एक ट्वीट पर थम गई भिक्षावृत्ति के खिलाफ दिल्ली सरकार की मुहिम

राष्ट्रीय, फीचर

रीतू तोमर

नई दिल्ली, 4 अगस्त (आईएएनएस)| दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग ने भिक्षावृत्ति के खिलाफ आनन-फानन में एक परियोजना शुरू की और फिर उसे उतनी ही फुर्ती से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस अभियान को शुरू करने में जो जल्दबाजी दिखाई गई, वह कई सवाल तो खड़े करती ही है, मुख्यमंत्री केजरीवाल के एक ट्वीट पर जिस तरह इस परियोजना को बंद कर दिया गया, वह भी हैरान कर देने वाला है।

दिल्ली सरकार में समाज कल्याण मंत्री संदीप कुमार ने राजधानी में भिक्षावृत्ति पर लगाम लगाने के लिए दस टीमें गठित की थीं। प्रत्येक टीम में 30 सदस्य थे, जिनका काम राजधानी के प्रत्येक जिले में भिखारियों को उठाकर उन्हें किंग्सवे कैंप में रिसेप्शन कम क्लासिफिकेशन सेंटर (आरसीसी) लाना है। इसके बाद इन भिखारियों को महानगर दंडाधिकारी (मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट) के समक्ष पेश किया जाना था, जहां इन भिखारियों के भविष्य पर फैसला लिया जाता कि इन्हें भिक्षुक आश्रमों (बैगर होम) में भेजा जाए या छोड़ दिया जाए।

इस मुद्दे पर आईएएनएस ने कई बार दिल्ली सरकार से संपर्क करने की कोशिश की और इस अभियान को ठंडे बस्ते में डालने का कारण जानना चाहा, लेकिन सरकार हर बार कन्नी काटती रही।

यह अभियान 18 जुलाई को शुरू होने वाला था, लेकिन 14 जुलाई को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ट्वीट कर विभाग को इसे तत्काल बंद करने के निर्देश दिए। चौंकाने वाली बात यह है कि इस 10-12 दिवसीय अभियान को सिर्फ एक ट्वीट के बाद बंद भी कर दिया गया। ऐसे में दिल्ली को भिखारी मुक्त बनाने की मंत्री जी की अपील का क्या मायने रह गया?

पिछले 20 वर्षो से समाज कल्याण कार्यो से जुड़े समाजसेवी अभिनव त्रिपाठी ने आईएएनएस को बताया, "सरकार ने कोई ठोस ब्लूप्रिंट तैयार नहीं किया। भिखारी कोई अपराधी नहीं हैं। इन्हें हटाने से पहले इनके पुनर्वास की दिशा में कोई कारगर पहल के बारे में भी नहीं सोचा गया। अगर केजरीवाल ने अभियोजना रोकने का आदेश नहीं दिया होता तो बड़े पैमाने पर भिखारियों को अपराधियों की तरह उठाकर ले जाया गया होता।"

दिल्ली में विपक्षी पार्टी भाजपा के कार्यकर्ता जगन्नाथ का कहना है कि दिल्ली सरकार सिर्फ आंकड़ों में खेलना जानती है। उन्हें अगले साल चुनावों में यह दिखाना भी तो है कि 'हमारे कार्यकाल में इतना काम हुआ लेकिन असलियत तो सबको पता है।'

हालांकि, केजरीवाल सरकार का यह अभियान पार्टी के स्टाइल से अलग बहुत ही लो प्रोफाइल तरीके से शुरू हुआ और इसका पता भी मुख्यमंत्री केजरीवाल के गुस्से भरे ट्वीट से चला।

केजरीवाल ने ट्वीट कर इस अभियान की निंदा करते हुए इसे 'अमानवीय' करार देते हुए तत्काल बंद करने के निर्देश दिए थे। आलाकमान का फरमान मिलते ही इस अभियान को आनन-फानन में बंद कर दिया गया।

इस पूरे मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए समाजसेवक विवेक चौबे ने आईएएनएस को बताया, "इस पूरे अभियान में बहुत खामियां थीं। ठीक से होमवर्क नहीं किया गया था। कम से कम समाज कल्याण की नीतियों को राजनीति से दूर रखना चाहिए।"

सूत्रों का कहना है कि संदीप कुमार ने इस अभियान को शुरू करने से पहले सचिव से विचार-विमर्श तक नहीं किया था, जिसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा है।

दिल्ली सरकार के इस रवैये की सामाजिक कार्यकर्ता भरसक निंदा कर रहे हैं। गैर सरकारी संगठन 'आशा- द होप' के निदेशक बिमलकांत ने आईएएनएस को बताया, "दिल्ली में सरकार नहीं तमाशा चल रहा है। समाज कल्याण मंत्री ने केजरीवाल को यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि क्या सोचकर इस अभियान को शुरू किया गया। ऊपर से फरमान आया और आनन-फानन में इसे बंद कर दिया गया।"

आवाज मंच के मानवाधिकार कार्यकर्ता करतार सिंह ने आईएएनएस को बताया, "मैं भिखारी मुक्त दिल्ली के खिलाफ हूं, क्योंकि इससे उनके साथ अपराधियों जैसे बर्ताव होता है। इन सबके बजाय सरकार को इस वर्ग के लिए कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।"

भिक्षावृत्ति पर राज्य सरकार और केंद्र के आंकड़ों में खासा अंतर है। समाज कल्याण विभाग का कहना है कि दिल्ली में 75,000 भिखारी है जिनमें से 30 प्रतिशत 18 साल से कम उम्र के बच्चों की है, वहीं इसमें 40 प्रतिशत महिलाएं हैं। जबकि इस आंकड़ें को चुनौती देते अलग-अलग संस्थाओं के अलग-अलग आंकड़ों की भी कमी नहीं है।

दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क द्वारा हाल ही में किए गए सर्वेक्षण में राजधानी में 60,000 भिखारियों के होने का हवाला दिया गया।

एक अनुमान के मुताबिक, यह अभियान दिल्ली में 60,000 से ज्यादा भिखारियों के खिलाफ शुरू किया गया था। दिल्ली में अपना कोई भिखारी निवारण अधिनियम नहीं है यहां बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम ही लागू है। समाज कल्याण विभाग दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर इस दिशा में कार्रवाई करता है।

एक एनजीओ के लिए काम करने वाले समाज सेवी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त में आईएएनएस को बताया, "सरकार नहीं चाहती कि दिल्ली से भिखारी हटे। यह भी राजनीति का ही हिस्सा है जबकि सरकार को चाहिए कि स्थायी या अस्थायी तौर पर डेरा जमा चुके भिखारियों के पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।"

बहरहाल, चाहे यह अभियान राजनीति से ओत-प्रोत हो या फिर इसे बंद करने के पीछे राजनीति है। सवाल यही है कि समाज कल्याण की नीतियों को कम से कम राजनीति से दूर रखना जाए।

Back to Top