कक्षा में स्थापित किया गया मौसम उपग्रह इनसैट-3डीआर

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श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश), 8 सितम्बर (आईएएनएस)| भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) गुरुवार को स्वदेश निर्मित रॉकेट से अत्याधुनिक मौसम उपग्रह इनसैट-3डीआर को प्रक्षेपित करने और उसे कक्षा में स्थापित करने में कामयाब रहा।

सीतश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लांच पैड से गुरुवार को अपराह्न करीब 4.50 बजे जीएसएलवी श्रेणी के नवीनतम रॉकेट जीएसएलवी-एफ05 रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया गया मौसम उपग्रह 17 मिनट की उड़ान के बाद कक्षा में स्थापित कर दिया गया।

हालांकि रॉकेट के तीसरे चरण में ईंधन भरने में हुई देरी के कारण प्रक्षेपण 40 मिनट विलंब से हुआ।

लांच किया गया मौसम उपग्रह खोजी अभियानों तथा राहत एवं बचाव कार्यो में भी मददगार होगा। इस प्रक्षेपण की सफलता भारत के लिए इसलिए भी अहम है, क्योंकि इसके प्रक्षेपण में इस्तेमाल स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन इसरो के भविष्य के कार्यक्रमों और वाणिज्यिक प्रक्षेपणों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने दो दशकों के गहन अनुसंधान और 500 करोड़ रुपयों की लागत से यह स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन विकसित किया है।

प्रक्षेपण की सफलता से श्रीहरिकोटा स्थित इसरो वैज्ञानिकों की खुशी साफ झलक रही थी।

इसरो के चेयरमैन ए. एस. किरन कुमार ने कहा, "आज हमने एक और ऐतिहासिक पड़ाव पार कर लिया और मौसम उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने में सफलता हासिल की।"

इसरो के अनुसार, इस उपग्रह की प्रौद्योगिकी में कई अहम सुधार किए गए हैं, जिनमें रात में और बदली या कोहरे की स्थिति में भी अच्छे चित्र प्राप्त करने के लिए मध्यम आवृति वाले इंफ्रारेड बैंड का इस्तेमाल और समुद्र के सतह का तापमान का आंकलन करने के लिए दो थर्मल इंफ्रारेड बैंड का इस्तेमाल शामिल है।

उपग्रह में सर्च एवं रेस्क्यू ट्रांसपोंडर भी लगाए गए हैं जो जमीन, समुद्र और आकाश में कहीं भी आपद स्थिति का पता लगा सकते हैं और कहीं भी उससे संबंधित सिग्नल भेज सकते हैं।

इसरो के अनुसार, उपग्रह की इस सुविधा का इस्तेमाल देश में रक्षा सेवाओं, तटरक्षक, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, जहाजरानी महानिदेशालय और मछुआरे कर सकते हैं।

इस उपग्रह की मदद से अब मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव होगी। उपग्रह का जीवनकाल 10 वर्ष होगा।

स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन की सफलता के बाद अब इसरो दो से ढाई टन वाले उपग्रहों को लांच कर सकेगा और साथ ही जीएसएलवी रॉकेट के अगले संस्करण जीएसएलवी-मार्क3 को विकसित करने में भी लगा हुआ है, जिसकी मदद से चार टन के उपग्रहों को लांच किया जा सकेगा।

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