महबूबा सरकार का पतन कश्मीर में लौटा सकता है शांति : कर्रा

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सरवर काशानी

कश्मीरी राजनीतिज्ञ और हाल में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और संसद की सदस्यता छोड़ने वाले तारिक कर्रा का कहना है कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा सरकार के पतन से कश्मीर घाटी की सड़कों पर फिर से शांति बहाल हो सकती है।

पीडीपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रह चुके कर्रा ने श्रीनगर से फोन पर आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि पीडीपी नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों ने जम्मू एवं कश्मीर में अलगाववादियों और भारत समर्थक विचारधारा से अलग अस्तित्व रखने वाली मध्यमार्गी धारा का वजूद ही खत्म कर दिया है।

उन्होंने कहा कि 1998 में पीडीपी का गठन उस खाली जगह को भरने के लिए किया गया था 'जिसमें लोग भारत समर्थक और भारत विरोधी होने के दो अतिरेकों के बीच फंस गए थे।' पार्टी ने 'इन दो चरम रुख के बीच का रास्ता निकाला था।'

दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के बेहद करीबी रह चुके कर्रा ने कहा, "मैंने एक-एक ईंट जोड़कर पीडीपी बनाई थी, लेकिन आज मुख्यधारा के सभी राजनेता अप्रासंगिक हो चुके हैं। और, इसके लिए जिम्मेदार पीडीपी और भाजपा का अपवित्र, अनैतिक और अस्वीकार्य गठबंधन है। पीडीपी ने अवाम को धोखा दिया क्योंकि उसने लोगों से वोट भाजपा को सत्ता से दूर रखने के नाम पर मांगा था। इसी गठजोड़ ने उस गुस्से और असंतोष की बुनियाद रखी जिसे आप कश्मीर घाटी की सड़कों पर आज देख रहे हैं।"

आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने का जिक्र करते हुए कर्रा ने कहा कि इस घटना ने नाराजगी को केवल सतह पर लाने का काम किया। इसके बीज तो उसी दिन पड़ गए थे जिस दिन पीडीपी-भाजपा का गठबंधन हुआ था। बाद में सत्ता में बैठे लोगों के खराब शासन और गैर जिम्मेदाराना तथा अहंकारी रुख ने इस गुस्से को और हवा दी।

कर्रा ने कहा, "रोजाना हत्याएं और खुलेआम खूनखराबा, भारत सरकार द्वारा कश्मीरियों के खिलाफ अघोषित युद्ध जैसा है और जम्मू एवं कश्मीर सरकार इसमें मदद कर रही है। इसे रोकना होगा। आज लोगों में यह धारणा बन गई है कि जम्मू एवं कश्मीर की सरकार लोगों के खिलाफ है। यह भारत की भाजपानीत सरकार के फासीवादी रुख के लिए मददगार बनी हुई है। आम राय यही है कि अगर पीडीपी-भाजपा की सरकार चली जाए तो शायद लोगों का गुस्सा कम हो जाए।"

उन्होंने साथ ही कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में स्थायी शांति के लिए इस मसले का स्थायी समाधान निकालना होगा। यह पूछने पर कि क्या उनका रुख वही नहीं है जो अलगाववादियों का है, कर्रा ने कहा कि वह आज भी मुख्यधारा के राजनेता हैं लेकिन वह सच बोलते हैं। उन्होंने कहा कि कोई संविधान के दायरे में रहकर भी सच बोल सकता है।

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