यह सच है कि देश की आजादी की डोली जिन कंधों पर आई, उनमें पत्रकारिता भी एक है। अब पत्रकारिता नए पारिभाषिक अर्थों में वृहत्तर मीडिया का एक घटक भर है और हिंदी पत्रकारिता उसका भी उपांग।

हमारा समकाल एक दुष्ट समय है। इस दुष्ट समय में सर्वे गुणा कांचन माश्रयंति का मंत्र चलता है। हमारे मीडिया कारपोरेट पूंजी और धनाढ्यों का अस्त्र और प्रचार माध्यम है। एक कोरस पुराने गीत की तर्ज पर चल रहा है-कहो जी तुम क्या-क्या खरीदोगे, यहां तो हर चीज बिकती है। इस मीडिया में आम जन की जगह सिमटते-सिमटते तकरीबन मिट सी गई है।

क्या सामाजिक सरोकार रखने वालों को इस परिस्थिति का तोड़ नहीं खोजना चाहिए। मीडिया का विकल्प तो मीडिया ही हो सकता है। फिर वह जन मीडिया हो कि वैकल्पिक मीडिया।

खरी न्यूज डॉट काम सर्वसमर्थ कारपोरेट धन संपन्न मीडिया के विकल्प में जगह तलाश करने की कोशिश है। स्वतंत्रता संग्राम में जो अर्जित मूल्य संविधान की मूल प्रतिज्ञा (प्रियंबल) में दर्ज हैं-उनकी रक्षा में खड़े होने की एक विनम्र, छोटी मगर ठोस कोशिश है-खरी न्यूज डॉट काम।

प्रश्न यह है कि क्या यह कोशिश वैकल्पिक मीडिया बन सकता है? उसमें जन पक्ष की ओर से हिस्सेदारी कर सकता है, लोक-चेतना और लोक-जागरण की भूमिका निभा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर है-हां। जब बूंद बूंद से घट भर सकता है तो छोटे-छोटे प्रयासों से दैत्य मीडिया का विकल्प क्यों तैयार नहीं हो सकता? इसी आशा और विश्वास के साथ हम यह प्रयास करने की हिम्मत जुटा पाये हैं।

चूंकि हम गलतफहमी में नहीं हैं और मुख्यधारा के मीडिया की धन और पहुंच की ताकत को कम करके नहीं आंकते, इसलिए हमारी जरूरत सहयोगियों से सहयोग की है। आपका सहयोग खरी न्यूज के लिए लेखन के रूप में हो सकता है। आप अगर लेखन का काम करते हैं तो आपके लिखे हुए लेखों, खबरों आदि का हम स्वागत करते हैं। आपका सहयोग विज्ञापन की शक्ल में हो सकता है। साधन संपन्न के मुखालिफ जन माध्यम का विकल्प बिना आर्थिक सहयोग के संभव नहीं है। इसलिए हम विज्ञापन भी प्रसारित, प्रचारित, विज्ञापित करेंगे। चूंकि हमारा लक्ष्य वृहत्तर जन समुदाय है इसलिए विज्ञापन की दूर तक पहुंच के प्रति भी हम आश्वस्त हैं।

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