एम्स को परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता से परहेज

राज्य, फीचर

संदीप पौराणिक

देश के सबसे बड़े सरकारी चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा में शामिल होने वाले परीक्षार्थियों को न तो प्रश्न-पत्र मिलता है और न ही उत्तर पुस्तिका (आंसर-की) दी जाती है। इतना ही नहीं, परीक्षा में परीक्षार्थी को कितने नंबर मिले हैं, यह भी नहीं बताया जाता। है न गजब की परीक्षा प्रकिया!

एम्स इस परिपाटी को आगे भी जारी रखने वाला है। एम्स के परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने से परहेज पर तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं।

देश में सूचना का अधिकार लागू है। लिहाजा, देशहित के कुछ मामलों को छोड़कर अधिकांश जानकारियां आसानी से मिल जाती हैं। एक तरफ सूचना हासिल करना आसान है, तो दूसरी ओर कई शिक्षण संस्थान ऑनलाइन परीक्षा आयोजित कर कुछ ही देर में परिणाम जारी कर देते हैं। परीक्षार्थी को प्रश्न-पत्र व आंसर-की भी आसानी से मिल जाती है और परीक्षा में हासिल किए गए नंबरों का भी खुलासा कर दिया जाता है, मगर भोपाल एम्स ऐसा नहीं करता।

मध्यप्रदेश के नीमच जिले के निवासी सूचना का अधिकार कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने एम्स की प्रवेश परीक्षा में पारदर्शिता न होने पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जानना चाहा था कि आखिर क्या वजह है कि भोपाल एम्स की परीक्षा में पारदर्शिता नहीं बरती जाती। साथ ही उन्होंने नीट, आईआईटी-जेईई जैसी अतिमहत्वपूर्ण परीक्षाओं में प्रश्न-पत्र, आंसर-की दिए जाने के साथ परीक्षा में मिले अंक बताए जाने का भी जिक्र किया था।

गौड़ को एम्स के परीक्षा अनुभाग के उप संकायाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार जरयाल ने जो जवाब भेजा है, उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि एम्स द्वारा हर परीक्षा के बाद परीक्षार्थियों को मौका दिया जाता है कि अगर उन्हें प्रश्नों से संबंधित कोई शिकायत है तो वह लिखित या ई-मेल से इसकी जानकारी एम्स को दे सकते हैं, इस तरह के आवेदनों को संग्रहीत करके उन पर जानकारों की राय के आधार पर उचित कार्रवाई होती है।

भोपाल एम्स की ओर से जो जवाब भेजा गया है, उसमें प्रश्न-पत्र, आंसरशीट और नंबर न बताए जाने को लेकर चली आ रही व्यवस्था में बदलाव करने का कोई हवाला नहीं दिया गया है। एम्स के जवाब से यही प्रतिध्वनित हो रहा है कि वह पूर्ववत चली आ रही व्यवस्था को ही लागू रखेगा, यानी न तो प्रश्न-पत्र मिलेंगे, न ही आंसर-की दी जाएगी और न ही नंबर बताए जाएंगे।

गौड़ का कहना है कि कई प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद एम्स की परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के मकसद से उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था, मगर एम्स की परीक्षाओं में खुलापन लाने की उनकी कोशिश बेकार गई। फिर भी वह प्रधानमंत्री से अपेक्षा करेंगे कि छात्रों के हित में इस समस्या का निदान करें।

गौड़ कहते हैं कि एम्स की प्रवेश परीक्षा में कुल 180 प्रश्न पूछे जाते हैं, अब सवाल यह उठता है कि क्या किसी को ये प्रश्न मय विकल्पों के याद रह सकते हैं? जब ऐसा होगा, तभी तो छात्र एम्स के परीक्षा अनुभाग से अपनी शिकायत कर सकेगा। साथ ही सवाल उठता है कि भोपाल एम्स पारदर्शिता बरतने को क्यों तैयार नहीं है।

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