दलित हत्या के खिलाफ सैकड़ों ने किया प्रदर्शन, मांगी जमीन और मजदूरी भी

राज्य

चांपा (छत्तीसगढ़): 22 सितम्बर/ जिले के ठाणे में दलित युवक सतीश नवरंग की हत्या के खिलाफ छत्तीसगढ़ किसान सभा के आह्वान पर सैकड़ों दलित-आदिवासी किसानों ने सक्ती एसडीएम कार्यालय पर प्रदर्शन किया तथा जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों और दबंगों की गिरफ्तारी की मांग की. प्रदर्शनकारियों ने वनाधिकार कानून के तहत वनभूमि का पट्टा देने, मनरेगा की बकाया मजदूरी देने, 300 रूपये बोनस सहित 2400 रूपये प्रति क्विंटल की दर पर धान खरीदी करने तथा अनाप-शनाप बिजली बिल वसूली पर रोक लगाने की भी मांग की. प्रदर्शनकारियों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं, जिनका नेतृत्व स्थानीय किसान सभा नेता सुखरंजन नंदी, केराराम मन्नेवार, बजरंग पटेल, आश्रम पटेल, अंजोरसिंह, गुड्डीबाई, फुलेश्वरी, साधमति आदि कर रहे थे. सक्ती थाने के सामने से निकली रैली ने शहर भ्रमण कर एसडीएम को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा. प्रदर्शनकारियों ने "गाय की पूंछ तुम रखो, हमें हमारी जमीन दो" जैसे नारे भी लगाये, जो आज दलित आन्दोलन का प्रसिद्ध नारा बन चूका है.

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष तथा माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने रमन सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि गांव के दबंगों के साथ मिलकर सतीश नवरंग की सुनियोजित रूप से हत्या की गई है, ताकि दलितों के शोषण-उत्पीडन के खिलाफ कोई आवाज न उठा सके. उन्होंने कहा कि पूरे देश में गाय के नाम पर दलितों और मुस्लिमों पर हमले हो रहे हैं, जबकि हमलावरों पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है. इन्हीं दलितों की जमीन को गांव के सामंती दबंगों ने हथिया रखा है और जब ये मनरेगा में काम करते हैं, तो इन्हें मजदूरी भी समय पर नहीं दी जाती. पराते ने मोदी-रमन सरकार पर किसानविरोधी होने का आरोप लगाया तथा कहा कि इनकी नीतियों के कारण किसान भूख से मर रहे हैं, कर्ज़दार बन गए हैं और आत्महत्या करने को मजबूर हैं. पराते ने कहा कि भाजपा-आरएसएस के 'हिन्दू-राष्ट्र' में दलित-आदिवासियों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों और गरीबों की कोई जगह नहीं होगी और आज इसी का ट्रेलर देश में दिखाया जा रहा है.

सुखरंजन नंदी, बजरंग पटेल, केराराम मन्नेवार, आशाराम पटेल ने कहा कि सत्ता में आने से पहले भाजपा ने इस देश के मजदूर-किसानों से जो वादा किया था, आज उनको ठेंगा दिखाया जा रहा है. वादा था लाभकारी मूल्य देने का, आज लागत मूल्य भी नहीं दिया जा रहा है; वादा था भूमिहीनों को जमीन देने का, आज गरीबों से जमीन छीनी जा रही है; वाद था किसानों को सिंचाई का पानी देने का, आज उद्योगों के लिए पानी सुरक्षित हो गया है; वाद था 'अच्छे दिनों' का, आज पहले से भी बदतर दिन देखने पड़ रहे हैं. किसान नेताओं ने अपनी अस्मिता-अस्तित्व के लिए इन सर्वनाशकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष पर जोर दिया और कहा कि ऐसा अनवरत और जुझारू संघर्ष केवल वामपंथ के नेतृत्व में ही चलाया जा सकता है.

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