गुलाम हिंदुस्तान और आज़ाद देश में आखिर बदला क्या है?

खरी बात

सुमित कुमार

आज हम लोग आजादी का 70 वाँ दिवस मना रहे हैं, हमारे देश को आज़ाद हुए 69 साल हो चुके है, लेकिन बार-बार सवाल यही खड़ा होता है कि क्या हमारा देश सही मायने में आजाद है, क्या सही मायने मे ये धरती, यह आसमा अपना है ? क्या आजादी से पहले की देश की परिस्थितियों में आजादी के बाद कोई बदलाव हुआ है ?

आजादी से पहले हम अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे क्या अब भी हम किसी के गुलाम हैं ? इस सब सवाल का बार-बार मन में आना, खतरा महसूस होना ऐसी परिस्थिथियों में ये बाते बहुत ही गंभीर और बेहद खतरनाक लगती है |

आजादी से पहले गरीबों का शोषण होता था, मजदूरों पर अत्याचार होता था, महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार होता था, किसानों की जमीन छीन ली जाती थी, लोग घर से निकलने में हिचकते ही नहीं बेहद डरते थे, साम्प्रदायिक ताकते हुकूमत के साथ मिलकर साम्प्रदायिक दंगे करवाते थे |

आज ये देश आजाद है, लेकिन फिर वही सबसे बड़ा सवाल उठता है, क्या परिस्थितियां बदल गयी है, क्या गरीबों का शोषण होना बंद हो गया है, क्या मजदूरों पर अत्याचार होना बंद हो गया है, महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार बंद हो गया है, क्या किसानो की जमीन छिननी बंद हो गई है, क्या साम्प्रदायिक दंगे होने बंद हो गए हैं, क्या गरीबो को, मजदूरों को, किसानो को उनका वाजिब हक मिल रहा है, क्या महिलाओं को उनका सामाजिक हक मिल रहा है, क्या सबके साथ सामाजिक न्याय हो रहा है...?

इन सब बड़े सवालों का बड़ा जवाब सन्नाटों को चीरता हुआ, अंधेरों को बिखेरता हुआ एक छोटे से शब्द में आता है –“नहीं“| क्या भगत सिंह और तमाम आजादी की लड़ाई में शहीद हुए महापुरुषों के सपनो का देश यही भारत था ? भगत सिंह और उनके साथियों की पेशी जब कोर्ट मे होती थी, तो उन लोगों की आँखों मे आजादी पाने की एक जूनून, ललक नजर आती थी | वे ऐसे आजादी के दीवाने और मतवाले नजर आते थे मानो घर से सिर पर कफ़न बाँध कर निकले हों, मानो उन्होंने एक दृढ संकल्प कर रखा हो आजाद भारत देखने का | अपने साथियों के साथ कोर्ट में आजादी के नारे, इन्कलाब के नारे झूम-झूम कर गाया करते थे, उनकी कुछ पंक्तियाँ आज के सन्दर्भ में बिल्कुल सटीक बैठती है |

“कभी तो वो दिन आयेगा जिस दिन हम आजाद होंगे,
ये धरती अपनी होगी, वह आसमां अपना होगा“

आजादी से पहले और आजादी के 69 साल होने के बाद भी लगभग परिस्तिथि वही है, फर्क बस इतना है कि आजादी से पहले हम दूसरे देश के लोगों (ब्रिटिश) के गुलाम थे और आज अपने लोगों के ही गुलाम बन बैठे हैं|

पहले भी हम पर दमनकारी नीतियाँ थोपी जाती थी और आज भी उसी तरह दमनकारी नीतियाँ थोपी जा रही है, पहले भी खाकी बर्दिधारियों द्वारा भोलीभाली जनता का दमन और शोषण किया जाता था और आज भी उसी तरीके से सत्ताधारियों द्वारा खाकी बर्दी वालों पर दबाव बनाकर और उनका इस्तेमाल करके भोलीभाली जनता के ऊपर दमन और शोषण किया जा रहा है|

बस कुछ बात नही बदली तो वो यह है की आजादी से पहले आजादी पाने को आजादी के दीवाने, आजादी के मतवाले, सरफिरे, आजादी के नारे, गाने गुनगुनाये और गाया करते थे | आज भी आजादी के 69 साल होने के वावजूद कुछ आजादी के मतवाले, दीवाने, सरफिरे फिर से आजादी के नारे और आजादी के गीत गा रहे हैं |

सुमित कुमार युवा लेखक हैं. सुमित से [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.

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