है, यह जटिल होकर कई मां व भ्रूण दोनों को नुकसान पहुंचाता है।

इन निष्कर्षो से पता चलता है कि महिलाओं को प्रभावी ढंग से इलाज के लिए प्रोत्साहित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान दवाओं के लाभों और सुरक्षा के बारे में अधिक जानकारी की जरूरत है।"

--आईएएनएस

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Saturday, 04 June 2016 00:00

गर्भावस्था में फ्लू का टीका लगाने से नवजात को सुरक्षा


न्यूयार्क, 4 जून (आईएएनएस)। गर्भवती महिला को फ्लू से बचाव का टीका लगाने से होने वाले बच्चे को भी जन्म से चार महीने बाद तक इस बीमारी से सुरक्षा मिलती है।

एक शोध में बताया गया कि इससे 70 फीसदी नवजात बच्चों में फ्लू की बीमारी का खतरा टल जाता है।

अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर व वरिष्ठ शोधार्थी मायरॉन लेवाइन ने बताया, "हमारे शोध से पता चलता है कि नवजात शिशुओं के इंफ्लूएंजा से बचाव के लिए गर्भवती माताओं का टीकाकरण करना बेहद जरूरी है।"

हालांकि विकसित देशों में गर्भवती माताओं द्वारा फ्लू का टीका लगाना बेहद आम है, लेकिन विकासशील देशों में ऐसा नहीं है।

यह शोध लेसेंट जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध को बामाको, माली और दक्षिण अफ्रीका में किया गया।

शोधकर्ताओं ने कुल 4,139 गर्भवती महिलाओं का अध्ययन किया। उनमें से आधे को फ्लू का टीका लगाया गया, जबकि आधे को नहीं लगाया गया।

वैज्ञानिकों ने उन महिलाओं के नवजात शिशुओं पर जन्म के छह महीने बाद तक नजर रखी। जिन महिलाओं को फ्लू का टीका लगाया गया था, उनके बच्चों में जन्म से चार महीने बाद तक टीके प्रभाव 70 फीसदी तक था।

--आईएएनएस

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Sunday, 29 May 2016 00:00

तनाव से संबंधित जीनों की पहचान

न्यूयॉर्क, 29 मई (आईएएनएस)। वैज्ञानिकों ने सांख्यिकीय रूप से ऐसे दो महत्वपूर्ण जीनों की पहचान की है, जो पोस्ट-ट्रॉमैटिकस्ट्रेस डिसार्डर (पीटीएसडी) का जोखिम बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है।

पोस्ट-ट्रॉमैटिकस्ट्रेस डिसार्डर एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें व्यक्ति किसी भयानक घटना को देखना और उसका अनुभव करना शुरू कर देता है।

अमेरिका स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर मुरे बी.स्टीन ने बताया, "हमने दो उल्लेखनीय आनुवांशिक प्रकारों की खोज की है।"

इनमें पहला जीन क्रोमोसोम के पांचवे जोड़े में स्थित एनकेआरडी55 है और दूसरा जीन क्रोमोसोम 19 में स्थित है।

पिछले अनुसंधान में इस जीन का विभिन्न आटोइम्यून और इंफ्लेमेटरी विकारों के साथ संबंध मिला है, जिसमें टाइप 2 मधुमेह सीलिएक और रुमेटी गठिया शामिल है।

इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 13,000 से अधिक अमेरिकी सैनिकों के डीएनए नमूनों का व्यापक रूप से परीक्षण किया था।

यह शोध 'जेएएमए साइकियाट्री' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

--आईएएनएस

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Sunday, 29 May 2016 00:00

मस्तिष्क की अलग-अलग कोशिकाएं कराती हैं सकारात्मक, नकारात्मक घटनाओं का अनुभव

सैन फ्रांसिस्को, 29 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। क्या आपको पता है कि हमारा मस्तिष्क सकारात्मक और नकारात्मक घटनाओं का कैसे अनुभव करता है। दरअसल, हमारे मस्तिष्क की अलग-अलग कोशिकाएं इसके लिए जिम्मेदार होती हैं, जो हमें सकारात्मकता तथा नकारात्मकता का अनुभव कराती हैं। यह दावा एक नए शोध में किया गया है, जिसे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है।

वैज्ञानिकों ने दो शोध तकनीकों को संयोजित कर बताया है कि प्रीफंटल मस्तिष्क कोशिकाएं किस प्रकार मूलत: अलग होती हैं, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभवों के लिए होती हैं।

यह शोध प्रोफेसर कार्ल डिसेरोथ के नेतृत्व में जैव प्रौद्योगिकी, मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान के शोधार्थियों ने किया, जिसके नतीजे ऑनलाइन 'सेल' में प्रकाशित हुए हैं।

प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स स्तनधारी जीव के मस्तिष्क में एक रहस्यमय, पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका सीधा संबंध लोगों के मूड में बदलाव से होता है और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स की विभिन्न कोशिकाएं सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवों की प्रतिक्रिया देती हैं। हालांकि यह किस प्रकार परस्पर विरोधी क्रियाओं को नियंत्रित करता है, इसकी जानकारी अभी नहीं मिल पाई है।

इस नए शोध में शोधार्थियों ने पहली बार दो अत्याधुनिक अनुसंधान तकनीकों ओप्टोजेनेटिक्स और क्लैरिटी का इस्तेमाल किया था, जिसे डिसेरोथ ने विकसित किया।

डिसेरोथ ने बताया, "ये कोशिकाएं अलग ढंग से निर्मित होती हैं और सकारात्मक तथा नकारात्मक घटनाओं के बारे में बताती हैं।"

--आईएएनएस

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न्यूयॉर्क, 28 मई (आईएएनएस)। भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने पाया है कि घातक जीका वायरस गर्भनाल की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बगैर नष्ट किए उन्हें संक्रमित कर अपनी संख्या बढ़ाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस संबंध में बहुत कम पता चला है कि वायरस गर्भानाल में कैसे अपनी संख्या में इजाफा करता है और कौन-सी कोशिका को लक्षित करता है।

शोध के निष्कर्षो से पता चला है कि वायरस हॉफबर कोशिका को संक्रमित करता है, जो गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के सृजन से बनती हैं।

शोधार्थियों के अनुसार, ये कोशिकाएं अन्य प्रतिरोधी कोशिकाओं की तुलना में अधिक सहलशील और कम भड़काऊ मानी जाती हैं। हालांकि शोध के दौरान इन कोशिकाओं ने एंटीवायरल और भड़काऊ प्रतिक्रिया दी थी। जिससे अंदाजा लगाया गया है कि जीका वायरस ने इन्हें संक्रमित किया होगा।

यह शोध 'सेल होस्ट एंड माइक्रोब' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

--आईएएनएस

सिडनी, 27 मई (आईएएनएस)। कैंसर तथा ऑटो इम्यून बीमारियों के इलाज की दिशा में शोधकर्ताओं ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। एक भारतवंशी शोधकर्ता सहित शोधकर्ताओं के एक दल ने शरीर के लिए बेकार कोशिकाओं को खत्म करने की नई विधि खोजी है।

'प्रोग्राम्ड सेल डेथ' यानी 'एपोपटॉसिस' एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो अवांछित कोशिकाओं को शरीर से बाहर करने का काम करती है। एपोपटॉसिस न होने के कारण कैंसर कोशिकाओं का विकास होता है या प्रतिरक्षा कोशिकाएं शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमले करती हैं।

एपोपटॉसिस की प्रक्रिया में 'बाक' नामक प्रोटीन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वस्थ कोशिकाओं में बाक प्रोटीन निष्क्रिय अवस्था में रहता है, लेकिन जैसे ही कोशिका को मरने का संकेत मिलता है, बाक प्रोटीन एक किलर प्रोटीन में तब्दील होकर कोशिका को खत्म कर देता है।

अध्ययन के दौरान, विक्टोरिया के वाल्टर एंड एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च की शोधकर्ता श्वेता अय्यर तथा उनके साथियों ने कोशिका को मारने के लिए बाक प्रोटीन को सीधे संकेत देने का एक खास तरीका खोज निकाला है।

शोधकर्ताओं ने एक ऐसे एंटीबॉडी की खोज की है, जो बाक प्रोटीन से संबंधित है और उसे सक्रिय करने का काम करता है।

ऑस्ट्रेलिया के वाल्टर एंड एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च रूथ क्लूक ने कहा, "हम इस बात को लेकर बेहद रोमांचित हैं कि हमने बाक को सक्रिय करने के लिए पूरी तरह से एक नया तरीका खोज निकाला है।"

यह अध्ययन पत्रिका 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है।

--आईएएनएस

Wednesday, 25 May 2016 00:00

भविष्य में व्यायाम से हो सकता है कैंसर का उपचार

टोरंटो, 25 मई (आईएएनएस)। व्यायाम शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखता है, लेकिन व्यायाम के फायदे इससे बहुत ज्यादा हैं। व्यायाम न केवल शरीर को रोगों की चपेट में आने से रोकता है, बल्कि यह कई चिकित्सा में भी मददगार है। अब व्यायाम के फायदों में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है। एक नए शोध में प्रोस्टेट कैंसर पीड़ितों पर नियमित व्यायाम के प्रभावों का आकलन किया जा रहा है।

पहली बार अंतर्राष्ट्रीय नैदानिक चिकित्सा परीक्षण से प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त पुरुषों के जीवन गुणवत्ता में सुधार के लिए तीव्र शारीरिक व्यायाम के प्रभावों का मूल्यांकन किया जा रहा है।

युनिवर्सिटी ऑफ मांट्रियल रिसर्च सेंटर (सीआरसीएचयूएम) के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर फ्रेड साड मानते हैं कि शारीरिक व्यायाम कैंसर पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। यह दवाओं की ही तरह प्रभावी होकर प्रोस्टेट कैंसर रोगियों के इलाज और यहां तक कि रोग में मददगार हो सकता है।

मेटास्टेसिस (कैंसर का प्रसार) के दौरान रोगियों की जीवनशैली ज्यादातर सुस्त हो जाती है, जिसके पीछे धारणा होती है कि इससे कैंसर की प्रगति प्रभावित होगी।

ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवान युनिवर्सिटी के अंतर्गत एक्सरसाइज मेडिसिन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर रॉबर्ट न्यूटन के साथ मिलकर डॉक्टर फ्रेड डॉ ने वह पहला अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन किया है, जो बताता है कि व्यायाम वास्तव में मेटास्टेटिक प्रोस्टेट कैंसर रोगियों के जीवन को बढ़ाने में मददगार है।

यह शोध आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया में शुरू हो चुका है। आने वाले सप्ताहों में पूरे विश्व के 60 अस्पताल रोगियों की भर्ती शुरू कर देंगे। प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित कुल 900 पुरुष इस परीक्षण में भाग लेंगे।

इस शोध के पीछे की परिकल्पना यह है कि व्यायाम कैंसर की प्रगति पर सीधा प्रभाव डालने के साथ ही रोगियों को अधिक बेहतरी से जटिल चिकित्सा थैरेपी बर्दाश्त करने की क्षमता प्रदान करता है।

--आईएएनएस

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