सिद्धू बनेंगे पंजाब चुनाव के 'गेम चेंजर'

फीचर, चुनाव

संदीप त्रिपाठी

तो अब पंजाब में क्या होगा? यह सवाल बड़ा मौजू है। पंजाब में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जो धारणा राजनीतिक परिदृश्य पर साया हो रही है, उससे अब तक यही लग रहा था कि आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब में बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। लेकिन भाजपा के बागी पूर्व क्रिकेटर और पूर्व सांसद नवजोत सिंह सिद्धू के नए मोर्चा 'आवाज-ए-पंजाब' के साथ मैदान में उतर आने से आप की मुश्किल थोड़ी बढ़ गई है।

सिद्धू ने नशा, भ्रष्टाचार, विकास और पंजाबियत को अपना मुद्दा बनाया है। सिद्धू के मैदान में उतरने से पहले तक की सट्टा बाजार की धारणा पर बात करें तो 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में आप 65 से ज्यादा सीटें जीतती दिख रही थी। वहीं अकाली-भाजपा 25 सीटों तक और कांग्रेस भी 25 सीटों तक सिमटती दिख रही थी। इसकी वजह थी।

दरअसल, पंजाब में नशे के कारोबार पर अंकुश नहीं लगा पाने से अकाली दल के खिलाफ भारी नाराजगी है। अकाली दल के आलाकमान प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल को 'खलनायक' के रूप में स्थापित किया जाने लगा है। वैसे ही, जैसे 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले डॉ. मनमोहन सिंह और दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले शीला दीक्षित को खलनायक के रूप में स्थापित किया गया था।

जब सत्ता में बैठे किसी नेता के प्रति धारणा खलनायक के रूप में स्थापित होने लगती है तो उसके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों की भी अनदेखी होने लगती है। साथ ही इसका परिणाम उसके साथियों को भी भोगना पड़ता है, भले ही वे साथी उन नकारात्मक कार्यों में साथ न दिए हों। इसी कारण भाजपा को अकाली दल के साथ होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

कांग्रेस अब तक इस खुशफहमी में थी कि अकाली-भाजपा गठजोड़ से जनता निराश होगी तो फायदा उसी को होना है। लेकिन दिल्ली में सत्तारूढ़ आप के पंजाब में सक्रिय हो जाने से कांग्रेस और कैप्टन अमरिंदर सिंह का गणित गड़बड़ा गया है।

हालांकि यह भी सही है कि पंजाब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे प्रताप सिंह बाजवा ने अपने कार्यकाल में पंजाब में नशे को मुद्दा बनाने की दिशा में बहुत काम किया था। लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला के नरेश खानदान के हैं। उनका 'राजसी खून' उनके जनता की आवाज बनने में आड़े आता है। इससे बाजवा के किए कार्यो का लाभ कांग्रेस को मिलता नहीं दिख रहा है।

इस बात को इस तरह देखिए- कांग्रेस के कार्यकाल में घोटालों की बाढ़ आई। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण को भ्रष्टाचार का मुद्दा समझ में आया। वर्ष 2009 में आडवाणी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा निकाली। लेकिन कुछ पार्टी की कमजोरी, कुछ अन्य कारणों से आडवाणी इस रथयात्रा के जरिए भ्रष्टाचार को बड़े मुद्दे के रूप में स्थापित नहीं कर पाए और पार्टी चुनाव हार गई।

लेकिन आडवाणी की इस रथयात्रा का लाभ 10 साल बाद केजरीवाल ने उठाया। भारत की धर्मप्राण जनता को रिझाने के लिए केजरीवाल ने गांधी की तर्ज पर एक सामाजिक संत नेता अन्ना हजारे को महाराष्ट्र से दिल्ली ले आए और उनकी छवि के आधार पर भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना दिया। इसके बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर इस मुद्दे का सियासी लाभ पहले दिल्ली में उठाया। यही वाकया अब पंजाब में दोहराया जा रहा है।

पंजाब में शीला दीक्षित के स्थान पर हैं सुखबीर बादल। हर्षवर्धन या विजेंद्र गुप्ता के स्थान पर हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह और इन सबके बीच केजरीवाल ने पंजाब में आप को स्थापित करने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दी। अब स्थिति यह हो गई है कि आप केजरीवाल के विरोधी बनकर उन पर जितने हमले करेंगे, वह उतने ही मजबूत होते जाएंगे।

यह बात समझी नवजोत सिंह सिद्धू ने। सिद्धू शुरू से बादलों के विरोधी के रूप में ख्यात रहे हैं। पंजाब की बेहतरी के लिए सोचना उनकी छवि रही है। वह पंजाब की शान के रूप में स्थापित हैं।

पंजाब में 18 मार्च, 2017 तक नई सरकार का गठन होना है। यानी फरवरी में चुनाव होना है। इस हिसाब से सिद्धू के पास बचते हैं सिर्फ पांच महीने, जिसमें उन्हें फसल बोनी है और काट भी लेनी है। हो पाएगा?

अब अगर सियासी गणित पर आएं तो पंजाब में जो पार्टी 59 या इससे ज्यादा सीटें लाएगी, वह सरकार बनाएगी। इस हिसाब से फिलहाल आप वहां सरकार बनाती दिख रही है। आप यदि 65 से 70 सीटें जीतती है तो इसमें बीसेक सीटें ऐसी होंगी जहां वह मामूली अंतर से चुनाव जीतेगी।

सिद्धू के मैदान में उतरने पर आप के हाथ से ये सीटें निकल जाएंगी, क्योंकि केजरीवाल या आप का मतदाता उसका कैडर वोटर नहीं है, बल्कि बादलों से नाराज जनता है। सिद्धू के आने से इस जनता या मतदाता को एक विकल्प मिलेगा। ऐसे में सिद्धू जितने मजबूत होंगे, आप उतनी कमजोर होती जाएगी। हो सकता है आप 30-35 सीटों पर सिमट जाए।

फिलहाल पंजाब में सुच्चे सिंह छोटेपुर प्रकरण से आप कमजोर हुई है। केजरीवाल इसकी भरपाई के लिए पंजाब दौरे पर हैं। अब यदि सिद्धू अपनी आवाज ए पंजाब के लिए मजबूती से जुट जाते हैं और अपना ध्यान केजरीवाल या आप के खिलाफ केंद्रित करने की बजाय बादलों के खिलाफ केंद्रित रखते हैं और पंजाब की बेहतरी का एक बढ़िया नक्शा पंजाब की जनता के सामने प्रस्तुत कर कर सकेंगे।

सिद्धू पंजाब चुनाव के 'गेम चेंजर' बन सकते हैं। उनका मोर्चा अगर 35-40 सीटें भी ले आता है तो मुख्यमंत्री बनने के लिए सारे समीकरण सिद्धू के पक्ष में होंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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