संगीत को आख्यान के केन्द्र में रख कर उपन्यास लिखना एक जोखिम भरा काम- राजेश जोशी

साहित्य

भोपाल: 6 जून/ “जलतरंग” शास्त्रीय संगीत पर पहला उपन्यास है जो स्वागत योग्य है। “जलतरंग” में संतोष चौबे का गहरा और व्यापक शोध नजर आता है। इसकी एक बड़ी खूबी है कि संगीत के स्वरूप और विकास के प्रति पूरी तरह तथ्यात्मक रहते हुए वे एक सार्थक कथा की सृष्टि करते है। यह बात वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने कही। वे बुधवार शाम रवींद्र भवन परिसर स्थित स्वराज संस्थान सभागार में हिन्दी के बहुचर्चित लेखक-संस्कृतिकर्मी संतोष चौबे के नव प्रकाशित उपन्यास “जलतरंग” पर आयोजित समीक्षात्मक परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में दो स्तर है, एक है देवाशीष और स्मृति और दूसरा है संगीत की कथा। दोनों को एक यात्रा के माध्यम से जोड़ा गया है। यह हमें संगीत के कई समयों में ले जाती है। इन समयों का वर्णन पठनीय है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने कहा कि उपन्यास “जलतरंग” संगीत की कई दुर्लभ और अलक्षित जानकारियों के साथ ही शास्त्रीय संगीत के भीतर उतरने की तैयारी की यात्रा है।

उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत को आख्यान के केन्द्र में रख कर उपन्यास लिखना एक जोखिम भरा काम है। संतोष ने इसे बहुत सलीके से अंजाम दिया है।

साहित्यकार श्याम मुंशी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अपने आप में यूनिक उपन्यास है। संगीत को माध्यम बनाकर किसी ने ऐसा उपन्यास या कहानी नहीं लिखी है। इसे लिखने के लिए बहुत ही अध्ययन किया गया है, इसमें संगीत की तमाम जानकारी को बहुत ही आसान और रोचक तरीके से बताया गया है। इसमें एक तरह की रवानगी और लयात्मकता है।

कवि बलराम गुमास्ता ने इसे जानकारी प्रदान करने वाला रोचक उपन्यास निरूपित किया जो संगीत के विद्यार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी है। इस मौके पर वरिष्ठ आलोचक भगवान दास मोरवाल, लीलाधर मंडलोई ने भी संबोधित किया। कथाकार संतोष चैबे ने कहा कि संगीत मेरे जीवन का हिस्सा रहा है और एक तरह से देखा जाए तो हर व्यक्ति के जीवन में संगीत अदृश्य रूप से विद्यमान रहता है। आमंत्रित वक्ताओं को वनमाली सृजनपीठ के संयोजक विनय उपाध्याय ने स्मृति चिन्ह भेंट किए। संचालन कथाकार मुकेश वर्मा ने किया।

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