आखिर क्यों है हमले के निशाने पर वामपंथ, देश और मेहनतकश आवाम

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भोपाल: 4 जुलाई/ शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो की सदस्य और कार्यक्रम की मुख्य वक्ता सुभाषिनी अली सहगल ने "आखिर क्यों है हमले के निशाने पर वामपंथ, देश और मेहनतकश आवाम" विषय पर अपना वक्तव्य रखते हुए कहा कि हम सरकार के कारनामों पर चर्चा करते हैं, जबकि हमें इनकी नीतियों और वर्गीय चरित्र पर चर्चा की जरूरत है। सरकारें चलाने वाले कहते हैं कि वे तटस्थ हैं लेकिन हड़तालों और संघर्ष में उनकी बंदूकें मजदूरों और किसानों पर तनी होती हैं। उन्होंने कहा की वामपंथ ही है जो मजदूरों-और किसानों के हर मुद्दे पर उनके साथ खड़ा होता है। यह सरकार में बैठे लोगों को पता है। यह समाज वर्गों में बंटा है और सरकारों का भी वर्गीय हित है।

सुभाषिनी ने अपने संबोधन में कहा की देश में कई पार्टियाँ हैं जो अपने को सेक्यूलर , किसान हितैषी वगैरह कहते हैं। साम्प्रदायिक भाजपा के खिलाफ खुद को सेक्युलर कहने वाले दल उसके खिलाफ खुलकर नहीं लड़ते । क्योंकि उनके वर्गीय हित भी उनसे ही जुड़े हुए हैं।

सुभाषिनी ने सवाल किया कि क्या केवल भाजपा के होने कारण ही साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं? उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा की उत्तरप्रदेश के हाशिमपुरा नरसंहार के समय यूपी में कांग्रेस थी। हाल ही में यूपी में मुलायमसिंह की पार्टी की सरकार है। वहाँ की घटनाओं में पुलिस और सरकार का रवैया क्या अलग होता है? सुभाषिनी के अनुसार साम्प्रदायिकता एक आधुनिक हथियार और एक राजनीतिक वैचारिक हथकंडा है जिसका इस्तेमाल दूसरे दल भी करते रहे हैं। 1857 के अनुभव से अंग्रेजी शासकों ने साम्प्रदायिकता को हथियार बनाया जिसका धर्म से कोई सम्बंध नहीं हैं। आजादी से पहले देखें तो लाला लाजपत राय कांग्रेस में थे और पंजाब में हिंदू महासभा के संस्थापक थे, पहले राष्ट्रपति डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने बिहार में हिंदू महासभा बनाई।

उन्होंने कहा कि वामपंथी ही हैं जो तब से अब तक इसके खिलाफ खड़े हुए हैं। आज मजदूरों, किसानों आम जनता के विभिन्न वर्गों को एक दूसरे से अलग करने और एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की जाती रही है। महिलाओं का दोहरा शोषण है, अल्पसंख्यकों की बुनियादी समस्याओं और असुरक्षा की भावना को समझने, दलितों पर अत्याचार के खिलाफ आपको खड़ा होना है। यही वामपंथ का काम है।

अन्त मे उन्होने कहा कि 62 में और 1975 के आपातकाल में सबसे पहले वामपंथी ही निशाने पर थे। आज भी वामपंथ का सबसे ज्यादा निशाने पर होना स्वाभाविक है। बंगाल में सारे हमले के बावजूद करोड़ों लोग वोट देते हैं। बाप मारा जाता है तो बेटा अगले दिन पोलिंग एजेंट बनता है। मां-बेटी के साथ अमानवीय बलात्कार होता है, तृणमूली गुण्डे धमकी देते हैं। लेकिन माकपा कार्यकर्ताओ का लाल झंडे के प्रति विश्वास दृढ़ता से बना होता है।

इसके पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि आज सवाल दाभोलकर, पानसरे, कालबुर्गी की हत्या और आवाम के अधिकारों पर हमले का ही नहीं है। उन्होंने कहा कि मोदी जी कभी झूठ नहीं बोलते हैं। उन्होंने कहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। उन्होंने यह कहाँ कहा था किसके अच्छे दिन आने वाले हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्याम वोहरे धन्यवाद डाॅक्टर राहुल शर्मा ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम के अंत में काॅमरेड शैलेन्द्र शैली के चित्र पर पुष्प अर्पित करके उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित की गई।

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