भारत की जनसंख्या वृद्धि के पीछे धर्म नहीं विकास है मुख्य कारण

खरी बात

श्रेया शाह

भारत में उच्च प्रजनन दर धार्मिक मान्यताओं से अधिक शैक्षिक स्तर और समाजिक-आर्थिक विकास से जुड़ी है। इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार, सरकारी आंकड़े और शोध इसके प्रमाण हैं।

साक्ष्यों के विश्लेषण से पता चलता है कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और उच्च महिला साक्षरता दर वाले संपन्न परिवारों में प्रजनन दर कम है। वैश्विक स्तर पर धर्म और प्रजनन दर में बहुत थोड़े साक्ष्य जुड़े हुए दिखते हैं। ऐसे गरीब और संकटग्रस्त देश जहां महिलाओं को कम अधिकार प्राप्त हैं वहां प्रजनन दर अधिक देखने को मिली है।

जब भारत के महापंजीयक जनगणना आयुक्त कार्यालय ने पिछले साल देश की आबादी के लिए प्रजनन दर जारी की, तो धर्म आधारित जनसंख्या वृद्धि के अंतर ने चर्चा को भटका दिया। कई समाचार पत्रों ने इस आंकड़े पर जोर दिया कि मुस्लिम समाज में प्रजनन दर, गैर-मुस्लिम समाज से ज्यादा रही। इस वजह से मुसलमानों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।

यह अंतर्निहित तर्क कि दूसरे धार्मिक समुदायों की अपेक्षा मुस्लिमों के ज्यादा बच्चे हैं। इस आंकड़े ने यह भुला दिया कि कैसे जनसंख्या वृद्धि और कुल प्रजनन दर (टीएफआर) भारत के अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं। राज्यों में टीएफआर बारीकी से प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य सुरक्षा और दूसरी जरूरी सुविधाओं से जुड़ी हुई है।

विकास और प्रजनन : केरल और उत्तर प्रदेश के मामले

केरल और उत्तर प्रदेश की तुलना करने पर जनगणना आंकड़ों के अनुसार 2011 में उत्तर प्रदेश की टीएफआर 3.3 थी, जो भारत के औसत 2.4 से ज्यादा रही। यह केरल के टीएफआर 1.8 से भी अधिक रही। साल 2001 से 2011 के बीच उत्तर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या 25.19 प्रतिशत बढ़ी, जबकि केरल में मुस्लिम जनसंख्या 12.83 प्रतिशत बढ़ी। इसी काल में उत्तर प्रदेश में हिंदू जनसंख्या 18.9 प्रतिशत बढ़ी और केरल में 2.8 प्रतिशत।

एक गैर लाभकारी पत्रकारिता पोर्टल, द वायर को दिए साक्षात्कार में भारतीय योजना आयोग के पूर्व सचिव एन. सी. सक्सेना ने कहा कि उत्तरी राज्यों में मुस्लिमों की उच्च जनसंख्या वृद्धि दर 'मुस्लिम संस्कृति से ज्यादा उत्तरी संस्कृति का हिस्सा है'।

भारत के उच्च प्रजनन दर वाले राज्य उत्तर और मध्य भारत के हैं - बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान (टीएएआर 2.9), झारखंड (2.8) और छत्तीसगढ़।

इन सभी राज्यों की प्रजनन दरें ज्यादातर राज्यों के विकास से जुड़ी दिखती हैं। उदाहरण के लिए साल 2011 में केरल की साक्षरता दर 93.9 प्रतिशत रही, जबकि उत्तर प्रदेश की 69.7 प्रतिशत। इसी साल में 99.7 प्रतिशत केरल की मांओं को उत्तर प्रदेश के 48.4 प्रतिशत की तुलना में प्रसव के दौरान चिकित्सा सुलभ हुई। केरल में 21 साल से ऊपर शादी करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 74.9 है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह 47.6 प्रतिशत है।

एक दूसरा तरीका जनसंख्या वृद्धि दर की व्याख्या करने के लिए गरीब और अमीर राज्यों में अंतर का है। सशक्त कार्रवाई समूह (ईएजी) राज्य, जिसमें भारत के गरीब राज्य आते हैं-राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। साल 2001 से 2011 के बीच ईएजी राज्यों की जनसंख्या 21 प्रतिशत बढ़ी, बाकी भारत की 15 फीसद रही। हालांकि दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर ईएजी राज्यों में भी दशकीय वृद्धि दर की तुलना में गिरी है। यह साल 1991 से 2001 के बीच 24.99 प्रतिशत रही।

मुस्लिम प्रजनन दर के किसी राज्य में ज्यादा होने की एक दूसरी वजह धन संपत्ति के कारक हैं। सर्वे में यह सामने आया है कि अमीर परिवारों के मुकाबले, गरीब परिवारों में ज्यादा बच्चे हैं। उदाहरण के लिए बिहार में महिला की संपत्ति में हिस्सेदारी सबसे कम है, वहां टीएफआर दर 5.08 है। जबकि जहां हिस्सेदारी संपत्ति में ज्यादा है, वहां टीएफआर 2.12 प्रतिशत है। महाराष्ट्र जैसे धनी राज्य में यह दिखता है, जहां संपत्ति में कम हिस्सेदारी का टीएफआर 2.78 और संपत्ति में ज्यादा हिस्सेदारी का टीएफआर 1.74 है।

साल 2013 के राष्ट्रीय सर्वे रपट के मुताबिक, साल 2009 -2010 के आंकड़ों के अनुसार, औसत रूप से पूरे भारत में हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम गरीब हैं। उनकी औसत प्रति व्यक्ति खर्च 833 रुपये, जबकि हिंदुओं का 888 रुपये है। इसी तरह ईसाइयों की 1296 रुपये और सिखों की 1498 रुपये है।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारित मंच, इंडिया स्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। श्रेया शाह स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में प्रस्तुत विचार इंडिया स्पेंड के हैं।)

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