चिकित्सकों द्वारा मृत घोषित लाडली श्मशान में जी उठी!
दमोह, 6 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के दमोह जिले में चिकित्सकों की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। यहां के सरकारी अस्पताल में जन्मी नवजात शिशु को चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया, मगर जब उसे श्मशान घाट में दफनाया जा रहा था, तभी उसकी किलकारियां गूंज उठीं। नवजात शिशु को दोबारा अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज जारी है। सिविल सर्जन डा. बी आर अग्रवाल ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं।
बताया गया है कि मड़ियादो निवासी मीना आठ्या ने सोमवार की दोपहर एक बच्ची को जन्म दिया था, कुछ ही देर बाद चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। परिजन जब उस नवजात शिशु का शव लेकर श्मशान घाट पहुंचे और अंतिम संस्कार की तैयारी में जुटे थे, तभी बालिका के शरीर में हरकत हुई और किलकारी गूंज उठी। नवजात शिशु को दोबारा अस्पताल लाया गया और उसका गहन चिकित्सा कक्ष में उपचार जारी है।
सिविल सर्जन डा. अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया कि नवजात शिशु 20 सप्ताह का है और उसका वजन भी बहुत कम लगभग 540 ग्राम है। ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक ने डा. अग्रवाल को बताया कि जब मीना आठ्या ने बच्ची को जन्म दिया था, तब उसके शरीर में न तो कोई हरकत थी और न ही सांस चल रही थी, लिहाजा उसे मृत घोषित करते हुए शव परिजनों को सौंप दिया था।
डा. अग्रवाल ने कहा कि बच्ची को दोबारा गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती कराया गया है, जहां उपचार चल रहा है। वहीं लापरवाही की जांच कराई जा रही है, दोषियों पर कार्रवाई होगी।
--आईएएनएस
नवाज शरीफ के स्वास्थ्य में सुधार
मरियम ने ट्वीट कर कहा, "प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। दिन में उन्हें गलियारे में कई बार चलाया गया और दो बार उन्हें सीढ़ियों पर चढ़ाया और उतरा गया।"
दैनिक समाचार पत्र डॉन की वेबसाइट के अनुसार शरीफ के अस्पताल में भर्ती होने के बाद से उनके खेमे के मीडिया प्रबंधन का काम मरियम ने संभाल लिया है और अपने पिता की सेहत के बारे में ताजा जानकारी प्रेस को वही देती हैं।
नवाज शरीफ के स्वदेश लौटने की योजना के बारे में ताजा जानकारी भी मरियम से ही मीडिया को मिल रही है।
लंदन के अस्पताल में शरीफ की ओपन हार्ट सर्जरी हुई है। गत सप्ताह स्थिर हालत में उन्हें सघन चिकित्सा कक्ष में भेजा गया।
मरियम ने पहले कहा था कि रमजान के अंत तक शरीफ के पाकिस्तान लौटने की उम्मीद है।
मरियम ने कहा, "तीन धमनियां बंद थीं। अस्पताल से छुट्टी मिलने में अभी पांच या छह दिन और लगेंगे और हम उम्मीद करते हैं कि शरीफ तीन से चार सप्ताह में घर वापस लौट जाएंगे।"
--आईएएनएस
एच7एन9 के कारण हांगकांग में जीवित पक्षियों की बिक्री प्रतिबंधित
समाचार एजेंसी 'एफे' के मुताबिक, शहर के खाद्य और पर्यावरण स्वच्छता विभाग ने एक बयान में कहा कि शहर के 29 जीवित मुर्गी बाजारों में से एक 'यैन ओई' से प्राप्त नमूनों की जांच में विषाणुओं की मौजूदगी की पुष्टि हुई है।
इसलिए विषाणु का प्रसार रोकने के लिए प्रोटोकाल्स के अनुरूप हांगकांग में जीवित पक्षियों के वितरण और बिक्री पर रोक लगा दी गई है। प्रशासन पक्षियों को मारने पर भी विचार कर रहा है।
पादप (फायटोसैनिटरी) विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि तुयेन मन जिले में जहां विषाणु पाए गए थे, वहां दो ऐसी दुकानें थीं। लेकिन उनमें से केवल एक में एच7एन9 विषाणु पाया गया।
प्रवक्ता ने कहा, "दूसरी दुकान के किसी भी नमूने में विषाणु नहीं मिला है।"
प्रवक्ता ने कहा कि जिस दुकान में विषाणु पाए गए थे, उसमें मुर्गियों और बतखों समेत पक्षियों की बिक्री होती थी।
प्रशासन ने विसंक्रमण के लिए बाजार बंद करने का आदेश दे दिया है। साथ ही यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि संक्रमित पक्षी कहां से लाए गए थे। विषाणु संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए पूरे हांगकांग के सभी मुर्गीपालन केंद्रों की व्यापक पैमाने पर जांच की जा रही है।
स्वास्थ्य मंत्री को विंग-मैन ने कहा कि अधिकारी सोमवार को बाद में जोखिम मूल्यांकन करने के बाद बाजार में सभी पक्षियों को मारने की जरूरत और बिक्री पर प्रतिबंध की अवधि पर विचार करेंगे।
को ने कहा कि जीवित पोल्ट्री के आयात पर भी रोक लगा दी गई है, क्योंकि अभी भी यह पता नहीं चला है कि संक्रमित पक्षी हांगकांग के ही हैं या चीन के बाजारों से आयातित हैं।
--आईएएनएस
उत्तराखंड के अधिकारी का नोएडा में निधन
नोएडा, 6 जून (आईएएनएस)। उत्तराखंड में उधमसिंह नगर के जिलाधिकारी अक्षत गुप्ता का यहां निधन हो गया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार, 2006 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी गुप्ता की उम्र केवल 38 साल थी। वह यहां अपने माता-पिता के पास आए थे।
गुप्ता को रविवार देर रात बेचैनी महसूस हुई और सांस लेने में तकलीफ होने लगी। उन्हें नजदीकी चिकित्सा केंद्र ले जाया गया, लेकिन चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अधिकारियों के मुताबिक, गुप्ता को हृदय रोग से संबंधित बीमारी पहले से नहीं थी।
दिवंगत जिलाधिकारी के परिवार के एक सदस्य ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार यहां सोमवार को किया जाएगा।
--आईएएनएस
वजन घटाने की सर्जरी से घट सकती है मोटे मरीजों की मौत दर
लंदन, 5 जून (आईएएनएस)। मोटापा से ग्रस्त मरीज जो वजन कम करने के लिए सर्जरी कराते हैं, उनकी मोटापे की वजह से मरने की आशंका सर्जरी नहीं कराने वालों की तुलना में कम रही है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है।
अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि मोटापे की वजह से दिल का दौरा पड़ने, मस्तिष्काघात और कई तरह के कैंसर जैसी बीमारियों से मौत का खतरा रहता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि वजन कम करने वाली सर्जरी के परिणाम से पता चलता है कि वह मोटापा से जुड़ी मौत के साथ-साथ अस्वस्थता को भी रोक देता है।
अध्ययन के निष्कर्ष से पता चलता है कि जिन समूह की मोटापे की सर्जरी नहीं कराई गई उनमें मरने वाले मरीजों का प्रतिशत 4.21 था, जबकि जिस समूह का मोटापा कम करने का ऑपरेशन किया गया उनमें मरने वालों का प्रतिशत 1.11 था।
जिनका ऑपरेशन किया गया उस समूह पर 5.4 साल तक नजर रखी गई जबकि जिनकी सर्जरी नहीं की गई उन पर 5.5 साल तक नजर रखकर यह औसत निकाला गया।
मरने वाले समूह में हृदय रोग और साथ में कैंसर मौत का सबसे सामान्य कारण था।
उम्र को विचार करने, पहले की बीमारी और सेक्स, हृदय रोग, दिल के वाल्व से जुड़ी बीमारी, कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल का दौरा पड़ना, मस्तिष्काघात सहित अन्य कारकों पर विचार करने के बावजूद जिनकी सर्जरी की गई उनकी मौत में कुल मिलाकर 57 फीसदी की कमी आई।
स्वीडन के गोटेनबर्ग विश्वविद्यालय की क्रिस्टीना पर्सन ने कहा, "अध्ययन से संकेत मिलता है कि मोटे लोग जो वजन कम करने के लिए सर्जरी कराते हैं उनमें और जो मोटापा कम करने की सर्जरी नहीं कराते उनकी तुलना में मौत के कारण कम होते हैं। यह अंतर मुख्य रूप से हृदयवाहिनी से जुड़ी बीमारी और कैंसर की वजह से है।
इस अध्ययन में 48 हजार 693 मोटे मरीजों को शामिल किया गया। इनकी उम्र 18 से 74 साल के बीच थी। इनमें से 22 हजार 581 ने वजन कम करने के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी कराई थी जबकि अन्य 26 हजार 112 लोगों ने सर्जरी नहीं कराई थी।
इस अध्ययन का परिणाम हाल में स्वीडन में आयोजित यूरोपीयन ओबेसिटी समिट 2016 में पेश किया गया था।
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शहरी लोगों में मानसिक रोग का कारण प्रकृति से दूरी
वाशिंगटन, 5 जून (आईएएनएस)। शहरी लोगों में आमतौर पर मानसिक रोग और खराब मूड की समस्याएं देखी जाती हैं, जबकि इसके उलट ग्रामीण क्षेत्रों में कम लोग इस तरह की समस्याओं की शिकायत करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इसका कारण क्या है? एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि इसका कारण शहरी लोगों में प्रकृति से बढ़ती दूरी है।
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के प्रोफेसर पीटर काह्न ने बताया, "हमारे रोग की विशाल संख्या काफी हद तक प्राकृतिक वातावरण से हमारी दूरी से संबंधित है।"
पीटर ने बताया, "शहरों में बच्चे बड़े होने के दौरान कभी भी आसमान के सितारों को नहीं देख पाते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप अपने पूरे जीवन में तारों से जगमगाते आसमान के नीचे न चलें हों और फिर भय, कल्पना और कुछ खो जाने के बाद वापस उसे पाने की भावनाएं विकसित होती हों? "
उन्होंने कहा, "बड़े शहरों को बनाने में हम यह नहीं जान पा रहे हैं कि कितनी तेजी से हम प्रकृति के साथ अपने संबंधों को कम कर रहे हैं, खासकर वन्य जीवन से जो हमारे अस्तित्व का स्रोत है।"
पीटर ने कहा कि बड़े शहरों में कुछ भी प्राकृतिक नहीं है। उन्होंने शहरी लोगों से प्रकृति से जुड़ने के लिए कुछ आसान उपाय अपनाने के लिए कहा। उनका कहना है कि ऐसे भवन बनने चाहिए जिसमें खिड़की के खुलने पर ताजी हवा और प्राकृतिक प्रकाश आए। भवन की छत पर अधिक से अधिक बागीचे लगाए जाने चाहिए। भवन के आस-पास स्थानीय पौधे लगाए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रकृति से जुड़ाव के इससे सीधा संबंध बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। दफ्तर की खिड़की के पार पेड़-पौधों को देखना अच्छा लग सकता है, लेकिन बाहर निकलकर घास के मैदान पर नंगे पांव बैठकर दोपहर का भोजन करने की सुखद अनुभूति कुछ और ही हो सकती है और इसका लाभ भी कुछ और ही हो सकता है।
यह शोध साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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चार चिकित्सकों के सामूहिक इस्तीफा की जांच का आदेश
डीएम के निर्देश पर सीएमओ ने सामूहिक इस्तीफा देने वाले चारों डाक्टरों को कार्यालय में बातचीत के लिए बुलवाया था लेकिन एक भी डॉक्टर अपनी समस्या बताने हमीरपुर नहीं आया। सीएमओ ने इस मामले की लिखित जानकारी भी जिलाधिकारी को दे दी है।
सीएचसी राठ के अधीक्षक डॉ. आर.के. कटियार के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए सीएचसी के डॉ .एम.के. वर्मा, डॉ. अमित वर्मा, डॉ. रवि प्रताप व डॉ. मान सिंह ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दिया था।
डाक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे की प्रति सीएमओ, डीएम, आयुक्त बांदा के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री और महानिदेशक स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय सेवाएं को भी भेजी थीं।
इस मामले को लेकर बीती शाम सीएमओ ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर किसी अधिकारी से प्रकरण की जांच करवाने का अनुरोध किया था।
सीएमओ डॉ.एस.आर. सोनी ने बताया कि आज (रविवार) सुबह ही चारों डॉक्टरों को सूचना देकर वार्ता के लिए कहा गया था, लेकिन देर शाम तक कोई भी डॉक्टर उनके कार्यालय नहीं आया। इस मामले की जानकारी भी जिलाधिकारी को दे दी गई है।
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महिलाओं में माइग्रेन से बढ़ता है हृदय रोग, मौत का खतरा
न्यूयॉर्क, 5 जून (आईएएनएस)। माइग्रेन से ग्रसित महिलाओं में इस बीमारी से अछूती महिलाओं की तुलना में हृदय संबंधी बीमारियों से मरने का खतरा अधिक होता है। यह बात एक नए शोध में सामने आई है।
माइग्रेन एक तेज सिर दर्द होता है, जो अक्सर मितली व रोशनी एवं आवाज सहन न कर पाने की प्रवृति लेकर आता है।
शोध के नतीजे दिखाते हैं कि जिन महिलाओं को माइग्रेन की शिकायत रहती है, उनमें हृदयाघात, स्ट्रोक व छाती में दर्द सहित बड़े हृदय रोगों का खतरा बहुत अधिक होता है।
माइग्रेन का हृदय संबंधी बीमारियों से होने वाली मृत्यु के उच्चतम जोखिम से भी ताल्लुक है।
अमेरिका के हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के टोबियास कुर्थ ने कहा, "ये नतीजे साबित करते हैं कि माइग्रेन को हृदय संबंधी बीमारी के लिए एक अहम जोखिम निशानी के रूप में देखना चाहिए, कम से कम महिलाओं के लिहाज से तो देखना ही चाहिए।"
यह शोध 'द बीएमजे' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने माइग्रेन, हृदय रोग व मृत्युदर के बीच के संबंध का मूल्यांकन किया।
इसके लिए उन्होंने 1989 से 2011 तक 25 से 42 साल की 1,15,541 महिलाओं का विश्लेषण किया।
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भोपाल में अस्पतालों के कचरे से बीमारियों का खतरा
भोपाल, 5 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में संचालित अस्पतालों के कचरे का ठीक तरह से निष्पादन न होना कई बीमरियां का कारण बनता जा रहा है।
संभावना ट्रस्ट क्लीनिक की शहनाज अंसारी, प्रेम चंद्र, आनंद कुमार सुमन, अजय पटेल और अजीजा सुल्तान ने रविवार को कहा कि अस्पतालों के कचरे का असुरक्षित तरीके से निष्पादन होने के कारण भोपाल का पर्यावरण घातक रसायनों से प्रदूषित हो रहा है।
इन कार्यकर्ताओं ने यहां पर्यावरण दिवस पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "एक तरफ अस्पतालों के कचरे को सामान्य कचरे की तरह फेंक दिया जाता है, वहीं रसायनयुक्त कचरे को भस्मक (इंसीनेटर) में निष्पादित किया जाता है। सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम न होने की वजह से हवा में बड़ी मात्रा में डायोक्सीन और पारा घुल जाते हैं, जो कई तरह की बीमारियों को जन्म देते हैं।"
कार्यकर्ताओं ने विभिन्न अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा, "भस्मक से निकलने वाली डायोक्सीन सबसे जहरीला रसायन है, जिसकी वजह से कैंसर, विकृति, संतानोत्पत्ति की क्षमता में कमी, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है। भोपाल में इस तरह के नुकसान की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।"
उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मांग की है कि वह राजधानी में अस्पतालों का कचरा निपटाने वाले तीनों भस्मकों की विधिवत जांच करे, ताकि निर्धारित मापदंडों के मुताबिक ही कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया पूरी हो सके।
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कीमोथेरेपी से होने वाली सुन्नता में व्यायाम सहायक
न्यूयॉर्क, 5 जून (आईएएनएस)। कीमोथेरेपी से होने वाली हाथ-पैरों की कमजोरी, सुन्नता और दर्द को दूर करने में व्यायाम प्रभावी और आसान उपाय हो सकता है।
एक नए शोध के अनुसार, यह जानकारी सामने आई है। इस शोध में वैज्ञानिकों ने 300 कैंसर रोगियों को शामिल किया था। वैज्ञानिकों ने इस दौरान इन सभी रोगियों को घर में ही रेसिस्टेंट-बैंड प्रशिक्षण में शामिल किया। इस दौरान इन रोगियों के न्यूरोपैथिक लक्षणों की व्यायाम न करने वाले रोगियों से तुलना की गई।
अमेरिका में युनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर विल्मट कैंसर इंस्टीट्यूट से इस अध्ययन के मुख्य लेखक इयान क्लेकनर ने कहा, "व्यायाम करने वाले रोगियों ने महत्वपूर्ण रूप से न्यूरोपैथी लक्षणों जैसे जलन, दर्द, झुनझुनी, स्तब्धता और ठंड के प्रति संवेदनशीलता का कम अनुभव किया। वहीं इस दौरान वृद्ध रोगियों पर व्यायाम का काफी असर देखने को मिला।"
इयान ने कहा, "व्यायाम एक शक्तिशाली उपाय है, जो एक ही समय में कई सारे जैविक और मनोवैज्ञानिक कारकों, जैसे मस्तिष्क का विद्युत परिपथ तंत्र, सूजन तथा हमारे सामाजिक संबंधों आदि को प्रभावित करता है। जबकि दवाओं का आम तौर पर एक विशेष लक्ष्य होता है और वह वहीं तक सीमित होती हैं।"
यह शोध अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लीनिकल ओन्कोलॉजी (एएससीओ) 2016 की शिकागो में होने वाली वार्षिक बैठक में प्रकाशित किए जाएंगे।
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