आईसेक्ट में कविता की सुबह भोपाल की कवियित्रियों का रचना पाठ

साहित्य

भोपाल: 17 सितम्बर/ सफर में एक हुजूम था, मगर ये राज अब खुला कि कोई भी किसी के साथ न चल रहा। दिल के बुरे हैं, लेकिन अच्छे भी तो लगते हैं। लड़कियों से लांवण्य और लोच, लड़कों से पौरुषता और चपलता, बूढ़े चेहरों से ठंडक धीरे-धीरे छूट रही है जैसे अशारों के साथ भोपाल की आठ प्रसिद्ध कवियित्रियों ने दस्तक दी। मौका था आईसेक्ट विश्वविद्यालय के सभागार में शब्द, ध्वनि और दृश्य के दूसरे दिन ‘कविता की सुबह’ कार्यक्रम का।

ऊषा प्रराब्ध ने ‘कुछ देर ठहर जाना चाहती हूं’, ‘नदी’, ‘बिंदिया से शुरु होती है सुबह’, ‘आंच’ शीर्षक से कविताएं सुनाईं। प्रतिभा गोटीवाले की कविता पुरानी बातों की पंक्तियां ‘जब भी याद आती हैं पुरानी बातें, तो हंस पड़ता हूं सोच कर’, को सभी ने पसंद किया। भोपाल शहर को याद करते हुए ‘पोसंपा भाई पोसंपा’, स्वयं को जानने की कोशिश की कविता ‘उदास पलों में’ का पाठ किया। कवियित्री शहनाज इमरानी ने ‘आजादी’, ‘लड़की’, ‘रोज बदलती तारीखें’ जैसी स्त्री विमर्श की कविताएं सुनाईं। आरती ने ‘मुर्दा मौत’, ‘पहाड़ और पगडंडियां’, ‘मृत्युशैया पर एक स्त्री का बयान’ जैसी मर्मस्पर्शी कविताओं का पाठ किया। प्रज्ञा रावत ने अपने पिता को याद करते हुए ‘आग और सपना’, ‘बीज मंत्र’, ‘सबसे कह दो’, ‘जो नदी होती’ कविताओं की प्रस्तुति दी। डॉ. नुसरत मेंहदी के शेर ‘इश्क में मजनूं और फरहाद नहीं होने के, ये नये लोग हैं बर्बाद नहीं होने के’ और परवीन कैफ ने अपनी जोशीली गजलों से समां बांध दिया। सविता भार्गव ने भी अपनी कविताओं से दाद बटोरी।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ आलोचक राम प्रकाश त्रिपाठी और वनमाली सृजनपीठ के समन्वयक श्री विनय उपाध्याय ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ आलोचक त्रिपाठी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ये ऐसा समय है जिसमें चारो तरफ स्त्रियों के उत्थान के लिये बातें हो रही हैं परन्तु आज भी स्त्रियां संघर्ष कर रही हैं। आज का कविता पाठ सामाजिक सरोकारों पर संदर्भित रहा।

इस अवसर पर भोपाल के साहित्यकार और कवि श्री मुकेश वर्मा, रामप्रकाश त्रिपाठी, बलराम गुमास्ता, एवं आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चैबे, कुलपति प्रो. ए. के. ग्वाल, कुलसचिव डॉ. विजय सिंह एवं श्री अमिताभ सक्सेना विशेष रुप से कार्यक्रम में उपस्थित थे।

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