विदेश नीति में आई सक्रियता : प्रणब
राष्ट्रीय Aug 14, 2016नई दिल्ली, 14 अगस्त (आईएएनएस)| राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि हाल के समय में हमारी विदेश नीति में काफी सक्रियता दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि अफ्रीका और एशिया प्रशांत के पारंपरिक साझेदारों के साथ ऐतिहासिक संबंध फिर से सशक्त किए गए हैं, सभी देशों विशेषकर अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ साझे मूल्यों और परस्पर लाभ पर आधारित नए रिश्ते स्थापित करने की प्रक्रिया जारी है। राष्ट्रपति ने कहा, " 'पड़ोसी प्रथम नीति' से हम पीछे नहीं हटेंगे।" राष्ट्रपति प्रणब 70वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, "इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और भूगोल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझे भविष्य का निर्माण करने और समृद्धि की ओर मिलकर अग्रसर होने का विशेष अवसर प्रदान करते हैं। इस अवसर को बिना देरी किए हासिल करना होगा। विदेश नीति पर भारत का ध्यान शांत सहअस्तित्व और इसके आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उपयोग पर केंद्रित होगा।"
प्रणब ने कहा, "विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है, जिनकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं। ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को बदलने की धमकी भी दे रही हैं, जो विश्व शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। ऐसे समूहों की अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरतापूर्ण कार्यप्रणाली हाल ही में फ्रांस, बेल्जियम, अमेरिका, नाइजीरिया, केन्या और हमारे निकट अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में दिखाई दी है। ये ताकतें अब सम्पूर्ण राष्ट्र समूह के प्रति एक खतरा पैदा कर रही हैं। विश्व को बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा।"
प्रणब ने कहा, "हमारे देश की मूल भावना तथा जीने और उत्कृष्ट कार्य करने की जिजीविषा का कभी दमन नहीं किया जा सकता। अनेक बाहरी और आंतरिक शक्तियों ने सहस्राब्दियों से भारत की इस मूल भावना को दबाने का प्रयास किया है, परंतु हर बार यह अपने सम्मुख प्रत्येक चुनौती को समाप्त, आत्मसात और समाहित करके और अधिक शक्तिशाली और यशस्वी होकर उभरी है।"
उन्होंने कहा, "1970 में इतिहासकार आर्नोल्ड टॉयनबी ने समकालीन इतिहास में भारत की भूमिका के बारे में कहा था- 'आज हम विश्व इतिहास के इस संक्रमणकारी युग में जी रहे हैं, परंतु यह पहले ही स्पष्ट होता जा रहा है कि इस पश्चिमी शुरुआत का, यदि इसका अंत मानव जाति के आत्मविनाश से नहीं हो रहा है तो समापन भारतीय होगा।' टॉयनबी ने आगे यह भी कहा कि मानव इतिहास के मुकाम पर, मानवता की रक्षा का एकमात्र उपाय भारतीय तरीका है।"
उन्होंने इस अवसर पर सैन्य बलों, अर्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को बधाई दी, जो मातृभूमि की एकता, अखंडता और सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए हैं।
प्रणब ने अंत में उपनिषद का उल्लेख करते हुए कहा, "ईश्वर हमारी रक्षा करे। ईश्वर हमारा पोषण करे। हम मिलकर उत्साह और ऊर्जा के साथ कार्य करें। हमारा अध्ययन श्रेष्ठ हो। हमारे बीच कोई वैमनस्य न हो। चारों ओर शांति ही शांति हो।"