उप्र में शीला, कांग्रेस की नजर सवर्ण वोटों पर

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उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कभी कन्नौज से सांसद रहीं शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना 14 फीसदी ब्राह्मण सहित सवर्ण मतदाताओं को लुभाने की कवायद है।

बसपा के 'सर्वजन हिताय' नारे के कारण ब्राह्मण मतदाता पहले मायावती के पाले में था, लेकिन पिछले चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं को बिखराव देखने को मिला था। इस बार कांग्रेस को अपने पुराने वोट बैंक की याद आई है।

कांग्रेस ने अन्य पार्टियों में ब्राह्मणों की उपेक्षा को देखते हुए एक अनुभवी ब्राह्मण महिला को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया है। शीला अनुभवी होने के साथ ही कांग्रेस का सवर्ण चेहरा होंगी।

कांग्रेस सूत्रों की मानें तो चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी फीडबैक में कहा था कि दलित मायावती को नहीं छोड़ेंगे, इसीलिए उसे अपने परंपरागत वोट बैंक ब्राह्मण और मुस्लिम समुदाय पर फोकस करना चाहिए। जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग से राज बब्बर को प्रदेश का अध्यक्ष बनाया था।

शीला दीक्षित उप्र की बहू भी हैं। इसका लाभ भी उन्हें मिल सकता है। उनका विवाह उन्नाव के आईएएस अधिकारी (दिवंगत) विनोद दीक्षित के साथ हुई थी। विनोद कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे।

शीला वर्ष 1984 से लेकर 1989 तक उप्र के कन्नौज सीट से सांसद भी रही हैं। इस दौरान वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहीं।

शीला दीक्षित राजनीति में जाना-माना चेहरा हैं। वह वर्ष 1998 में पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। शीला का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस से इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की है।

कांग्रेस ने वर्ष 1998 में उन्हें पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और चुनाव हारने के बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी गई। 1998 के विधानसभा चुनाव में शीला की जीत हुई, वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और 2013 तक इस पद पर रहीं।

वर्ष 2013 में आम आदमी पार्टी से चुनाव हारने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया गया। वर्ष 2014 में शीला दीक्षित ने इस्तीफा दे दिया।

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