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मैक्स समूह के अध्यक्ष राहुल बने हेल्थकेयर फेडरेशन के अध्यक्ष

नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। भारत की प्रमुख हेल्थकेयर फेडरेशन नाथइल्थ ने साल 2016-17 के लिए अपने नेतृत्व दल में बदलाव किया है और मैक्स समूह, मैक्स इंडिया, मैक्स लाइफ और मैक्स हेल्थकेयर के अध्यक्ष राहुल खोसला को अध्यक्ष चुना गया है।

इस पद पर अब तक जानसन एंड जानसन मेडिकल इंडिया के डायबिटीज केयर एशिया पैशिफिक के उपाध्यक्ष सुशोभन दास गुप्ता थे।

वहीं, नाथइल्थ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के पद पर डॉ. लाल पैथ लैब लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अरविंद लाल चुने गए। फेडरेशन के अन्य सदस्यों में जीईहेल्थकेयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और अध्यक्ष मिलन राव, विप्रो जीई हेल्थकेयर के उपाध्यक्ष वरुण खन्ना, फोर्टिस हेल्थकेयर के अध्यक्ष, ट्रेजरर दलजीत सिंह के साथ नाथइल्थ के महासचिव के पद पर अंजन बोस को नियुक्त किया गया है।

नाथइल्थ के अध्यक्ष राहुल खोसला का कहना है, "भारतीय हेल्थकेयर पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिभा, अवसंरचना, क्षेत्रीय पहुंच और स्थिरता, सामथ्र्य और गुणवत्ता जैसी चीजों में सुधार करने के काफी अवसर हैं। नाथइल्थ की यही सोच हैं और मैं इसी को आगे बढ़ाने का काम करूंगा।"

नाथइल्थ के महासचिव अंजन बोस ने कहा, "हम अपने नए नेतृत्वमंडल का स्वागत करते हैं, ताकि हम स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास इससे जुड़े मुद्दों पर साथ मिलकर काम कर सकें।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • प्रौढ़ावस्था में तंदुरुस्ती से बुढ़ापे में दौरा पड़ने का खतरा कम

    न्यूयार्क, 14 जून (आईएएनएस)| प्रौढ़ावस्था में यदि आप तंदुरुस्त रहते हैं तो बुढ़ापे में दौरा पड़ने का खतरा कम रहता है। भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में हुए अध्ययन रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह रिपोर्ट शारीरिक रूप से जीवनभर स्वस्थ रहने के लाभ को मजबूती प्रदान करती है। इसके निष्कर्षो से पता चलता है कि जो प्रौढ़ावस्था में तंदुरुस्त रहते हैं, उनमें 65 साल के होने के बाद भी उनकी तुलना में दौरा पड़ने का खतरा 37 फीसदी कम रहता है, जो प्रौढ़ावस्था में तंदुरुस्त नहीं रहते।

    तंदुरुस्ती और दौरा पड़ने के बीच ये संबंध उच्च रक्त चाप, मधुमेह और आर्टियल फाइब्रिलेशन जैसी बीमारियों के संदर्भ में भी जस की तस रहे।

    इस शोध-पत्र के प्रमुख लेखक अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर के अंबरीश पांडेय ने कहा, "हमारे शोध से पता चलता है कि प्रौढ़ावस्था में तंदुरुस्ती ठीक नहीं रहने से जीवन में बाद में दौरा पड़ने का अतिरिक्त खतरा रहता है।"

    अध्ययन के दौरान 45 से 50 साल के 19,815 लोगों को शामिल किया गया। इनमें 79 फीसदी पुरुष थे। इस अध्ययन दल ने प्रतिभागियों के दिल और फेफड़े के व्यायाम की क्षमता, दिल और फेफड़ों की योग्यता जांच की और उनकी योग्यता के हिसाब से उच्च, मध्यम और निम्न तीन श्रेणी में बांट दिया।

    'स्ट्रोक' जर्नल में प्रकाशित इस शोध पत्र में एसोसिएट प्रोफेसर जारेट बरी ने कहा है, "यह अध्ययन दौरा से बचाव के लिए व्यायाम के अलग-अलग एवं स्वतंत्र भूमिका का समर्थन करता है।"

    अमेरिकी हार्ट एसोसिएशन ने कहा है कि दिन में आधे घंटे एवं हफ्ते में पांच दिन व्यायाम करने से हृदयवाहिनी स्वास्थ को बेहतर कर सकता है।

  • जन्म के समय कम वजन से गर्भावस्था व स्वास्थ्य को खतरा

    सिडनी, 14 जून (आईएएनएस)| जिन महिलाओं का वजन पैदा होने के समय कम रहा हो, उन्हें आगे चलकर गर्भावस्था के दौरान परेशानी हो सकती है और उनमें दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने का खतरा भी अधिक होता है। एक नए शोध से यह जानकारी मिली है। इस शोध में जन्म के समय कम वजन और तनाव की शिकार महिलाओं के गर्भावस्था के बाद स्वास्थ संबंधी परेशानियों पर अध्ययन किया गया।

    ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय के डॉक्टोरल छात्र जीन नी चेओंग ने कहा, "इस शोध में पता चला है कि तनाव और जन्म के समय कम वजन होने के कारण गर्भावस्था के बाद मां के हृदय, दिल, किडनी, एड्रेनल और चयापचय स्वास्थ्य संबधी समस्याएं हो सकती हैं।"

    शोधकर्ताओं का कहना है कि दोनों जोखिम कारक मिलकर कोई बहुत अधिक जोखिम पैदा नहीं करते है।

    यह शोध जर्नल ऑफ साइकोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।

    चेओंग आगे बताते हैं, "गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं के उभरने के खतरे की पहचान और उसके बाद दीर्घकालिक रोगों की पहचान से समय रहते उसकी रोकथाम और उपचार के कदम उठाए जा सकते हैं।"

  • प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में मददगार लेजर तकनीक

    न्यूयॉर्क, 13 जून (आईएएनएस)| अमेरिका के शोधार्थियों ने एक प्रायोगिक अध्ययन में पाया है कि लेजर के माध्यम से ट्यूमर पर सटीक तरीके से ऊष्मा का प्रभाव प्रोस्टेट कैंसर के मध्यवर्ती जोखिम से गुजर रहे पुरुषों के लिए लाभदायक हो सकता है। इसके साथ ही यह पारंपरिक चिकित्सा से संबंधित दुष्प्रभावों से भी बचाव करता है। काफी पहले से प्रोस्टेट कैंसर का इलाज सर्जरी और विकिरण के माध्यम से ही होता रहा है। जिससे इरेक्टाइल डिसफंक्शन और मूत्र असंयम जैसे कई दुष्प्रभाव होने का खतरा होता है।

    इस छह महीने की प्रक्रिया के दौरान शोधार्थियों को मूत्र और यौन गतिविधियों में कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं मिला।

    यह तकनीक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) का प्रयोग करती है, जो कैंसर ट्यूमर में एक लेजर फाइबर की प्रविष्टि का मार्गदर्शन करता है। गरम होने पर लेजर कैंसर ऊतकों को नष्ट कर देता है।

    युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक लियोनॉर्ड मार्क्‍स ने कहा, "यह तकनीक प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए एक नई और रोमांचक अवधारणा है।"

    यह शोध 'जर्नल ऑफ यूरोलॉजी' में प्रकाशित हुआ है।

  • अमेरिका में बगैर हृदय के डेढ़ साल जीवित रहा शख्स

    शिकागो, 12 जून (आईएएनएस/सिन्हुआ)। अमेरिका में मिशिगन राज्य के पिसिलैंट शहर में 25 वर्षीय एक व्यक्ति हृदय नहीं रहने के बाद भी लगभग डेढ़ साल तक जीवित रहा। 'सीएनएन' की रिपोर्ट के अनुसार, शख्स का मई में हृदय प्रत्यारोपण किया गया। इससे पहले 555 दिनों तक (लगभग डेढ़ साल) वह हृदय के बगैर जीवित रहा।

    'सीएनएन' की शुक्रवार की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टैन लार्किन नाम के इस शख्स का हृदय कुछ स्वास्थ्य कारणों से नवंबर 2014 में निकाल दिया गया था, जिसके बाद से वह एक पोर्टेबल कृत्रिम हृदय पर निर्भर थे।

    स्टैन प्रत्यारोपण के बाद से अस्पताल में ही हैं। उन्हें अगले सप्ताह अस्पताल से छुट्टी मिलने की संभावना है, जिसके बाद वह घर लौट सकते हैं।

  • देश में 2500 बच्चे प्रति वर्ष मस्तिष्क ट्यूमर के शिकार

    नई दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)| विश्व में मस्तिष्क संबंधी रोगों के बढ़ने के साथ ही हर साल 2,500 से भी ज्यादा भारतीय बच्चे मस्तिष्क मेरु-द्रव्य (सीएसएफ) के जरिए फैलने वाले एक घातक मस्तिष्क ट्यूमर से पीड़ित हो जाते हैं। चिकित्सकों के मुताबिक, भारत में हर साल 40,000-50,000 व्यक्तियों में मस्तिष्क कैंसर का निदान किया जाता है। इनमें से 20 प्रतिशत बच्चे होते हैं। एक साल पूर्व यह आंकड़ा पांच प्रतिशत के आसपास था।

    यहां बीएलके अस्पताल के न्यूरोसर्जरी एवं इंटरवेंशनल एंड एंडोवास्कुलर न्यूरोसर्जरी के निदेशक और प्रमुख विकास गुप्ता ने कहा, "वर्तमान में मस्तिष्क कैंसर के 20 प्रतिशत मामले बच्चों में होते हैं। इन वर्षो में इनमें वृद्धि हुई है। इसके संकेतों में बार-बार उल्टी आना और सुबह के समय सिरदर्द (जिसे कई बार जठरांत्र रोग या माइग्रेन समझ लिया जाता है) शामिल है।"

    ब्रेन ट्यूमर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, ल्यूकेमिया के बाद मस्तिष्क ट्यूमर बच्चों में दूसरा सबसे आम कैंसर है।

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय पर उपचार किया जाए तो बच्चे बिना किसी परेशानी के 70-80 साल की उम्र तक जीवित रह सकते हैं।

    सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन विभाग के प्रमुख सतनाम सिंह छाबड़ा ने कहा, "मस्तिष्क की क्षति केवल बच्चों में ही नहीं, बल्कि कुल मिलाकर एक गंभीर समस्या है। इसके कारण सोचने, देखने और बोलने में समस्या हो सकती है। इसके कारण व्यक्तित्व में बदलाव या दौरा पड़ने की समस्या भी हो सकती है।"

    इसके कारणों के बारे में उन्होंने कहा, "मस्तिष्क ट्यूमर का एक छोटा प्रतिशत अनुवांशिक विकारों और कुछ विषाक्त पदार्थों या विकिरण के संपर्क में आने जैसे पर्यावरणीय खतरों से जुड़ा है।"

    आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में मस्तिष्क ट्यूमर से पीड़ित बच्चों में से केवल छह प्रतिशत को सही इलाज की सुविधा मिलती है।

    सरोज सुपर स्पेश्यलिटी अस्पताल में न्यूरो सर्जरी के वरिष्ठ परामर्शदाता शैलेश जैन ने कहा, "कई बार सर्जरी संभव नहीं होती, खासतौर पर ट्यूमर अगर मस्तिष्क स्टेम या कुछ अन्य जगहों पर हो। जिन लोगों की सर्जरी नहीं की जा सकती, उन्हें रेडिएशन थेरेपी या अन्य उपचार दिया जा सकता है।"

  • गर्भावस्था के दौरान हर 5 मिनट पर मरती है एक मां : डब्ल्यूएचओ

    मुंबई, 12 जून (आईएएनएस)| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने रविवार को कहा कि गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के समय हर पांच मिनट पर एक भारतीय मां की मौत होती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, हर साल बच्चे के जन्म से जुड़ी 5 लाख 29 हजार महिलाओं की मौत होती है। उनमें 1 लाख 36 हजार यानी 25.7 फीसदी अकेले भारत में मरती हैं।

    डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा, "वास्तव में दो तिहाई मौतें बच्चा पैदा होने के बाद होती हैं। प्रसव के बाद रक्तस्राव सबसे बड़ी समस्या है। आपातकालीन प्रसव के बाद गर्भाशय के फट जाने से प्रति एक लाख में 83 माताएं मौत की शिकार हो जाती हैं मातृत्व मृत्यु दर 17.7 प्रतिशत है जबकि नवजात मृत्यु दर 37.5 प्रतिशत है।"

    बच्चे के जन्म के 24 घंटे के अंदर यदि महिला का 500 मिली लीटर या 1000 मिली लीटर रक्त निकले तो वह रक्तस्राव (पीपीएच) की परिभाषा के तहत आएगा।

    भारत में अत्यधिक रक्तस्राव की घटनाएं बहुत अधिक होती हैं, इसलिए ऐसा नहीं लगता कि देश सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) 5 हासिल कर पाएगा। एमडीजी के तहत मातृत्व मृत्यु कम करने और सबको प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

    बयान में कहा गया, "भारत में मातृत्व मृत्यु दर के वर्ष 2011-13 के ताजा आकलन के अनुसार हर एक लाख बच्चा पैदा होने के दौरान 167 माताओं की मौत हो जाती है। यह आकलन यह भी दिखाता है कि भौगोलिक रूप से कितना अंतर है। सबसे अधिक 300 मौतें असम में और सबसे कम 61 मौतें केरल में हुई हैं।"

    डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में खून की आपूर्ति बहुत की कम है। हर देश को कम से कम एक प्रतिशत खून आरक्षित रखने की अपेक्षा की जाती है।

    बयान में यह भी कहा गया है, एक अरब 20 करोड़ आबादी वाले भारत को हर साल 1 करोड़ 20 लाख यूनिट खून की जरूरत है लेकिन केवल 90 लाख यूनिट एकत्र किया जाता है। इस तरह 25 प्रतिशत खून की कमी रह जाती है। दुनिया भर में मरीजों के रक्त प्रबंधन के क्षेत्र में नवप्रवर्तन हो रहे हैं जबकि भारत में इसके प्रबंधन की अनदेखी की गई है।

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