भोपाल में बंटा मिट्टी वाला गेहूं, तो क्या होगा गांव का आलम!

राज्य, खरी बात

संदीप पौराणिक

मध्य प्रदेश की गिनती देश के उन राज्यों में होती है, जहां समाज कल्याण की अनोखी योजनाएं चल रही हैं, मगर राजधानी में ही बाढ़ पीड़ितों को गेहूं के स्थान पर मिट्टी बांटे जाने का मामला सामने आने पर पूरी सरकार ही कटघरे में खड़ी नजर आने लगी है और अन्य योजनाओं पर भी सवाल उठने लगे हैं।

सत्ता पक्ष हो या विपक्ष अथवा समाज के विभिन्न वर्ग हर तरफ से एक ही सवाल उठ रहा है कि अगर राजधानी में ही राहत के नाम पर आंखों में धूल झोंकने की कोशिश हो सकती है, तो सुदूर ग्रामीण इलाकों का हाल क्या होगा?

इन ग्रामीण इलाकों में अफसरशाही के आगे किसी की एक नहीं सुनी जाती।

समाजशास्त्री एस. एन. चौधरी का मानना है कि भोपाल में बाढ़ प्रभावितों के साथ सरकार की ओर से मजाक किया गया है। पीड़ितों को आज सरकार के समर्थन की जरूरत है, जो उन्हें उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति को संवारने का भरोसा दिलाती। उन्हें मनोवैज्ञानिक संबल देती लेकिन सरकार ने तो जागीरदारी परंपरा की तरह पीड़ित को अनाज दिया और वह भी मिट्टी वाला। हालांकि, अच्छा अनाज भी दे दिया जाता तो पीड़ितों का कुछ बनने वाला नहीं था।

ज्ञात हो कि राजधानी में पिछले दिनों हुई भारी बारिश से कई बस्तियों में बाढ़ के हालात बन गए थे। प्रभावितों को निकालने के लिए नाव तक चलानी पड़ी थी। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रभावितों के बीच पहुंचकर मदद का भरोसा दिलाया था। मगर इसका परिणाम मंगलवार को सामने आया, जब प्रभावितों को बांटी गई 50-50 किलो ग्राम गेहूं की बंद बोरियों में 20 किलो तक मिट्टी निकली।

कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि भोपाल में जो हुआ है वह इस बात की पुष्टि करता है कि राज्य में प्रशासन और सरकार पर माफिया हावी है, तभी तो पीडीएस का गेहूं जो बाढ़ पीड़ितों को बांटा गया है, उसमें गेहूं के बराबर ही मिट्टी निकली।

यहां सवाल यह उठता है कि जब राजधानी में इस तरह की बात सामने आई हैं, तो ग्रामीण इलाकों में क्या हो रहा है? इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है।

सरकार ने भी इस घटना को दुर्भाग्यजनक माना है। प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने भरोसा दिलाया है कि जो लोग भी मिट्टी वाला गेहूं बांटने में दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

वहीं जनता दल (यूनाइटेड) के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद यादव भोपाल के वाकये को राज्य में व्याप्त प्रशासनिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार का उदाहरण करार देते हैं। वे कहते हैं कि राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार का तो यह हांडी के चावल के समान है। एक तरफ गरीब, कमजोर लोगों को मौलिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं और राज्य सरकार 'आनंद विभाग' की बात कर रही हैं। आम आदमी को आनंद की जरूरत तो तब होगी जब उसे मौलिक सुविधाएं मिल जाएंगी। वास्तव में आनंद की दरकार तो अमीरों को है।

राज्य में राशन वितरण पर सत्ता पक्ष के विधायक और पूर्व मंत्री बाबूलाल गौर ने भी सवाल उठाया। उनका कहना है कि राशन दुकानों से सड़ा गेहूं बांटा जा रहा है। यह शिकायत उनके क्षेत्र के लोगों ने उनसे की है।

राज्य के ग्रामीण इलाकों में व्याप्त गड़बड़ियों की शिकायतें आना तो आम है, मगर पहली बार ऐसा मामला राजधानी में सामने आया है। पूरी सरकार ही मिट्टी वाला गेहूं बांटने के बाद सक्रिय नजर आ रही है। देखना होगा कि विपक्ष के हमलों और पीड़ितों में पनपे असंतोष से सरकार कैसे निपटती है?

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