
बाढ़ पीड़ितों की दर्दनाक कहानी, 'सब कुछ त दहाड़ (बाढ़) में बह गेलय'
राज्य, फीचर Sep 02, 2016मनोज पाठक
बिहार के पटना, वैशाली, सारण जिले सहित 12 जिलों में 'जीवनदायिनी' कही जाने वाली गंगा और उसकी सहायक नदियों में आई बाढ़ ने कई लेागों की गृहस्थी उजाड़ दी। लोग अपने घर-बाग को छोड़ शिविरों में जाना तो नहीं चाहते थे, मगर अपनी जिंदगी बचाने के लिए उन्हें शिविरों में पनाह लेनी पड़ रही है।
पटना, वैशाली, भोजपुर और सारण जिले के दियारा क्षेत्र (नदी किनारे मैदानी इलाके) में आई बाढ़ से गांव के लोग पलायन कर गए हैं। अपने घर को छोड़ने का दर्द और अपनों से बिछुड़ने का गम इन लोगों के चेहरे पर साफ झलकता है, लेकिन अपनी जिंदगी बचाने के लिए करीब-करीब प्रतिवर्ष इन्हें यह कुर्बानी देनी पड़ती है।
पटना के बी़ एऩ कॉलेजिएट स्कूल के बाढ़ राहत शिविर में अपनी नन्ही सी बिटिया को कलेजे से चिपकाए, सबलपुर दियारा की रहने वाली पिंकी देवी कहती हैं कि वे लोग अपना घर नहीं छोड़ना चाहते थे, लेकिन स्थानीय लोग उन्हें यहां ले आए। उनके पति अपने घर को छोड़ना नहीं चाह रहे थे। वे घर देखने के लिए घर में ही रहना चाहते थे, मगर लोगों की जिद्द के कारण उन्हें भी यहां आना पड़ा।
पिंकी मगही में कहती हैं, "सब दिन एके साथे रहलियै, अब कइसे छोड़ देबइ।"
पटना के दीदारगंज राहत शिविर में रहने वाली वैशाली जिले के बीरपुर गांव की रहने वाली मीना कहती हैं कि कहने को तो गंगा मइया को जीवनदायिनी कहा जाता है, लेकिन यहां तो प्रतिवर्ष वह लोगों को उजाड़ देती है। मीना अपने पिता को कोस रही है कि उन्होंने उसका विवाह गंगा और गंडक के बीच राघोपुर में कर दिया।
बी़ एऩ कॉलेजिएट राहत शिविर में रहने वाले लोगों का दर्द है कि गंगा नदी में बाढ़ आती है तो उनका घर उजड़ जाता है, खाने के लाले पड़ जाते हैं।
राहत शिविर में रह रहे केश्वर राय कहते हैं, "आंखों के सामने उनका आशियाना गंगा में आई बाढ़ ने उजाड़ दिया और मैं बेबश था। गंगा नदी हथौड़ा चला रही थी और मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि शायद कुछ बच जाए जो भविष्य की नींव रखने के काम आए, मगर गंगा ने तिनका भी नहीं छोड़ा।"
भले ही गंगा के आसपास रहने वालों का एक ही दर्द हो, लेकिन गंगा को शांत करने के लिए लोग अब पूजा भी कर रहे हैं। कई स्थान पर महिलाएं गंगा को मनाने के लिए गीत गा रही हैं और अपने सुहाग की पहचान सिंदूर चढ़ा रही हैं। महिलाओं को आशंका है कि गंगा कहीं अपने रौद्र रूप में न आ जाए।
इधर, राहत शिविर में रहने वाले लोगों को जहां अपने आशियाना के उजड़ने का गम सता रहा है, वहीं राहत शिविरों में उपलब्ध सुविधा से भी वे नाराज हैं। पटना के एक राहत शिविर में रहने वाली सबलपुर गांव निवासी मनोरमा के बच्चे को दस्त हो रहा है, लेकिन उन्हें दवा नहीं मिल पा रही है।
मनोरमा का कहना है कि राहत शिविर में डॉक्टर ने एक दिन की दवा दी और कहा कि दवा की कमी है, अगले दिन आना। मनोरमा मगही में कहती हैं, "यदि दवाइया न मिलतय त हम कहां से खरीद के लैबइ? सब कुछ त दहाड़ (बाढ़) में बह गेलय। अब आगे का होतय भगवाने मालिक।"

