
सरदार सरोवर परियोजना के 1561 प्रभावितों की रजिस्ट्री फर्जी, दलालों-अधिकारियों ने डकारी मुआवजा राशि
राज्य, राष्ट्रीय Aug 11, 2016भोपाल, 11 अगस्त| सरदार सरोवर परियोजना के प्रभावितों के पुनर्वास में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति एस.एस. झा आयोग की रपट में एक बड़ा खुलासा हुआ है। रपट के मुताबिक, अफसरों और दलालों ने सांठगांठ कर 1561 प्रभावितों के नाम पर फर्जी रजिस्ट्री कराई और मुआवजे की राशि डकार गए, जबकि सरकार की जांच में यह आंकड़ा 686 ही था। राष्ट्रीय जन आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक मधुरेश कुमार, नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े अमूल्य निधि, देवेंद्र सिंह, हृदाराम, रहमत भाई और मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद्र बेहार ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बुधवार को कहा कि झा आयोग की रपट ने साबित कर दिया है कि सरदार सरोवर के प्रभावित चार जिलों बड़वानी, धार, अलीराजपुर व खरगौन के लगभग 45 हजार परिवारों के पुनर्वास में गड़बड़ी हुई है।
नर्मदा कार्यकर्ताओं ने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय ने 15 मार्च, 2005 को सरदार सरोवर परियोजना से 25 प्रतिशत से अधिक डूब क्षेत्र में आने वाले प्रभावित परिवारों को जमीन के बदले जमीन देने के निर्देश दिए थे। महाराष्ट्र और गुजरात में तो जमीन के बदले जमीन मिली, मगर मध्य प्रदेश सरकार ने विशेष पुनर्वास पैकेज बनाकर डूब प्रभावितों को जमीन के बदले नकद राशि देने का फैसला किया। जिन किसानों की जमीन 25 प्रतिशत से अधिक डूब में आई, उन्हें 5़ 58 लाख रुपये से 6़ 60 लाख रुपये देना तय हुआ।"
आयोग की रपट के आधार पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने दावा किया है कि प्रभावितों को राशि ही नहीं मिली, उलटे दलालों ने अफसरों के साथ सांठगांठ कर फर्जी रजिस्ट्रियां तैयार कर राशि हड़प ली।
आयोग ने पाया है कि जमीनों की कुल 3,366 रजिस्ट्रियां हुईं, उनमें 1561 रजिस्ट्रियां फर्जी हैं। इतना ही नहीं, 88 पुनर्वास स्थलों पर कोई सुविधा नहीं है और आजीविका निधि का लाभ भी प्रभावितों को नहीं मिला है।
नर्मदा कार्यकर्ताओं ने कहा, "1,560 परिवार ऐसे हैं, जिन्हें अब तक जमीन ही नहीं मिली है। इस परियोजना में 1500 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है और इसकी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच होनी चाहिए।"
नर्मदा आंदोलन के सदस्यों के मुताबिक, सात वर्षो की जांच के बाद आई रपट में स्पष्ट रूप से निष्कर्ष दिया गया है कि फर्जी रजिस्ट्रियों से प्रभावितों को जमीन से वंचित करने के लिए सरकारी नीतियां ही दोषी हैं। उन्होंने कहा कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, राजस्व विभाग, पंजीयन विभाग तथा बैंक अधिकारियों ने दलालों के साथ मिलकर यह घोटाला किया।
आयोग ने डूब प्रभावितों के नाम पर जमीन की फर्जी रजिस्ट्री के गठजोड़ में शामिल 186 दलालों के नाम भी अपनी रपट में उजागर किए हैं। आयोग ने गोवर्धन जायसवाल नामक दलाल का जिक्र करते हुए कहा है कि उसने व उसके परिवार की एक ही जमीन की कई-कई प्रभावितों के नाम रजिस्ट्री की गई है।
उल्लेखनीय है कि सरदार सरोवर प्रभावितों के पुनर्वास में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा 'सरदार सरोवर परियोजना' फर्जी विक्रय-पत्र एवं पुनर्वास स्थल अनियमितता जांच आयोग का गठन अगस्त 2008 में किया गया था। आयोग ने अपना काम अप्रैल 2009 में शुरू किया। करीब छह वर्षो की जांच के बाद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर 30 मार्च, 2016 को जांच रपट मध्य प्रदेश सरकार को सौंपी गई। राज्य सरकार ने विधानसभा में 'शासकीय संकल्प' प्रस्तुत किया। रपट तथा संकल्प मानसून सत्र के आखिरी दिन 29 जुलाई को पेश किए गए।
कार्यकर्ताओं की मांग है कि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर तब तक न बढ़ाया जाए, जब तक 192 गांव और धरमपुरी नगर के प्रभावितों का पुनर्वास न हो जाए। क्योंकि झा आयोग की रपट से स्पष्ट हो गया है कि सरदार सरोवर प्रभावितों का पुनर्वास हुआ ही नहीं है।
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पुनर्वास हुए बिना ही केंद्र और राज्य सरकार सरदार सरोवर बांध का गेट बंद कर नर्मदा घाटी के 244 गांवों और एक नगर को जल समाधि देने को उतावली हो रही है।
उन्होंने कहा, "आयोग के निष्कर्षो के बाद सरकार को चाहिए कि वह एक पारदर्शी और ईमानदार व्यवस्था गठित कर सभी प्रभावितों का नीति अनुसार पुनर्वास करे। जब तक प्रत्येक विस्थापित का पुनर्वास नहीं हो जाता, तब तक बांध का जलस्तर न बढ़ाया जाए।"