संतोष चौबे का नया उपन्यास “जलतरंग” जीवन की आकांक्षाओं का सुरीला ताना-बाना

साहित्य

भोपाल: 5 जून/ भारतीय शास्त्रीय संगीत की सुनहरी स्मृतियों और जीवन के आरोह-अवरोह का सुरीला ताना-बाना लिए कथाकार संतोष चौबे ने कला के घर भारत भवन में दस्तक दी। भारतीय ज्ञानपीठ से हाल ही में छपकर आऐ अपने नए उपन्यास “जलतरंग” के लोकार्पण के मौके पर उन्होंने कथानक के अंशों का पाठ किया। आषाढ़ के पानीदार मौसम की खुशगवार शाम जैसे मौसिकी किसी खूबसूरत बंदिश को सुनने का रूमानी अहसास समेटे थी। प्रसिद्ध चित्रकार सचिदा नागदेव और उनकी सितार वादक बेटी स्मिता की खास मौजूदगी में “जलतरंग” का लोकार्पण कवि-आलोचक मंगलेश डबराल, लीलाधर मंडलोई और भगवान दास मोरवाल ने मिलकर किया। कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने लेखक संतोष चैबे और किताब के रचनात्मक पहलुओं पर रौशनी डाली।

वनमाली सृजन पीठ द्वारा साहित्य संस्था स्पंदन, पहले-पहल, कला समय, विहान तथा आईसेक्ट स्टूडियो के सहयोग से आयोजित इस साहित्य प्रसंग को एक अनूठा अवसर बताते हुए चित्रकार नागदेव ने कहा कि संगीत की प्रमाणिक जानकारियों को आधार बनाकर हिंदी में लिखा गया “जलतरंग” एक बेमिसाल साहित्यिक पहल है। उन्होंने कहा कि उपन्यास का पूरा वातावरण हमें भारत की सुरम्य सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाता है। इस मौके पर नागदेव ने संतोष चैबे के बचपन से ही संगीत से जुड़ी संगीत प्रतिभा का जिक्र किया। स्मिता नागदेव ने “जलतरंग” को कलात्मक दृष्टि से एक उपयोगी पुस्तक बताया। उन्होंने पुस्तक के मुख पृष्ठ और साज-सज्जा की भी प्रशंसा की। समारोह के बाद उपस्थित साहित्य प्रेमियों को संतोष चैबे द्वारा हस्ताक्षरित “जलतरंग” की प्रति उपहार स्वरूप भेंट की गई।

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