आंकड़े गवाह है कि अल्पसंख्यक समुदाय भेदभाव का शिकार है....

खरी बात

संजय पराते

भारत में शिक्षा और रोजगार के संबंध में हाल ही में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) ने जो आंकड़े जारी किये हैं, उससे एक बार फिर साफ़ हो गया है कि देश में अल्पसंख्यक समुदाय भयंकर भेदभाव का शिकार है.

इन आंकड़ों के अनुसार देश में मुस्लिम अल्पसंख्यक आज भी भयंकर अशिक्षा का शिकार है और ग्रामीण मुस्लिमों में उनकी निरक्षरता का प्रतिशत 30% और महिलाओं में 49% है, तो शहरी मुस्लिमों में भी यह क्रमशः 19% और 35% है. यह स्थिति उस समय है, जब देश एक दिन बाद ही स्वतंत्रता की 69वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. यदि अशिक्षा का सीधा संबंध उनकी आर्थिक स्थिति से है, तो इसका सीधा अर्थ यह भी है कि यह समुदाय देश के सबसे गरीब, वंचित व पिछड़े तबकों में से एक है और उनकी इस स्थिति के लिए इस देश का शासक वर्ग और उनकी नीतियां ही सीधे-सीधे जिम्मेदार है.

गरीबी और अशिक्षा का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है और सरकारी नौकरियों में उनका बहुत कम प्रतिनिधित्व है. इस समुदाय के अधिकांश लोग स्व-रोजगार से जुड़े हैं और यह स्व-रोजगार भी उनके लिए "जैसे-तैसे पेट भरने" का माध्यम भर होते हैं, उनकी आर्थिक उन्नयन का माध्यम नहीं. यही कारण हैं कि मुस्लिमों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 3.9% तथा शहरी क्षेत्रों में 2.6% है.

लेकिन शिक्षा भी अल्पसंख्यक तबकों के लिए रोजगार की गारंटी नहीं है. यदि ऐसा होता, तो इस देश का ईसाई समुदाय बेरोजगारी की बीमारी से जूझ नहीं रहा होता. एनएसएसओ के ही आंकड़े बता रहे हैं कि ईसाईयों में निरक्षरता दर सबसे कम है और स्नातकों का प्रतिशत सबसे अधिक. लेकिन इसके बावजूद उनमें बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 4.5% तथा शहरी क्षेत्रों में 5.9% है.

इसके साथ ही यह भी जोड़ लें कि इन दोनों अल्पसंख्यक समुदायों से बाहर बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय में आदिवासी-दलित तबकों (जो इस देश की आधी आबादी है) की स्थिति भी शिक्षा और रोजगार के मामले में बहुत ही दयनीय है. इनके बीच भी बेरोजगारी की दर देश में बेरोजगारी की औसत दर से बहुत ऊंची है. समग्र रूप से देश में बेरोजगारी की औसत दर 3.8% है, (ग्रामीण क्षेत्र में 1.7% और शहरों में 3.4%).

फिर इस देश में शिक्षा और रोजगार के अवसर किसके लिए सुरक्षित हैं? जो लोग "योग्यता" का शोर मचाते हैं, उन्हें जवाब देना होगा कि फिर ईसाई समुदाय रोजगार में उचित प्रतिनिधित्व से वंचित क्यों हैं? जो लोग "मुस्लिम तुष्टिकरण" का शोर मचाते हैं, उन्हें जवाब देना चाहिए कि फिर मुस्लिम समुदाय में इतनी गरीबी और निरक्षरता क्यों? जो लोग जीडीपी वृद्धि से रोजगार वृद्धि के दावे कर रहे हैं, उन्हें भी यह जवाब देना होगा कि यह पूरी वृद्धि "अल्पसंख्यक सवर्णों" की तिजोरियों में ही क्यों कैद हो रही है?

साफ़ है कि हमारे देश के विकास की कहानी दरअसल धर्म, जाति और वर्ग के आधार पर शोषण के जरिये चंद लोगों के विकास की ही कहानी है, जिसका गुणगान परसों परिधान मंत्रीजी लाल किले से करने जा रहे हैं.

लेखक राजनितिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं. [email protected]

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