पेटलावद ब्लास्ट एक साल: अपनों को खोने वालों के नहीं भरे जख्म

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झाबुआ : 12 सितंबर/ मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद में हुए विस्फोट में मिले जख्म एक वर्ष का वक्त गुजर जाने के बाद भी भर नहीं पाए हैं। अपनों को खोने का दर्द अब भी उनके साथ है और सरकार ने जो वादे किए थे, वह एक साल गुजर जाने के बाद भी पूरे नहीं किए गए हैं। पेटलावद में 12 सितंबर, 2015 की सुबह बस स्टैंड के करीब स्थित चाय की एक दुकान में गैस सिलेंडर में विस्फोट हुआ था और उसके बाद विस्फोटक सामग्री से भरे गोदाम में भी जोरदार विस्फोट हुआ था। इस विस्फोट में 78 लोगों की जान गई और 70 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। यह धमाका इतना जोरदार था कि कई मकान ढह गए थे और चाय की दुकान पर मौजूद लोग, स्कूल जाने के लिए बस का इंतजार कर रहे बच्चे और रोजगार की तलाश करने जमा हुए मजदूर पल भर में ही शवों में बदल गए। जगह-जगह शवों के चीथड़े फैल गए थे।

चंद्रकांता राठौर (70) की आंखों के आंसू अब भी थमने का नाम नहीं लेते हैं, क्योंकि विस्फोटक सामग्री का संग्रह करने वाले राजेंद्र कासवा की दुकान उनकी ही इमारत में थी। इस हादसे में उन्होंने अपने परिवार के चार सदस्यों को खोया है और मकान रहने लायक नहीं बचा है। अब उनके परिवार में चंद्रकांता व उनके तीन पोते ही बचे हैं।

वह बताती हैं कि उन्हें मकान को हुए नुकसान के एवज में 39 लाख रुपये का मुआवजा मिलना था, मगर पिछले दिनों सरकार का एक पत्र आ गया और उसमें कहा गया है कि अब उन्हें मुआवजा नहीं मिलेगा। अब तो वे अपने पोतों के साथ दो कमरों के मकान में गुजारा करने को मजबूर हैं।

ऐसी ही कहानी सोमन राठौर की है। उन्होंने इस विस्फोट में अपने पति विजय को खोया था। उनका एक बेटा है, जो गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, सरकार ने उन्हें नौकरी का वादा किया गया था, मगर अमल अब तक नहीं हुआ है।

हादसे की बरसी पर सोमवार को घटनास्थल पर बनाए गए स्तंभ पर कस्बे के लोगों ने पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस स्थान पर उन लोगों की तस्वीरें भी लगाई गई थीं, जिनकी इस हादसे में जान गई। इस मौके पर बाजार भी बंद रहे।

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