रांची आने वाले मजदूरों की प्यास बुझा रहे रतन

राज्य, फीचर

मनोज पाठक

कहा जाता है कि अगर आपके दिल में सेवा और मदद की भावना हो तो आपकी आमदनी और आपका रोजगार कभी आड़े नहीं आता। आमतौर पर मजदूरों को बिना स्वार्थ कोई मदद करने के लिए आगे नहीं आता, लेकिन झारखंड की राजधानी रांची में एक ऐसा युवक है जो प्रतिदिन मजदूरों के प्यास बुझाने के लिए खुद पसीना बहाकर 200 से 250 बोतल पानी मजदूरों को निशुल्क उपलब्ध कराते हैं।

रांची के अरगोडा रेलवे स्टेशन के समीप एक कमरे में रहने वाले पश्चिम बंगाल के पुरुलिया निवासी 35 वर्षीय रतन गोराई रांची तो खुद रोजगार की तलाश में आए थे परंतु अब यहां वे अपने काम के अलावा मजदूरों की प्यास बुझाने में लगे हैं।

रांची के एक होटल में वेटर का काम करने वाले रतन आईएएनएस को बताते हैं कि एक वर्ष पूर्व एक दिन जब वे अरगोडा रेलवे स्टेशन पर यूही टहल रहे थे तब लोहरदग्गा की ओर से आने वाली ट्रेन से उतरे कई मजदूरों को पानी के लिए भटकते देखा। ये मजदूर अपनी प्यास बुझाने के लिए छोटे-छोटे होटलों में भी गए, मगर उन्हें पीने का पानी नहीं मिला। इसके बाद रतन ने इन मजदूरों के प्यास बुझाने को ठान ली।

रतन सुबह अपने कमरे के बाहर करीब 200 से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलों को पानी भर कर रखते हैं और ट्रेन से आनेवाले मजदूर इन पानी की बोतलों को लेकर अपने काम की ओर चल देते हैं। रतन बताते हैं कि उनकी अपने होटल में ड्यूटी दिन के एक बजे से रहती है। एक बजे जाने के पूर्व वे इसी काम में लगे रहते हैं।

रतन रात को जब अपनी ड्यूटी से रात के 11 बजे घर लौटते है तो कई होटलों से प्लास्टिक की खाली बोतलों को इकट्ठा कर अपने घर ले आते है और सुबह बोतलों को ठीक से साफकर उसमें पानी भर कर घर के बाहर एक चाहरदीवारी पर पंक्ति से रख देते हैं। यहां से गुजरने वाले मजदूर एक-एक कर इन बोतलों को लेकर काम पर निकल जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि लोहरदग्गा, इटकी जैसे क्षेत्रों से प्रतिदिन सैकड़ों मजदूर ट्रेन से रांची काम करने आते हैं।

रतन बताते हैं कि पूर्व में वह इन मजदूरों के लिए 15-20 बोतल पानी रखता था परंतु अब इन बोतलों की संख्या 200 तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि बरसात के दिनों में वह पानी को उबालकर बोतलों में भरता है, मगर रसोई गैस की दिक्कत और महंगा होने के कारण वह सभी दिन ऐसा नहीं कर पाता।

इधर रतन के इस सेवा भाव की भावना के मजदूर भी कायल हो गए हैं। इटकी के रहने वाले मजदूर रमेश्वर भगत पेशे से राजमिस्त्री का काम करते हैं और प्रतिदिन ट्रेन से रांची कमाने आते है।

रामेश्वर कहते हैं, "रतन भाई की इस नेक काम से हम मजदूरों की प्यास तो बुझ ही रही है। रतन हम मजदूरों के विषय में इतना सोच रहे हैं यह काफी है। आजकल मजदूरों के विषय में कोई सोचता कहां है।"

इधर, मजदूर रमेश बताते हैं, "हम मजदूर 15 रुपये प्रति बोतल की कीमत में तो पानी खरीद नहीं सकते हैं। ऐसे में रतन की यह पहल हम लोगों के लिए काफी सुविधाजनक है।"

रतन भविष्य की योजनाओं के विषय में बताते हैं, "वेटर की नौकरी से मुझे प्रतिमाह 6000 रुपये मिलती है। ऐसे में मैं मजदूरों के कल्याण के लिए बहुत कुछ तो नहीं कर सकता, लेकिन मेरी इच्छा कि यहां से गुजरने वाले सभी मजदूरों को पानी उपलब्ध करा सकूं। अभी कई मजदूर बिना पानी के चले जाते हैं।"

उनका कहना है कि वे इन बोतलों की संख्या 1500 तक करना चाहते हैं। इसके लिए अब उन्होंने दोस्तों से भी मदद मांगी है।

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