आज़ाद भारत की गुलाम महिलाएँ

राष्ट्रीय, आधी दुनिया

स्मिता कुमारी

भारत आजाद है, 70वीं आज़ादी दिवस के ज़श्न में डूबी है हिन्दुस्तानी आवाम। मगर इसी हिन्दुस्तान की बेटियाँ सिसक रही हैं। वह गुलाम है समाज द्वारा मिलने वाली लांछन की। जब आधी आबादी गुलाम है तो कैसी और किसकी आजादी है यह?

एक तरफ देश में लाल किला से लेकर हर गली में झंडा रोहण हो रहा है, ठीक उसी वक्त एक भारत माँ की बेटी का आबरू लूट रहा होता है, एक बेटी घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है, आज भी लाखों बेटियाँ शिक्षा से वंचित है, कैसी आज़ादी का जश्न है यह?

क्या इसी आज़ादी की चाहत गाँधी जी, अम्बेडकर जी, नेहरू जी या भगत सिंह जी ने किया था? इस देश में बेटियों को अपना विचार रखने, वर चुनने, जॉब करने, शिक्षा पाने, सम्पति में अधिकार लेने, बच्चे पैदा करने के निर्णय लेने का हक़ सिर्फ संवैधानिक तौर पर है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और है। यहाँ बलात्कार महिला का होता है और वर्जिनिटी भी महिला की ही चेक की जाती है, रेप केस में केस फ़ाइल नहीं के बराबर होता है क्योंकि आबरू लूटने वाले सबसे ज्यादा परिचित ही होते हैं और गैर भी हुए तो इज्ज़त और जग हंसाई लड़की और उसके परिवार की ही होगी।

इसी आज़ाद हिन्दुस्तान का मर्द अपनी बीबी के साथ भी संबंध के समय उसके दर्द को सुकर अपनी मर्दानगी साबित करना चाहता है, महिलाओं के वेजाइना में कभी औजार, तो कभी मोमबत्ती डालकर अपनी मर्दानगी साबित कर रहा है। भारत माँ की बेटियों को दंगा में मारने से पहले इज्ज़त लूटते हैं , गर्भ में पल रहे शिशु को गर्भ से चिर कर निकालते हैं और तलवार पर टांग देते है। रात को एक महिला घर से निकलती है तो उसी हैवानियत की नज़र से घूरा जाता है, फिर भी आज आज़ादी का जश्न है। भारत की हर बेटी में भारत माँ है, क्या अब भी कहोगे भारत आज़ाद है, क्या इस ज़श्न से भारत माँ खुश होगी।

इन सबका मुख्य कारण अशिक्षा है। शिक्षा के अभाव में ना वैचारिक विकास हो सकता है, ना कुंठित मानसिकता को बदला जा सकता है, ना मानसिक समस्या को मिटाया जा सकता है, ना शोषण ख़त्म होगा ना बेरोजगारी मिटेगी। देश के सत्ता में जब तक अशिक्षित सत्ताधारी रहेंगे आजादी केवल एक लिंग, एक धर्म और उच्च जाति की ही होगी। असल आज़ादी की चाभी तो सिर्फ और सिर्फ शिक्षा ही है।

आज़ादी की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई। हमें इस देश में आज़ादी चाहिये और इस देश को कुंठित सोच से आज़ाद करवाने के लिए फिर एक गाँधी, नेहरू , लक्ष्मी बाई, भगत सिंह का इंतजार है। हमें सीमित आजादी नहीं सम्पूर्ण आज़ादी चाहिए। अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए क्या हम सब सच में आज़ाद हैं।

स्मिता कुमारी "सत्यमेव " स्वतंत्र युवा लेखिका एवं सत्यमेव मानसिक विकास केंद्र , भोपाल की संचालिका एवं पुनर्वास मनोवैज्ञानिक हैं ,इनका कई लेख और राष्ट्रीय एवम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक और सामाजिक मुद्दों पर कई शोध पत्र प्रकाशित हैं। इनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।

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