भदोही रेल हादसा : संयोग या साजिश..?

खरी बात, फीचर

प्रभुनाथ शुक्ल

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में 25 जुलाई को हुआ रेल हादसा परिजनों और आम लोगों के लिए सिर्फ यादों में रह गया है। उस खौफनाक खूनी मंजर को जिसने भी देखा उसका कलेजा मुंह को आ गया था। सरकार और रेल मंत्रालय ने इस हादसे के पीड़ित परिवारों को मुआवजे की मामूली राशि देकर अपनी पीठें भले थपथपा ली हो, लेकिन परिजनों के लिए यह हादसा बेहद पीड़ादायी है।

इस हादसे को कभी भुलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उन मासूमों की हंसी में परिजनों और मां के सपने पलते थे। लेकिन ईश्वर के विधान ने मानव का संविधान बदल दिया और हादसे में आठ स्कूली मासूमों की मौत हो गई जबकि नौ को बचा लिया गया। लेकिन उनके दिमाग में आज भी वह हादसा सदमे की तरह बैठा है।

जिनके साथ उनकी बचपन की यारी थी वे यार भी अब नहीं दिखते हैं। स्कूल से आने के बाद जहां-जहां वे मासूम खेलते थे उनकी बातें और यादें अब स्मारक बन गई हैं, क्योंकि उन्होंने खुद अपनी आंखों से इस मौत को देखा था। हमने खुद घटनास्थल पर पहुंचकर आसमान को चीरती परिजनों की वह पुकार सुनी थी। वह दहाड़ सुन आसमान का कलेजा भी फट गया था।

मासूम बच्चों के सपने लुट गए। परिजन बदहवास थे, हर तरफ चीख पुकार मची थी। रेल लाइन के बीच में तकरीबन 500 मीटर तक मासूमों के जिस्म के टुकड़े कई भागों में बिखरे पड़े थे। हाथ और पैर की अंगुलियां बिखरी पड़ी थीं। जूते और बेल्ट बिखरे थे। रेल लाइन के किनारे बिखरे बस्ते और किताबों के पन्ने इस भयानक हादसे की कहानी खुद बयां कर रहे थे।

परिजनों ने किसी तरह हिम्मत जुटा बिखरे अंगों को समेट दिल पर पत्थर रखकर उन्हें गंगा में मुखाग्नि दी। एक ही चिताओं पर दो-दो मासूमों को अनंत में विलीन किया गया। हादसे पर रेलमंत्री सुरेश प्रभु और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने संवेदना भी जताई थी। रेल मंत्रालय की तरफ से दो-दो लाख रुपये और दूसरी प्रकार की सहायता भी उपलब्ध कराई गई थी।

प्रदेश सरकार की तरफ से अभी कल ही इस दुनिया से अलविदा हुए मासूमों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की सहायता जिलाधिकारी के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है। लेकिन केंद्र या प्रदेश का कोई भी राजनेता हादसे के इतने दिन बीत जाने के बाद परिजनों के बाद भी घावों पर मरहम लगाने नहीं आया। राज्य मानवाधिकार आयोग की एक सदस्य ने हाल में घटनास्थल का जायजा लिया था।

हलांकि इस हादसे के बाद रेल प्रशासन जागा और वहां जंजीर सिस्टम वाले रेल फाटक का निर्माण करा दिया है। लेकिन जब तक स्कूल प्रबंधकों की मनमानी पर नकेल नहीं कसी जाएगी, इस तरह के हादसों को रोक पाना मुश्किल है। लेकिन सवाल उठता है कि यह घटना महज एक संयोग थी या साजिश? इस पर अब आशंकाएं उठने लगी हैं। प्रदेश के पूर्वमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ भाजपा नेता दीनानाथ भास्कर 10 अगस्त से इस मामले को लेकर क्रमिक अनशन पर हैं।

उनकी तरफ से तीन प्रमुख बिंदु उठाए गए हैं। यह बिंदु निश्चित तौर पर आशंकाएं पैदा करते हैं। उनकी मांगांे पर अगर गौर किया जाए तो इस घटना की सीबीआई जांच करानी चाहिए। उन्होंने चालक की ब्रेनमैपिंग कराने की बात कह डाली है। आइए इस घटना की जमीनी पड़ताल की तह तक चलते हैं।

18 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार है। यह पीड़ित परिवारों और उस बहन के लिए नई दुख की बेला होगी जो अपने भाई के हाथ में राखी नहीं बांध पाएगी। उसकी खुशियां धरी रह जाएंगी। जरा सोचिए कितनी वेदना होगी उस परिवार को। उस बहन और उसकी भावनाओं का क्या होगा, जिसके भाई यह जहां ही छोड़ चले। इस पीड़ा का अनुभव पीड़ित परिवार ही कर सकता है।

पूर्वमंत्री ने क्यों उठाई ब्रेनमैपिंग की बात?

पूर्वमंत्री दीनानाथ भास्कर ने रेल हादसे को लेकर जो मांग उठाई है वह राजनीति से प्रेरित हो सकती है लेकिन इसे सिर्फ राजनीति मान कर उठाई गई बातों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। उन्होंने अपनी मांग में स्कूली वैन चालक राशिद की ब्रेन मैपिंग कराने की मांग जिला प्रशासन से रखी है। इस संबंध में उनका तर्क है कि जिस दिन रेल हादसा हुआ था उस दिन चालक उन मासूम बच्चों को भी वैन में बैठा कर रेल लाइन के उस पार ले गया था, जबकि उसने ऐसा कभी नहीं किया था। दूसरी बात कुछ बच्चों की टिफिन तैयार नहीं थी, परिजनों ने चालक से कहा थोड़ा रुक जाइए। लेकिन उसने समय न होने का बहाना बनाया और वैन लेकर चल दिया, जबकि घटनास्थल पर पहुंच कर खड़ा रहा।

मासूमों को टॉफियां बांटने वाले कौन थे?

पूर्वमंत्री का आरोप है कि वहां चालक के अलावा दो लोग और बाइक से थे जो पहले से वहां मौजूद थे। उनकी तरफ से मासूम बच्चों को टाफियां बांटी गई। उन्होंने सवाल उठाया कि टाफियां बांटने वाले वे संदिग्ध लोग कौन थे? अनजान लोगों की तरफ से टाफियां क्यों बांटी गईं? तीसरी सबसे अहम बात उन्होंने कहा कि रेल हादसे की जांच में रेल चालक की तरफ से एक अहम तथ्य उजागर हुआ है।

बकौल भास्कर, रेल चालक ने दावा किया है कि जिस समय यह हादसा हुआ उस दौरान चालक के पास तीन सेकेंड का पूरा वक्त था। इतने समय में दो गाड़ियां पार कर सकती हैं। लेकिन चालक राशिद ने आधी वैन को रेल लाइन में घुसाने के बाद ब्रेक मार दिया और वैन से कूद गया। अगर वह चाहता तो यह हादसा टल सकता था। इससे यह साबित होता है 25 जुलाई को भदोही के कैयरम में हुआ रेल हादसा एक संयोग नहीं, साजिश थी। इसलिए चालक की ब्रेनमैपिंग करानी चाहिए।

स्कूल प्रबंधक की गिरफ्तारी क्यों नहीं?

भदोही रेल हादसे को हुए 15 दिन से अधिक का समय बीत चुका है। लेकिन अभी तक स्कूल प्रबंधक सुरेंद्र बरनवाल और प्राचार्या कीर्तन कोकिला के समेत स्कूल प्रबंधन से जुड़े दूसरे लोगों को पुलिस अभी तक नहीं गिरफ्तार कर सकती है, जबकि हादसे के बाद पीड़ित परिजनों की तहरीर पर औराई पुलिस ने तीन लोगों पर मुकदमा पंजीकृत किया था।

फिर उनकी गिरफ्तारी अभी तक क्यों नहीं की गई, जबकि परिजनों का दावा था कि कई बार स्कूल प्रबंधक से वाहन चालक को बदलने की मांग की जा चुकी थी। लेकिन हर मांग को प्रबंधक की तरफ से अनसुनी की गई। औराई पुलिस का दावा है कि अभी तक अदालत से कुर्की का आदेश नहीं मिल पाया है, जिसके कारण गिरफ्तारी में विलंब हो रहा है।

भाजपा नेता की क्या यह राजनीति है?

उप्र में 2017 में आम विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए राजनैतिक दल घटनाओं को अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं। एक दूसरे राजनीतिक दल को हर मामलों में राजनीतिक बू आ रही है। चाहे वह बुलंदशहर हो या फिर गुजरात के ऊना में दलितों का उत्पीड़न। सवाल उठता है कि क्या कभी बसपा सरकार में पूर्वमंत्री रहे और अब मायावती पर सवाल उठाने वाले दीनानाथ भास्कर रेल हादसे पर कहीं राजनीति तो नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हादसा स्थल औराई विधानसभा में आता है।

यह सीट आरक्षित है। भास्कर इस समय भाजपा में हैं। यहां से अगर पार्टी चाही तो आरक्षित सीट होने से टिकट दे सकती है। कहीं इसलिए तो इस मामले को राजनैतिक रंग नहीं दिया जा रहा है? दीनानाथ भास्कर रेल हादसे को लेकर औराई में क्रमिक अनशन पर बैठ गए हैं।

हालांकि इसके लिए प्रशासन ने पूर्व की अनुमति को निरस्त कर दिया है। उनकी मांग है कि 25 जुलाई को औराई के कैयरम में हुआ रेल हादसा एक साजिश थी। आरोपी स्कूली वैन चालक की ब्रेनमैपिंग होनी चाहिए। उसने घटना के दिन वाकमैन भी लगा रखा था, जबकि कभी वह वाकमैन नहीं लगाता था।

इसके अलावा स्कूल प्रबंधक और दूसरों के खिलाफ इस मामले में जो मुकदमा दर्ज किया गया है उसमें गिरफ्तारी होनी चाहिए। हलांकि उनकी तरफ से रेल हादसे के बाद से ही घटना को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं, जिसे सिर्फ राजनीति से प्रेरित नहीं कहा जा सकता है। कसौटी पर कसने पर वह सच्चाई के करीब दिखती हैं।

क्यों हुआ था रेल हादसा?

उप्र के भदोही जिले में 25 जुलाई को कटका और माधोसिंह स्टेशनों के मध्य कैयरमउ मानवरहित रेल क्रॉसिंग पर सुबह 7:37 बजे एक सवारी गाड़ी से स्कूली वैन टकरा गई थी। यह रेलगाड़ी वाराणसी से इलाहाबाद जा रही थी जिसमें घोसिया के टेंडरहार्ट स्कूल के 17 बच्चे सवार थे, जिसमें आठ की घटनास्थल पर मौत हो गई थी जबकि नौ की जिंदगी बच गई थी। इस हादसे में वैन का चालक भी घायल हुआ था, जिसकी गिरफ्तारी हो चुकी है। हादसे के बाद कुछ तथ्य इस तरह के सामने आए हैं, जिस पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अब सवाल है कि इसे क्या जिला प्रशासन या प्रदेश सरकार सिर्फ राजनीति मानकर इस प्रकरण को समाप्त कर देगी या पूर्व मंत्री की मांग को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच कराएगी।

यह सवाल भविष्य के गर्भ में है। लेकिन सवाल बेकूसर मासूमों से जुड़ा है। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। घटना की जमीनी हकीकत सामने आनी चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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