आज़ादी के मायने

साहित्य

नैना शर्मा

हैं गुलाम हम अबी भी,
कहीं भुखमरी,तो कहीं बेरोज़गारी के,
पर प्रतिवर्ष,
हम धूमधाम से आज़ादी का दिन मना रहे।।

क्यूँ नही समझ पा रहे हम,
आजाद होने के मायने,
क्यूँ नही जान पा रहे हम,
आजाद देश के मायने,
आज हम गुलामी में रहने के आदी हो गए,
पर बड़े फक्र से स्व्तंत्रता दिवस मना रहे।।

हम भूल गए शहादत अपने वीरों की,
हम बिसार गए कुर्बानी अमर शहीदों की,
किसी ने भगत सिंह की शक्ल में,
तो किसी ने गाँधी के रूप जान दी,
पर हम भूल गए उनकी शहादत की कहानी,
बस प्रति वर्ष दोहरा रहे है बचपन से रटी कहानी।

काश हम आजाद हो पाते,
हमारी गन्दी मानसिकता से,
मुक्त हो पाते लालच और धन लोलुपता से,,
बिन सोचे,बिन विचारे,
हम मना रहे हैं आजादी का दिन,
कर रहें हैं पूरी एक राष्ट्रिय रसम।।

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